Uttarakhand

भारत से तनाव के बीच मुइज्जू सरकार पर मंडराया खतरा

मालदीव में नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद से ही भारत और मालदीव के रिश्तों में दरार आना शुरू हो गयी है। लेकिन भारत से संबंध ख़राब करना अब मुइज्जू पर ही भारी पड़ता नजर आ रहा है। इसी का परिणाम है कि भारत से सम्बन्ध बिगड़ने वाले फैसलों को लेकर विपक्ष मुइज्जू के इस फैसले के विरोध में खड़ा है। हल ही में भारत का समर्थन करते हुए मालदीव की जम्हूरी पार्टी (जेपी) के नेता कासिम इब्राहिम ने राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू से पीएम मोदी और भारत के लोगों से औपचारिक रूप से माफी मांगने के लिए कहा है।

 

समाचार रिपोर्ट्स के अनुसार जम्हूरी का कहना है कि राष्ट्रपति द्वारा उठाये गए क़दमों से भारत और मालदीव के रिश्ते ख़राब हो सकते हैं जो अच्छा नहीं है। खासकर जब भारत उनका पडोसी है तो यह फैसला और भी गलत है। एएनआई ने स्थानीय मीडिया हाउस वॉइस ऑफ मालदीव का हवाले देते हुए बताया है कि मालदीव के कासिम इब्राहिम  के इस बयान से पहले तीन नेताओं ने भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां की थी। जिसके  बाद कासिम इब्राहिम ने यह बयान दिया है।

 

क्या है कासिम का पूरा बयान

 

मुइज्जू का विरोध और भारत का समर्थन करते हुए कासिम ने यह महत्वपूर्ण बयान दिया है जिसमें उन्होंने कहा कि किसी भी देश के बारे में, खासतौर पर पड़ोसी देश के बारे में इस तरह की बयानबाजी नहीं करनी चाहिए जिससे रिश्तों पर असर पड़े। हमारे देश के प्रति हमारा दायित्व है जिस पर हमें विचार करना चाहिए। पूर्व राष्ट्रपति सोलिह ने इस दायित्व पर विचार करते हुए  “इंडिया आउट” अभियान पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था। लेकिन मुइज्जू सरकार ने ऐसा नहीं किया है। उनका कहना है कि मालदीव में इंडिया आउट के इस फरमान को रद्द नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे केवल राष्ट्र को नुकसान ही होगा। साथ ही उन्होंने मुइज्जू से यह आह्वान भी किया है कि चीन यात्रा के बाद अपनी टिप्पणियों के संबंध में भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी से औपचारिक रूप से माफी मांगे।

 

क्या है ‘इंडिया आउट’

 

मालदीव में मुइज्जू की सरकार के सत्ता में आने के बाद से की “इंडिया आउट” यानि भारत के सैनिकों को मालदीव से हटाए जाने के मामले में तेजी आ गयी है। इसके अलावा भी मुइज्जू ने कई ऐसे कदम उठाये हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि मुइज्जू भारत से सम्बन्ध खत्म करना चाहते हैं। जिसमे से पहला भारतीय सेना हटाने का ऐलान है , जिसके आधार पर COP29 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान मालदीव राष्ट्रपति द्वारा एक ऐलान किया गया था कि भारत मालदीव से अपने सेना हटाने को तैयार हो गयी है। मालदीव और भारत के बीच पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के कार्यकाल के दौरान नज़दीकियां बढ़ी थी। जो अब कम होती नज़र आ रही हैं। भारत और चीन दोनों के लिए मालदीव सामरिक और रणनीतिक दोनों ही दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। जिसके लिए भारत न सिर्फ मालदीव में अच्छा निवेश करता है बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर तमाम चीजें डेवलप करने में मदद करता है। चीन भी लगातार मालदीव में अपने पांव ज़माने का प्रयास करता रहा है।

भारत ने मालदीव को 2 हेलीकॉप्टर और एक डोर्नियर एयरक्राफ्ट भी डोनेट किये जो इमरजेंसी मेडिकल सर्विसेज, रेस्क्यू और समुद्र की निगरानी और पैट्रोलिंग के काम आते हैं। इन विमानों के देखरेख के लिए कई भारतीय टेक्नीशियन और पायलट मालदीव में रहते हैं। एक रिपोर्ट्स के अनुसार यहाँ के लामू और अद्दू द्वीप पर साल 2013 से ही भारतीय सैनिक तैनात हैं। साथ ही भारतीय नौसैनिक भी मालदीव में तैनात हैं। पूरे मालदीव में भारतीय नौसेना ने 10 एकीकृत तटीय निगरानी प्रणाली का प्रबंधन कर रखा है।

मुइज्जू

 

मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स के प्रमुख जनरल अब्दुल्लाह शमाल और रक्षा मंत्री मारिया अहमद दीदी का कहना है कि मालदीव में 75 भारतीय सैनिक तैनात हैं। भारतीय सेना ने पहली बार वर्ष 1988 में मालदीव में प्रवेश किया जब मालदीव में हुए सत्ता पलट के विरोध में तात्कालिक राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम ने भारत से सैन्य मदद मांगी। मालदीव भारत के लिए बहुत अहम है जिसके कारण भारत किसी भी स्थिति में इस देश से संबंध खराब नहीं करना चाहता। इसलिए भारत सरकार बेझिझक उनकी मदद के लिए आगे आई । यह पहली बार था जब भारतीय सेना ने मालदीव में प्रवेश किया।

इसी प्रकार भारत- मालदीव के बीच हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौता भी खत्म कर दिया गया जिसके तहत मालदीव ने साल 2019 में भारत के साथ हुए हाइड्रोग्राफिक सर्वे समझौते को भी खत्म कर दिया गया है। यह समझौता भारतीय नौसेना और मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल के बीच जल विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग के लिए हुआ था। जिसके तहत भारतीय नौसेना को मालदीव के साथ नौसंचालन की सुरक्षा, आर्थिक विकास, सुरक्षा और रक्षा सहयोग, पर्यावरण संरक्षण, तटीय क्षेत्र प्रबंधन और वैज्ञानिक अनुसंधान के सुधार में मदद के लिए मालदीव में व्यापक हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने की अनुमति थी। दरअसल जून, 2019 में दोनों देशों बीच यह समझौता पांच वर्षों के लिए हुआ था। जो आने वाले वर्ष 2024 के जून माह में ये खत्म हो रहा है और इसे फिर से रिन्यू किया जाना है लेकिन अब मोइज्जू ने इस द्विपक्षीय समझौता को आगे बढ़ाने के बजाय खत्म करने का फैसला ले लिया है।

 

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