कहा जाता है कि जब अमेरिका को छींक आती है तो इसका असर बाकी देशों पर भी पड़ता है। ऐसे में हाल में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की सत्ता में वापसी के बाद तरह-तरह की कयासबाजी और कई मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक पंडितों और विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि ट्रम्प के आने से न केवल अमेरिका, बल्कि दुनिया के अन्य मुल्कों में भी प्रभाव देखने को मिल सकता है
अमेरिका दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि जब अमेरिका को छींक आती है तो इसका असर बाकी देशों पर भी पड़ता है। ऐसे में हाल में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की भारी मतों से देश की सत्ता में वापसी के बाद कई मायने निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि ट्रम्प की वापसी से दुनिया भर में खासकर रूस-यूक्रेन, इजराइल और हमास के बीच चल रहे युद्ध सहित भारत चीन पर इसका क्या असर पड़ेगा। राजनीतिक पंडितों और विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि अमेरिकी सत्ता में ट्रम्प के आने से न केवल अमेरिका, बल्कि विश्व भर में प्रभाव देखने को मिल सकता है।
गौरतलब है कि हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में 7 नवंबर को यूरोपीय यूनियन के दर्जन भर नेता जुटे हुए थे। उनमें से कुछ ट्रम्प की जीत से खुश थे तो कुछ संशय में थे कि आगे क्या होगा। हंगरी के प्रधानमंत्री और ट्रम्प सहयोगी विक्टर ओरबान ने ट्रम्प की जीत को लेकर कहा कि ये तो होना ही था। दावा किया जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल सुरक्षा, व्यापार और क्लाइमेट चेंज को लेकर कई यूरोपीय देशों के लिए मुश्किलों को पैदा कर सकता है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने कहा है कि वह जर्मन चांसलर ओलाफ शुल्त्ज की बात से सहमत हैं कि ‘इस नए संदर्भ में हमें एकजुट होकर यूरोप को और मजबूत बनाने की दिशा में काम करना होगा। जर्मन विदेश मंत्री एनालेना बेयरबाक ने यूक्रेन से लौटने के बाद कहा था कि यूरोपियन नेताओं को ‘सोच को बड़ा रखते हुए यूरोप की सुरक्षा में बड़ा निवेश करना होगा इसमें अमेरिका हमारा भागीदार है। जर्मन राजनेता और यूरोपीय यूनियन कमीशन की प्रमुख उर्सुला वोन डेर लेयेन ने ट्रम्प को बधाई देते हुए याद दिलाया कि लाखों नौकरियां और करोड़ों का व्यापार उनके अटलांटिक सागर के उस पार के रिश्तों पर निर्भर है। अंदेशा लगाया जा रहा है कि अमेरिका यूरोपीय यूनियन के आयात पर आयात शुल्क में भारी बढ़ोतरी कर सकता है।
यूक्रेन पर दबाव बना सकते हैं ट्रम्प
रूस-यूक्रेन के युद्ध पर भी ट्रम्प का प्रभाव पड़ सकता है। यूरोप के इन दोनों देशों के बीच करीब तीन साल से युद्ध जारी है। पूरे चुनावी अभियान के दौरान एक तरफ ट्रम्प यूक्रेन की आलोचना करते रहे तो वहीं दूसरी ओर वो रूस की आलोचना करने से कतराते रहे। विदेशी मामलों के जानकारों का मानना है कि ट्रम्प रूस- यूक्रेन पर युद्ध खत्म करने का दबाव बना सकते हैं। जैसा कि ट्रम्प ने चुनावी प्रचार के दौरान कहा भी कि चुनाव जीतने के बाद वे रूस- यूक्रेन युद्ध को खत्म कर देंगे। ऐसे में यूक्रेन पर चिंता के बादल छाए हैं कि अगर अमेरिका ने उसे सैन्य और आर्थिक सहायता नहीं दी और उस पर रूस से युद्ध खत्म करने का दबाव बनाया गया तो रूस एक बार फिर सबसे ताकतवर होकर यूक्रेन को खत्म करने का प्रयास करेगा।
जानकारों का मानना है कि यूक्रेन भले ही उन देशों की कतार में है जिन्होंने ट्रम्प को सबसे पहले राष्ट्रपति चुनाव में जीत की बधाई दी लेकिन ट्रम्प के मन में यूक्रेन के खिलाफ बीज पनप चुका है। ट्रम्प यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को ‘इतिहास का सबसे बड़ा सेल्समैन’ बता चुके हैं। वे यूक्रेन को अमेरिकी आर्थिक सहायता देने के खिलाफ रहे हैं। ट्रम्प जो बाइडेन के शासन पर भी इसे लेकर निशाना साधते रहे हैं। उनके अनुसार बाइडेन शासनकाल में अमेरिकी नागरिकों से प्राप्त होने वाला टेक्स यूक्रेन को दी जाने वाली आर्थिक सहायता में जाता रहा है। यही नहीं रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिकी सेना द्वारा यूक्रेन की सहायता करने के भी ट्रम्प खिलाफ रहे हैं और इसकी आलोचना करते रहे हैं। ट्रम्प ने कहा था कि अगर वो राष्ट्रपति होते तो रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू ही नहीं होता।
ट्रम्प को चुनावी जीत की बधाई देते हुए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अमेरिका-रूस संबंधों को बहाल करने और यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। दोनों नेताओं ने यूरोपीय महाद्वीप पर शांति के लक्ष्य पर चर्चा की और ट्रम्प ने रूस-यूक्रेन युद्ध के जल्द ही समाधान पर चर्चा करने के लिए आगे भी बातचीत जारी रखने में रुचि व्यक्त की है। एक साक्षात्कार के दौरान रूस को लेकर ट्रम्प ने कहा था कि सोचता हूं कि दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध हों, रूस को लेकर मैं जितना सख्त रहा हूं, उतना अमेरिका का कोई भी राष्ट्रपति नहीं रहा है।
गौरतलब है कि पुतिन और अमेरिका का रवैया यूरोप को लेकर एक सा रहा है। ट्रम्प के पहले कार्यकाल में फ्रांस, जर्मनी ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देश असहज दिखे थे। इसके आलावा पड़ोसी देश कनाडा को लेकर भी ट्रम्प का काफी कड़ा रुख था। असल में ट्रम्प नहीं चाहते हैं कि अमेरिका किसी भी ऐसे समझौते में रहे जिससे उसका नुकसान हो रहा हो। ऐसे में उनके इस कार्यकाल में भी अमेरिका फर्स्ट नीति अपनाई जाने की पूरी सम्भावना है।
खत्म हो जाएगा इजरायल-हमास युद्ध?
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प की जीत से उम्मीदें लगाई जा रही हैं कि मध्य पूर्व पश्चिम एशिया खासकर इजरायल और हमास के बीच साल 2023 से चल रहा युद्ध जो एक साल के अंदर इजरायल और हमास से लेकर लेबनान, इजरायल और ईरान के बीच तक पहुंच चुका है वो अब रुक जाएगा। ट्रम्प की जीत इजरायल के लिए फायदेमंद तो ईरान के लिए नुकसानदायक मानी जा रही है। हाल ही में ईरान को लेकर अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने खुलासा किया है कि ट्रम्प पर हमले के पीछे ईरानी साजिश थी। ईरान ने फरहाद शकेरी नाम के एक शख्स को ट्रम्प की हत्या का आदेश दिया था। इसके बदले उसे 5 लाख डॉलर की पेशकश की गई थी। ट्रम्प पर 13 जुलाई ,16 सितंबर, 12 अक्टूबर को हमले किए गए थे। ऐसे में ट्रम्प की जीत ईरान के लिए और मुश्किलें खड़ी कर सकती है वहीं इजरायल को इस बार अमेरिका का पूरा समर्थन मिल सकता है। इजरायल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने सच्ची जीत के नाम पर ट्रम्प को बधाई दी है। ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल के दौरान इजरायल को खुला समर्थन दे चुके हैं।
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में जब अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते को रद्द कर दिया था तो उस वक्त इजरायल ने अमेरिका का साथ दिया था। ऐसे में ट्रम्प की एक बार फिर वापसी से इजरायल में खुसी की लहरें दौड़ गई हैं। इजरायल लगातार ईरान से लेकर गाजा में हमास, लेबनान में हिज्बुल्लाह, यमन में हूती आतंकियों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। ट्रम्प की जीत के बाद दुनिया मिडिल ईस्ट को लेकर सम्भावना और संदेह के घेरे में घिरी है। एक ओर संभावना ये है कि ट्रम्प के कहने पर इजरायल ये युद्ध रोक सकता है लेकिन दूसरी तरफ आशंका यह भी है कि कहीं ट्रम्प की जीत इजरायल के लिए बूस्टर डोज साबित न हो जाए।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार साल 1967 के युद्ध में सीरिया से इजरायल ने गोलान पहाड़ी के क्षेत्र को छीन लिया था। जिसे ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान इस इलाके पर इजरायल के दावों को लेकर मान्यता दी थी। इसके अलावा ट्रम्प ने ही पवित्र शहर यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी थी जोकि दशकों पुरानी अमेरिकी नीति के खिलाफ था। अमेरिका में इजरायल के पूर्व राजदूत माइकल ओरेन का कहना है कि जहां तक इजरायल की बात है तो ट्रम्प का पहला कार्यकाल ‘अनुकरणीय’ रहा है। ओरेन के अनुसार ट्रम्प के शासन संभालने के बाद अगर ट्रम्प एक सप्ताह के अंदर इस जंग को खत्म करने के लिए नेतन्याहू को कहते हैं तो उन्हें उनकी बात का सम्मान करना पड़ेगा।
चीन को लग सकता है बड़ा झटका
पूर्वी एशियाई देशों की बात करें तो अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी से चीन को बड़ा झटका लग सकता है। ट्रम्प चीन के कट्टर विरोधी माने जाते हैं और वे हमेशा उसके खिलाफ मुखर रहे हैं। पहले से ही मंदी में चल रही चीन की अर्थव्यवस्था भी चौपट हो सकती है। हालांकि चीन इससे निपटने की तैयारी में लगा है।
अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रम्प ने चीनी आयात पर तीन सौ अरब से ज्यादा का टैरिफ लगाया था। वहीं इस बार यह आयात शुल्क 60 से 100 फीसदी तक का हो सकता है। ऐसे में चीन-अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध बड़े स्तर पर बढ़ सकता है। दावा यह भी किया जा रहा है कि पहले कार्यकाल में चीन के खिलाफ उठाए गए कदमों पर ट्रम्प अपने दूसरे कार्यकाल में दोगुना कर सकते हैं। लेकिन दूसरी तरफ ट्रम्प के चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग के साथ व्यापारिक लेन-देन संबंधी सौदों के लिए भी खुले रहने की संभावना है।
भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ट्रम्प की बढ़ती दोस्ती किसी से छुपी नहीं है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भारत के संदर्भ में देखा जाए तो ट्रम्प का पहला कार्यकाल काफी अच्छा रहा है। वे कई मौकों पर भारत को एक शानदार देश और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को अच्छा इंसान बता चुके हैं। वो यह भी कहते रहे हैं कि उनके कार्यकाल में भारत और अमेरिका के रिश्ते सबसे मजबूत थे।
चीन को रोकने के लिए भारत का सहयोग ट्रम्प की नजर में बेहद अहम माना जाता रहा है। चार देशों का समूह ‘क्वाड’ जिसमें भारत भी शामिल है इसे फिर से सक्रिय करने की पहल भी ट्रम्प ने शुरू की थी जिसे वे फिर से नई गति दे सकते हैं। इससे अमेरिका- भारत और करीब आ सकते हैं।
ट्रम्प शासनकाल में भारत और अमेरिका के रक्षा सम्बंधों को मजबूती मिल सकती है। हालांकि ट्रम्प की अमेरिका फर्स्ट की नीति से भारत के कई सेक्टर्स पर सीधा असर पड़ेगा। डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी से भारत में विनिर्माण, रक्षा और फाइनेंस जैसे उद्योगों में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। वहीं आईटी और फार्मा जैसे सेक्टर्स को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। वीजा पॉलिसी में सख्ती और अवैध प्रवासियों को नियंत्रण करने की नीति भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। इमिग्रेशन पर कंट्रोल की वजह से आईटी सेक्टर में कोस्ट बढ़ सकती है। लेकिन मजबूत अमेरिकी डॉलर से आईटी कंपनियों की इनकम भी बढ़ सकती है। ये भी हो सकता है कि नए ग्लोबल अलायंस के तहत भारत-अमेरिका का एक मजबूत सहयोगी देश भी बने। जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश में इजाफा हो सकता है। अमेरिका और भारत का गठजोड़ भारत को एक ग्लोबल सप्लायर और पार्टनर के तौर पर स्थापित कर सकता है।
पाकिस्तान को लेकर कैसा रहेगा ट्रम्प रवैया?
ट्रम्प की नीति पाकिस्तान को लेकर बाकी देशों के राष्ट्रपतियों से अलग रही है। उन्होंने कई बार पाकिस्तान पर आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाया है। इस वजह से साल 2018 में पाकिस्तान को अमेरिका द्वारा दी जाने वाली सैन्य सहायता भी रोक दी गई थी। हालांकि जो बाइडेन के शासनकाल में अमेरिका की नीति पाकिस्तान के लिए बदली। बाइडेन ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता फिर शुरू कर दी, लेकिन अब ट्रम्प की वापसी इस प्रगति को फिर बाधित कर सकती है। ट्रम्प का सत्ता में लौटना बांग्लादेश के लिए भी अच्छी खबर नहीं है। असल में अंतरिम सरकार के मौजूदा प्रमुख मोहम्मद यूनुस डेमोक्रेट्स के करीबी माने जाते हैं। उन्हें जो बाइडेन का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में ट्रम्प की जीत उनके लिए अच्छी खबर नहीं है। यूनुस खुलेआम ट्रम्प की आलोचना करते रहे हैं। बांग्लादेश के अलावा अफगानिस्तान भी ट्रम्प के असर से अछूता नहीं रहेगा। अफगानिस्तान की बात करें तो ट्रम्प के पहले कार्यकाल में ही अमेरिका ने अफगानिस्तान से सैनिकों को बुलाने का फैसला लिया था और इसके बाद वहां फिर से तालिबान की सत्ता में वापसी हुई। ऐसे में ट्रम्प की वापसी को लेकर तालिबान एक बार फिर आशावादी बना हुआ है। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने कहा कि उसे डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सम्बंधों में एक ‘नए अध्याय’ की उम्मीद है।

