ख़य्याम साहब के गानों में एक अजब सा ठहराव, एक संजीदगी होती है, जिसे सुनकर महसूस होता है मानो कोई ज़ख़्मों पर मरहम लगा रहा हो या थपकी देते हुए हौले हौले सहला रहा हो।
फिर चाहे आख़िरी मुलाक़ात का दर्द लिए फ़िल्म बाज़ार का गाना- ‘देख लो आज हमको जी भरके’ हो या उमराव जान में प्यार के एहसास से भरा गाना हो “ज़िंदगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है मुझे, ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें” …..
भारतीय सिनेमा के दिग्गज संगीतकार मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम हाशमी का सोमवार रात साढ़े नौ बजे 93 साल की उम्र में निधन हो गया।
पिछले कुछ समय से सांस लेने में दिक़्क़त के कारण उनका मुंबई के जुहू में एक अस्पताल में इलाज चल रहा था।
ख़य्याम साहब, संगीत की दुनिया मे आने से पहले भारतीय सेना में तीन साल तक सिपाही का भी काम कर चुके हैं।
यही वजह है की उन्होंने पूरी जिंदगी अनुशासन से गुजारी।

12 फरवरी को जब पुलवामा हमला हुआ उसके बाद उन्होंने शहीदों के परिवारों की मदद भी की थी और 18 फरवरी को अपने जन्मदिवस को नहीं मनाया था।
“कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता, जिसे भी देखिए वो अपने आप में गुम है,
ज़ुबां मिली है मगर हमज़ुबां नहीं मिलता” संगीतकार ख़य्याम जिन्होंने 1947 में शुरू हुए अपने फ़िल्मी करियर के पहले पाँच साल शर्मा जी के नाम से संगीत दिया। 18 फ़रवरी 1927 को पंजाब में जन्मे ख़य्याम के परिवार का फ़िल्मों से दूर दर तक कोई नाता नहीं था। उनके परिवार में कोई इमाम था तो कोई मुअज़्ज़िन।

लेकिन उस दौर के कई नौजवानों की तरह ख़य्याम पर केवल सहगल का नशा था। वो उन्हीं की तरह गायक और एक्टर बनना चाहते थे। इसी जुनून के चलते वे छोटी उम्र में घर से भागकर दिल्ली चचा के पास आ गए। घर में ख़ूब नाराज़गी हुई लेकिन फिर बात इस पर आकर टिकी कि मशहूर पंडित हुसनलाल-भगतराम की शागिर्दी में वो संगीत सीखेगें।
कुछ समय सीखने के बाद वे लड़कपन के नशे में वो क़िस्मत आज़माने मुंबई चले गए लेकिन जल्द समझ में आया कि अभी सीखना बाक़ी है।
संगीत सीखने की चाह उन्हें दिल्ली से लाहौर बाबा चिश्ती के पास ले गई जिनके फ़िल्मी घरानों में ख़ूब ताल्लुक़ात थे। लाहौर तब फ़िल्मों का गढ़ हुआ करता था। बाबा चिश्ती के यहाँ ख़य्याम एक ट्रेनी की तरह उन्हीं के घर पर रहने लगे और संगीत सीखने लगे।
ख़य्याम के जीवन में उनकी पत्नी जगजीत कौर का बहुत बड़ा योगदान रहा जिसका ज़िक्र करना वो किसी मंच पर नहीं भूलते थे। जगजीत कौर ख़ुद भी बहुत उम्दा गायिका रही हैं।

चुनिंदा हिंदी फ़िल्मों में उन्होंने बेहतरीन गाने गाए हैं जैसे बाज़ार में देख लो हमको जी भरके या उमराव जान में काहे को बयाहे बिदेस..
जगजीत कौर ख़ुद भले फ़िल्मों से दूर रहीं लेकिन ख़य्याम की फ़िल्मों में जगजीत कौर उनके साथ मिलकर संगीत पर काम किया करती थीं।
दोनों के लिए वो बहुत मुश्किल दौर था जब 2013 में ख़य्या के बेटे प्रदीप की मौत हो गई। लेकिन हर मुश्किल में जगजीत कौर ने ख़य्याम का साथ दिया।
ख़य्याम के जाने से वो दौर जिसे हिंदी फ़िल्म संगीत का गोल्डन युग कहा जाता है, उस दौर के अंतिम धागों से जुड़ी एक और डोर टूट गई है।
लेखक जावेद अख्तर ने उनकी मृत्यु पर ट्वीट करके शोक व्यक्त किया और लिखा, ‘महान संगीतकार खय्याम साहब गुजर गए। उन्होंने कई एवरग्रीन क्रिएशन्स दी हैं, लेकिन एक जो उन्हें अमर बना देती है वो है, “वो सुबह कभी तो आएगी।’

