Uttarakhand

काव्योत्सव से मित्रता का पैगाम

सोरघाटी पिथौरागढ़ में पहली बार अंतराष्ट्रीय काव्योत्सव का आयोजन हुआ, जिसमें भारत व नेपाल के 50 से अधिक साहित्यकारों व कवियों ने भाग लिया। ज्ञान प्रकाश संस्कृत पुस्तकालय समिति पिथौरागढ़ द्वारा आयोजित दो दिवसीय यह कार्यक्रम स्थानीय हीरादेवी भट्ट बालिका विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में दोनों देशों के साहित्यकारों ने अपनी साहित्यक रचनाओं का भी आदान-प्रदान किया। इस दौरान नेपाल से आए साहित्यकारों की पुस्तकों का विमोचन भी हुआ। लेखक कृष्ण सिंह पेला के मुक्तक संग्रह ‘फूलको प्रहार’, कैलाश पाण्डेय की कविता संग्रह ‘एकलव्य के देशमा’, गणेश नेपाली के गजल संग्रह ‘एकलव्य’ का विमोचन हुआ। दो दिवसीय इस कार्यक्रम में दोनों देशों के भाषिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व ऐतिहासिक विषयों पर खुलकर चर्चा हुई। कवियों ने दोनों देशों के संदर्भों पर काव्यपाठ भी किया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नेपाल के सुदूर पश्चिम प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजेंद्र सिंह रावल रहे।

बतौर मुख्य अतिथि राजेंद्र सिंह रावल ने दोनों देशों के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, भाषिक संबंधांें पर विस्तार से प्रकाश डाला और यह भी बताया कि क्या ऐसा किया जाए जिससे दोनों देशों के सबंधों में और मजबूती आए। इस दौरान उन समानताओं को भी रेखांकित किया गया जो दोनों देशों में एक से हैं। कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकारों, कवियों, पत्रकारों ने इस बात पर भी चिंता प्रकट की कि आज दोनों देशों के पहाड़ मानव सुरक्षा, खाद्यान्न, स्वास्थ्य, पलायन व मूलभूत बुनियादी सेवाओं के अभाव से गुजर रहे हैं। पहाड़ों का पानी व अन्य प्राकृतिक संसाधनों के साथ ही यहां के मानव संसाधन का उपयोग यहां के विकास के काम नहीं आ रहा है, जिस पर दोनों देशों को अमल करने की जरूरत है। पहाड़ की जनता लगातार अपनी जगह से विस्थापित हो रही है जिससे सांस्कृतिक सभ्यता पर भी खतरा पैदा हो रहा है। संवाद के जरिए यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया कि दोनों देशों को इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

पुरस्कृत करते पश्चिमी नेपाल के पूर्व सीएम राजेन्द्र सिंह रावल

कार्यक्रम में उपस्थित भाषा प्रेमियांे ने परिचर्चा के दौरान कहा कि एक साहित्यक पाठक होने के नाते हमारी जिज्ञासा होती है कि हम यह जानें कि दोनों देशों में साहित्यक क्षेत्र में क्या कुछ घटित हो रहा है?ं किस तरह की रचनाएं रची जा रही हैं? साहित्य कितना मुखर व प्रगतिशील है? वह शासन व जनता के स्तर पर कितना हस्तक्षेप कर पाने की स्थिति में है? वह आम आदमी के संघर्षों, पीड़ाओं का कैसे सहभागी बन रहा है? कार्यक्रम के मुख्य संयोजक साहित्यकार डा. पीताम्बर अवस्थी ने इस काव्योत्सव के आयोजन के संदर्भ में अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि हमारी सांझी साहित्यक संपदा रही है। दोनों तरफ विपुल मात्रा में साहित्य का सृजन हो रहा हैै। दोनों देशों के लोगों को एक दूसरे के देश में साहित्य सृजन की जानकारी होना जरूरी है। भारत के हिंदी भक्ति साहित्य एवं नेपाली भक्ति साहित्य में कई समानताएं दिखती हैं। भारतीय साहित्य की तरह ही नेपाली साहित्य में वादों और साहित्यक आंदोलनों का प्रभाव रहा है। हिंदी कविता की तरह नेपाली कविता में भी छायावाद, रहस्यवाद, प्रगतिवाद और प्रयोगवाद की तमाम विशेषताओं को देखा जा सकता है।
काव्योत्सव में सांझे साहित्य पर चर्चा के दौरान यह बात निकलकर आई कि जियारानी-मौलारानी का भड़ा, मालूशाही- राजुला, गंगनाथ-भाना बामनी, भियां कठायत-छियां कठायत, चैतालो-भेटौलो, सहदेऊ बालो-गोरीधाना का भड़ा, कालू भंडारी- उदयमाला जैसी गाथाएं दोनों देशों में समान रूप से प्रचलित हैं। फाग, सगुन, धमारी, चांचरी, जागर, न्यौली, भड़ा, भगनौला, होली, बग्वाल जैसी सांस्कृतिक प्रथाओं में दोनों देशों में एकरूपता दिखती है। कुमाऊं में आठूं नेपाल के सुदूर पश्चिम में गौराष्टमी के रूप में मनाई जाती है। जौलजीवी के मेले, कैलाश मानसरोवर यात्रा, खतडुवा पर्व, बगवाल दोनों देशों में मनाया जाता है। हुडकेली, जागर प्रथा, जात मनाने की प्रथा भी दोनों देशों में प्रचलित है। इसी तरह भाषिक समानता पर चर्चा में यह बात सामने आई कि डोटेली, नेपाली, कुमाऊंनी, गढ़वाली, जौनसारी जैसी मध्य पहाड़ी भाषाओं में दोनों देशों में एकरूपता दृष्टिगोचर होती है।

सांस्कृतिक एकता की दृष्टि से देखें तो गौरी की उपासना, महिलाओं का दीक्षांत समारोह, दूबधागो बांधने, भाद्र शुक्ल अष्टमी मनाने की प्रथा हो या फिर ऐपण, महालक्ष्मी चौकी या जन्मकुंडली लिखने की कला दोनों देशों में प्रचलित है। डिकरा बनाना हो या फिर वास्तुकला में भी दोनों देशों में एकरूपता दिखती है। नागरशैली में बने मंदिर, कत्यूरी शिखर शैली के मंदिर दोनों देशों में एक से हैं। दोनों देशों के धार्मिक संबंधों की समानता पर चर्चा में निकलकर आया कि शिव शक्ति की उपासना एवं अराधना, मष्टा संस्कृति, केदार संस्कृति हो या फिर देवताओं देवालय हों सभी समान हैं। उत्तराखण्ड में केदारनाथ ध्वज केदार थल केदार स्थित हैं तो पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ, शिगास, केदार, रौला केदार, ग्वालेक केदार, काफलीकेदार, बूढ़ाकेदार, श्री केदार नेपाल में स्थित हैं। नंदा देवी कुमाऊं में है तो बुढ़ी नंदा बाजरा, नेपाल में है। नैनादेवी नैनीताल में है तो शुर्मा देवी, बाजारा नेपाल में है। नेपाली साहित्य के पास अपनी एक शानदार सांस्कृतिक विरासत है। भानुभक्त आचार्य नेपाल के तुलसीदास माने जाते हैं। इसी तरह मोतीराम भट्ट को नेपाल का भारतेंदु कहा जाता है। कवि शिरोमणि लेखनाथ पौडेल नेपाली साहित्य के भीष्म पितामह कहे जाते हैं। नेपाल से प्रकाशित होने वाली पत्र-पत्रिकाओं जन आकांक्षाओं का प्रतीक बनती रही हैं। इसमें मुखर होकर राजनीतिक अत्याचारों के साथ सामाजिक सुधारों के लिए आवाज उठती रही है। काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी, समीक्षा और निबंध यानी हर तरह की विधाओं में नेपाली साहित्य संपन्न है।

उभर कर आए मुख्य बिंदु:
नेपाल के सुदूर पश्चिम प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजेंद्र सिंह रावल ने सुझाव दिया कि दोनों देशांे के बीच अर्थपूर्ण वार्ताओं की आवश्यकता है। हमें अपने आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, पारस्परिक पारंपरिक सबंधों एवं सुरक्षा संबधों को कायम करने की आवश्यकता है। दोनों देशों के पड़ोसी प्रदेशों के विश्वविद्यालयों में लोकवार्ता विभाग की स्थापना की जा सकती है। लोकसंस्कृति के संरक्षण, सम्बर्द्धन एवं पर्यटन के साथ दोनों प्रदेशों के आर्थिक, सामाजिक विकास की आवधारणा के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए। सांस्कृतिक आदान-प्रदान के साथ सीमा क्षेत्र के दोनों राष्ट्रों के बीच ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं कला, साहित्य के संरक्षण, संबर्द्धन एवं विकास अध्ययन अनुसंधान हेतु व्यवस्था करने की जरूरत है। तत्काल इस पर अमल करने की भी जरूरत है। काव्योत्सव में यह विचार भी निकल कर सामने आया कि अगर नेपाली साहित्य का हिंदी व हिंदी का नेपाली साहित्य में अधिक से अधिक अनुवाद हो तो इससे दोनों देशांे के साहित्य को बेहतर तरीके से जान सकते हैं। डिजिटल प्लेटफार्म पर भी एक दूसरे के साहित्यक योगदानों पर हम चर्चा कर सकते हैं। एक ऐसा लोकेल यानी परिवेश बना सकते हैं जिससे दोनों देशों का साहित्य विनिमय हो सकता है। एक ऐसी साहित्यक संस्था के गठन की जरूरत है जो दोनों देशों की भाषाओं में अनुवाद के कार्य के लिए काम करे। यह काम सरकारें या उनका भाषा अनुभाग भी कर सकता है। इससे दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ता मजबूत होगी। इसके साथ ही दोनों भाषाओं के समाचार पत्रों में भी दोनों देशों के साहित्कारों की जीवनी व उनके कृतित्व पर निरन्तर लेख प्रकाशित होते रहें। महत्वपूर्ण रचनाओं पर निरन्तर लेख समीक्षा प्रकाशित होती रहें। भारत-नेपाल अंतर्राष्ट्रीय काव्योत्सव जैसे कार्यक्रम नियमित अंतराल में चलते रहें जिससे दोनों देशों के साहित्यिक व सांस्कृतिक सबंधांे को तो नया आयाम मिलेगा ही वहीं साहित्य का आदान-प्रदान भी होगा।

बात अपनी-अपनी
भारत व नेपाल एक सभ्यता व संस्कृति के निकटस्थ पड़ोसी देश हैं। उनके बीच प्राचीन ऐतिहासिक, परम्परागत, सामाजिक- सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंध हैं। आवागमन के लिए खुली सीमाएं हैं। जन-जन के बीच वैवाहिक व गहरे सांस्कृतिक संबंध हैं। यहां सांझी संस्कृति, इतिहास, साहित्य व भाषा है। भारत के पांच प्रान्त व नेपाल के 4 प्रदेशांे की सीमाएं इससे आपस में जुड़ी हैं। 1850 किमी. की खुली सीमा है। अब जरूरत है
ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक आदान-प्रदान के माध्यम से दोनों देशों के जनस्तर के संबधों की प्रगाढ़ता को आगे बढ़ाने की। इस प्रकार के कार्यक्रमों में निरंतरता देना जरूरी है। हमें अपनी सभ्यता, संस्कृति, लोकवार्ता के उत्थान के लिए मिलकर सहयात्री बनने की जरूरत है।
राजेंद्र सिंह रावल, पूर्व मुख्यमंत्री, सुदूर पश्चिम प्रदेश, नेपाल

इस अंतराष्ट्रीय काव्योत्सव के आयोजन के पीछे का मुख्य उद्ेश्य दोनों देशों के साहित्यकारों का समागम करना था। इसमें सांझी विरासत, संस्कृति व लेखन को साझा किया गया। नेपाल की नेपाली, भोजपुरी, मैथिली भाषा के साथ ही हिंदी की लिपि भी एक ही है। इन सभी भाषाओं में एक ही भाव का साहित्य सृजित होता है। नेपाल में राम कथा काफी लोकप्रिय है। नेपाल के हिंदी एवं नेपाली भाषा में रचित भक्ति साहित्य भारत एवं नेपाल के बीच सांस्कृतिक सेतु की तरह हैं। इन दोनों देशों की भावधारा एक रही है। यह काव्योत्सव दोनों देशों के साहित्यक व सांस्कृतिक संबंधों को मजबूती प्रदान करने में मील का पत्थर साबित होगा।
डॉ. पीताम्बर अवस्थी, साहित्यकार

दोनों पड़ोसी राष्ट्र हैं। हमारा सम्बन्ध अनादि काल से है। धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषा एवं ऐतिहासिक दृष्टि से दोनों राष्ट्रों में कई समानताएं हैं। खुली सीमाएं हैं। रिश्ते हैं। नातेदारी है। साथ ही सांस्कृतिक व साहित्यक संबध भी। दोनों देशों के बीच बेटी-रोजी का संबंध है। दोनों देशों के लोगों को अपने साझे इतिहास व परंपराओं पर गर्व रहा है। दोनों देशों में स्थानीय स्तर पर समृ़द्ध साहित्य रचा गया है। निश्चित तौर पर यह अंतराष्ट्रीय काव्योत्सव अपने उद्देश्यों में खरा उतरा है।
इं. ललित शौर्य, बाल साहित्यकार

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