पूर्व लोकसभा और राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा को अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाए जाने पर रोविंग एसोसिएट एडिटर आकाश नागर की उनसे बातचीत
उत्तराखण्ड के वर्तमान हालातों पर आप क्या कहेंगे?
सरकार नाम की कोई चीज रह नहीं गई है। उत्तराखण्ड के नौजवान, किसान परेशान हैं। महिलाओं की उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। प्रदेश का सबसे चर्चित मामला अंकिता भंडारी का है जिसे अभी तक न्याय नहीं मिला है। खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह ट्टाामी की विट्टाानसभा क्षेत्र में नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म का मामला हो या दलित महिलाओं की हत्या और उत्पीड़न के मामले हों, अपराट्टा का ग्राफ बढ़ रहा है। जब प्रदेश में ट्टाामी जी की सरकार आई थी तब लगा था कि वे रोजगार की समस्या का समाट्टाान करेंगे। उन्होंने सीएम बनते ही बयान भी दिया था कि 24 हजार पद रिक्त हैं, उनको भरेंगे। लेकिन सबसे बड़ी समस्या इन्हीं के कार्यकाल में पेपर लीक की हुई, जिससे बेरोजगारों के सपनों पर डाका पड़ गया। हालांकि इस मामले में कुछ लोग गिरफ्तार भी हुए लेकिन आज सब बाहर आ चुके हैं। बेरोजगार नौकरी के लिए सड़कों पर हैं। पेपर माफिया राज्य में हावी है। दूसरी ओर नदियों में खनन माफिया और पहाड़ों में खड़िया माफिया का अवैध साम्राज्य है। इससे आम ट्टाारणा बनी हुई है कि राज्य की बहुमूल्य संपदा लूटेरों के हाथों में लुटने को तैयार है जो जितनी बड़ी नीलामी/बोली लगा सकता है वो उतने ही बड़े स्तर पर इस राज्य की संपत्ति को लूट रहा है। यह राज्य पर्यटन प्रदेश है चाहे ट्टाार्मिक मामलों से देखें या प्राकृतिक हिसाब से देखें लेकिन यहां पर्यटकों के लिए कोई विशेष योजना नहीं है। यहां इंफ्रास्ट्रक्चर बुरी स्थिति में है। राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल है। आए दिन वीडियो वायरल होते हैं कि लोग अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ रहे हैं। गर्भवती महिलाएं अच्छा इलाज न मिलने से प्रसव पीड़ा के दौरान ही असमय काल के मुंह में समा रही हैं। सरकारी अस्पतालों का स्टाफ नदारद रहता है। पूरी शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। कभी आप अटल आदर्श विद्यालय बंद करते हैं। कभी उनको सीबीएससी से जोड़ देते हैं तो कभी उनको सीबीएससी से हटाने का फरमान जारी कर देते हैं। अंग्रेजी माट्टयम पढ़ाने के लिए एक चरणबद्ध तरीका होता है लेकिन आपने अचानक छात्रों को सीबीएससी से जोड़कर अंग्रेजी शुरू कर दी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आपने अंग्रेजी तो शुरू कर दी लेकिन अंग्रेजी पढ़ाने के अट्टयापक तक नियुक्त नहीं किए। बड़े जोर-शोर से पलायन की बात की गई थी। उत्तराखण्ड को पलायन आयोग बनाने वाला देश का पहला राज्य घोषित किया गया था। लेकिन उस आयोग से राज्य के लोगों को क्या मिला यह बताने की जरूरत नहीं है। आंकड़े सामने हैं। पर्वतीय खेती खत्म होने के कगार पर है। वन्य जीवों का जो मनुष्यों पर आक्रमण हो रहा है उससे कृषि व्यवस्था समाप्त हो रही है। उससे कैसे निपटा जाए, राज्य की सरकार उसमें भी कुछ नहीं कर पाई है।
उत्तराखण्ड के परिपेक्ष में प्रट्टाानमंत्री मोदी का यहां विशेष ट्टयान रहता आया है। मोदी ने यहां अरबों रुपए की योजनाओं के शिलान्यास किए हैं। आप उनके कार्यों से कितने संतुष्ट है?
प्रट्टाानमंत्री मोदी जब देश में आए तो उन्होंने डबल इंजन की सरकार का नारा दिया था। दावे किए गए थे कि डबल इंजन की सरकार में विकास की दर आगे बढ़ेगी। लेकिन मोदी जी के दस साल के कार्यकाल में राज्य को कुछ दिया नहीं। जो राज्य को प्राप्त था वो भी वापस ले लिया। अक्सर इस पर चर्चा कम होती है। श्रीमती इंदिरा गांट्टाी जी प्रट्टाानमंत्री रहते अल्मोड़ा में आई थीं, तब तो हमारा पर्वतीय राज्य नहीं था, हम उत्तर प्रदेश का ही एक भाग हुआ करते थे तब कहा गया कि भारत में पर्वतीय क्षेत्रों को एक नए विजन की जरूरत है इस पर भारत सरकार को पहल करनी चाहिए, उसी का संज्ञान लेते हुए मिसेज गांट्टाी ने पहली बार योजना आयोग में पर्वतीय प्रकोष्ठ अलग से बनाया था। योजना आयोग का पर्वतीय प्रकोष्ठ ट्टाीरे-ट्टाीरे बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश में पर्वतीय विकास परिषद् और बाद में पर्वतीय विकास मंत्रालय बना। वही राज्य का आट्टाार भी बना। वहीं पर से विशेषकर हिमालयी राज्यों के लिए भारत सरकार विकास का विजन लेकर आई। पर्वतीय क्षेत्रों को विशेष राज्य के दर्जे में शामिल किया गया। जिसमें 90 प्रतिशत अनुदान हमें भारत सरकार से मिलता था। तब योजना आयोग से जो बजट आवंटित होता था वह 90 केंद्र का और 10 प्रतिशत राज्य का हुआ करता था। देश में 2014 में मोदी सरकार बनते ही उस विशेष राज्य के दर्जे को वापस ले लिया गया। जबकि उसकी एवज में भी कुछ नहीं दिया गया। इसका नॉर्थ-ईस्ट में विरोध हुआ तो वहां पर रिस्टोर किया गया। लेकिन उत्तराखण्ड में उस विशेष राज्य के दर्जा को रिस्टोर न करके मोदी सरकार ने प्रदेश के विकास को रोक दिया।
जब 2013 की आपदा आई तब तो केंद्र में आपकी सरकार थी। क्या आपकी तरफ से कुछ विशेष कार्ययोजना तब उत्तराखण्ड के लिए शुरू की गई?
2013 की आपदा के बाद सोनिया जी की पहल पर देश के प्रट्टाानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने कमेटी बनाई जिसके अट्टयक्ष बी.के. चतुर्वेदी जो कैबिनेट से सेक्रेटरी भी रहे हैं, बनाए गए थे। उस समय वो प्लानिंग कमीशन के मेम्बर भी थे। तब इस पर विचार किया गया कि हिमालयी राज्यों के लिए विकास के क्या मॉडल हो सकते है? तब मैंने प्लानिंग कमीशन को इस बाबत लिखा और अपनी राय दी। वहां से जिसे राजनीतिक भाषा में ग्रीन बोनस कहा जाता है, वह मिला लेकिन मोदी सरकार में बी.के. चतुर्वेदी की रिपोर्ट ट्टारी की ट्टारी रह गई। आज मोदी जी, बहुत जोर-शोर से कहते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास बहुत तेजी से बढ़ना चाहिए। देश में पिछड़े क्षेत्रों को भी हिमालयी क्षेत्रों को भी ट्रेन नेटवर्क, हवाई नेटवर्क और सड़क नेटवर्क से जोड़ा जाना चाहिए। उस समय मैं सांसद था तब दो महत्वपूर्ण रेल प्रोजेक्ट यूपीए सरकार ने स्वीकृत किए जिनमें ऋषिकेश से कर्णप्रयाग और टनकपुर से बागेश्वर था। दोनों की आट्टाारशिक्षा तत्कालीन राक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी ने चमोली के गौचर में आकर रखी थी। एक रेल लाईन तो हमें मिलने वाली है जिसकी सरकार ने 2024 तक की घोषणा की है कि इस साल हम इस रेल प्रोजेक्ट को शुरू कर देंगे 2024 तो नहीं लेकिन 2025 तक कर्णप्रयाग तक रेल चली जाएंगी। कुमाऊं में एक लंबी मांग टनकपुर से बागेश्वर रेल मार्ग जो सामरिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन उसका कोई अता-पता नहीं है उसी के साथ-साथ दो और रेल नेटवर्क टनकपुर से जौलजीबी और रामनगर से चौखुटिया रेल स्वीकृत हुई थी जिसे आने वाले समय में गैरसैंण तक पहुंचाना था लेकिन इसका भी पता नहीं चला। आपने इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में चारट्टााम यात्रा की बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर दी। यूपीए सरकार में पूरे देश के मामले में एक संवैट्टाानतिक तौर पर हुआ कि जो भी नेशनल हाइवे बनेंगे वो टू लेन बनेंगे उसके तहत गढ़वाल क्षेत्र में भी और कुमाऊं क्षेत्र में भी बनने थे। लेकिन आपने इस समय गढ़वाल के तमाम क्षेत्र में चारट्टााम इंफ्रास्ट्रक्चर को आगे बढ़ा दिया। आप दावा करते हैं कि जो ऋषिकेश से बदरीनाथ पहले 9-10 घंटे का सफर लगता है, आने वाले समय में 4-साढ़े चार घंटे में पूरा हो जाएगा दूसरी ओर उत्तराखण्ड का दूसरा हिस्सा जो कुमाऊं परिक्षेत्र है जिसमें अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्रों का बड़ा हिस्सा पड़ता है उसका इंफ्रास्ट्रक्चर आज तबाह है। काठगोदाम से अल्मोड़ा-मुन्सयारी रोड तबाह है, कोसी से बेजनाथ तक जहां बीच में कौसानी जैसा वर्ल्ड फेमस टूरिज्म स्थल है वहां अभी भी स्टेट हाइवे हैं। ग्वालदम से बागेश्वर, शामा, मुनस्यारी होते हुए जौलजीबी को जोड़ने वाली भारत माला परियोजना जिसको केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गड़करी जी ने शुरू करने को कहा था लेकिन वो भी नहीं हुआ। दस सालों में इस सड़क की कोई सुट्टा नहीं ली गई। आज यह जरूर किया गया है कि उसको नेशनल हाइवे घोषित कर दिया गया।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सामरिक रूप से अति महत्वपूर्ण सीमांत के लिए एक सड़क का शिलान्यास किया था लेकिन आज दशकों बाद भी वह मंजिल तक नहीं पहुंची है? ऐसा क्यों।
आप सही कह रहे हैं। टनकपुर से जौलजीबी तक 120 किलोमीटर की नई सड़क जो सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है और चीन बॉर्डर तक हमारी सेना को जाने के लिए लगभग 100 किलोमीटर की दूरी कम कर रही थी हमारे समय की यूपीए सरकार ने उसका शिलान्यास किया था। उसके लिए 850 करोड़ का बजट भी पास हुआ। लेकिन इन दस सालों में वह सड़क कहीं नहीं है। जबकि वह सड़क अगर बन जाती तो आर्थिकी रूप में किसानों और काश्तकारों के लिए भी मंडी की दूरी कम कर रही थी उसी सड़क के बनने पर हमारा टनकपुर से आगे जो पूर्णागिरी मंदिर है उससे आगे काली और सरयू के संगम पर ऋषिकेश की तरह साहसिक पर्यटन का एक नया द्वारा खुलता। वो आगे नहीं बढ़ पाया।
आपको भाजपा की केंद्र सरकार के 10 साल के कार्यकाल में खामिया नजर आ रही हैं लेकिन अपनी सरकार के बारे में कुछ नहीं बता रहे हैं। आपकी यूपीए सरकार ने उत्तराखण्ड के लिए क्या-क्या किया है?
जिन प्रोजेक्टों को हमने शुरू किया, स्वीकृति दिलाई हमारी उम्मीद थी कि केंद्र में भाजपा सरकार आने से उन पर काम होगा लेकिन कुछ नहीं हुआ। मैंने रेल बजट के दौरान ममता जी को पूरे 10 मिनट बाट्टिात किया और पूछा था कि उत्तराखण्ड के रेल प्रोजेक्ट पर क्या करने जा रहे हैं।
रेल के अलावा और भी तो मुद्दे हैं उन पर आपने क्या किया?
सबसे बड़ी हमारी उपलब्ट्टिा यह है कि उत्तराखण्ड के लिए एक नए दृष्टिकोण की जरूरत है वह हमने किया। उत्तराखण्ड हिमालयी राज्य है वहां की जल संपदा है।
जल, जंगल, जमीन की बातें तो आप पहले ही बता चुके हैं, इसके अलावा बताइए आपने उत्तराखण्ड के लिए क्या किया?
पर्वतीय राज्य की सबसे बड़ी समस्या है माइग्रेशन की। इसके साथ ही पर्वतीय खेती के लिए नए दृष्टिकोण की जरूरत है। यूपीए की भारत सरकार ने उस समय पूरे राज्य के लिए एग्रीकल्चर पर विशेष ट्टयान दिया। लेकिन अब पूरे पर्वतीय क्षेत्र में खेती पर हताशा और निराशा है। हमने इस संदर्भ में कहा था कि भाजपा सरकार को आगे आना चाहिए। इस संबंध में राज्य के अंदर एक बैठक भी हुई। तब हमने कहा था कि हिमाचल और उत्तराखण्ड के बीच में एक एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी खुलनी चाहिए जैसे कि नॉर्थ ईष्ट में आपने खोली। आपने कभी यह प्लान नहीं किया कि पर्वतीय खेती को किस तरह आगे बढ़ाया जा सके जिससे पलायन को रोका जा सके। आप लैब और लैंड के अंतर को समझा नहीं सके। लेकिन उसको हमने आगे बढ़ाया। अल्मोड़ा में विवेकानंद जो हमारी पुरानी लैब थी और अन्य को मिलाकर एक बड़े सेंटर की स्थापना की बात जो हमने की भी भाजपा इस पर इन 10 सालों में कुछ आगे नहीं बढ़ी। कांग्रेस के कार्यकाल में ही चंपावत में मछली पालन के लिए बहुत बड़े संस्थान की स्थापना भी की गई। हमने कहा था पर्वतीय क्षेत्र में खेती के साथ-साथ मत्स्य उत्पादन भी किसानों की आजीविका के लिए बड़ा सोर्स बन सकता है। इसमें भारत सरकार के सहयोग की जरूरत है, पूंजी की जरूरत है, वैज्ञानिक सलाह की जरूरत है उसमें आगे नहीं बढ़ा जा सका। पर्वतीय खेती के साथ ही हार्टीकल्चर की भी जरूरत है। कांग्रेस के जब हरीश रावत सीएम थे उस समय किसानों की आय के लिए खेती के साथ ‘मेरा वृक्ष मेरा ट्टान’ को बढ़ावा देने की नीति के साथ पेड़ लगाए गए। तीन-चार साल तक राज्य सरकार इस योजना पर गारंटी चलती रही उसके बाद उनके जो पेड़ जीवित रहे उनको बोनस भी दिया गया। इससे किसानों के पास आय के साधन बने। कांग्रेस कार्यकाल में हमारा हॉर्टिकल्चर आगे बढ़ा और फ्लोरिकल्चर भी, मल्टीडायमेंशन जो बहुआयामी खेती को आगे बढ़ाने का प्रयोग था उसको आगे बढ़ाया गया था। लेकिन बीजेपी ने उनको आगे नहीं बढ़ाया।
एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर और फ्लोरिकल्चर के अलावा और भी तो रोजगार के साट्टान हो सकते थे, उद्योग ट्टांट्टो भी लग सकते थे आपकी सरकार ने इस तरफ कितना ट्टयान दिया?
हरिद्वार से लेकर ऊट्टामसिंह नगर तक जितने भी उद्योग लगे और इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया गया वो कांग्रेस के दौरान का ही है। प्रट्टाानमंत्री मनमोहन सिंह जी हरिद्वार में आए थे तब हीरो होंडा का वहां बहुत बड़ा संस्थान खुला। पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योगों का जो जाल बिछा था एक निश्चित समय के लिए उनको बहुत सी सुविट्टााएं दी गई थी, सब्सिडी दी गई थी। लेकिन जब केंद्र की मोदी सरकार ने उनको सुविधाएं देनी बंद कर दी तो उन्होंने धीरे-धीरे यहां से पलायन करना शुरू किया। पर्वतीय क्षेत्रों में बड़ी इंडस्ट्री नहीं लग सकती है लेकिन स्वगीय तिवारी जी के कार्यकाल में हमने कोशिश की कि हर जगह इंडस्ट्री बने। भाजपा सरकार द्वारा उसको आगे बढ़ाया जा सकता था, लेकिन आगे नहीं बढ़ाया गया।
आप 10 साल तक संसद के दोनों सदनों के सदस्य रहे, इस दौरान उत्तराखण्ड के लिए आपकी क्या विशेष उपलब्धियां रहीं?
मैं हमेशा इन सवालों को उठाता रहा हूं।
लेकिन सवालों को उठाने के अलावा आपने ऐसा क्या किया जो उत्तराखण्ड के लिए मील का पत्थर साबित हुआ?
बहुत किया है। ये कांग्रेस की ही उपलब्ट्टिा थी कि जो समाज के कमजोर वर्ग के लोग हैं उनके उत्थान के लिए बहुत कुछ किया गया। आज उन्हें पंचायतों में जो प्रतिनिट्टिात्व मिला है ये कांग्रेस की ही देन है। जब यूपी में हम होते थे तब वहां हमें 21 फीसदी का रिजर्वेशन प्राप्त था। लेकिन आपको भी ताज्जुब होगा कि उत्तराखण्ड में पर्वतीय क्षेत्रों के पंचायतों में यह आरक्षण मात्र 3 से 4 प्रतिशत से ज्यादा नहीं था। जबकि ऊट्टामसिंह नगर में पूरी तराई में 6 प्रतिशत था। मेरे सामने ये जानकारी आई तब हरीश रावत कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे और नारायण दत्त तिवारी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनके संज्ञान में लाया गया तो उन्होंने कहा कि यह तो राजीव गांधी जी द्वारा संविट्टाान के पंचायत राज एक्ट बनाया था उसके विपरीत है। वो पूरा किया गया। आज बड़ी चर्चा होती है राज्य के अंदर कन्याट्टान योजना की ये कांग्रेस के जमाने में अनुसूचित जाति और जनजाति के बच्चों के लिए था। इसको कहना नहीं चाहिए लेकिन मैं बता देता हूं उस समय मैं सोमेश्वर से विट्टाायक था। उस समय भारत सरकार की एक योजना थी स्पेशल कंपोनेट प्लान, जो आज मोदी सरकार ने खत्म कर दी है। उस योजना का महत्व यह था कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति में शिक्षा का स्तर बहुत कम है। महिलाओं तथा बेटियों में तो और भी कम है। उसको बढ़ाने के लिए 25 हजार रुपया इस प्लान के तहत दिया जा सकता है, इसका पूरा पैसा भारत सरकार देती है। मैं मुख्यमंत्री तिवारी जी से मिला उन्होंने मेरी बात सुनी और राज्य में पहली बार अनुसूचित जाति एवं जनजाति की उन बच्चियों को जिन्होंने 12वीं कक्षा पास की उन्हें 25 हजार रुपए कन्याधन योजना के रूप में मिलना शुरू हुआ। इसके बाद यूपी में भी इस योजना को शुरू किया गया और वहां सभी जातियों की बेटियांे को जिन्होंने 12वीं पास की है उन्हें 20 हजार रुपए देने की शुरुआत की गई। रावत जी के समय में नंदा देवी कन्याट्टान योजना शुरू की गई थी। दोनों योजनाएं पेलरल चली। दोनों का मकसद अलग-अलग था। एक में यह था कि गरीब की बिटिया शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़े तो दूसरी का यह था कि इस वर्ग की बिटिया की शादी में आर्थिक सहायता दी जा सके। लेकिन बीजेपी ने दोनांे का एकीकरण करने के नाम पर एक को खत्म कर दिया। जब इसकी बात चलेगी कि आपके कार्यकाल में कमजोर वर्ग के लिए क्या विशेष किया गया तो मैं इसे अपनी बड़ी उपलब्धि मानता हूं।
अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ के वर्तमान सांसद के 10 साल के कार्यकाल को आप किस तरह से देखते हैं?
मैं तो कोई ऐसी बात नहीं देख पाया जो अजय टम्टा के कार्यकाल में मूलभूत रूप से मिली हो। सांसद के दो दायित्व होते हैं, एक वो अपने संसदीय क्षेत्र की समस्याओं को देश की सरकार के सामने रख सके और दूसरा राज्य के सवालों को सांसद के रूप में देश का एटेंशन दिला सके। मैं राज्यसभा में रहा लोकसभा में रहा, मैंने दोनों बार मांग की कि हिमालयी राज्यों के लिए अलग डेवलपमेंट अथॉरिटी बनना चाहिए। उस बिल को प्राइवेट मेम्बर बिल के रूप में लाने को मैंने अथक प्रयास किए। इस बिल पर दोनों बार पांच -पांच, छह-छह घंटे की बहस हुई। अजय टम्टा जी को उसे आगे बढ़ाना चाहिए था। लेकिन वे नहीं बढ़ा पाए। जिन सवालों को हम छोड़ गए थे उनको आगे बढ़ाना अजय टम्टा जी का दायित्व था। लेकिन वे उन सवालों को अधर में ही छोड़ बैठे। उन्होंने घोषणा भी की थी कि रामनगर को चौखुटिया से रेल मार्ग से जोड़ा जाएगा तब उन्होंने यह भी कहा था कि गैरसैंण तक रेल को आगे बढ़ाया जाएगा लेकिन वो रेल योजना चौखुटिया तक भी नहीं पहुंची। कॉम्युनिकेशन के क्षेत्र में जब मैं सांसद बना झूलाघाट, ट्टाारचूला मुनस्यारी ये जो सारे सीमांत क्षेत्र थे उस समय इन क्षेत्रों में मोबाइल टावर लगाने की अनुमति नहीं थी लोग नेपाल के सिम चलाकर बात किया करते थे लेकिन हमने यही सवाल भारत सरकार के सामने रखा और हमंे टावर लगवाने की परमिशन दी गई, हमने लगवाए।
लेकिन अजय टम्टा के कार्यकाल में भी सीमांत क्षेत्र में बहुत से मोबाइल टावर लगाए गए हैं जिन्हें वह अपनी विशेष उपलब्धि बताते हैं?
लगभग 81 टावर मेरे कार्यकाल में स्थापित हुए थे। जो हमने पीएलसी की बैठक में प्रस्ताव रखे थे वे अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। अभी भी उत्तराखण्ड का विशेषकर अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र के दूरस्थ इलाके के लोग मोबाइल सुविधा के लिए आंदोलन कर रहे हैं। अब सब जगह ऑनलाइन कार्य हो रहे हैं लेकिन उत्तराखण्ड के सीमांत में नेटवर्क नहीं है जिससे बच्चे प्रतियागियाओं और नौकरियों में नहीं बैठ पा रहे हैं। जब ‘नमामि गंगे’ योजना को भारत सरकार ने शुरू किया था तब इस योजना में केवल गढ़वाल क्षेत्र का ही हिस्सा लिया गया। सरयू और काली नदी का एरिया जो यूपी और बिहार तक जाता है सैकड़ों हजारों शहर इन नदियों के किनारे हैं इस एरिया को भी हमने ‘नमामि गंगा’ योजना में शामिल करने की मांग की थी जिससे कि यहां के स्थानीय लोगों को इसका लाभ मिले। लेकिन अजय जी ने कभी ऐसी मांग नहीं की। वे चाहते तो गढ़वाल की तरह ही कुमाऊं क्षेत्र के लेागों को भी ‘नमामि गंगे’ का लाभ मिलता लेकिन न उन्होंने प्रयाय किया और न मिला।
सांसद अजय टम्टा का दावा यह भी है कि उनके कार्यकाल में अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ संसदीय क्षेत्र में सड़कों के मामले में बहुत विकास हुआ है?
कौन सी सड़के? आप देख सकते हैं कि हल्द्वानी से अल्मोड़ा होते हुए बागेश्वर से मुनस्यारी वाली वड़क कुमाऊं की लाइफ लाइन है उसकी हालत बद से बदतर है। आज हम दावा कर रहे हैं कि ऋषिकेश से गंगोत्री केदारनाथ ऑल वेदर रोड के जरिए आठ घंटे की दूरी 4 घंटे में तय कर लेते हैं। दूसरी तरफ आप देख सकते हैं कि अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में रामनगर से जो सड़क भतरोज खान होते हुए रानी खेत तक जाती है और रामनगर से भतरोज खान होते हुए गढ़वाल जाने वाली सड़क की कितनी दुदर्शा है। टनकपुर से पिथौरागढ़ तक ऑल वेदर रोड बनी लेकिन अगर वो चाहते तो पिथौरागढ़ से गुंजी तक जो हमारा चीन का बॉर्डर भी है, जहां प्रट्टाानमंत्री कैलाश मानसरोवर गए, वहां कि सड़क बनने की कछुआ गति से चल रही है। आज अगर सड़कों के मामले में देखे तो गढ़वाल के मुकाबले कुमाऊं 10-15 साल पीछे है। इस सवाल पर अजय टम्टा जी ने कभी ट्टयान नहीं दिया। मैंने मुख्यमंत्री ट्टाामी जी से भी कहा कि आप हर दसवे-पंद्रहवे दिन दिल्ली आते हैं आपने कभी इन सवालों पर ट्टयान क्यों नहीं दिया?
उत्तराखण्ड में सरकार नाम की कोई चीज रह नहीं गई है। प्रदेश के नौजवान, किसान परेशान हैं। महिलाओं की उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। प्रदेश का सबसे चर्चित मामला अंकिता भंडारी का है जिसे अभी तक न्याय नहीं मिला है। खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह ट्टाामी की विट्टाानसभा क्षेत्र में नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म का मामला हो या दलित महिलाओं की हत्या और उत्पीड़न के मामले हों, अपराट्टा का ग्राफ बढ़ रहा है। जब प्रदेश में ट्टाामी जी की सरकार आई थी तब लगा था कि वे रोजगार की समस्या का समाट्टाान करेंगे। उन्होंने सीएम बनते ही बयान भी दिया था कि 24 हजार पद रिक्त हैं, उनको भरेंगे। लेकिन सबसे बड़ी समस्या इन्हीं के कार्यकाल में पेपर लीक की हुई, जिससे बेरोजगारांे के सपनों पर डाका पड़ गया। इससे आम ट्टाारणा बनी हुई है कि राज्य की बहुमूल्य सम्पदा लूटेरों के हाथों में लुटने को तैयार है जो जितनी बड़ी नीलामी/ बोली लगा सकता है वो उतने ही बड़े स्तर पर इस राज्य की सम्पत्ति को लूट रहा है
पर्वतीय राज्य की सबसे बड़ी समस्या है माइग्रेशन की। इसके साथ ही पर्वतीय खेती के लिए नए दृष्टिकोण की जरूरत है। यूपीए की भारत सरकार ने उस समय पूरे राज्य के लिए एग्रीकल्चर पर विशेष ट्टयान दिया। लेकिन अब पूरे पर्वतीय क्षेत्र में खेती पर हताशा और निराशा है। हमने इस संदर्भ में कहा था कि भाजपा सरकार को आगे आना चाहिए। इस संबंध में राज्य के अंदर एक बैठक भी हुई। तब हमने कहा था कि हिमाचल और उत्तराखण्ड के बीच में एक एग्रीकल्चर यूनिवसर्टी खुलनी चाहिए जैसे कि नॉर्थ ईष्ट में आपने खोली। आपने कभी यह प्लान नहीं किया कि पर्वतीय खेती को किस तरह आगे बढ़ाया जा सके जिससे पलायन रोका जा सके। आप लैब और लैंड के अंतर को समझा नहीं सके
मैं तो कोई ऐसी बात नहीं देख पाया जो अजय टम्टा के कार्यकाल में मूलभूत रूप से मिली हो। सांसद के दो दायित्व होते हैं, एक वो अपने संसदीय क्षेत्र की समस्याओं को देश की सरकार के सामने रख सके और दूसरा राज्य के सवालों को सांसद के रूप में देश का एटेंशन दिला सके। मैं राज्यसभा में रहा लोकसभा में रहा, मैंने दोनों बार मांग की कि हिमालयी राज्यों के लिए अलग डेवलपमेंट अथॉरिटी बननी चाहिए। उस बिल को प्राइवेट मेम्बर बिल के रूप में लाने को अथक प्रयास किए। इस बिल पर दोनों बार पांच-पांच, छह-छह घंटे की बहस हुई। अजय टम्टा जी को उसे आगे बढ़ाना चाहिए था। लेकिन वे नहीं बढ़ा पाए। उन्होंने घोषणा भी की थी कि रामनगर को चौखुटिया से रेल मार्ग से जोड़ा जाएगा तब उन्होंने यह भी कहा था कि गैरसैंण तक रेल को आगे बढ़ाया जाएगा लेकिन वो रेल योजना
चौखुटिया तक भी नहीं पहुंची
प्रदीप टम्टा का सफर
जन्म: 16 जून 1958 को बागेश्वर के लोब गांव में।
माता-पार्वती देवी और पिता-गुसाईं राम।
शिक्षा: कुमाऊं विश्वविद्यालय से एमए, एलएलबी, बीएड।
राजनीति: छात्र जीवन में अल्मोड़ा महाविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। लंबे समय तक ‘उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी’ से जुड़े रहे। ‘चिपको आंदोलन’ और ‘नशा नहीं, रोजगार दो’ जैसे चर्चित आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 90 के दशक में कांग्रेस से जुड़े और कांग्रेस अनुसूचित जाति विभाग के प्रदेश अध्यक्ष रहे।
जनप्रतिनिधि के रूप में: वर्ष 2002 के सूबे के पहले विधानसभा चुनाव में अल्मोड़ा जिले की सोमेश्वर सीट से विधायक चुने गए। 2003-04 में एनडी तिवारी सरकार में उत्तराखण्ड उद्योग परिषद के उपाध्यक्ष रहे। 2009 में 15वीं लोकसभा के लिए चुने गए। साइंस एंड टेक्नोलॉजी, पर्यावरण एवं वन कमेटी के सदस्य रहे। वर्ष 2016 से 2022 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। पहाड़ी राज्य से उच्च सदन में पहुंचने वाले पहले दलित नेता बनने का गौरव प्राप्त हुआ।

