अपनी तमाम रूढ़िवादिताओं के बावजूद सनातन धर्म की यह विशेषता रही है कि समय-समय पर उसने रूढ़िवाद और पौंगापंथ से किनारा भी किया है। लिंग समानता की दिशा में हिंदू धर्म कभी बेहद उदार तो कभी कट्टरपंथी रहता आया है। मंदिरों में महिला पुजारियों को नियुक्त किए जाने का प्रश्न इस धर्म की कट्टरपंथी सोच से जुड़ा ऐसा मुद्दा है जिसमें अब सुधार की बयार बहने लगी है। दक्षिण भारत के कई मंदिरों में प्राचीनकाल से ही महिला पुजारी रहती आई हैं। केरल का अमृतानंदा माई मठ, लिंग भैरवी मंदिर, तमिलनाडु के प्रसिद्ध अरुणमीगु आदिपराशक्ति सिदार पीठ मंदिर समेत अनेकों पूजा स्थलों पर महिलाएं पूजा करवाने का कार्य करती रही हैं। सितंबर 2023 में तमिलनाडु सरकार ने राज्य सरकार द्वारा संचालित मंदिरों में तीन महिला पुजारियों की नियुक्ति कर लिंग समानता की तरफ बड़ा कदम उठाया है। देवभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखण्ड में हालांकि ऐसी कोई सरकारी पहल नहीं हुई है लेकिन पिथौरागढ़ जनपद के डॉ. पिताम्बर अवस्थी ने आगे बढ़कर स्वनिर्मित श्रीकृष्ण मंदिर में दो महिला पुजारियों की नियुक्ति कर मिसाल पेश कर दी है
लंबे समय तक पशुबलि प्रथा के विरोध में जनजागरण चलाने वाले डॉ पीताम्बर अवस्थी ने अब अपने संसाधनों से तैयार योगेश्वर श्रीकृष्ण मंदिर में दो महिला पुजारियों को नियुक्त कर एक नई मिसाल पेश की है। उत्तराखण्ड सहित पूरे भारत में असंख्य मंदिर हैं जिनमें से दर्जनों मंदिर देवी मंदिर के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में सर्वाधिक श्रद्धालु व भक्त महिलाएं ही होती हैं। सर्वाधिक व्रत व त्यौहार महिलाएं ही मन से निभाती हैं। लेकिन सनातन धर्म के रीति-रिवाजों एवं परंपराओं को आगे ले जाने में जिन महिलाओं का सर्वाधिक योगदान रहा, उन्हीं मंदिरों में महिलाओं को अपवित्र मानकर उनके प्रवेश तक को वर्जित कर दिया गया, यही नहीं उन्हें मंदिरों में पुजारियों के दायित्व से भी दूर रखा गया, जो धार्मिक क्षेत्र में लैंगिक असमानता को दिखाता है। देश में ऐसे कई मंदिर हैं जहां आज भी महिला पुजारी छोड़िए, महिलाओं का प्रवेश तक वर्जित है। केरल का सबरीवाला मंदिर महिलाओं के प्रवेश न करने को लेकर काफी चर्चा में रहा था। ऐसे में मातृशक्ति को पुजारी का दायित्व सौंपकर डॉ अवस्थी ने एक नई पहल शुरू की है। जिसका समस्त सामाजिक संगठनों द्वारा स्वागत किया जा रहा है और इसे एक क्रांतिकारी पहल कहा जा रहा है।
जनपद पिथौरागढ़ के पर्यटन क्षेत्र चंडाक के सिकड़ानी गांव स्थित योगेश्वर श्रीकृष्ण मंदिर में मंजुला अवस्थी को प्रधान पुजारी व सुमन बिष्ट को सहायक पुजारी बनाया गया है। जनपद के कई संगठनों से जुड़े लोगों ने पिछले दिनों इन दोनों महिला पुजारियों का मालार्पण कर सम्मानित किया। परंपराओं को तोड़कर एक नई पहल करने के सवाल पर मंदिर समिति के निदेशक डॉ पीताम्बर अवस्थी कहते हैं कि भारतीय संस्कृति में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है। अपाला, गार्गी, लोपामुद्रा, मैत्रीय जैसी विदुशियों ने वेदों की ऋचाएं लिखी हैं। वह कहते हैं कि नारी का हृदय निश्छल व पवित्र होता है। उसका दिया हुआ आशीर्वाद अवश्य फलीभूत होता है। दूसरी बात यह है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए अधिक व्रत-उपवास रखती हैं, फिर भी उन्हें पुजारी की जिम्मेदारी नहीं दी जाती जबकि हमारी सनातन परंपराओं को महिलाएं ही जीवंत बनाए हुए हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि रूढ़िवादी परंपराआंे को तोड़कर महिलाओं को सशक्त बनाने के धरातली प्रयास जरूरी हैं।
डॉ अवस्थी ने मंदिर में महिला पुजारियों की नियुक्ति कर अपने पूर्व के अभियानों को आगे बढ़ाया है। वह पूर्व मंे ‘पशु बलि प्रथा निषेध’, ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, ‘जल संरक्षण’ सहित कई अभियानों को निरंतर चलाते आ रहे हैं। नशामुक्ति अभियान तो इतना सफल रहा कि वे ‘नशामुक्त अवस्थी’ के नाम से ही प्रसिद्व हो गए। इधर महिला पुजारियों की नियुक्ति को ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा है। ऐसा करके उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में सदियों से चली आ रही लैंगिक असमानता को तोड़ने का भी साहस किया है। यह एक तरह से मंदिरों में पुरुषों के एकाधिकार को तोड़ने जैसा भी है। इसके आने वाले समय में बड़े सामाजिक प्रभाव देखने को मिलेंगे। यह वास्तव में महिला सशक्तीकरण की एक बड़ी मिशाल है।
इन मंदिरों में नहीं जा सकती महिलाएं…
आज भी देश के कई ऐसे मंदिर हैं जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। केरल का पद्यनाभस्वामी मंदिर जिसकी गिनती देश के सबसे धनी मंदिरों में होती है, यहां महिलाओं का गर्भगृह समेत कई स्थानों में प्रवेश वर्जित है। इसके साथ ही यहां महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग ड्रेस कोड भी तय किए गए हैं। मध्य प्रदेश का जैन मंदिर जो भगवान शांतिनाथ का मंदिर है, यहां महिला या लड़कियां विदेशी परिधान या मेकअप में प्रवेश नहीं कर सकती हैं। राजस्थान का कार्तिकेय मंदिर में तो महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है। इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर कहा जाता है कि अगर यहां महिलाओं ने प्रवेश किया तो भगवान कार्तिकेय नाराज हो जाएंगे। हरियाणा के पिहोबा स्थित कार्तिकेय मंदिर में भी महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। केरल का सबरीमाला मंदिर तो महिलाओं के प्रवेश न करने को लेकर काफी चर्चा में रहा था। इस पर काफी हंगामा भी मचा। इस मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश की इजाजत नहीं है। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी है।
हिमाचल प्रदेश का मावली मंदिर के मुख्य परिसर में महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकती। मंदिर के द्वार पर ही महिलाएं पूजा करती हैं। महाराष्ट्र के अहमदनगर में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि महिलाओं के निकट जाने से शनिदेव खतरनाक तरंग छोड़ने लगते हैं, इस मंदिर में पिछले 500 सालों से महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। पहले तो इससे संबंधी बोर्ड भी लगा था जो अब हटा दिया गया है, लेकिन प्रवेश की वर्जना अभी भी बरकरार हैै। असम के बरपेटा में स्थित कीर्तन घर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है। कहा यह भी जाता है कि इस मंदिर में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं मिली थी। महाराष्ट्र के सतारा स्थित घटई देवी मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इन तमाम मंदिरों में महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं जोकि भारतीय संविधान में प्रदत्त लैंगिक समानता के अधिकार के साथ ही ईश्वर की सभी स्त्री-पुरुष समानता की अवधारणा का भी उल्लघंन करता है। माहवारी के दिनों में तो महिलाएं सार्वजनिक आस्था स्थलों को छोड़ दीजिए, घर में स्थापित मंदिरांे में भी नहीं जा सकती हैं।
मान्यताएं भले ही कुछ भी हों लेकिन यह तय है कि इन मंदिरों में भगवान भी महिलाओं से खौफ खाते हैं। वे मंदिर जहां पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। . . . देश में कई ऐसे मंदिर भी हैं जहां पूजा सिर्फ महिलाएं ही करती हैं। इन्हें आप महिलाओं के वर्चस्व वाले मंदिर भी कह सकते हैं। असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब देवी रजस्वला होती है तब मंदिर में पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता है। तब महिला पुजारियों एवं संन्यासी ही इस मंदिर की पूजा करते हैं। कन्याकुमारी में स्थित कुमारी अम्मन मंदिर जो देवी दुर्गा को समर्पित है, जिसे 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यहां विवाहित पुरुष प्रवेश नहीं कर सकते हैं। केरल के अट्टुकल देवी मंदिर में फरवरी व मार्च महीने में जब 10 दिनों का उत्सव आयोजित किया जाता है तो यहां सिर्फ महिलाएं ही होती हैं, तब पुरुषों का मंदिर में प्रवेश वर्जित होता है। राजस्थान के जोधपुर में स्थित संतोषी माता का मंदिर, जो संतोषी माता को समर्पित है। यहां मूर्ति की पूजा सिर्फ महिलाएं ही करती हैं। यहां शुक्रवार के दिन पुरुषों का प्रवेश वर्जित है। राजस्थान के ही पुष्कर में स्थित भगवान ब्रह्मा के इस मंदिर में विवाहित पुरुष को देवता की पूजा करने के लिए गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं है।

