भले ही चुनाव आयोग ने अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को असली राकंपा घोषित कर उनको पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘घड़ी’ भी आवंटित कर दिया है, चुनावी मैदान में चाचा की चालों के आगे भतीजा लगातार पस्त होता स्पष्ट नजर आने लगा है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे अब यह तय कर देंगे कि अजीत पवार को शरद पवार से दगाबाजी करने का लाभ मिला है या फिर नुकसान। जूनियर पवार की पार्टी जिन 38 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहां उसका सीधा मुकाबला सीनियर पवार की पार्टी से है। इन 38 सीटों में बारामती की सीट भी शामिल है जहां से अजित पवार खुद मैदान में हैं। शरद पवार ने अजित पवार के बड़े भाई के बेटे युग्रेंद्र पवार को अपना प्रत्याशी बना मुकाबले को खासा रोचक बना डाला है। अब बेचारे अजित अपने चाचा पर परिवार में फूट डालने का आरोप लगाते डोल रहे हैं। वे शायद भूल गए हैं कि इसकी शुरुआत उन्होंने ही लोकसभा चुनाव के दौरान शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को प्रत्याशी बना कर की थी। सुप्रिया ने अपनी भाभी को इस चुनाव में परास्त कर दिया था। राजनीति पंडितों की मानें तो शरद पवार भतीजे अजित पवार को हराने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। यदि जूनियर पवार चुनाव हार जाते हैं तो इसे उनकी राजनीतिक यात्रा का अंत माना जा सकता है।

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