प्रचंड बहुमत की सरकार होने के बावजूद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत में फैसले लेने का साहस नहीं है। यही वजह है कि मंत्रियों के दो पद अभी भी खाली पड़े हुए हैं। प्रकाश पंत के निधन से अब मुख्यमंत्री के लिए एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। जिन अहम विभागों को पंत संभाल रहे थे उनके लिए मजबूत हाथ होने चाहिए। मंत्री पद का सपना संजोए विधायकों को साधना भी आसान नहीं होगा

 

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की शुरू से ही इस बात को लेकर आलोचना होती रही है कि उनमें निर्णय लेने का दमखम नहीं है। निर्णय लेने में वे बहुत सुस्त हैं। हकीकत भी यही है। पूर्व में राज्य में कुछ मुख्यमंत्रियों ने बैसाखियों के सहारे सरकारें चलाई, लेकिन मंत्री पद खाली नहीं रखे। एक को साधने के चक्कर में दूसरे के नाराज होने का जोखिम उन मुख्यमंत्रियों ने लिया, जो निर्दलियों के समर्थन से सरकार चला रहे थे। लेकिन त्रिवेंद्र रावत में यह साहस नहीं दिखाई देता। अब तो उनके सामने यह चुनौती भी खड़ी हो चुकी है कि प्रकाश पंत की कमी को कैसे पूरा किया जाए। पंत सरकार में वित्त, संसदीय कार्य, विधायी, भाषा, आबकारी, पेयजल एवं स्वच्छता, गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग जेसे महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व संभाल रहे थे। इनमें तीन बड़े मंत्रालय आबकारी, वित्त और संसदीय कार्य का कामकाज पंत ने बखूबी संभाला था। हालांकि सरकार के भीतर पंत के मंत्रालयों को लेकर भी राजनीति होती रही है। एक मंत्री गन्ना और आबकारी मंत्रालय पाने के लिए कई बार जुगत भिड़ा चुके हैं, लेकिन प्रकाश पंत की राजनीतिक ताकत और सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत होने के चलते उनके अरमान पूरे नहीं हो पाए। सूत्रों की मानें तो अब आबकारी और गन्ना मंत्रालय उन्हीं मंत्री को मिलने की संभावनाएं बढ़ गई हैं, लेकिन वित्त औेर संसदीय कार्य मंत्रालय को लेकर सरकार चिंतित है कि ये दोनों मंत्रालय किसे दिए जाएं। मुख्यमंत्री की समस्या सिर्फ यह नहीं कि मंत्री पद किसे दिए जाएं, बल्कि उन्हें यह भी देखना होगा कि जिन्हें पद दिए जाएं वे योग्य भी हैं या नहीं? विधायकों की नाराजगी के स्वर उठ सकते हैं।

सरकारी सूत्रों की मानें तो कैबिनेट मंत्री मदन कोशिक को संसदीय कार्य, आबकारी तथा गन्ना विभाग दिए जाने की चर्चाएं हो रही हैं। माना जा रहा है कि कौशिक पूर्व में संसदीय कार्य का दायित्व संभाल चुके हैं। विधानसभा का लम्बा अनुभव होने के चलते उनको इस मंत्रालय से कोई समस्या भी नहीं हो सकती है। राजनीतिक तौर पर मदन कौशिक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खासे नजदीकी मंत्री भी हैं। इसी के चलते उन्हें सरकार का प्रवक्ता पद भी दिया गया है। यह प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार हुआ जब किसी केबिनेट मंत्री को सरकार का प्रवक्ता बनाया गया। मदन कौशिक खण्डूड़ी सरकार में आबकारी और गन्ना मंत्रालय भी संभाल चुके हैं। शायद यही कारण रहा है कि उनकी पहली पंसद आबकारी और गन्ना विभाग रहा है।

हालांकि चर्चाएं यह भी हो रही हैं कि संसदीय कार्यों की सबसे ज्यादा जानकारी मुन्ना सिंह चौहान को है और उन्हें इस बार मंत्री पद से नवाजे जाने की भी चर्चा हो रही है। लेकिन सूत्रों के अनुसार सरकार अभी किसी विधायक को मंत्री पद नहीं देने वाली जिसके चलते मुन्ना सिंह चौहान का नंबर आना संभव नहीं दिखाई दे रहा है, जबकि वास्तव में मुन्ना सिंह चौहान संसदीय और विधायी कार्यों के सबसे बड़े जानकार पर माने जाते हैं। सदन में अपनी ही सरकार के मंत्रियों को वे अपने सवालों और जवाबों से निरूत्तर कर चुके हैं। हो सकता है कि मौजूदा दौर के समीकरणों में मुन्ना सिंह चौहान के नाम मंत्री पद की लॉटरी लग जाए।

सबसे बड़ी समस्या वित्त मंत्रालय को लेकर है। प्रकाश पंत ऐसे समय में वित्त मंत्री का पद संभाल रहे थे जब राज्य पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा था। एक अनुमान के अनुसार वर्ष के अंत तक तकरीबन 56 हजार करोड़ का कर्ज राज्य पर हो सकता है। सरकार का खजाना खाली है। ऐसे समय में पंत जिन्हें वित्त का अनुभव रहा है, उनके स्थान पर किसी अन्य मंत्री या विधायक को ऐसा विभाग देना सरकार के लिए आने वाले समय में बहुत बड़ी चुनौती बन चुका है।

माना जा रहा है मदन कौशिक और सुबोध उनियाल ही ऐसे मंत्री हैं जिनको वित्त का अनुभव है। अफसरशाही से काम लेना दोनों ही मंत्रियों को बखूबी आता है। अगर वित्त मंत्रालय अनुभवहीन मंत्री को मिला तो यह तय है कि वित्त विभाग में नौकरशाहों की ही मनमर्जी चलेगी। यही आशंकाएं सरकार के भीतर भी पनप रही हैं। वैसे 24 जून से विधानसभा का सत्र आरंभ होने जा रहा है तो कम से कम सरकार संसदीय कार्यमंत्री का पद किसी न किसी मंत्री को दे सकती है। लगता है कि यह सत्र बहुत छोटा होगा। दिवंगत मंत्री प्रकाश पंत को श्रद्धांजलि देने के बाद सत्र का समापन हो सकता है। सरकार की प्राथमिकता फिलहाल संसदीय कार्यमंत्री के पद को लेकर है।

राजनीतिक समीकरणों की बात करें तो प्रकाश पंत के मंत्रालयां का बंटवारा हुआ तो भाजपा के भीतर कई दावेदार हैं। कांग्रेस से भाजपा में आए सुबोध उनियाल, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, रेखा आर्य और सतपाल महाराज को भी मंत्री पद से नवाजा गया है, जबकि मूल भाजपा के महज तीन लोगों को कैबिनेट और एक को राज्यमंत्री पद दिया गया है। प्रकाश पंत के निधन के बाद भाजपा के महज दो ही कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक और अरविंद पांडे तथा राज्यमंत्री धनसिंह रावत ही सरकार में मंत्री हैं। इसी के चलते दो खाली मंत्री पद भी भाजपा मूल के विधायकों को ही देने का दबाब सरकार पर बना हुआ है। प्रकाश पंत के विभागों को भी भाजपा विधायकों और मंत्रियां को ही दिए जाने का दबाब सरकार और भाजपा संगठन पर है। यह दबाव प्रदेश भाजपा संगठन और सरकार के लिए बड़ी परेशानी का सबब बना हुआ है।

सरकार के ढाई साल के कार्यकाल के बावजूद दो मंत्री पदां को भरने में सरकार के पसीन छूटते रहे हैं, जबकि इस दौरान राज्य में कई चुनाव संपन्न हो चुके हैं। निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा उपचुनाव और सहकारिता के चुनाव तक संपन्न हो चुके हैं। यहां तक कि लोकसभा चुनाव भी सम्पन्न हो चुके हैं। इसके बावजूद सरकार रिक्त मंत्री पदों को नहीं भर पाई। अब माना जा रहा है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को इसके लिए एक अवसर के तौर पर रखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार राज्य में प्रचंड बहुमत की सरकार होने के बावजूद ढाई साल से दो मंत्री पदों पर तैनाती न होने से सरकार पर सवाल उठते रहे हैं। सरकार ने स्वयं अपने लिए प्रश्न-चिÐ खड़े किए हैं कि आखिर मुख्यमंत्री को किस बात का डर है जिसके चलते दो मंत्री पद रिक्त रखे गए हैं। आखिर उनमें फैसले लेने का साहस कब आएगा?

अब प्रकाश पंत के निधन के बाद तो हालात और भी गंभीर हो चुके हैं। स्वयं मुख्यमंत्री के पास वर्तमान में चालीस विभाग हैं जिनके वे विभागीय मंत्री हैं। इसके चलते आने वाले समय में विभागों के कामकाज पर असर पड़ सकता है। जानकारों के मुताबिक सरकार कई समीकरणों के कारण रिक्त मंत्री पदों पर तेनाती से बचती रही है। इसमें सबसे बड़ा समीकरण गढ़वाल और कुमाऊं को लेकर है। अभी तक सरकार में मंत्री पद पर गढ़वाल का दबदबा बना हुआ है, जबकि कुमाऊं से दो कैबिनेट और एक राज्य मंत्री ही हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इनमें से एक कैबिनेट और एक राज्य मंत्री पद कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं की झोली में है। इसके कारण कुमाऊं से मंत्री पद भरे जाने की चर्चाएं हैं। विशन सिंह चुफाल, हरभजन सिंह चीमा, पुष्कर सिंह धामी, राजकुमार ठुकराल बंशीधर भगत, सुरेंद्र सिंह जीना जैसे विधायकों को कुमाऊं से मंत्री पद के दावेदार हैं। इनमें से कइयों का लंबा राजनीतिक अनुभव है। इसी तरह से गढ़वाल की बात करें तो मुन्ना सिंह चौहान, ऋतु खण्डूड़ी, गणेश जोशी, खजान दास, महेंद्र प्रसाद भट्ट, जैसे नेता बड़ा दमखम रखते हैं। इसके चलते मुख्यमंत्री की राह भी आसान नहीं दिखाई दे रही है। एक को साधने के प्रयास में दूसरे की नाराजगी मोल लेने का साहस शायद मुख्यमंत्री में नहीं है।

सूत्रों की मानें तो अभी मंत्री पदां को भरने में न तो सरकार की रुचि है और न ही भाजपा संगठन की। वैसे भी अजय भट्ट के सांसद निर्वाचित होने के बाद भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलना तय है। यह भी माना जा रहा है कि नया प्रदेश अध्यक्ष बनने से पूर्व सरकार ओैर भाजपा फिलवक्त तक मंत्री पदां पर तैनाती से परहेज करती रहे।

Leave a Comment

Your email address will not be published.

You may also like

MERA DDDD DDD DD