नौ अक्टूबर का दिन इतिहास में 15 साल की एक किशोरी पर तालिबान के बेरहम आतंकवादियों के घातक हमले का साक्षी है। मलाला ने देश में लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज बुलंद की थी यही कारण था कि उनपर हमला किया गया था। उस हमले में मलाला के सिर में गोली मारकर उसकी जान लेने की कोशिश की थी।
स्कूल से घर लौट रही मलाला पर हुआ यह हमला घातक था। वे चाहते थे कि महिलाओं के हक के लिए उठी आवाज हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो जाए लेकिन मलाला का हौंसला भी कम न था। ब्रिटेन में लंबे इलाज के बाद वह ठीक हुईं और एक बार फिर अपने अभियान में जुट गईं। मलाला को इस साहस के लिए विश्व के सर्वोच्च सम्मान नोबेल से सम्मानित किया गया। वो सबसे कम उम्र में नोबेल जीतने वाली पहली महिला हैं। मलाला को यह सम्मान साल 2014 में मिला था|

2012 को तालिबानी आतंकी उस बस पर सवार हो गए जिसमें मलाला अपने साथियों के साथ स्कूल जाती थीं। उनमें से एक ने बस में पूछा, ‘मलाला कौन है?’ सभी खामोश रहे लेकिन उनकी निगाह मलाला की ओर घूम गईं। इससे आतंकियों को पता चल गया कि मलाला कौन है। उन्होंने मलाला पर एक गोली चलाई जो उसके सिर में जा लगी। मलाला पर यह हमला 9 अक्टूबर 2012 को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात घाटी में किया था।
2008 में तालिबान ने स्वात घाटी पर अपना नियंत्रण कर लिया। वहां उन्होंने डीवीडी, डांस और ब्यूटी पार्लर पर बैन लगा दिया। साल के अंत तक वहां करीब 400 स्कूल बंद हो गए। इसके बाद मलाला के पिता उसे पेशावर ले गए जहां उन्होंने नेशनल प्रेस के सामने वो मशहूर भाषण दिया जिसका शीर्षक था- ‘हाउ डेयर द तालिबान टेक अवे माय बेसिक राइट टू एजुकेशन?’ तब वो केवल 11 साल की थीं।
