पिछले कई वर्षों से ग्लोबल वार्मिंग को लेकर विभिन्न स्तरों से चिंता व्यक्त की जा रही है। संयुक्त राष्ट्र से लेकर कई अंतरराष्ट्रीय संगठन, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संगठन और पर्यावरणविद् लगातार इस मुद्दे पर अपना पक्ष रख रहे हैं। हालाँकि, वैश्विक स्तर पर पर्यावरण-अनुकूल जीवनशैली को अपनाने को बहुत कम लोगों ने स्वीकार किया है। इसलिए ग्लोबल वार्मिंग के झटके अलग-अलग देशों में अलग-अलग हद तक पड़ने लगे हैं। अब एक रिपोर्ट सामने आई है जो मानव जाति के लिए खतरे की घंटी है और इसके मुताबिक पिछले 12 महीने धरती पर सबसे गर्म 12 महीने दर्ज किए गए हैं।
ये निष्कर्ष ‘क्लाइमेट रिसर्च’ नामक एक गैर-लाभकारी वैज्ञानिक अनुसंधान संगठन द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आए हैं। इसके अनुसार, नवंबर 2022 से अक्टूबर 2023 तक की अवधि धरती पर अब तक का सबसे गर्म तापमान दर्ज किया गया था। कोयला, प्राकृतिक गैस, अन्य ईंधनों के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें निकल रही हैं जो पृथ्वी के तापमान को बढ़ाती हैं। इससे धरती का तापमान बढ़ने लगा है। इस संबंध में हिंदुस्तान टाइम्स ने एक रिपोर्ट दी है।
क्या कहते हैं आंकड़े?
दुनिया की लगभग 7.3 अरब या 90 प्रतिशत आबादी ने इस वर्ष के दौरान कम से कम 10 दिनों तक अत्यधिक गर्मी का अनुभव किया। यह भी बताया गया कि यह मात्रा सामान्य तापमान से तीन गुना अधिक थी। इस दौरान औसत वैश्विक तापमान 1.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। यह पेरिस समझौते के तहत वैश्विक स्तर पर सहमत 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के बहुत करीब प्रतीत होता है।
क्लाइमेट सेंट्रल के वैज्ञानिक एंड्रयू पर्शिंग कहते हैं,“लोग जानते हैं कि चीजें बहुत अजीब हो गई हैं। लेकिन लोग ये नहीं समझ पाते कि वो अजीब क्यों हो गए। क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं देख रहे हैं। हम अभी भी कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जला रहे हैं।”
तापमान बढ़ा, क्या हैं लक्षण
1. तापमान में अत्यधिक वृद्धि के कारण वर्षा की गणना गड़बड़ा गई है। क्योंकि गर्म तापमान में हवा में अधिक जलवाष्प बनी रहती है। इसलिए जब बारिश होती है तो अक्सर तूफान की स्थिति पैदा हो जाती है। अफ़्रीका में आए ऐसे ही तूफ़ान डेनियल ने कम से कम 4 से 11 हज़ार लोगों की जान ले ली है।
2. भारत के 1.2 अरब लोग या लगभग 86 प्रतिशत आबादी, साल में कम से कम 30 दिन वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक तापमान का अनुभव करती है।
3. ब्राज़ील के सूखे ने नदियों को इतिहास में सबसे शुष्क बना दिया है। परिणामस्वरूप, नागरिक स्वच्छ ताजे पानी और भोजन से वंचित हो जाते हैं।
4. घातक जलवायु परिवर्तन के कारण इस साल अमेरिका में 383 लोगों की मौत हो गई। उनमें से 93 मौतें अकेले माउई जंगल की आग (अमेरिका में 100 वर्षों में सबसे घातक जंगल की आग) के कारण हुईं।
5. कनाडा में हर 200 में से एक व्यक्ति जंगल की आग के कारण विस्थापित हुआ है। गर्म मौसम की लंबी अवधि के कारण ये जंगल की आग लंबे समय तक जलती रहती है।
6. जमैका में पिछले 12 महीनों में औसत वैश्विक तापमान से कम से कम चार गुना अधिक गर्मी का अनुभव हुआ है। इसलिए ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर देश पर पड़ने लगा है।

