खनन विभाग के निदेशक एसएल पैट्रिक के निलंबन के बाद प्रदेश की नौकरशाही में बड़ी हलचल मची हुई है। चर्चा है कि जिस तरह से खनन की डील पर एसएल पैट्रिक के वाट्सऐप चैट सामने आए हैं उसी तरह से कई अधिकारियों के भी वाट्सऐप चैट घूम रहे हैं जिनके सामने आने पर सरकार की फजीहत होनी तय है। जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जल्द ही प्रदेश की सत्ता व्यवस्था में बड़ा फेरबदल कर सकते हैं जिसके लिए तैयारियां की जा रही हैं। जिस तरह से मुख्यमंत्री ताबड़-तोड़ विभागों और विभागाध्यक्षों की कार्यशैली और उनके कामकाज की समीक्षा कर रहे हैं उससे साफ है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के तुरंत बाद प्रदेश में धामी सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है
खनन विभाग के निदेशक एसएल पैट्रिक के निलंबन के बाद प्रदेश की नौकरशाही में बड़ी हलचल मची हुई है। जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जल्द ही बड़ा फेरबदल कर सकते हैं जिसके लिए तैयारियां की जा रही हैं। माना जा रहा है कि राज्य में अब तक का सबसे बड़ा फेरबदल हो सकता हेै जिसकी जद में शासन-प्रशासन तो होगा ही, साथ ही सरकार में भी चौंकाने वाला फेरबदल हो सकता है। जिस तरह से मुख्यमंत्री ताबड़-तोड़ विभागों और विभागाध्यक्षों की कार्यशैली और उनके कामकाज की समीक्षा कर रहे हैं उससे साफ है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के तुरंत बाद प्रदेश में धामी सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है।
ऐसा नही है कि राज्य में फेरबदल कोई नई बात हो, धामी सरकार पहले भी प्रशासनिक फेरबदल कर चुकी है लेकिन लोकसभा चुनाव में जिस तरह से मतदान बहिष्कार की घटनाएं सबसे ज्यादा देखी गई हैं जिसमें सबसे ज्यादा मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी से जनता में सरकार के प्रति रोष सामने आया है उससे धामी सरकार के कान खड़े हो गए हैं। लोकसभा चुनाव केंद्र सरकार के लिए होता है लेकिन इस चुनाव में मतदान प्रतिशत कम होना और मतदान के बहिष्कार से एक बात तो साफ हो गई है कि मतदाताओं की नाराजगी जिन मुद्दांे पर रही है वे सभी राज्य सरकार के अधीन हैं। सड़क, पेयजल जैसे अहम सुविधाओं की कमी के चलते मतदाताओं को मतदान का बहिष्कार करने को मजबूर होना पड़ा है उससे राज्य सरकार की कार्यशैली पर तो सवाल खड़े ही हो रहे हैं, साथ ही मुख्यमंत्री की छवि को भी नुकसान हो रहा है।
मुख्यमंत्री ने जब मतदतान बहिष्कार के मामलों का संज्ञान लिया तो साफ हो गया कि सड़क और पेयजल जैसे मामले में स्वीकृत योजनाओं की फाइलें तक अफसरशाही द्वारा लटकाई जा रही हैं, साथ ही कुछ मामलों में तो विभागीय मंत्रियों द्वारा भी स्वीकृति के नाम पर फाइलों को लटकाया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री धामी इसको लेकर खासे नाराज बाताए जा रहे हैं और पूरी तरह से सफाई के मूड में हैं। जितने भी मामले अनियमितता और भ्रष्टाचार से जुड़े हैं उन पर सरकार बड़ा कदम उठा सकती है। पूर्व में उद्यान विभाग के मामले में सीबीआई जांच को लेकर राज्य सरकार फजीहत झेल चुकी है और अब एसएल पैट्रिक के मामले में सीबीआई जांच होने की पूरी संभावना है जिसको लेकर सरकार सचेत हो गई है। ऐसे कई मामले जिसमें अफसरों पर उंगलियां उठ चुकी हैं, पर सरकार कोई कड़ा कदम उठाने का निर्णय ले रही है। हो सकता है कि 4 जून के बाद अचानक से प्रदेश में कोई बड़ी कार्यवाही देखने को मिल सकती है।
सरकार की सबसे बड़ी फजीहत खनन विभाग में चल रहे गड़बड़-घोटालों को लेकर हो रही है। निलंबित खनन निदेशक के वाट्सऐप चैट जिस तरह से सामने आए हैं उससे एक बात तो साफ हो गई है कि खनन विभाग में सब कुछ ठीक नहीं है। चर्चा है कि जिस तरह से खनन की डील पर एसएल पैट्रिक क वाट्सऐप चैट सामने आए हैं उसी तरह से कई अधिकारियों के भी वाट्सऐप चैट घूम रहे हैं जिनके सामने आने पर सरकार की फजीहत होनी तय है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अब पूरी तरह से सफाई करने के मूड में नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री कार्यालय से हो सकती है। आज मुख्यमंत्री से मिलने का समय मिलना एक बड़ा युद्ध जैसा हो चुका है जबकि खास वर्ग और व्यापारी-बिल्डर्स, कारोबारियों को मुख्यमंत्री कार्यालय से तुरंत समय मिल जाता है लेकिन अन्य को समय नहीं दिया जाता है जिसकी अनेक बार शिकायतें सामने आ चुकी हैं।
मुख्यमत्री पुष्कर सिंह धामी के पहले कार्यकाल में भी उनके कार्यालय में एक आपराधिक प्रवृत्ति के तांत्रिक बाबा प्रियव्रत अनिमेश द्वारा अपनी पुस्तक का विमोचन करवाने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय को चुना और बड़ी शान से पुस्तक का विमोचन मुख्यमंत्री के हाथों न सिर्फ करवाया, बल्कि उसका सोशल मीडिया में जमकर प्रचार-प्रसार भी किया। इस बाबा के खिलाफ ऋषिकेश कोतवाली में लाखों की ठगी का मुकदमा तक दर्ज था। बावजूद इसके बाबा आसानी से मुख्यमंत्री तक अपनी पहुंच बनाने में सफल रहा। यही नहीं प्रियव्रत अनिमेश नाम के इस तांत्रिक के अनेक
राजनीतिज्ञों और उच्चाधिकारियों यहां तक कि आईपीएस अधिकारियांे से बड़े घनिष्ठ संबंध बताए जा रहे थे। ‘दि संडे पोस्ट’ ने इस खबर को प्रमुखता से अपने जुलाई 2022 के अंक में ‘‘राजा के दरबाार में ठग’’ शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था जिसमें मुख्यमंत्री कार्यालय में ऐसे तत्वों की घुसपैठ का उल्लेख किया गया था। एक आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति मुख्यमंत्री कार्यालय तक की पहुंच किस तरह और किसके द्वारा करवाई गई यह सवाल भी शासन और सचिवालय के गलियारों में गंूजता रहा। तब सत्ता गलियारों में यह चर्चा जमकर उड़ी थी कि इसके पीछे मुख्यमंत्री के निजी सलाहकारों और सचिवों की फौज में से ही कोई ऐसा था जिसने उस तांत्रिक की मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच बनवाई और उसकी किताब का विमोचन तक करवा दिया।
ऐसे ही एक मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पूर्व निजी सचिव रहे प्रकाश चंद उपाध्याय पर पंजाब के एक भाजपा नेता और कारोबारी को प्रदेश में दवा सप्लाई का ठेका और सरकारी टेंडर दिलवाने के नाम पर 3 करोड़ 42 लाख रुपए की ठगी के आरोपों से यह बात तो साफ हो चुकी है कि सचिवालय में ठगी के सूत्रधार आसानी से अपने काम को अंजाम देते हैं और सरकारी ठेकों को दिलवाने का काम करते हैं।
अब प्रदेश की नौकरशाही की बात करें तो राज्य स्थापना के साथ ही अफसरशाही के बेलगाम होने के मामले आने शुरू हो गए थे। हर सरकार में नौकरशाही पर गंभीर सवाल खड़े होते रहे हैं जबकि सरकार और नौकरशाही के बीच विवाद भी खूब हो चुके हैं। योजनाओं की फाइलों को लंबे समय तक लटकाने का चलन प्रदेश की नौकरशाही पर सबसे ज्यादा लगता रहा है। यहां तक कि विभागीय मंत्रियों ने भी अपने अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं और उनके स्थानांतरण का दबाव भी बनाने की खबरें सामने आ चुकी हैं। विभागीय मंत्रियों को बाईपास करने और अपने आप को सर्वोच्च समझने के एक मामले में तो राज्य की नौकरशाही की पूरी सच्चाई सामने लाकर रख दी। विभागीय मंत्री के फर्जी हस्ताक्षर से अयाज अहमद को लोक निर्माण विभाग का मुखिया के तौर पर प्रमोशन किया गया। इस मामले में अयाज द्वारा लोक निर्माण मंत्री सतपाल महाराज के फर्जी हस्ताक्षर करके अपनी फाइल को शासन से स्वीकृत करवाया गया। हैरानी की बात यह है कि इस मामले में डालनवाला थाने में सतपाल महाराज के जनसपंर्क अधिकारी कृष्ण मोहन द्वारा महाराज के ही निजी सचिव आईपी सिंह और अयाज अहमद के खिलाफ धोखाधड़ी, जालसाजी और आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करवा दिया गया लेकिन हुआ कुछ नहीं। अयाज अहमद न सिर्फ प्रमोशन पाकर लोक निर्माण विभाग का मुख्यिा बने और इसी पद से रिटायर भी हो गए।
कैग भी खनन विभाग से खफा
आज जिस खनन विभाग को लेकर सरकार की फजीहत हो रही है उसी पर कैग भी गंभीर सवाल खड़े कर चुकी है। सीएजी ने 2017 से लेकर 2021 तक चार वर्ष के कालखंड में देहरादून में हो रहे अवैध खनन को लेकर अपनी रिपोर्ट में जो खुलासे किए हैं वह पूरी तरह से प्रदेश के सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़ा करता है कि किस तरह से प्रदेश के संसाधनों को लुटवाने में पूरा सरकारी तंत्र का संरक्षण हासिल रहा है और नौकरशाही इसको खत्म करने के लिए पूरी तरह से लापरवाह ही बनी रही।
प्रदेश की अफसरशाही के निरंकुशता का सबसे ज्वलंत उदाहरण खनन के मामले में कैग की रिपोर्ट से ही समझा जा सकता है। खान मंत्रालय भारत सरकार और खनन ब्यूरो द्वारा उपग्रह निगरानी द्वारा खान निगरानी प्रणाली को विकसित किया था। यह प्रणाली खनन पट्टों के 500 मीटर के आस-पास के दायरे में जांच करके उसमें जरा सी भी कोई बदलाव पाया जाता है तो उसे चिन्हित करके रिमोट सेंसिंग कंट्रोल सेंटर आईबीएम में जांच करके राज्य के खनन, भू विज्ञान विभाग या जिला खनन अधिकारी को मौके पर जाकर सत्यापन करना था। अगर मौके पर अवैध खनन पाया जाता है तो कार्यवाही की जानी थी। लेकिन खनन निगरानी प्रणाली की पूरी तरह से सफलता राज्य सरकारों पर ही निर्भर थी यानी जब तक राज्य सरकार नहीं चाहे तब तक इस प्रणाली से कोई कार्य हो ही नहीं सकता। अगर खनन निगरानी प्रणाली द्वारा रिमोर्ट सेंसिंग कंट्रोल केंद्र से खनन के क्षेत्र में बदलाव को पकड़ता भी है तो वह उसे राज्य सरकार के ही विभागों को भेेजेगा, परंतु राज्य सरकार के सक्षम विभाग और अधिकारी मौके पर जांच ही नहीं करेंगे तो यह प्रणाली केवल खाना पूर्ति के लिए ही रह जाएगी। हैरत की बात यह हेै कि इस अति महत्पूर्ण प्रणाली को 2016 से राज्य सरकार ने अपनाया ही नहीं जिससे निर्बाध रूप से अवेैध खनन होता रहा।
वन विभाग भी बदहाल
वर्तमान समय में पूरा उत्तराखण्ड वनाग्नि की चपेट में है। इस वनाग्नि की रोकथाम का जिम्मा जिस वन विभाग पर है, वह अपने वरिष्ठ नौकरशाहों की आपसी रार और ऊपर से नीचे तक विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार चलते इस वनाग्नि को रोक पाने में पूरी तरह विफलल साबित हो चुका है। नौकरशाहों के सरकार से ज्यादा ताकतवर होने के प्रमाण भी इसी प्रदेश में देखने को मिल चुके हैं। गंभीर बात यह है कि सरकारी विभागों में विभागाध्यक्षों की तैनाती भी अब न्यायालयों द्वारा होने लगी है जो साफ दर्शाता है कि सरकार और शासन की लड़ाई में नौकरशाही सरकार पर भारी पड़े हैं और नौकरशाहांे का साफ संदेश है कि एक अधिकारी चाहे तो वह सरकार के निर्णय को अपने पक्ष में बदल सकता है।
दरअसल 25 नवंबर 2021 को सरकार ने प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी का स्थानांतरण जैव विविधता बोर्ड में कर दिया और उनके स्थान पर भारतीय वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारी विनोद सिंघल को राज्य का हॉफ पद पर तैनात कर दिया। इस स्थानांतरण को भरतरी द्वारा अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाते हुए अपने अधिकारों का हनन करने और राजनीतिक द्वेष से स्थानांतरण किए जाने के आरोप लगाते हुए इस मामले को सिविल सर्विस ट्रयूबिनल यानी कैट में ले गए। कैट ने भरतरी के पक्ष में अपना निर्णय दिया लेकिन राज्य सरकार ने कैट के निर्णय को नहीं माना तो भरतरी मामले को हाईकोर्ट में ले गए। हाईकोर्ट ने भी प्रमुखता से इस मामले में सुनवाई की और इससे पूर्व कि राज्य सरकार और विनोद सिंघल अपना पक्ष रखते इससे पूर्व ही हाईकोर्ट ने चौंकाने वाला निर्णय देते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया कि राजीव भरतरी को 4 अप्रैल दस बजे तक हॉफ के पद पर तैनाती दी जाए। दिलचस्प बात यह है कि 4 अप्रैल को देशभर में महावीर जयंती के पर्व की राजकीय आवकाश भी था लेकिन भरतरी को अवकाश के दिन ही हॉफ के पद पर तैनाती देने के हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन किया गया और आनन-फानन में वन विभाग का मुख्यालय खोला गया और राजीव भरतरी ने विनोद सिंघल के हाथों चार्ज लिया। इस पूरे प्रकरण में कई गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं जो प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था के साथ-साथ राज्य सरकार के संवैधानिक अधिकारों पर भी सवाल खड़े कर रही है। क्या राज्य में सरकार का तंत्र इतना कामजोर हो चुका है कि अधिकारियों की तैनाती का काम हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ रहा है।

