उत्तराखण्ड के दूर दराज के इलाकों में कई ऐसी प्रतिभाएं छुपी हुई हैं जिन्होंने प्रदेश का नाम रोशन किया है। ऐसी प्रतिभाएं अक्सर सामने नहीं आती हैं। इन्हें मीडिया के जरिए सामने लाकर लोगों का रोल मॉडल बनाने में संजय चौहान का योगदान रहा है। जो ग्राउंड जीरो से उन तक पहुंचते हैं और अपने लेखन के जरिए उनके सकारात्मक कार्यों को देश-दुनिया के सामने लाते हैं। उनके द्वारा समाचार पत्रों में लिखी गई ऐसी प्रतिभाओं की कहानी उत्तराखण्ड के लोगों के लिए मार्गदर्शन बनती हैं। ऐसे पत्रकार संजय चौहान को लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में ‘युवा आह्वान इंस्पिरेशन सम्मान’ मिलने से पहाड़ के लोगों में खुशी का माहौल है
बीस साल पहले उत्तराखण्ड के सुदूरवर्ती पहाड़ की खबरें मुख्य समाचार पत्रों तक नहीं पहुंच पाती थीं जिस कारण पहाड़ की वाजिब समस्याओं की जानकारी नहीं मिल पाती थी। अखबार भी आमजन तक बमुश्किल से पहुंच पाता था। इस दौर में वर्ष 2003-4 से उत्तराखण्ड के सीमांत जनपद चमोली के छोटे से कस्बे पीपलकोटी से संजय चौहान नाम के युवा ने पत्रकारिता में कदम रखा और अपनी शानदार लेखनी से विभिन्न समाचार पत्रों में पहाड़ के असल मुद्दों को उठाना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय सहारा और ‘दि संडे पोस्ट’ में कार्य किया। इन दोनों समाचार पत्रों में रहकर संजय चौहान निखर कर सामने आए और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2012 के बाद डिजिटल मीडिया/सोशल मीडिया की शुरुआत हुई तो संजय चौहान ने इस प्लेटफार्म के जरिए उत्तराखण्ड के पर्यटन, स्वरोजगार कर रहे युवाओं, रिवर्स माइग्रेशन, लोक संस्कृति पर सैकड़ों लेख लिखे और देश-दुनिया के सामने रखा। उन्होंने दर्जनों युवाओं को अपनी लेखनी के जरिए देश-दुनिया से परिचित कराया जो आज अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं। संजय चौहान ने रिंगाल, ऐपण, पीरूल, मशरूम, हस्तशिल्प कला, रिवर्स माइग्रेशन, स्वरोजगार पर सैकड़ों लेख लिखकर इस क्षेत्र में कार्य कर रहे युवाओं को मंजिल तक पहुंचाया। पहाड़ के कोने-कोने की खाक छानने वाले यायावर, प्रकृति प्रेमी, लेखक, पत्रकार, लोक संस्कृतिकर्मी संजय चौहान नं पहाड़ और यहां की अनमोल सांस्कृतिक विरासत को अपनी लेखनी से नई पीढ़ी तक पहुंचाया है। उन्होंने पहाड़ के लोकजीवन, नदी घाटियां, बुग्याल, पर्यटन की दृष्टि से पहाड़ के गुमनाम ट्रैक स्थल को अपनी लेखनी से नई पहचान दिलाई और देश-दुनिया के सामने रखा। आज संजय चौहान ने सकारात्मक और जनसरोकारों की पत्रकारिता को नया मुकाम दिया है और अपनी अलग पहचान बनाई है। 20 वर्षों से जनसरोकारों की पत्रकारिता के लिए उन्हें विभिन मंचों पर सम्मानित किया जाता रहा है जो कि खुद पहाड़ का भी सम्मान है।
गौरतलब है कि पहाड़ के छोटे कस्बे पीपलकोटी से पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले संजय चौहान आज युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं वे पहाड़ के आइकॉन हैं। मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले संजय चौहान पत्रकारिता में स्नाकोत्तर डिग्री, समाजशास्त्र में स्नाकोत्तर डिग्री राजनीति विज्ञान में स्नाकोत्तर डिग्री, आपदा प्रबंधन में स्नाकोत्तर डिग्री, फार्मेसी में डिप्लोमा जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। सही मायनों में संजय चौहान वास्तव में पहाड़ के सच्चे हितैषी और चिंतक हैं। नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा हो या फिर 12 बरस में आयोजित होने वाली नंदा राजजात यात्रा, पहाड़ के लोकजीवन का कोई तीज त्यौहार या पहाड़ का कोई लोकोत्सव हो इन्होंने हमेशा पहाड़ को नए रूप में परिभाषित किया है और लोगों को पहाड़ आने के लिए प्रेरित किया है। जहां-जहां पहाड़ की लोक संस्कृति परिलक्षित होती है वहां-वहां आपको संजय चौहान की मौजूदगी दिखाई देगी। इनके हिस्से के पहाड़ में बुग्याल है, फूल है, नदी घाटियां हैं, पहाड़ की पगडंडी है, झुमेलो, झोड़ा, चौंफुला है, रम्माण, पांडव नृत्य है, जीतू बगडवाल है, ऐपण है, रिंगाल की टोकरी और फूलदेई है। इन्होंने अपनी लेखनी के जरिए कई प्रतिभाओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है। पहाड़ और संजय चौहान एक दूसरे के पूरक हैं। पहाड़ के लोक का शायद ही कोई ऐसा विषय होगा जिस पर संजय चौहान ने लिखा न हो। फूलदेई से लेकर इगास बग्वाल, चार धामों से लेकर पंच केदार हर किसी को अपनी लेखनी से देश दुनिया तक पहुंचाया है।
पत्रकारिता में स्वतंत्र लेखन के दो दशक
विगत 10 सालों से इन्होंने डिजिटल प्लेटफार्म सोशल मीडिया में सुदूरवर्ती पहाड़ को नए कलेवर में देश-दुनिया के सामने रखा है। फूलों की घाटी की खुशबू हो या फिर वेदनी आली के मखमली बुग्यालों की सुंदरता, पहाड़ की अनूठी लोक संस्कृति हो या फिर समाज को प्रेरणा देने वाली स्टोरी, पलायन को आईना दिखाने वाली कहानी हो या फिर रिवर्स माइग्रेशन की प्रेरणादाई कहानी, दुर्गम में शिक्षा की अलख जगाए गुरु द्रोण की स्टोरी हो या फिर पहाड़ की आर्थिकी और जीवन रेखाएं मातृशक्ति के संघर्षों की कहानी संजय चौहान ने अपनी जादुई कलम से उन्हें देश-दुनिया तक पहुंचाया।
पत्रकारिता में स्वतंत्र लेखन के दो दशक विगत 2 दशकों के दौरान संजय चौहान के ‘दि संडे पोस्ट’ राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र, ‘पंचजान्य’, ‘राष्ट्रीय सहारा’, ‘जनपक्ष’, ‘कर्मभूमि’, ‘समय साक्ष्य’, ‘जनपक्ष आजकल’, ‘नैनीताल समाचार पत्र’, ‘धाद’, ‘रीजनल रिपोर्टर’, ‘देहरादून डिस्कवर’, ‘द बेटर इंडिया’, ‘हिमालय दर्पण’ सहित दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में इनके 2 हजार से भी ज्यादा लेख छप चुके हैं। जबकि ‘ग्राउंड जीरो’, ‘पहाड़ रफ्तार’, ‘हिमालयन डिस्कवर’ सहित दर्जनों बेब पोर्टलों में सैकड़ों लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
पुरस्कार और सम्मान
पत्रकारिता, पहाड़, पर्यावरण, प्रकृति, लोकसंस्कृति के लिए संजय चौहान को विभिन्न अवसरों पर कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं, जिनमें प्रमुख रूप से-
उमेश डोभाल पत्रकारिता पुरस्कार – 2017
चारु चन्द चंदोला पत्रकारिता पुरस्कार – 2019
पंच केदार सम्मान
बंड गौरव सम्मान
गिरी गौरव सम्मान – 2022
गौरा देवी सम्मान
केदार घाटी सम्मान
युवा आह्वान इंस्पिरेशन अवार्ड 2024
यूथ आइकॉन नेशनल अवार्ड (चयनित ) 2024- जो आगामी 22 दिसंबर 2024 को देहरादून में दिया जाएगा।
बात अपनी-अपनी
लेखन व पत्रकारिता के क्षेत्र में युवा आह्वान इंस्पिरेशन सम्मान मिलने पर संजय चौहान जी को हृदय तल से अनंत शुभकामनाएं। संजय जी वास्तव में हम सभी और अन्य युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। वे इस सम्मान से कहीं ज्यादा के हकदार हैं। उन्होंने पत्रकारिता के स्तर को बचाकर पत्रकारिता में एक नया आयाम स्थापित किया है। उनकी लेखनी में साक्षात मां सरस्वती विराजती हैं। उन्होंने न केवल उत्तराखण्ड की संस्कृति और परम्पराओं को सहेजकर रखा है, बल्कि जगह-जगह बिखरे हुए मोतियों से एक सूत्र में अनेकों नगीनों को जोड़ा है। यूं ही संजय चौहान नहीं बन जाता है। मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं कि मेरे जीवन में संजय जैसे व्यक्तित्व का मार्गदर्शन और सहयोग मिला है। मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं कि आप सदैव यूं ही प्रगति पथ पर अविरल चलते हुए अनंत आसमान की ऊंचाइयों को छुएं।
मंजू शाह, पीरुल वुमन
संजय चौहान उत्तराखण्ड के युवाओं के लिए प्रेरणासोत हैं। उन्होंने पत्रकारिता के जरिए हिमालय और हिमालय की संस्कृति को संजोने का कार्य किया है। इन्होंने अपनी लेखनी के जरिए पर्यावरण संरक्षण और बुग्यालों को बचाने के लिए लोगों को भी जागरूक करने की सराहनीय पहल की है। संजय चौहान जैसे युवा उत्तराखण्ड की धरोहर हैं।
कल्याण सिंह रावत, पद्मश्री मैती आंदोलन के जनक और प्रख्यात पर्यावरणविद
संजय चौहान के सम्मानित होने का अर्थ बुग्यालों, खेल, शिक्षा, हस्तशिल्प, स्वरोजगार के लिए जूझते युवाओं, पलायन का दंश झेलते वीरान-सुनसान गांवों-कस्बों में अपना अस्तित्व खोजने बुजुर्गों, भेड़ -बकरियों के संग ऊंची धार में बैठकर बासुरी की मस्त तान बिखेरते लोग और शीत- पाले के प्रहारों को झेलते-उभरते जंगलों के सम्मानित होने से है। सच्चे अर्थों में पहाड़ की आवाज को आज सम्मान प्राप्त हुआ है, जिसके प्रतिनिधि रूप में हमारे इन पहाड़ों ने अपने इस सुयोग्य पुत्र को पुरस्कार प्राप्त करने के लिए भेजा है।
आचार्य कृष्णानंद नौटियाल, वरिष्ठ साहित्यकार और लेखक, गढ़वाली महाभारत और चक्रव्यूह के लेखक।
सदैव सृजनात्मक सोच और सबको आगे बढाने के कार्य में लगे रचना धर्मी, संस्कृतिकर्मी, शब्द शिल्प के रचनाकार संजय चौहान जी को सम्मानित किया जाना उत्तराखण्ड की संस्कृति और रचना शीलता का सम्मान है।
क्रांति भट्ट, वरिष्ठ पत्रकार
पहाड़ की छुपी प्रतिभाओं को अपनी लेखनी से एक नई पहचान दिलाने, लोक संस्कृति और उत्तराखण्ड की लोक कलाकारों को प्रमुखता से लेखों में स्थान देना संजय चौहान की पहचान और रचनाधर्म रहा है। उत्तराखण्ड के स्थानीय लोकमान्य मेलों, रमणीक प्राकृतिक स्थलों पर विस्तार पूर्वक लिख कर सारगर्भित लेख संजय चौहान को अद्वितीय बनाती हैं। उनकी लेखनी में समृद्धि, उत्कृष्टता, स्पष्टता, निष्पक्षता और तटस्थता के साथ रचनात्मकता देखने को मिलती हैं।
हरेंद्र रावल, शिक्षाविद्, बागेश्वर
संजय चौहान जी वाकई इस सम्मान के पात्र हैं। ग्राउंड जीरो से उन्होंने न जाने कितने लोगों को अपनी कलम से आम से खास बना दिया। संजय चौहान युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनकर सामने आए हैं।
रंजना रावत नेगी, वेडिंग प्लानर और महिला उद्यमी
संजय चौहान को सम्मान मिलना पहाड़ को सम्मान मिलना है। पीपलकोटी जैसे छोटे कस्बे से पत्रकारिता के जरिए पहाड़ और पहाड़ की लोकसंस्कृति को ऊंचाइयां देने वाले संजय चौहान का सम्मानित होना बंड क्षेत्र के लिए गौरवान्वित कर देने वाला है।
अतुल शाह, पूर्व अध्यक्ष, बंड विकास संगठन, पीपलकोटी
