Uttarakhand

नवाचारों का विद्यालय

जनपद पिथौरागढ़ के कनालीछीना विकासखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र में राजकीय माध्यमिक जूनियर हाईस्कूल कमतोली नाम से एक विद्यालय स्थित है। इस विद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थी अपने गुरू यानी विज्ञान के शिक्षक डॉ. सी.बी.जोशी से न सिर्फ विज्ञान के नए- नए गुर सीख रहे हैं, बल्कि अपनी संस्कृति व लोक कलाओं से भी वह गहरे से रूबरू हो रहे हैं। डॉ. जोशी के मार्गदर्शन में पूरे विद्यालय में नवाचार के जरिए विद्यार्थियों की मौलिक प्रतिभा को निखारा जा रहा है। विद्यार्थियों में कुछ इस तरह की रचनात्मकता भरी जा रही है जिससे उनकी सृजन क्षमता का बेहतर विकास हो रहा है। आज कमतोली विद्यालय एक अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहा है। विद्यालय के बाल वैज्ञानिक सामाजिक चेतना जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। विद्यालय में विज्ञान संचेतना के साथ ही लोक संस्कृति के महत्व से ‘कला की कक्षा’ में विद्यार्थियों को इसके महत्व से परिचित कराया जा रहा है

छात्रों के वर्कशॉप में पहुंची जिलाधिकारी रीना जोशी

समाज में कुछ ऐसी परंपराएं व रीतियां होती हैं जिन्हें लोग मानते तो हैं लेकिन उसके वैज्ञानिक पक्ष से वह परिचित नहीं होते हैं। ऐसे में कमतोली विद्यालय के बाल वैज्ञानिक अपने शोध के जरिए तमाम परंपराओं के वैज्ञानिक पहलुओं को खोजने में लगे हैं ताकि लोेगों के अंदर सामाजिक संचेतना के साथ ही वैज्ञानिक जागरूकता भी लाई जा सके। विद्यालय के इन बाल वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में कई नए तथ्यों को उजागर किया है। जैसे विद्यालय की एक छात्रा निशा भट्ट ने तुलसी व्रत परायण का अध्ययन किया और पाया कि तुलसी में एक्सीऑक्सीडेंट और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं। इसी तरह निशा व ज्योति ने सर्वे प्रश्नावली तथा दार्शनिक शोध विधियों का प्रयोग कर अपने प्रोजेक्ट तैयार किए हैं।

वहीं दिव्यांशु भट्ट व मनीषा भट्ट ने समाज में व्याप्त नातक-सूतक एवं मासिक धर्म के दौरान क्वारंटीन परंपरा की वैज्ञानिक विवेचना की है। इस अध्ययन में इन्होंने पाया कि इसमें अंधविश्वास अधिक है। जैसे दूध व दूध से निर्मित पदार्थों को न खाना एक मिथक है। आश्विन संक्रांति पर छिलके की मशाल एवं अलाव के गुणों पर विद्यालय के छात्र मुकेश चंद्र भट्ट व ललित पाठक शोध कर रहे हैं। इसमें छिलके के एरोमीटिक गुण को कीटनाशक बताया गया है। पिछले दिनों गोपेश्वर में आयोजित सीमांत पर्वतीय बाल विज्ञान महोत्सव में विद्यालय की छात्रा निशा भट्ट ने जूनियर वर्ग में राज्य में पहला स्थान प्राप्त किया। विद्यालय के अन्य विद्यार्थी भी समय-समय पर अपनी रचनात्मकता का परिचय देते रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जनपद पिथौरागढ़ के स्कूली बच्चों का रुझान तेजी से विज्ञान की तरफ बढ़ रहा है। हाल में संपन्न 80 वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस के लिए राज्य स्तर पर 12 बाल वैज्ञानिकों का चयन हुआ था जिसमें से 07 ग्रामीण विद्यालयों से संबंधित थे। डॉ. सी.बी.जोशी ने विद्यालय में ‘कला की कक्षा’ भी स्थापित की है जिसके तहत लोक कलाओं के संरक्षण में विद्यालय की भूमिका एवं योगदान पर बच्चों को बेहतर तरीके परिचित कराया जा रहा है।

तुलसी का एंटी बैक्टीरियल गुण बताने के लिए निशा भट्ट को सम्मान और कार्यक्रम में स्वागत कार्य

इस कक्षा में लोक कलाओं की बारीकियों से विद्यार्थियों को परिचित कराया जा रहा है। इस कक्षा में राखी रचना के तहत विद्यालय में नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी दी जा रही है। इसी तरह विद्यालय में एक सांस्कृतिक वाटिका बनाई गई है। जिसमें आयुष वाटिका, नवग्रह वाटिका, पंचवटी वाटिका, शदाशिव वाटिका, पंचपल्लव वाटिका, श्री हरिवाटिका का निर्माण किया गया है। इसके पीछे का उद्देश्य यह रहा है कि अधिवास, औषधीय प्रभाव, फलोत्पादन, आक्सीजन, उत्सर्जन की तीव्रता व भूस्खलन को रोकने के साथ इनकी उपयोगिता के अनुसार इनके प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करना रहा है। यह जानना भी एक वजह रही है कि प्राचीन काल से ही लोग उपयोगी वृक्ष व पादपों की पूजा क्यों करते थे। विद्यालय में गाई जाने वाली सरस्वती वंदना को डॉ. जोशी ने खुद लिखा व कंपोज किया है।

विद्यालय की एक और छात्रा पीहू (बीच में)

इसके अलावा उन्होंने एक देश गीत की भी रचना की है जिसमें बच्चों को ‘राग मालकोष’ से परिचित कराया जा रहा है। इसी विद्यालय में यूथ एवं इको क्लब के सहयोग से पूर्व में विज्ञान संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसके माध्यम से बच्चों में वैज्ञानिक चेतना जगाने का प्रयास किया गया। इस संगोष्ठी में विद्यार्थियों को विज्ञान व तकनीक के साथ ही आयुष विज्ञान, जैव तकनीकी, हर्बल पादप के साथ ही वैज्ञानिक चिंतन एवं प्रक्रिया से भी परिचित कराया गया। इसी तरह मुख्यमंत्री उदीयमान खिलाड़ी उन्नयन योजना छात्रवृत्ति के तहत बच्चों को खेलों के अभ्यास के लिए गृह कार्य के रूप में दिया जा रहा है। विद्यालय की प्रधानाध्यापिका लीला धामी ने बच्चों को मेडिसिन बाल उपलब्ध कराई है। इसके अलावा अभिभावकों की देख-रेख में फ्राग जम्प, फारवर्ड बैंड रीच, 600 मीटर दौड़, मेडिसन बाल थ्रो व शटल रेस को होम वर्क के तौर पर कराया जा रहा है। डॉ. जोशी कहते हैं कि अब हमारा अगला कदम समुदाय के सहयोग से विद्यालय की बंजर भूमि को खेती योग्य बनाना है।

बात अपनी-अपनी
डॉ. सी.बी. जोशी जी जैसे अध्यापकों ने ही सरकारी स्कूलों का महत्व बढ़ाया है। इस समय ऐसे शिक्षकों की सरकारी स्कूलों को बहुत जरूरत है। सरकारी स्कूलों में भी आधुनिक शिक्षा का आगाज डॉ. जोशी जैसे अध्यापक कर चुके हैं। शिक्षा विभाग ऐसे अध्यापकों को मॉडल टीचर के रूप में प्रदेश में प्रस्तुत करेगा।
निल कुमार, सचिव, माध्यमिक शिक्षा, उत्तराखण्ड

हम डॉ. सी.बी. जोशी के विचारों और उनकी शैक्षिक प्रतिभा को लेकर प्लान बना रहे हैं। उनका बच्चों में बाल विज्ञान को बढ़ावा देना बहुत सराहा जा रहा है। हम चाहते हैं कि जोशी जी जैसे अध्यापक हर सरकारी स्कूल में हो, जहां से देश का भविष्य नए-नए वैज्ञानिक प्रयोग कर बाल विज्ञान के जरिए अपनी कार्य कुशलता को बढ़ा सके।
हिमांशु नौगई, बेसिक शिक्षा अधिकारी, पिथौरागढ़

बाल वैज्ञानिक गांवों में जाकर लोगों से बातचीत करने के साथ ही विभिन्न स्रोतों से जानकारी जुटाते हैं। वे समाज में व्याप्त तमाम परंपराओं व रीतियों का गहन अध्ययन कर रहे हैं। इससे समाज में व्याप्त अंधविश्वास, मिथक, परंपराएं व वैज्ञानिकता को समझने में मदद मिलेगी। इससे समाज में वैज्ञानिक साक्षरता का स्तर भी बढ़ेगा। कला की कक्षा के तहत लोक कलाओं के संरक्षण में विद्यालयों के योगदान की भूमिका निर्धारित करने का प्रयास किया जा रहा है। विज्ञान के साथ लोककला में नवाचार किए जा रहे हैं। कुल मिलाकर हमारा उद्देश्य विद्यार्थियों के हुनर के साथ ही उनकी सोच को विस्तार देना है।
डॉ. सी.बी.जोशी, विज्ञान शिक्षक

 

बाल विज्ञान के प्रेरक हैं जोशी
विद्यालय में कार्यरत शिक्षक डॉ. सी.बी. जोशी एक साहित्यकार- रचनाकार, रंगकर्मी एवं संगीतकार हैं। राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय कमतोली विकास खण्ड कनालीछीना जनपद पिथौरागढ़ में कुछ ऐसी गतिविधियां संचालित की जा रही हैं जिसके परिणाम बहुत सकारात्मक देखने को मिले। ये नवाचारी गतिविधियां संक्षेप में निम्नवत हैं।
प्रार्थना सभा में वाद्य यंत्रों का प्रयोग आकर्षक वातावरण का सृजन करता है। आनंदम पाठ्यचर्या के वादन पर कहानी सत्र में व्याख्यान एवं छात्रों को अत्यंत अल्प समय में वाद्य यंत्र बजाना सिखाया। आज लगभग सारे बच्चे खुद हारमोनियम बजाकर सुंदर प्रार्थना सभा का संचालन करते हैं। उनमें शाश्वत, सामाजिक नैतिक राष्ट्रीय एवं नागरिक मूल्यों का विकास हो रहा है।

भाषा में नवाचरण: मिशन कोशिश एवं सेतु पाठ्यक्रम के अंतर्गत भाषा के शुद्ध उच्चारण लेखन एवं वर्तनी दोषों को दूर करने के लिए लोकभाषा मॉडल तैयार किया गया। इसमें बच्चों ने गांव के लोगों का साक्षात्कार लेकर अपनी स्थानीय भाषा में लिपिबद्ध किया। उनके इस सृजन कार्य की नुमाइश नवम्बर 2023 में कुमाऊंनी भाषा के राष्ट्रीय सेमीनार में लगाई गई।

अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करना: यदपि अभिव्यक्ति के विकास हेतु विद्यालय में दीवार, पत्रिका प्रतिमाह निकलती है। इस पत्रिका को जिला प्रशासन द्वारा आयोजित किताब कौतिक में प्रदर्शनी में लगाया गया। इसके प्रभाव तब देखने को मिले जब तीन बच्चों के लेख उक्त कार्यक्रम की स्मारिका ‘न्यौलि कलम’ में प्रकाशित हुए। इसके अलावा एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड द्वारा प्रकाशित आनंदम पाठ्यचर्या की पत्रिका ‘आनंद-पथ’ के द्वितीय अंक में तीन बच्चों के लेख व स्थानीय पत्रिका में एक बालिका की कविता प्रकाशित हुई। इसका प्रतिफल ये रहा है कि कक्षा 8 की छात्रा ने सीमांत पर्वतीय जनपद बाल विज्ञान महोत्सव में इस वर्ष विज्ञान कविता पाठ प्रतियोगिता में राज्य स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया।

पढ़ने की आदत या संस्कार: विद्यालय में पढ़ने की पर्याप्त पुस्तकें उपलब्ध हैं। पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए एक नवाचार किया गया है। बच्चे नित्य पुस्तकालय जाते हैं। अपने पसंद की किताब खोजते हैं। पढते हैं और पढ़ने के बाद उसका सार, एक पृष्ठ पर लिखते हैं। विद्यालय में पुस्तकालय बच्चे स्वयं चलाते हैं। बच्चों द्वारा उपरोक्त नन्हीं -नन्हीं पुस्तक समीक्षाएं भी पढ़ने योग्य हैं। निष्कर्षतः किताबी दुनिया से बाहर निकालने की इन गतिविधियों से छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व में विकास दिखता है। जो बच्चे कक्षा कक्ष में किताबों से दूर भागते उनमें से कुछ किताबें पढ़ने लगे हैं। यही इन नवाचारों की उपादेयता है।
प्रस्तुति: लीला धामी

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