जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को एक बार फिर नाकामी हाथ लगी है।यहां तक कि उसे सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की फटकार भी सुन्नी पड़ी है।इसी हफ्ते पकिस्तान ने अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A हटाने के एक साल पूरे होने के एक दिन पहले नापाक हरकत करते हुए एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था । इस नए मैप में उसने भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के सियाचिन, लद्दाख समेत गुजरात के जूनागढ़ तक पर अपना दावा किया और इसे संयुक्त राष्ट्र में पेश करने की धमकी दी ।
पाकिस्तान द्वारा कश्मीर घाटी को द्विपक्षीय मुद्दों का अंतरराष्ट्रीयकरण करना कोई नई बात नहीं है।पाकिस्तान के विदेश मंत्री के दावे के विपरीत तीन मौकों को छोड़ दें तो भारत-पाकिस्तान मुद्दे पर पिछले 55 सालों में सुरक्षा परिषद की कोई औपचारिक बैठक नहीं हुई है। कश्मीर घाटी का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की पाकिस्तान की कोशिशों को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी है।संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने कहा है कि इस मुद्दे को भारत और पाकिस्तान द्वारा द्विपक्षीय रूप से हल किया जाना चाहिए।संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अनौपचारिक बैठक में तकरीबन सभी देशों ने कहा कि कश्मीर भारत-पाकिस्तान का द्विपक्षीय मुद्दा है। इस पर परिषद को समय नष्ट नहीं करना चाहिए। बैठक के अनौपचारिक होने के चलते इसे रिकॉर्ड नहीं किया गया।’
पाकिस्तान ने परिषद को लिखे एक पत्र में कश्मीर पर चर्चा की मांग की थी। इस पर कुछ राजनयिकों ने कहा कि यह पाकिस्तान द्वारा ‘मैच फिक्स’ जैसा है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को खत्म हुए एक साल पूरा हुआ है और इसी वजह से पाकिस्तान अपने ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ चीन की मदद से चर्चा करना चाहता था।
इस बैठक की निगरानी करने वाले संयुक्त राष्ट्र के राजनयिक के अनुसार, इस बार पाकिस्तान और चीन को इंडोनेशिया का भी समर्थन हासिल था। हालांकि, बाद में वह कश्मीर को द्विपक्षीय तरीके से हल किए जाने पर सहमत हुआ। उन्होंने बताया कि यह एक अनौपचारिक बैठक थी, जो बंद दरवाजों के पीछे आयोजित की गई थी। ऐसे में कोई भी रिकॉर्ड नहीं रखा गया कि किसने क्या कहा।
संयुक्त राष्ट्र के एक अन्य राजनयिक ने कहा, ‘उन्होंने बहुत ध्यानपूर्वक तारीख का चयन किया था लेकिन यह एक अदूरदर्शी कदम साबित हुआ, क्योंकि तकरीबन सभी ने भारत का समर्थन किया।’ पांच स्थायी देशों में से चार- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ने मुद्दे का द्विपक्षीय तरीके से समाधान करने के लिए कहा।

