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शालिग्राम पत्थर से बनाई जाएगी भगवान् की मूर्तियां

 

एक लंबे संघर्ष के बाद उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भगवान राम भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। इस मंदिर को मुख्य रुप से अलग बनाने के लिए कई तरह के पत्थरों का इस्तेमाल किया है। अलग-अलग जगह से लाये गए पत्थरों में एक ऐसा पत्थर नेपाल की नदी से मंगाया गया है जिसका धार्मिक रूप से बहुत महत्व माना जाता है। नेपाल की नदी से लाये गए इस पत्थर का नाम शालिग्राम है जिसे भगवान विष्णु का गैर-मानवरूपी प्रतिनिधित्व भी माना जाता है। आज यानी दो फरवरी को शालिग्राम पत्थर की बड़ी-बड़ी शिलाएं अयोध्या पहुंच गई हैं जिसका लोगों द्वारा बड़ा पैमाने पर स्वागत किया जा रहा है।

शालिग्राम पत्थर से क्यों बनेगी भगवान् की मूर्ती

नेपाल ने निर्माणाधीन राम मंदिर के मुख्य मंदिर परिसर में रखी जाने वाली राम और जानकी की मूर्तियों के निर्माण के लिए भारत के अयोध्या में दो शालिग्राम (हिंदू धर्म में भगवान विष्णु का गैर-मानवरूपी प्रतिनिधित्व) पत्थरों को भेजा गया है। म्यागडी और मस्तंग जिले से होकर बहने वाली काली गंडकी नदी के तट पर ही पाए जाने वाले शालिग्राम पहले से ही जनकपुर्टो के रास्ते अयोध्या गए। इन शालिग्राम पत्थरों द्वारा राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र में बन रहे भव्य मंदिर में भगवान राम और सीता की मूर्तियों का निर्माण किया जाएगा।

सीता की जन्मस्थली जनकपुर के रहने वाले नेपाली कांग्रेस के नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री बिमलेंद्र निधि जानकी मंदिर से समन्वय कर रहे हैं, जो दो पत्थरों को काली गंडकी नदी से भेज रहे हैं, क्तोंकी यहाँ शालिग्राम ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। कालीगंडकी नदी में पाए जाने वाले पत्थर दुनिया में प्रसिद्ध और बहुत कीमती हैं। व्यापक रूप से माना जाता है कि ये पत्थर भगवान विष्णु के प्रतीक हैं। भगवान राम भगवान विष्णु के अवतार हैं। इसलिए काली गंडकी नदी में पाये जाने वाले पत्थरों का प्रयोग अयोध्या के राम मंदिर में किया जाता है। ये मुख्यरुप से राम लला की मूर्ति बनाते वक्त इस्तेमाल किया जाना है। निधि ने एएनआई को बताया कि यह चंपत राय- ट्रस्ट के महासचिव (राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र) द्वारा अनुरोध किया गया था और मैं इसमें बहुत सक्रिय और रुचि रखता हूँ। मैंने अपने सहयोगी राम तपेश्वर दास-जानकी मंदिर के महंत (पुजारी) के साथ अयोध्या का दौरा किया। हमने ट्रस्ट के अधिकारियों और अयोध्या के अन्य संतों के साथ बैठक की। यह निर्णय लिया गया कि नेपाल की काली गंडकी नदी से पत्थरों की उपलब्धता पर, उनके लिए राम लला की मूर्ति (मूर्ति) बनाना अच्छा होगा।’

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