अपनी पत्रिका के हर अंक में गौरी ‘कंडा हागे’ नाम से कॉलम लिखती थीं। कंडा हागे का मतलब होता है ‘जैसा मैंने देखा’।
लोकतंत्र में हत्या के लिए किंचित भी स्थान नहीं है। किसी भी व्यक्ति की हत्या मानवता के लिए कलंक है। चाहे वह सामान्य व्यक्ति हो या फिर लेखक, पत्रकार और राजनीतिक दल का कार्यकर्ता। हत्या और हत्यारों का विरोध ही किया जाना चाहिए। लोकतंत्र किसी भी प्रकार तानाशाही या साम्यवादी शासन व्यवस्था नहीं है, जहां विरोधी को खोज-खोज कर खत्म किया जाए।
लोकतंत्र में वामपंथी कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या का विरोध ही किया जा सकता है, समर्थन नहीं।
गौरी लंकेश को धमकी सिर्फ कथित भगवा ब्रिगेड से ही नहीं मिलीं थी, उन्हें नक्सलियों की ओर से भी धमकियां आ रही थीं। खबरों के मुताबिक, लंकेश कांग्रेसनीत कर्नाटक सरकार के किसी मंत्री के घोटाले को उजागर करने की भी तैयारी कर रही थीं।
वरिष्ठ पत्रकार और दक्षिणपंथियों की आलोचक रही गौरी लंकेश की 5 सितंबर 2017 को बेंगलुरु में गोली मारकर हत्या कर दी गई है।
55 साल की गौरी ‘लंकेश पत्रिका’ का संचालन कर रही थीं जो उनके पिता पी लंकेश ने शुरू की थी। इस पत्रिका के ज़रिए उन्होंने ‘कम्युनल हार्मनी फ़ोरम’ को काफी बढ़ावा दिया। कन्नड़ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद इस मामले में विशेष जांच दल ने परशुराम वाघमारे को उत्तर कर्नाटक के विजयपुरा जिले से गिरफ्तार किया।
एसआईटी ने दावा भी किया कि पूछताछ में वाघमारे ने लंकेश की हत्या की बात कबूल ली है।उसने जांच टीम को बताया है कि हत्या से पहले यह पता नहीं था कि वह किसे मार रहा है। घटना 5 सितंबर 2017 की है जब बेंगलुरु के पॉश इलाके आरआर नगर में लंकेश को उनके घर के बाहर हत्या कर दी गई। हमले में उनपर 4 गोलियां दागी गई थीं जिससे घटनास्थल पर ही उनकी मौत हो गई।
अगस्त में गौरी लंकेश मर्डर केस की जांच करने वाली टीम को बेहतरीन काम के लिए केंद्र सरकार ने मेडल प्रदान किया। इस सनसनीखेज घटना के तुरंत बाद एक जांच टीम बनाई गई थी जिसमें एमएन अनुचेथ जांच अधिकारी थे। कर्नाटक सरकार ने भी गौरी लंकेश जांच से जुड़ी एसआईटी को उम्दा जांच के लिए 25 लाख रुपए का सम्मान दिया। उनका संपादकीय पत्रिका के तीसरे पन्ने पर छपता था। उनका आख़िरी संपादकीय फर्ज़ी ख़बरों पर था और उसका शीर्षक था- ‘फेक न्यूज़ के ज़माने में’।
उन्हें न्याय दिलाना, उनके कातिलों को पकड़वाना और उनकी हत्या के वास्तविक कारणों का खुलासा करना, तब तक सही साबित नहीं होगा जब तक उनके हत्या के अन्य पहलुओं की पड़ताल नहीं होगी। यदि ‘हत्या पर सियासत’ ही करनी है, तब किसी को कुछ और सोचने की जरूरत नहीं।

