बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के खिलाफ जंग का ऐलान कर डाला है। दशकों से उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक-दूसरे के धुर-विरोधी रहे दोनों दलों में कुछ समय के लिए दोस्ती के तार जुड़े थे। भाजपा के स्वर्णिम काल में अस्त-व्यस्त दोनों दलों ने एक-दूसरे से हाथ मिला, अपनी शत्रुता किनारे रख, प्रयास किया भाजपा को राज्य में रोकने का। यह प्रयास बुरी तरह फ्लाॅप हुआ। नतीजा स्वार्थ की दोस्ती टूट गई। समाजवादी पार्टी की साइकिल अपनी राह चलने लगी, बसपा का हाथी जहां था, वहीं बैठ गया। दोनों दलों ने, विशेषकर समाजवादी पार्टी ने दोस्ती दरकने के बाद भी खुलकर बसपा की मुखालफत करने से परहेज किया। अब यह परहेज भी समाप्त हो चला है। आसन्न राज्यसभा चुनावों से ठीक पहले सपा ने बसपा विधायक दल में सेंधमारी कर मायावती को बौखला डाला। पार्टी के 18 विधायकों में से सात बागी हो चले हैं। मायावती इस बगावत का ठीकरा अखिलेश यादव पर फोड़ रही हैं। उनकी बौखलाहट का अंदाजा इससे स्पष्ट चलता है कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के खिलाफ भाजपा तक को अपना समर्थन देने का ऐलान कर डाला है। खुद को दलित और धर्मनिरपेक्ष राजनीति की पैरोकार बताने वाली मायावती को डर है कि आने वाले समय में उनके बचे-खुचे विधायक भी कहीं पाला न बदल लें। लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी जोरों पर है कि पार्टी के तीन बड़े नेता जल्द ही बहन जी को अलविदा कहने जा रहे हैं। दूसरी तरफ सपा खेमे में उत्साह का माहौल है। सुनने में यह भी आ रहा है कि भाजपा के कुछ नाराज नेता भी सपा खेमे में जाने की जुगत लगा रहे हैं।
सपा से रार, भाजपा से प्यार

