Uttarakhand

बदहाल किसानी की कहानी

करोड़ों के भ्रष्टाचार के मामले में पहले ही सीबीआई जांच के घेरे में आ चुका उद्यान विभाग एक बार फिर से चर्चाओं में है। विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि विभाग प्रदेश के किसानों को समय पर पौधे, बीज यहां तक कि दवाओं की आपूर्ति करवाने में पूरी तरह नाकाम हो रहा है जिससे किसानों के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया है

किसानों की बेहतरी के लिए केंद्र सरकार तमाम तरह की योजनाओं के लिए दिल खोलकर पैसा खर्च कर रही है। इसके तहत उत्तराखण्ड प्रदेश को 15 सौ करोड़ की धनराशी भी मिल चुकी है। इस भारी-भरकम बजट का किसानों को कितना लाभ पहुंचा है यह तो पता नहीं लेकिन जिस तरह से उद्यान विभाग किसानों के हितों की बजाय बीज माफिया और नर्सरी के कारोबारियों के हितों के अनुरूप योजना बना रहा है उससे गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। ताजा मामला खाद, बीज और दवाओं के लिए वार्षिक समय सारिणी कैलेंडर का सामने आया है जिसमें स्वयं उद्यान विभाग के साथ-साथ मंत्रालय भी सवालों के घेरे में आ रहा है।

वार्षिक समय सारिणी कैलेंडर को प्रदेश के किसानों के हित में बनाकर लागू करने की बात स्वयं उद्यानमंत्री गणेश जोशी कर रहे हैं। यही नहीं बल्कि इसको अपने कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि बताते हुए नहीं थक रहे हैं जबकि दस वर्ष पूर्व कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय में ही उक्त कैलेंडर को लागू कर दिया गया था। हैरानी की बात यह है कि 10 वर्ष से विभाग द्वारा कभी भी इस कैलेंडर के हिसाब से काम नहीं किया गया। कभी भी समय पर किसानों बागवानों को बीज, खाद, पौधे और आवश्यक दवाएं नहीं मिल पाई है।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि 2013 में ही इसके लिए शासनादेश जारी हो चुका है, तब इसके लिए एक समय सारिणी भी बनाई जा चुकी थी। 26 जुलाई 2013 को प्रदेश के प्रमुख सचिव ओमप्रकाश द्वारा उद्यान निदेशक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उद्यान भवन चौबटिया रानीखेत को शासनादेश जारी करके स्पष्ट कर दिया था कि प्रदेश में उद्यान और बागवानी के लिए फल पौध, सब्जी, मसाला पौध, बीज, खाद और दवाओं के साथ-साथ पैकिंग मेटेरियल आदी की आपूर्ति के लिए निश्चित समय सारिणी को अपनाया जाए। शासनादेश में पांच पृष्ठ का वार्षिक उद्यान कैलेंडर भी जारी किया गया था जिसमें एक निश्चित समय पर पौधशाला द्वारा जिला उद्यान अधिकारी को अपनी पौध, बीज आदि की उपलब्धता की जानकारी दी गई थी। जिसे जिला उद्यान अधिकारी द्वारा निदेशालय नोडल कार्यालय को प्रस्तुत करना और फिर नोडल कार्यालय द्वारा भौतिक सत्यापन करके गुणवत्ता सुनिश्चित करके मांग के अनुसार आवंटन हेतु आदेश जारी करने का उल्लेख किया गया था। अगर उपलब्धता मांग के अनुरूप कम होती है तो इसके लिए अन्य संस्थानों से आपूर्ति के लिए टंेडर जारी करके किसानों को निश्चित समय में बीज, खाद, पौध, दवा दिए जाने के लिए भी इसको खास तौर पर उल्लेखित किया गया था। इस शासनादेश में बिंदु संख्या 5 में यह स्पष्ट किया गया कि ‘‘उपरोक्त समय सारिणी के अनुसार अपेक्षित कार्यवाही में जिस स्तर पर भी बिलम्ब किया जाएगा उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही सुनिश्चित की जाए।’’

प्रमुख सचिव ओमप्रकाश द्वारा जारी इस उद्यान कैलेंडर का विगत 10 वर्षों से अनुपालन तक नहीं किया गया। जिससे हर वर्ष किसानों को पौध, बीज यहां तक कि दवाओं के लिए भटकना पड़ता रहा है, जो आज भी जारी है। उद्यान विभाग की इस घोर लापरवाही से न सिर्फ प्रदेश के किसानों, बागवानों को अपनी फसलों के उत्पादन के लिए तमाम तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं बल्कि तय समय पर बीज, पौध, दवा के न मिलने से किसान अपनी फसल को समय पर न तो लगा पाता है और अगर देर से लगाता है तो फसल के लिए उपयुक्त वातावरण न मिलने से उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित होता है। जिससे खुदरा बाजार में फसलों की कीमत बहुत तेजी से बढ़ते हैं लेकिन किसान को इसका कोई खास लाभ नहीं मिल पाता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण अदरक और लहसुन की फसल से समझा जा सकता है। जो अदरक कभी खुदरा बाजार में 40 से 60 रुपए किलोग्राम में आसानी से मिल जाता था वहीं अदरक दो सौ से तीन सौ रुपए प्रति किलोग्राम में मिल रहा है। इसी तरह से लहसुन की पौध समय पर न मिलने से भी उत्पादन में भारी कमी देखने को मिली है। वर्तमान समय में लहसुन का खुदरा भाव रिकॉर्ड 400 तक पहुंच चुका है।

उद्यान विभाग की समय सारिणी कैलेंडर के हिसाब से लहसुन के बीज को सचल दल द्वारा 25 जनवरी तक उपलब्धता जिला उद्यान अधिकारी तक देनी आवश्यक थी। जिला उद्यान अधिकारी द्वारा 10 फरवरी तक इसकी सूचना नोडल कार्यालय को देनी थी जिसमें नोडल कार्यालय द्वारा 5 जुलाई तक विज्ञप्ति जारी करके प्रस्ताव शासन के पास 31 जुलाई तक प्रस्तुत करना था। इसके बाद शासन द्वारा 10 अगस्त तक जनपदांे को पर लक्षित करने का समय निश्चित किया गया है। नोडल कार्यालय द्वारा तकनीकि समिति द्वारा 30 सितंबर तक भौतिक निरीक्षण करके उद्यान सचल दल केंद्र 15 अक्टूबर तक आपूर्ति करना सुनिश्चित करना था। 15 अक्टूबर से किसानों को लहसुन के बीजों की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी थी। इसी समय सारिणी के अनुसार अदरक और हल्दी के बीजों की आपूर्ति की जानी चाहिए थी। यह प्रक्रिया 25 जनवरी से लेकर 31 मार्च तक पूरी होनी चाहिए थी जिससे किसानों को अदरक और हल्दी के बीच 31 मार्च तक मिल पाए और किसान अपने खेतों में इन फसलों का रोपण कर सके।

हैरानी की बात यह है कि उद्यान विभाग द्वारा फरवरी माह में कई टेंडर जारी किए गए जिससे यह साफ हो जाता है कि विभाग द्वारा घोर लापवाही बरती गई है। जबकि पिछले वर्ष लहसुन के बीजों की आपूर्ति किसानों को तय समय पर न होने के चलते उत्पादन में भारी कमी देखने को मिल चुकी है जिससे रिकॉर्ड 400 रुपए तक प्रति किलोग्राम लहसुन का खुदरा भाव पहुंच चुका है।

निदेशक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उद्यान भवन चौबटिया रानीखेत द्वारा 18 जनवरी, 7 फरवरी और 9 फरवरी को अदरक के बीजांे की आपूर्ति के लिए टेंडर प्रक्रिया के तहत टेंडर जारी किए। मार्च का महीना चल रहा है ओैर अभी तक सिर्फ टेंडर ही हुआ है। किसानों को कब अदरक का बीज मिल पाएगा यह सवालों में है।

कृिष और उद्यान के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र प्रसाद कुकसाल की मानें तो यह एक बड़ा घोटाला है जिसके तहत चुंनिदा बीज आपूर्ति संस्थाओं के हितों के लिए काम किया जाता रहा है। यह बीज माफिया प्रवृत्ति को राज्य में बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है। निजी क्षेत्र के बीज आपूर्ति संस्थान के पास बीजों की जब उपलब्धता होती है तभी उद्यान विभाग टेंडर जारी करता है जिसमें तय समय सीमा भी निकल जाती है।

डॉ. राजेंद्र कुकसाल बताते हेैं कि अदरक-हल्दी के बीजों का अप्रैल माह से रोपण आरम्भ हो जाता है क्योंकि दो माह के बाद जून-जुलाई में बरसात होती है जो कि इनके पौधे के बेहतर बढ़वार के लिए अच्छा होता है। प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में अरदक और हल्दी की खेती सिंचित भूमि में नहीं होती है। इसके लिए शरद ऋतु में हुई बरसात से भूमि में नमी बनी रहती है जो कि अप्रैल माह के बाद खत्म होने लगती है लेकिन बरसात में फिर से भूमि में सिंचाई हो जाती है और आने वाले छह महीने में अदरक-हल्दी के खेतों में नमी बनी रहती है। अगर समय पर बीजों का रोपण नहीं होता है तो इनका उत्पादन प्रभावित होता है।

अदरक के बीजों के मामले में भी उद्यान विभाग पर सवाल खड़े हो रहे हैं। उद्यान विभाग का पूरा फोकस रियो डी जैनोरो प्रजाति पर ही होता हेै जिसके चुनिंदा ही आपूर्तिकर्ता संस्थाएं हैं। जबकि हिमगिरी प्रजाति हिमाचल प्रदेश की बेहतर प्रजाति है, जिसे कम खरीदा जाता है। विभाग के टेंडर में भी इस बात को साफ देखा जा सकता है कि विभाग द्वारा रियो डी जैनोरो प्रजाति के अदरक के बीजों को 4500 क्विंटल तो वहीं हिमगिरी प्रजाति का मात्र 500 क्विंटल ही आपूर्ति का टेंडर जारी किया गया है।

जानकारों की मानें तो उद्यान विभाग वर्षों से यह काम कर रहा है। विदेशी प्रजाति के बीज आपूर्ति के लिए अधिक रूचि होती है जबकि देशी प्रजाति जो कि उत्तराखण्ड के पर्यावरण और वातावरण के अनुकूल है, को कम से कम आपूर्ति करता रहा है। जानकारी के अनुसार तय समय पर बीजों की खरीद के लिए भी बड़ा खेल रचा जाता रहा है। जब अदरक की फसल बाजार में आती है तो उसका मूल्य कम होता है जिससे अनेक बीज आपूर्ति संस्थाएं किसानों से बीजों को कम मूल्य में खरीद लेती है और अपने गोदामों में जमा कर लेती है। उनके हितों को साधने के लिए उद्यान विभाग जान-बूझकर तय समय-सीमा के बाद बीजों की आपूर्ति का टेंडर निकालता है तो उस वक्त अदरक के बीजों का भाव खरीद रेट से दो तीन गुना ज्यादा होता है। जानकारी के अनुसार मौजूदा समय में अदरक के बीजों का भाव 128 रुपए प्रति किलोग्राम है जिससे अदरक बीज आपूर्ति करने वाले संस्थाओं को कई गुणा लाभ स्वतः ही मिल जाता है। इसके अलावा इसमें सरकार द्वारा सब्सिडी भी मिलती है।

प्रदेश की आर्थिकी तंत्र में अदरक और हल्दी उत्तराखण्ड में नकदी फसलों में कई फसलें हैं लेकिन सबसे ज्यादा अदरक और हल्दी है। ये दो फसलें ऐसी हैं जिनका उत्पादन सदियों से उत्तराखण्ड के साथ-साथ हिमालयी राज्यों में होता है। अपने औषधीय उपयोग के चलते आज हल्दी और अदरक की खेती पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। लेकिन हैरत की बात यह है कि आज तक प्रदेश में अदरक के बीजों के उत्पादन के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है। जबकि प्रदेश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें अदरक और हल्दी की खेती बहुतायत में होती है।
टिहरी जिले के फकोट विकास खंड का आगराखाल और इसके अंतर्गत तीन दर्जन गांव अदरक की खेती के लिए सबसे बड़े क्षेत्र माने जाते रहे हैं। इन क्षेत्रों को परम्परागत तरीके से बीजों का संरक्षण करने के लिए भी जाना जाता है। आज भी इस क्षेत्र के किसान उद्यान विभाग से अदरक के बीजांे को नहीं लेते और अपने ही संरक्षित बीजांे से बेहतर उत्पादन कर रहे हैं। दो वर्ष पूर्व इस क्षेत्र के किसानों द्वारा 2 करोड़ का अदरक बेचा गया जिसकी खूब चर्चा हुई थी।

इस क्षेत्र के लोग अपनी अदरक की फसल के एक हिस्से को परम्परागत पितरोड़ा तकनीक के जरिए खेत में ही गहरा गडढ़ा बनाकर उसे गोबर और मालू के पत्तों से गड्ढ़ों की दिवारों पर लगाकर बीजों को दबाकर एक वर्ष के लिए संरक्षित किया जाता है वह अपने आप में नई तकनीक को आईना दिखाता है। इस तकनीक से बगैर किसी कीटनाशकों और दवाओं के ही बीजों को अगली फसल के लिए संरक्षित किया जाता है वह अपने आप में एक मिसाल है।

बात अपनी-अपनी
पूर्व के कैलेंडर में कई बदलाव किए गए हैं। समय-समय पर जरूरत के हिसाब से बदलाव होते रहते हैं। मेरी जानकारी में सभी टेंडर हो चुके हैं औेर समय पर किसानों को बीज की अपूर्ति हो जाएगी। इस बारे में आप उद्यान निदेशक रणवीर सिह चौहान से बात करें वे आपको पूरी जानकारी देंगे।
विनोद कुमार सुमन, सचिव उद्यान

नया कलैंडर बन कर तैयार हो गया है, सभी टेंडर हो चुके हैं। आप इस बारे में पूरी जानकारी निदेशक उद्यान आपूर्ति दीप्ति सिंह जी से बात कीजिए, बीज, आदि के मामले वही देखती हैं।
रणवीर सिंह चौहान, निदेशक, उद्यान विभाग

हमारे प्रदेश की भौगोलिक पारिस्थितिकी के हिसाब से ही बीजों को तैयार करने के लिए काम होना चाहिए था जो कि जान-बूझकर नहीं किया जा रहा है। आज भी कई किसान हैं जो अपने लिए परम्परागत तरीके से बेहतर बीज बना रहे हैं और अच्छा उत्पादन ले रहे हैं। जबकि उद्यान विभाग घोटालों और भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुका है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद कुकसाल, कृषि वैज्ञानिक

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