दुनिया भर में लैंगिक हिंसा और असमानता प्रचलित है। जिससे पता चलता है कि इसकी जड़े कितनी गहराई से जुडी हुई हैं। लैंगिक असमानता की ये जड़ें महिलाओ के विकास में बाधा डालने का काम करती हैं। लैंगिक असमानता और लैंगिक हिंसा को खत्म करने के लिए दुनिया भर में कई प्रयास होते रहे हैं।
ऐसा ही एक प्रयास आइसलैंड द्वारा किया गया है। जहां की लाखों महिलाएंं लैंगिक असमानता और लैंगिक हिंसा के विरोध में एक दिन के लिए हडताल पर चली गई थी । इन महिलाओं मे खुद आइसलैंड की प्रधानमंत्री काटरिन याकब्सडॉटिर भी सामिल थी,जो कि लाखों महिलाओं के आगे 24 अकटूबर को हुई हडताल के लिए प्रेणना बनी। उन्होने अपने देश की महिलाओं का साथ देते हुए कहा कि वो काम नहीं करेंगी। उन्होंने कहा वेतन में असमानता और हिंसा के विरोध में महिलाएं 24 अक्टूबर को हड़ताल पर रहेंगी।
आइसलैंएसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट अनुसार धरने पर गईं महिलाओं का कहना था कि वो हड़ताल के दौरान घर या बाहर का कोई काम नहीं करेंगी। इस मुल्क की महिलाओं का यह हड़ताल पुरुषों के बराबर सैलरी नहीं मिलने वेतन असमानता और लैंगिक हिंसा के विरोध में किया गया था।
आइसलैंड प्रधानमंत्री ने कहा कि वो महिलाओं की हड़ताल में हिस्सा लेते हुए घर पर ही रहेंगी। इसके साथ ही उन्होंने मंत्रीमंडल की अन्य महिलाओं से उम्मीद जताई है कि वो भी इस हड़ताल का हिस्सा बनेगी। इस हड़ताल को मुख्य तौर पर आइसलैंड की ट्रेड यूनियनों ने शुरू किया है। लाखों महिलाओं से अपील की गई थी कि वो 24 अक्टूबर को घर के काम सहित पेड और अनपेड किसी भी तरह का काम ना करें। महिलाओं सहित ट्रांसजेंडर समुदाय से भी की गई थी कि वो भी इस हड़ताल का हिस्सा बनें।
हड़ताल से बिगड़े हालात
आइसलैंड में एक दिन के हुए हड़ताल से वहां बंदी की स्थिति उत्प्न्न हो गई थी।
हड़ताल के दौरान स्कूल बंद और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में देरी हुई थी। अस्पतालों में कर्मचारियों से लेकर होटल के स्टाफ में कमी पाई गई थी। जिन क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है, जैसे हेल्थकेयर और शिक्षा, वो क्षेत्र इस हड़ताल से ज्यादा प्रभावित हुए ।
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खबरों के अनुसार आइसलैंड में 48 साल पहले भी इस तरह की हड़ताल हुई थी।वह समय 24 अक्टूबर, 1975 था। उस हड़ताल की वजह भी लैंगिक असमानता ही थी जैसे र्कप्लेस पर महिलाओं के साथ होने वाला भेदभाव। वर्ष 1975 के हड़ताल के दौरान आइसलैंड की 90% महिलाओं ने काम करने, साफ-सफाई करने या बच्चों की देखभाल करने से इनकार कर दिया था। इसके अगले साल 1976 में यहां समान अधिकारों की गारंटी देने वाला एक कानून पारित किया गया। तब से और भी हड़ताल हुए, लेकिन कभी इस तरह से महिलाएं पूरे दिन की हड़ताल पर नहीं गई थीं।


