साल 1998 में 3-2 के बहुमत से पांच जजों की बेंच ने पीवी नरसिम्हा राव बनाम भारत गणराज्य मामले में फैसला दिया था कि विधायकों-सांसदों को संसद और विधानमंडल में अपने भाषण और वोटों के लिए रिश्वत लेने के मामले में आपराधिक मुकदमे से छूट होगी। ये उनका विशेषाधिकार है। यानी सदन में किए गए किसी भी काम के लिए उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। कानूनी मामलों की वेबसाइट बार एंड बेंच के अनुसार सीजेआई ने कहा- हम नरसिम्हा राव फैसले से असहमत हैं और उस फैसले को खारिज करते हैं कि रिश्वत लेने के मामले में सांसद-विधायक अपने विशेषाधिकार का दावा कर सकते हैं। विधायक या सांसद इस तरह के विशेषाधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता। विशेषाधिकार पूरे सदन को सामूहिक रूप से दिया जाता है। नरसिम्हा राव के मामले में दिया गया फैसला संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 का विरोधाभासी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने एक्स पर लिखा कि ये फैसला स्वच्छ राजनीति को सुनिश्चित करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा सांसदों-विधायकों को रिश्वत केस में मिला विशेषाधिकार

