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शराब को लेकर 34 साल पुराने फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने किया ख़ारिज

साल 1990 में सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने सिंथेटिक्स और केमिकल्स मामले को लेकर केंद्र सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। उस दौरान संवैधानिक पीठ की ओर से कहा गया था कि राज्य समवर्ती सूची के तहत भी औद्योगिक शराब को विनियमित करने का दावा नहीं कर सकते हैं। जिसे अब 34 साल बाद सर्वोच्च न्यायालय ने ख़ारिज कर दिया है । सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, एएस ओका, जेबी पारदीवाला, उज्ज्वल भुइयां, मनोज मिश्रा, एससी शर्मा और एजी मसीह की संवैधानिक पीठ ने 23 अक्टूबर को औद्योगिक शराब पर केंद्र के अधिकार को खत्म कर देने वाला फैसला सुनाया है।

 

पीठ ने 34 साल पुराना अपना ही फैसला पलटते हुए कहा किउपभोक्ता इस्तेमाल में आने वाली शराब से जुड़ी कानूनी शक्ति राज्यों के पास हैं। नौ न्यायधीशों की संवैधानिक पीठ ने 8 :1 के अनुपात से इंडस्ट्रियल अल्कोहल यानि आद्योगिक शराब पर केंद्र के अधिकार को समाप्त कर दिया है । सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनते हुए कहा कि औद्योगिक शराब पर कानून बनाने का अधिकार राज्य को है। न्यायालय ने कहा कि केंद्र के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक शक्ति का अभाव है।

 

मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि औद्योगिक अल्कोहल पर कानून बनाने के राज्य के अधिकार को छीना नहीं जा सकता है। न्यायालय ने कहा कि राज्यों को औद्योगिक एल्कोहल के उत्पादन और सप्लाई को लेकर भी नियम बनाने का अधिकार है। उपभोक्ता इस्तेमाल में आने वाली शराब से जुड़ी कानूनी शक्ति राज्यों के पास हैं। उसी तरह राज्यों को औद्योगिक एल्कोहल के भी नियमन का अधिकार होना चाहिए। हालांकि, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस फैसले पर असहमति जताई। उन्होंने कहा कि केवल केंद्र के पास औद्योगिक शराब को विनियमित करने की विधायी शक्ति होनी चाहिए। इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि जीएसटी लागू होने के बाद आय के अहम स्रोत के रूप में इंडस्ट्रियल अल्कोहल पर टैक्स लगाने का अधिकार काफी अहम हो गया है।

 

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