Uttarakhand

सवालों में स्वामी के शिष्य और सरकार

जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी मां गंगा में डुबकी लगाकर श्रद्धालु पुण्य कमाते हैं। कहा भी जाता है कि जो कोई गंगा स्नान करता है वह अपने पापों से मुक्ति पा लेता है। हरिद्वार को मायापुरी और मोक्षद्वार के नाम से शायद इसलिए जाना भी जाता है। यहां लगने वाला कुंभ मेले में स्नान करने के लिए देश ही नहीं दुनिया के लाखों श्रद्धालु आते हैं। मां गंगा की पवित्र भूमि जहां कुंभ मेला लगता है फिलहाल विवादों में है। यह भूमि कभी आसामी पट्टा वर्ग तीन के तहत आवंटित की गई थी। गंगा में होने के चलते इसका पट्टा निरस्त करने के भी आदेश हो चुके हैं। बावजूद इसके इस भूमि को वैदिक शिक्षा शोध संस्थान द्वारा 92 लाख रुपए में खरीदना चौंकाने वाला है। मां गंगा की खरीद-फरोख्त में शामिल व्यक्ति योग गुरु स्वामी रामदेव का शिष्य स्वामी मित्रदेव बताया जा रहा है जिसके द्वारा जमीन का एग्रीमेंट करते समय जो पता दर्ज कराया गया है वह भी पतंजलि योग पीठ का है। ऐसे में शिष्य और स्वामी के साथ ही सरकार पर भी सवाल उठ रहे हैं

जीवन देने वाली, मुक्तिदायिनी गंगा के अस्तित्व से जुड़ा हुआ एक मामला हरिद्वार में सामने आया हैै। वैदिक शिक्षा शोध संस्थान के अध्यक्ष स्वामी मित्रदेव ने गंगा की जमीन खरीद कर उस हिस्से को खुर्द-बुर्द करने का कारनामा कर डाला जिसके लिए तमाम नियम कायदे-कानून बनाए गए हैं। हैरतनाक यह है कि राजस्व रिकॉर्ड में गंगा की भूमि दर्ज होने के बावजूद इसकी सौदेबाजी कर ली गई। जानकारी के अनुसार जगजीतपुर गांव के अंतर्गत खसरा नंबर 302 एम/10 राजस्व अभिलेखों में गंगा के नाम से दर्ज चला आ रहा है। वर्ष 2001 से पूर्व इस खसरा संख्या को आसामी पट्टा वर्ग तीन के अंतर्गत विजयपाल उर्फ विजयपाल कश्यप पुत्र रामचंद्र ग्राम जगजीतपुर परगना ज्वालापुर, तहसील व जिला हरिद्वार को सरकार द्वारा दिया गया था। इस पट्टे की अवधि 5 वर्ष मानी जाती है। सरकार आवश्यकता पड़ने पर ग्रामसभा के सुझाव पर इस अवधि को आगे बढ़ा सकती है। इस प्रकार का पट्टा भूमिहीन किसानों को ग्रामसभा द्वारा दिया जाता है। वर्ग तीन की जमीन को जलमग्न माना जाता है, परंतु वह जल छोड़ चुकी है।

जमीन खरीदते समय का इकरारनामा

इसी जमीन पर स्वामी मित्र देव के माध्यम से बड़ा खेल खेला गया। बताया जाता है कि स्वामी मित्र देव स्वामी रामदेव के खास शिष्यों में शामिल है। 16 अक्टूबर 2023 को सब रजिस्ट्रार हरिद्वार प्रथम के कार्यालय में जिल्द संख्या 7755, पृष्ठ संख्या 105 से 130 पर 2050 वर्ग मीटर भूमि का सौदा 92 लाख रुपए में करते हुए रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कर दिया गया। हैरत की बात यह है कि यह कारनामा उस व्यक्ति ने कर डाला जिसे उस गुरु का शिष्य कहा जाता है जो गंगा की स्वच्छता की बात करने वालों में सबसे आगे रहते हैं। स्वामी मित्र देव (जिसने भूमि खरीदने के रजिस्टर्ड एग्रीमेंट में अपना पता वैदिक गुरुकुलम पतंजलि योगपीठ फेस टू बहादराबाद परगना ज्वालापुर तहसील जिला हरिद्वार दर्शाया) के माध्यम से जिस प्रकार गंगा का सौदा किया वह बड़े सवाल खड़े करता है। साथ ही सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि जिस स्थान पर गंगा की इस जमीन की सौदेबाजी वैदिक शिक्षा शोध संस्थान द्वारा स्वामी मित्र देव के माध्यम से की गई वह गंगा का स्थल ‘कुंभ मेला क्षेत्र’ माना जाता है। जहां एनजीटी के निर्देश पर गंगा के भीतर ही नहीं, बल्कि गंगा से 200 मीटर की परिधि में निर्माण पर रोक लगाई गई है। बावजूद इसके वैदिक शिक्षा शोध संस्थान द्वारा गंगा की भूमि खरीदे जाने को लेकर यह संस्थान अब लोगों के निशाने पर है। गौरतलब है कि जिस भूमि को स्वामी मित्रदेव ने विजयपाल उर्फ विजयपाल कश्यप पुत्र रामचंद्र से खरीदा है उस भूमि को डिप्टी कलेक्टर ही नहीं अपितु न्यायालय कलेक्टर हरिद्वार द्वारा भी आवंटन निरस्त किए जाने के आदेश 29 दिसंबर, 2001 को किए गए हैं। इसके बाद भी
संदेहास्पद परिस्थितियों में राजस्व अभिलेखों में यह भूमि गंगा के नाम दर्ज हो गई जो वर्तमान में भी गंगा के नाम ही दर्ज है।

यहां यह भी बताना जरूरी है कि संबंधित क्षेत्र के लेखपाल तथा तत्कालीन जगजीतपुर के ग्रामप्रधान और तहसीलदार हरिद्वार द्वारा पट्टा निरस्त किए जाने को लेकर डिप्टी

पट्टा निरस्तीकरण के आदेश

कलेक्टर को रिपोर्ट प्रेषित की गई जिसमें लिखा है कि ‘ग्राम जगजीतपुर परगना ज्वालापुर तहसील में जिला हरिद्वार में कुछ आसामी पट्टों पर पट्टेेदारों में आपस में विवाद चल रहा है। कुछ आसामी पट्टेदारों की भूमि गंगा जी में बह गई है तथा कुछ ने अमानत के द्वारा आमंत्रित भूमि के बजाए दूसरी भूमि पर कब्जा कर रखा है।’ यही नहीं रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि आसामी पट्टों की अवधि 5 वर्ष पूरी नहीं हुई है तथा सभी पट्टे आसामी हैं। इस प्रकार 29 जनवरी, 2000 को यह रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को पट्टे निरस्त किए जाने की संस्तुति हेतु भेजी गई। जिस पर कार्रवाई करते हुए 31 जनवरी 2000 को पट्टे निरस्त किए जाने की बाबत आदेश तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा जारी कर दिया गया था। विजयपाल के पट्टे को निरस्त किए जाने के संबंध में जारी की गई संस्तुति की बात की जाए तो तहसीलदार और हल्का लेखपाल द्वारा निरस्तीकरण फाइल में लिखा गया कि विजयपाल का पट्टा गंगा जी में बह गया है तथा उसका कब्जा अन्य पट्टे पर पाया गया। 23 वर्ष पूर्व राजस्व अभिलेखों में गंगा जी के नाम दर्ज हुई इस भूमि पर जिस तरह का चक्रव्यूह रचा गया उसमें कुछ अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई है।

सूत्रों के अनुसार सब रजिस्ट्रार कार्यालय में रजिस्ट्री कराए जाने के दौरान भू-स्वामित्व रिकॉर्ड का निरीक्षण करने के उपरांत ही रजिस्ट्री की प्रक्रिया की जाती है। लेकिन लगता है कि सब- रजिस्ट्रार कार्यालय द्वारा किसी के दबाव के सामने आत्मसमर्पण करते हुए इस प्रकरण में भू-स्वामित्व संबंधी रिकार्ड भी देखना जरूरी नहीं समझा। जमीन का अगर स्थलीय निरीक्षण किया जाता तो यह भूमि खसरा-खतौनी में स्पष्ट तौर पर गंगा जी के नाम दर्ज है। अगर सब रजिस्ट्रार कार्यालय ने नियमानुसार कार्यवाही की होती तो गंगा जी की यह जमीन बिकने से पहले ही पकड़ में आ जाती। लेकिन लापरवाही कहें या फिर अधिकारियों की मिलीभगत सब रजिस्ट्रार कार्यालय में बिना भू-राजस्व रिकॉर्ड देखे जिस प्रकार गंगा की जमीन के विक्रय पत्र को स्वीकृति दी गई वह भी अपने आप में बड़े घालमेल की तरफ इशारा करता है?

 

बात अपनी-अपनी
जगजीतपुर का खसरा नंबर 302 उ/10 गंगा जी का नंबर है अगर इसकी खरीद-फरोख्त रामदेव के शिष्य स्वामी मित्रदेव द्वारा की गई है तो मातृ सदन इसका पुरजोर विरोध करेगा, किसी भी सूरत में गंगा को बिकने नहीं दिया जाएगा। मातृ सदन हमेशा से गंगा की स्वच्छता और निर्मलता बनाए रखने को संघर्ष करता रहा है अब गंगा को ही खरीदने बेचने का खेल आश्चर्यजनक है।
स्वामी शिवानन्द महाराज, संस्थापक मातृ सदन जगजीतपुर हरिद्वार

आपके माध्यम से मामला मेरी जानकारी में आया है मैं तहसीलदार से जानकारी लेता हूं, अगर रजिस्ट्री हुई है तो राजस्व रिकॉर्ड में दाखिल खारिज नहीं होगा।
अजयवीर सिंह, पीसीएस, उपजिलाधिकारी हरिद्वार

मामला मेरी तैनाती से पूर्व का है। जहां तक रजिस्ट्री करते समय स्वामित्व संबंधी कागजात देखे जाने का सवाल है तो कागज देखकर ही रजिस्ट्री की जाती है। इस मामले में गंगा जी की रजिस्ट्री कैसे हो गई इसको दिखवाया जाएगा।
लता जोशी, सब रजिस्ट्रार प्रथम हरिद्वार

नोटः स्वामी मित्रदेव से ‘दि संडे पोस्ट’ ने कई बार फोन कर संपर्क साधने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने फोन रिसिव नहीं किया।

 

 

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