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ममता के बहाने राहुल पर निशाना

 

खतरे में इंडिया गठबंधन

हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद गठबंधन की सहयोगी पार्टियां लगातार राहुल और कांग्रेस पर सवाल उठा रही हैं। यहां तक कि अखिलेश यादव, शरद पवार, लालू यादव सहित कई विपक्षी दलों ने ममता बनर्जी को गठबंधन की जिम्मेदारी देने का समर्थन किया, वहीं अब गत् सप्ताह शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने एक ओर जहां गठबंधन में तालमेल की कमी बताई, वहीं दूसरी तरफ जम्मू- कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ‘इंडिया अलायंस’ को खत्म करने तक की बात कह डाली है

लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी ‘इंडिया गठबंधन’ को मिली संजीवनी के बाद कांग्रेस चाहती थी कि राहुल गांधी को ‘इंडिया गठबंधन’ का प्रमुख बनाया जाए। लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद गठबंधन की सहयोगी पार्टियां लगातार राहुल और कांग्रेस पर सवाल उठा रही हैं। यहां तक कि अखिलेश यादव, शरद पवार, लालू यादव सहित कई विपक्षी दलों ने ममता बनर्जी को गठबंधन की जिम्मेदारी देने का समर्थन किया, वहीं अब गत् सप्ताह शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने एक ओर जहां गठबंधन में तालमेल की कमी बताई, वहीं दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ‘इंडिया अलायंस’ को खत्म करने तक की बात कह डाली है। उन्होंने कहा कि ‘लोकसभा चुनाव के बाद इसकी कोई बैठक नहीं हुई है। यह गठबंधन लोकसभा चुनाव तक ही था तो इसे खत्म कर देना चाहिए। इसके पास न कोई एजेंडा है और न ही कोई नेतृत्व।’

दूसरी तरफ शिवसेना उद्धव गुट के सांसद संजय राउत को शिकायत है कि लोकसभा चुनाव के बाद गठबंधन में शामिल दलों की एक भी बैठक नहीं हुई है। गठबंधन में सबसे बड़े दल होने के नाते कांग्रेस को ये काम करना चाहिए था। उन्होंने गठबंधन में शामिल दलों को कमजोर करने का भी आरोप कांग्रेस पर लगा डाला है। बकौल राउत ‘कांग्रेस दूसरे दलों के खिलाफ चुनाव लड़कर उन्हें कमजोर कर रही है। जबकि खुद कांग्रेस का प्रदर्शन हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड में खास नहीं रहा। विपक्षी इंडिया गठबंधन में तालमेल की कमी है और इस कलह के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है।’ इन बयानबाजियों के बाद विपक्षी गठबंधन में बिखराव की आशंका बढ़ गई है। राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं विपक्षी गठबंधन में क्या कांग्रेस अकेली पड़ जाएगी या ये बयान कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए दिए जा रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद कुछ महीनों तक ‘इंडिया अलायंस’ में सब ठीक चला लेकिन हरियाणा चुनाव ने विपक्षी पार्टियों के आपसी समीकरण बदल दिए हैं। गौरतलब है कि हरियाणा में कांग्रेस की जीत का अनुमान लगाया जा रहा था, मगर चुनाव परिणाम इसके बिल्कुल उलट आए। इस हार के बाद कांग्रेस को सहयोगी पार्टियों की आलोचना का सामना करना पड़ा रहा है।

हरियाणा की हार के बाद जिस प्रकार शिवसेना (यूबीटी) के नेता संजय राउत ने कहा था कि जहां कांग्रेस कमजोर होती है, वहां वह क्षेत्रीय पार्टियों से मदद लेती है लेकिन जहां खुद को मजबूत मानती है, वहां पर क्षेत्रीय पार्टियों को कोई महत्व नहीं देती है। उसी तर्ज पर आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा था कि इस चुनाव से मिला सबसे बड़ा सबक, चुनाव में किसी को ‘ओवर कॉन्फिडेंट’ नहीं होना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि हरियाणा में कांग्रेस और आप के बीच सीट बंटवारे को लेकर बातचीत हुई थी लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी जिसका नुकसान दोनों को ही उठाना पड़ा। आम आदमी पार्टी का मानना है कि अगर दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता तो परिणाम अलग होते। इस चुनाव में दोनों के बीच हुई खटपट के कारण ही दिल्ली में केजरीवाल ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया। उन्हें दिल्ली में टीएमसी, सपा और उद्धव का साथ मिल रहा है तो कांग्रेस अकेली पड़ गई है। जबकि ‘इंडिया गठबंधन’ में इस समय हैसियत के हिसाब से देखा जाए तो सबसे ज्यादा लोकसभा सीट कांग्रेस के पास हैं।

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि सहयोगी दलों की यह बयानबाजी कांग्रेस पर राजनीतिक दबाव बनाने के अलावा कुछ नहीं है। यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी विपक्षी गठबंधन की कुछ सहयोगी पार्टियां कांग्रेस को कठघरे में खड़ी कर चुकी हैं। लालू यादव का बयान भी प्रेशर पॉलिटिक्स के तौर पर दिया गया लगता है। इसके पीछे उनकी सुचिंतित चाल है। लालू को पता है कि कांग्रेस बिहार विधानसभा चुनाव में न सिर्फ सीटों के लिए अड़ेगी, बल्कि उन चेहरों को भी सामने लाएगी जो लालू यादव को पसंद नहीं हैं। लालू नहीं चाहते हैं कि कांग्रेस पप्पू यादव और कन्हैया कुमार के चेहरे पर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े। उनकी यह भी कोशिश है कि कांग्रेस पहले की तरह आरजेडी की पिछलग्गू बनी रहे और सीटों के बंटवारे में उनकी मर्जी चल सके। मौजूदा राजनीति की जब बात करें तो साफ तौर से दिखाई देता है कि कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की सहयोगी पार्टियों में नूरा-कुश्ती सा माहौल शुरू हो चुका है। शायद यही वजह है कि राम गोपाल यादव भी अपनी आवाज बुलंद कर गठबंधन में दरार की बात कहने लगे हैं।

सपा से भी बढ़ी दूरियां
हरियाणा चुनाव के बाद सपा और कांग्रेस के बीच भी दूरियां बढ़ने लगी हैं। हरियाणा में सपा ने कांग्रेस से कुछ सीटों की मांग की थी लेकिन उसे एक भी सीट नहीं दी गई। जिसका बदला सपा ने तब लिया जब यूपी की नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने थे। समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से बातचीत किए बिना ही इनमें से छह सीटों पर प्रत्याशी खड़े कर दिए। इनमें वह सीटें भी शामिल थीं जिन पर कांग्रेस चुनाव लड़ना चाहती थी। बाद में कांग्रेस को दो से तीन अन्य सीटों पर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया लेकिन कांग्रेस इस पर राजी नहीं हुई और उपचुनाव से दूर रही। महाराष्ट्र में भी दोनों पार्टियों के बीच नोकझोंक देखी गई। सपा चाहती थी कि उसे महाविकास अघाड़ी में शामिल किया जाए और पांच सीटों पर चुनाव लड़ने दिया जाए। लेकिन उसकी यह मांग नहीं मानी गई। पार्टी के महाराष्ट्र प्रमुख अबू आजमी ने इस पर कहा था कि कांग्रेस ने हरियाणा में हुई हार से कोई सबक नहीं सीखा है और उन्हें लगता है कि हमारी कोई जरूरत नहीं है। भविष्य में भी कांग्रेस और समाजवादी के सम्बंधों में खास सुधार होता नहीं दिख रहा है। इससे कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है।

ममता ने बढ़ाई कांग्रेस की मुश्किलें
कुछ अर्सा पहले एक मीडिया इंटरव्यू में ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन की कार्यशैली पर निराशा जाहिर की और कहा कि सबको साथ लेकर चलना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि जिम्मेदारी मिलने पर वे विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने में सक्षम हैं। विपक्ष के कई वरिष्ठ नेताओं ने उनके इस बयान का खुलकर समर्थन किया। एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने कहा कि ममता बनर्जी देश की एक प्रमुख नेता हैं और उनमें नेतृत्व क्षमता है। वहीं आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने कहा कि वे ममता के साथ हैं और उन्हें इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने दिया जाना चाहिए। समाजवादी पार्टी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कहा कि ममता बनर्जी के प्रस्ताव पर चर्चा होनी चाहिए। ममता बनर्जी के इस बयान ने कांग्रेस की परेशानी बढ़ाने का काम किया है। आहत कांग्रेस ने इस पर न सिर्फ नाराजगी जताई है, बल्कि कांग्रेस सांसद मनिकम टैगोर ने उनके बयान को ‘एक अच्छा चुटुकला’ बताकर खारिज तक कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘जो अपनी पार्टी को बंगाल से बाहर बढ़ावा नहीं दे सकीं वे राष्ट्रीय स्तर पर कैसे लड़ेंगी।’ बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह कहते हैं कि विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए टीएमसी पर्याप्त बड़ी पार्टी नहीं है।’

ईवीएम पर कांग्रेस के रुख पर उठे सवाल
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में करारी हार होने के बाद कांग्रेस ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। इंडिया गठबंधन के सदस्य और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस के इस रुख की आलोचना की। उन्होंने कहा कि अगर आप ईवीएम के जरिए जीत मिलने पर जश्न मनाते हैं तो कुछ महीनों बाद चुनाव में हारने पर ईवीएम को खारिज नहीं कर सकते हैं।
इसके एक दिन बाद ही टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी ने कहा, ‘अगर किसी को लगता है कि ईवीएम में गड़बड़ी की जा सकती है तो उनके एक प्रतिनिधिमंडल को चुनाव आयोग के पास जाना चाहिए और इस बात का सबूत देना चाहिए कि ईवीएम को हैक करने के लिए कोई मैलवेयर या तकनीक मौजूद है। किसी मुद्दे पर सिर्फ दो-तीन बयान जारी कर देने का कोई मतलब नहीं बनता।’

क्या संसद में एकजुट हैं विपक्षी पार्टियां
संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से ही कांग्रेस अडानी मुद्दे पर काफी आक्रामक दिखी थी। विपक्ष के सांसदों ने इस मुद्दे पर संसद भवन परिसर में विरोध-प्रदर्शन भी किया लेकिन सपा और टीएमसी के सांसद इस प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए। हालांकि विपक्षी पार्टियां ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की योजना के खिलाफ एक साथ जरूर नजर आईं थी। विपक्ष के विरोध चलते इससे जुड़े दो बिलों को लोकसभा में पेश करने के लिए भी वोटिंग करानी पड़ी।

ये दोनों संवैधानिक संशोधन बिल हैं और इन्हें पास करवाने के लिए दो तिहाई उपस्थित सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी। फिलहाल सरकार ने दोनों बिलों को विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इन बिलों पर भविष्य में होने वाली वोटिंग के दौरान विपक्षी एकता की असली परीक्षा होगी।

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