राज्य के इंटर कॉलेजों में प्रवक्ताओं के करीब पांच हजार पद खाली चल रहे हैं। मुख्य विषयों के शिक्षकों की कमी के चलते कोचिंग कारोबार खूब फल-फूल रहा है

 

प्रदेश में स्थापित इंटरमीडिएट कॉलेज शिक्षकविहीन होते जा रहे हैं। राज्य के 2203 इंटर कॉलेजों में प्रवक्ताओं के 12381 पद स्वीकृत हैं। लेकिन इसके सापेक्ष 4873 पद खाली चल रहे हैं। यही नहीं इन विद्यालयों का प्रबंधन संभालने वाले प्रधानाचार्यों के भी 1390 पदों के मुकाबले 501 पद रिक्त हैं। यही हाल अशासकीय स्कूलों के प्रवक्ताओं का भी है। यहां प्रवक्ताओं के 1900 पदों के सापेक्ष 500 पद खाली चल रहे हैं तो प्रधानाचार्यों के 318 पदों के इतर 125 पद रिक्त चल रहे हैं। प्रवक्ता व प्रधानाचार्य विहीन इन विद्यालयों की शैक्षिक तस्वीर दिनों दिन धूमिल होती जा रही है। परीक्षाफल में साल दर साल गिरावट आ रही है तो वहीं विद्यालय में विद्यार्थियों की उपस्थिति भी लगातार कम हो रही है। नामांकन प्रक्रिया में भी सालाना गिरावट आ रही है। दाखिला लेने वालों का प्रतिशत भी गिर रहा है। तमाम विद्यालय कंप्यूटर, संचार एवं प्रौद्योगिकी से सुसज्जति नहीं हो पा रहे हैं। गणित, भौतिकी व जीव विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षकों की तो कमी है ही, इन विषयों के लिए बनी प्रयोगशालाएं खस्ताहाल हैं। सैकड़ों विद्यालयों में प्रयोगशालाएं अस्तित्व में ही नहीं आ पाई हैं। स्मार्ट क्लास का माडल दम तोड़ रहा है। परिणाम यह कि मुख्य विषयों के अध्यापकों की कमी के चलते प्रदेश में करोड़ों रुपए का कोचिंग कारोबार फल-फूल रहा है।

प्रदेश के सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के इंटरमीडिएट स्तर की स्थिति को देखें तो यहां प्रवक्ताओं के 1058 पद स्वीकृत हैं लेकिन इसमें से 453 पद खाली चल रहे हैं। प्रधानाचार्यों के 114 पदों के मुकाबले 69 पद रिक्त हैं। 48 विद्यालयों में ही स्थाई प्रधानाचार्य हैं। जनपद के कुछ प्रमुख इंटर कॉलेजों की स्थिति का जायजा लेने पर तस्वीर बदरंग दिखाई पड़ती है। जनपद के दूरस्थ क्षेत्र गणाई गंगोली स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी, नागरिक शास्त्र एवं अर्थशास्त्र विषय के महत्वपूर्ण पद खाली चल रहे हैं। वर्ष 1996 से इस विद्यालय को अभी तक भौतिक विज्ञान का प्रवक्ता नहीं मिल पाया है। वर्ष 2004 से यहां रसायन विज्ञान के प्रवक्ता का पद खाली चल रहा है। राजकीय इंटर कॉलेज बरम को आदर्श विद्यालय तो घोषित कर दिया गया। लेकिन 420 विद्यार्थियों वाले इस स्कूल में भी भौतिक विज्ञान, गणित, जीव विज्ञान व हिंदी के प्रवक्ताओं के पद खाली चल रहे हैं। बगड़ीहाट इंटर कॉलेज में 9 प्रवक्ताओं के मुकाबले दो ही प्रवक्ता तैनात हैं। यहां 6 पद रिक्त चल रहे हैं। जनपद के नेपाल सीमा पर स्थित झूलाघाट इंटर कॉलेज में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, अंग्रेजी, संस्कृत, अर्थशास्त्र, भूगोल आदि महत्वपूर्ण विषयों को पढ़ाने के लिए प्रवक्ता नहीं हैं, जबकि यहां पर 450 से अधिक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। यहां नेपाल से भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए विद्यार्थी आते हैं। पीपली इंटरकॉलेज तीन शिक्षकों के सहारे चल रहा है। जनपद के सीमावर्ती क्षेत्र मुनस्यारी के उछैती इंटर कॉलेज में 6 प्रवक्ताओं के पद रिक्त चल रहे हैं। शिक्षकों के अभाव में यहां दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या घटती जा रही है। गंगोलीहाट विकासखंड मुख्यालय के सबसे पुराने इंटर कॉलेज में 16 पद रिक्त चल रहे हैं। यही हाल जनपद के दूरस्थ क्षेत्र सल्ला चिंगरी का भी है।

जनपद के बालिका इंटर कॉलेजों की स्थिति देखें तो थल बालिका इंटर कॉलेज में जीव विज्ञान, अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत सहित 6 पद खाली चल रहे हैं तो प्रधानाचार्या का पद पिछले एक दशक से खाली पड़ा हुआ है। धारचूला विकासखंड में प्रवक्ताओं के 10 पद खाली हैं। कनालीछीना जीजीआईसी में तो बालिकाएं प्रवेश लेने से ही कतराती हैं। पिछले एक दशक में तो यहां सिर्फ एक बालिका ने इंटर की कक्षा में मजबूरीवश प्रवेश लिया। यहां प्रवक्ताओं सहित प्रधानाचार्य का पद लंबे समय से रिक्त पड़ा हुआ है। यही हाल गंगोलीहाट विकासखंड स्थित जीजीआईसी का भी है। वर्ष 1975 में स्थापित इस विद्यालय में हजारों छात्रएं शिक्षा ग्रहण करती थी लेकिन आज यह संख्या तीन सौ के आस-पास सिमट कर रह गई है। पिछले डेढ़ दशक से यहां प्रधानाचार्य का पद रिक्त चल रहा है। नौ प्रवक्ताओं के मुकाबले 2 ही स्थाई प्रवक्ताओं की यहां तैनाती है।

चंपावत जिले की बात करें तो यहां भी महत्वपूर्ण विषयों के प्रवक्ताओं की भारी कमी चल रही है। जनपद के 46 इंटर कॉलेजों में 200 से अधिक प्रवक्ताओं के पद रिक्त चल रहे हैं जबकि यहां 405 पद स्वीकøत हैं। उच्चीकøत इंटर कॉलेजों को तो प्रवक्ता मिल ही नहीं पा रहे हैं। जनपद के मछियाड़, बालातड़ी, विविल, जानकीधार, रौंसाल, चौड़ाकोट, पनिया, बिनवाल गांव, चल्थी, धनिया, गूंठ गरसाड़ी, चमलदेव, सुंई, मऊ हाईस्कूलों को उच्चीकृत कर सरकार ने इंटर कॉलेज में तब्दील तो कर दिया लेकिन इन उच्चीकृत विद्यालयों में शिक्षकों की तैनाती वर्षों बाद भी नहीं हो पाई। दूरदराज के क्षेत्रें में स्थित इंटर कॉलेजों की स्थिति तो दयनीय है ही वहीं जिला मुख्यालय में स्थित जीआईसी जो आदर्श विद्यालय भी घोषित है उसकी वास्तविक तस्वीर यह है कि यहां जीव विज्ञान, भूगोल, संस्कृत, हिंदी, वाणिज्य, रसायन विज्ञान के प्रवक्ताओं के पद खाली हैं। जनपद में दूसरा सबसे बड़ा इंटर कॉलेज माना जाने वाला जीआईसी लोहाघाट में 320 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। लेकिन लंबे समय से भौतिक विज्ञान, इतिहास एवं हिंदी के प्रवक्ताओं के पद खाली चल रहे हैं।

जीआईसी पाटी भी आदर्श विद्यालय घोषित है लेकिन यहां पढ़ने वाले 380 से अधिक विद्यार्थी शिक्षकों के अभाव को झेल रहे हैं। यहां प्रवक्ताओं के 9 पदों के सापेक्ष 6 पद रिक्त चल रहे हैं। जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र, गणित, हिंदी, भूगोल के पद खाली चल रहे हैं। चंपावत के सात राजकीय बालिका इंटर कॉलेजों में प्रवक्ताओं के 68 पद स्वीकृत हैं लेकिन 40 पद रिक्त चल रहे हैं। जनपद में बालिका विद्यालयों की स्थिति को देखें तो जीजीआईसी चंपावत में गणित, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगोल, जीव विज्ञान, अंग्रेजी के पद खाली चल रहे हैं। टनकपुर जीजीआईसी में गणित, गृहविज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र, संस्कøति सहित 7 पद रिक्त चल रहे हैं। लोहाघाट जीजीआईसी में 7, खेतीखान जीजीआईसी में 2 एवं चमलदेवल जीजीआईसी में 7 पद रिक्त चल रहे हैं। इनमें से टनकपुर, लोहाघाट, चौमेल और खेतीखान आदर्श विद्यालय घोषित तो हैं लेकिन बगैर शिक्षकों के। यही हाल अल्मोड़ा जनपद का भी है। यहां 139 राजकीय इंटर कॉलेजों में 1271 पदों के मुकाबले 573 पद रिक्त चल रहे हैं। 90 स्कूलों का प्रबंधन बगैर प्रधानाचार्यों के चल रहा है।

जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम कहता है कि 60 से कम बच्चों पर 2 शिक्षक, 60 से 90 बच्चों के बीच 3 शिक्षक व 90 से 120 बच्चों के बीच 4 शिक्षक एवं 120 से 200 बच्चों के बीच पांच शिक्षक होने चाहिए। प्रति शिक्षक छात्रें की संख्या 40 से कम नहीं होनी चाहिए। अधिनियम यह भी कहता है कि स्कूली भवन इस तरह से बना होना चाहिए कि हर मौसम में विद्यालय सुचारू रूप से चलता रहे। हर शिक्षक के लिए कम से कम एक कक्ष होना चाहिए। कार्यालय, भंडार, मुख्य अध्यापक, छात्र-छात्रओं के लिए अलग से शौचालय होना चाहिए। शुद्ध एवं पर्याप्त पेयजल की सुविधा होनी चाहिए। मध्याह्न भोजन के लिए रसोई होनी चाहिए। छात्रों की सुरक्षा की दृष्टि से बाउंड्री बाल होना चाहिए। हर कक्षा के लिए टीएलएम होना चाहिए। हर विद्यालय में एक पुस्तकालय होना चाहिए। इसके अलावा खेल मैदान आदि की व्यवस्था होनी चाहिए लेकिन जब प्रदेश के अधिकांश विद्यालय भवनहीन हों या फिर जर्जर अवस्था में हों या फिर पेयजल, शौचालय, बिजली, फर्नीचर आदि सुविधाओं के अभाव में चल रहे हों तो वहां पर इस तरह की सुविधाओं की बात करना बेमानी ही प्रतीत होता है।

सरकारी स्कूलों की बेहतरी के लिए हम निरंतर प्रयासरत हैं। मैंने खुद शिक्षा विभाग की व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने को एक चुनौती के रूप में लिया है। कई कड़े फैसले लिए गए हैं। प्रवक्ताओं के पदों को भरे जाने की भी व्यवस्था की गई है। जो भी प्रयास किए जा रहे हैं भविष्य में उसके सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे।

अरविंद पाण्डे, शिक्षा मंत्री, उत्तराखण्ड

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