उत्तर प्रदेश मांस के छोटे व्यापारियों, जिनमें से अधिकांश मुसलमान हैं, के प्रति योगी सरकार के पूर्वाग्रहपूर्ण रवैये का अंदाज सबको उसी समय हो गया था जब सत्ता में आते कई दुकानों को इस आधार पर बंद करवा दिया गया था कि उनके पास लाइसेंस नहीं है। अब हलाल उत्पादों पर प्रतिबंध लगाकर उसने यह साबित कर दिया है कि वह लोगों को बांटने वाली अपनी नीतियों से तौबा नहीं करेगी। हलाल सर्टिफिकेशन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। समाज के सभी तबकों की भावनाओं का सम्मान, किसी भी बहुवादी समाज के मूलभूत मूल्यों का हिस्सा होता है। हलाल उत्पादों से मतलब केवल मांस नहीं है। सरकार का यह कदम, सांप्रदायिक विभाजनों को और गहरा करेगा। हम अक्सर मांस के व्यापार और निर्यात से मुसलमानों को जोड़ते हैं। मगर तथ्य यह है कि मांस और बीफ का व्यापार कर रहीं कई बड़ी कंपनियों के मालिक हिंदू हैं
- राम पुनियानी
लेखक राष्ट्रीय एकता मंच के संयोजक हैं।
उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है। इसने देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए हैं। यहीं पवित्र नगरी अयोध्या है, जो देश को धार्मिक आधार पर स्वीकृत करने के लिए चलाए गए अभियान की धुरी थी। यह आंदोलन राम मंदिर के नाम पर चलाया गया था। अब काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर राजनीति की जा रही है। बीफ के मुद्दे ने पहले ही कई लोगों की जान ले ली है। अखलाक, जुनैद और रकबर खान की लिंचिंग हो चुकी है। उत्तर प्रदेश में आवारा मवेशियों की संख्या शायद देश के किसी भी राज्य से ज्यादा है। वे सड़कों पर दुर्घटनाओं का सबब बन रहे हैं और खेतों में खड़ी फसलों को चट कर रहे हैं। इस राज्य में लव-जिहाद भी एक मसला बना दिया गया है, जिसके चलते 2013 में मुजफ्फरनगर में हिंसा हुई थी। योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद से हालात बदतर हुए हैं। हेट स्पीच बढ़ी है, मांस विक्रेताओं के लिए अपना पेट भरना मुहाल हो गया है और मुसलमानों के एक तबके की आर्थिक रीढ़ टूट गई है। इसके अलावा बुलडोजर न्याय, धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए मुसीबत बन गया है।
अब गत् सप्ताह योगी सरकार ने राज्य में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है। यह प्रतिबंध केवल स्थानीय बाजार के लिए है और निर्यात किए जाने वाले मांस पर यह लागू नहीं होगा। हलाल सर्टिफिकेशन सौंदर्य प्रसाधनों सहित कई उत्पादों को दिया जाता है परंतु मुख्यतः यह मांस पर लागू होता है। हलाल एक अरबी शब्द है जिसके मायने हैं कोई ऐसी चीज जो इस्लामिक धार्मिक आचरण के अनुरूप है या कुरान द्वारा निर्धारित इस्लामिक कानून के मुताबिक खाद्य पदार्थ। हलाल शब्द जानवरों या पक्षियों को खाने के लिए मारने के इस्लामिक तरीके के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इस तरीके में जानवर की गर्दन की रक्त शिराओं और सांस की नली को काट कर उसका खून बहा दिया जाता है।
हलाल उत्पादों का व्यापार बहुत महत्वपूर्ण और बहुत बड़ा है। यह उद्योग करीब 35 खरब डॉलर का है। पर्यटन और निर्यात क्षेत्रों में इसे बढ़ावा देना भारत के लिए भी फायदेमंद है। इन उत्पादों के मुख्य ग्राहकों में दक्षिण एशियाई देश और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के सदस्य देश शामिल हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि कुछ कंपनियां फर्जी हलाल सर्टिफिकेट जारी कर रही थीं। मसले को सांप्रदायिक रंग देने के लिए यह भी कहा गया कि इन कंपनियों के कारण सामाजिक विद्वेष बढ़ रहा है और वे जनता के विश्वास को तोड़ रही हैं। अगर मसला यही था कि कुछ कंपनियां फर्जी सर्टिफिकेट जारी कर रही थीं तो उन्हें रोकने के तरीके ढूंढे जा सकते थे। फिर प्रतिबंध केवल घरेलू बाजार के लिए क्यों? आखिर निर्यात भी तो इसी कथित फर्जी प्रमाणीकरण के आधार पर हो रहा है। हलाल कौंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मुफ्ती हबीब यूसुफ कासमी ने कहा है कि हलाल के मुद्दे पर विवाद हर चीज को हिंदू बनाम मुस्लिम नजरिए से देखने की प्रवृत्ति का नतीजा है। उन्होंने कहा, ‘हलाल का संबंध साफ-सफाई और शुद्धता से है। यह हिंदू-मुस्लिम मसला नहीं है। यह भोजन का मसला है।’
हम अक्सर मांस के व्यापार और निर्यात से मुसलमानों को जोड़ते हैं। मगर तथ्य यह है कि मांस और बीफ का व्यापार कर रहीं कई बड़ी कंपनियों के मालिक हिंदू हैं। भारत से मांस की सबसे बड़ी निर्यातक कंपनी अल कबीर एक्सपोर्ट्स के मालिक सतीश सब्बरवाल हैं और अरेबियन एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का स्वामित्व सुनील कपूर के हाथों में है। ये तो केवल कुछ उदाहरण हैं। मांस के छोटे व्यापारियों, जिनमें से अधिकांश मुसलमान हैं, के प्रति योगी सरकार के पूर्वाग्रहपूर्ण रवैये का अंदाज सबको उसी समय हो गया था जब सत्ता में आने के कुछ ही समय बाद, कई दुकानों को इस आधार पर बंद करवा दिया गया था कि उनके पास लाइसेंस नहीं है। इस मनमानी पर टिप्पणी करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार और लखनऊ नगर निगम से पूछा था कि आखिर किस प्रावधान के अंतर्गत राजधानी लखनऊ में मांस की दुकानों को बंद करवाया जा रहा है। अदालत ने लखनऊ नगर निगम को लताड़ते हुए कहा था कि अधिकारियों ने समय रहते मांस की दुकानों के लाइसेंस का नवीनीकरण क्यों नहीं करवाया। मांस की दुकानें, समाज को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई। योगी ने बिना कोई शर्म-लिहाज के 80/20 का विघटनकारी फॉर्मूला ईजाद किया। साफ तौर पर उनका इरादा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना था। उन्होंने एक राष्ट्रीय अखबार में प्रकाशित विज्ञापन में इस फार्मूले को सामने रखा था। इसका उद्देश्य सांप्रदायिक विभाजन को और गहरा करना था।
उन्होंने ही मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए ‘अब्बाजान’ शब्द का प्रयोग शुरू किया और यह आरोप लगाया कि मुसलमान अन्य सभी समुदायों के लिए निर्धारित राशन खा रहे हैं। वे ‘अब्बाजान’ शब्द का इस्तेमाल लगातार करते हैं। वे मुज्जफरनगर में हिंसा के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराते हैं। यह इस तथ्य के बावजूद कि तमाम तथ्यान्वेषण रपटों से यही सामने आया है कि ‘हिंदू लड़कियों की सुरक्षा’ के बहाने भड़काई गई इस हिंसा के कारण बड़ी संख्या में मुसलमान किसानों का इस इलाके से विस्थापन हुआ और जाटों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। योगी बिना किसी आधार के यह कह रहे हैं कि कैराना से हिंदुओं के दूसरी जगह चले जाने के लिए मुसलमान ज़िम्मेदार हैं। जबकि सामने यह आया है कि 346 हिंदुओं ने मुख्यतः आर्थिक कारणों से पलायन किया था।
योगी ने मुसलमानों को दुःख देने का एक और तरीका ईजाद किया है, जिसकी नकल अन्य भाजपा-शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री कर रहे हैं और वह तरीका है मुसलमानों के घरों को बुलडोजर के जरिए गिरवाना। बताया यह जाता है कि ये घर ‘अवैध’ हैं। अवैध इमारतों और घरों के मामले में क्या किया जाना चाहिए, यह सुस्थापित है। ऐसा भी नहीं है कि सभी गैर- मुसलमानों ने नियम-कानूनों का पालन करते हुए अपने घर बनाए हैं। मगर बुलडोजर केवल मुसलमानों के घर ढहा रहे हैं। आदित्यनाथ तो बुलडोजर को विकास और शांति का प्रतीक बताते हैं। वे कहते हैं कि बुलडोजर कानून को लागू करने में मददगार हैं। मगर प्रतिपक्ष कहता है कि बुलडोजर न्याय एकतरफा है।
अब हलाल उत्पादों पर प्रतिबंध लगाकर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने यह साबित कर दिया है कि वह लोगों को बांटने वाली अपनी नीतियों से तौबा नहीं करेगी। हलाल सर्टिफिकेशन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। समाज के सभी तबकों की भावनाओं का सम्मान, किसी भी बहुवादी समाज के मूलभूत मूल्यों का हिस्सा होता है। हलाल उत्पादों से मतलब केवल मांस नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम, सांप्रदायिक विभाजनों को और गहरा करेगा। हमें यह समझना होगा कि भाजपा को समय-समय पर विभाजक मुद्दे उठाते रहने पड़ते हैं। आम चुनाव कुछ ही महीने दूर है और यह मुद्दा भी सांप्रदायिक राजनीति की काम का है। सच तो यह कि किसी भी समुदाय के खानपान और व्यक्तिगत जीवन से संबंधित पसंद का सम्मान किया जाना चाहिए, विशेषकर यदि उनके पीछे धार्मिक भावनाएं हों। शर्त एक ही है कि वे एक बहुवादी, विविधवर्णी समाज के मूल्यों के खिलाफ नहीं होने चाहिए।
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)
तुष्टिकरण की राह पर नीतीश
- वृंदा यादव
आम चुनाव 2024 जैसे- जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे तुष्टिकरण की राजनीति भी गरमाने लगी है। यह राजनीति गत सप्ताह 27 नवंबर को बिहार शिक्षा विभाग की ओर से छुट्टियों का नया कैलेंडर जारी होने के बाद शुरू हुई है। नीतीश सरकार ने बिहार में कई हिंदू त्योहारों की छुट्टियों को रद्द कर दिया है। जबकि कई मुस्लिम त्योहारों में छुट्टियों के दिन बढ़ाए हैं। सरकार ने जो 2024 के लिए छुट्टियों का कैलेंडर जारी किया है उसके अनुसार हिंदुओं के हिस्से में कई पर्व के में छुट्टियों की कटौती तो दिखी, मुस्लिम पर्वों की कई छुट्टियों में इजाफा किया गया है। शिक्षा विभाग द्वारा श्री कृष्ण और श्री राम यहां तक की राष्ट्र पिता महात्मा गांधी तक को भुला दिया गया है मगर, तुष्टिकरण की राजनीति का ख्याल रखने वाली नीतीश तेजस्वी सरकार ने ईद पर 3 दिन, बकरीद पर 3 दिन, मोहर्रम पर 2 दिन की छुट्टी, लेकिन हिंदुओं के तीज, जितिया रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, रामनवमी, शिवरात्रि, वसंत पंचमी की छुट्टियां खत्म करने के साथ ही 1 मई मजदूर दिवस की छुट्टी भी रद्द कर दी गई है।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या नीतीश सरकार का मुस्लिम प्रेम छलकने लगा है? हालांकि जयंती पर छुट्टी रद्द करने को लेकर नीतीश सरकार का तर्क है कि महापुरुषों की जयंती के दिन स्कूल इसलिए खुले रहेंगे, ताकि इस दिन आधे समय में पढ़ाई और आधे समय में महापुरुषों की जयंती मनाएंगे। इस जयंती समारोह का मूल मकसद महापुरुषों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी छात्रों को हासिल करना होगा। गौरतलब है कि बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने छुट्टियों में बड़ा फेरबदल किया है। शिक्षा विभाग द्वारा 2024 में प्रारंभिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में कई हिंदू त्यौहारों की छुट्टीको रद्द कर दिया गया है तो वहीं, ईद पर दो, मुहर्रम और बकरीद पर एक-एक छुट्टियां बढ़ा दी गई है।
अब बिहार के सभी उर्दू प्राथमिक, मध्य, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में साप्ताहिक अवकाश शुक्रवार होगी। ये स्कूल रविवार को खुलेंगे। मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थित स्कूल शुक्रवार को साप्ताहिक अवकाश के लिए डीएम से अनुमति ले सकते हैं। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर ग्रीष्मावकाश की छुट्टी में परिवर्तन किया जा सकता है। इसके अलावा शिक्षा विभाग ने सख्त चेतावनी दी है कि किसी भी स्कूल के प्रधानाध्यापक या प्रभारी अपने स्तर से अवकाश घोषित करेंगे तो उनके विरुद्ध विधिक कार्रवाई की जाएगी। नीतीश सरकार के इस फैसले के बाद भाजपा आक्रामक मोड में आ गई है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे ने मोर्चा संभाला है और नीतीश कुमार को तुष्टीकरण का सरदार कहकर संबोधित किया है। वहीं लालू यादव को मोहम्मद लालू की उपाधि दे आरोप लगाया है कि बिहार के विकास पुरुष ने भी अब तुष्टिकरण की राह पकड़ ली है।

