
- सुरेश भाई
लेखक सामाजिक एवं पर्यावरण कार्यकर्ता हैं।
इस बार जितनी देर से बारिश शुरू हुई है। उतनी ही जल्दी जानलेवा आपदा आ गई है। जुलाई के अंतिम सप्ताह से चारधाम की सड़के धवस्त होने लगी हैं। आवागमन के पैदल रास्ते भी नदी में समा रहे हैं। भगवान केदारनाथ इतना क्रोधिात है। वह भी स्वीकृति नहीं दे रहा है कि लोग बरसात के समय बेवजह यात्रा करें। थोड़ा इंतजार करें। लेकिन मनुष्य ने तो प्रकृति पर पूरी तरह विजय करने की सोची है। वह हर घाटी से लेकर ऊंचे से ऊंचे पर्वत पर प्रतिकूल मौसम में भी बिना सोचे समझे जा रहा है। जहां-जहां मनुष्य के कदम पड़ रहे हैं। वहां धरती इतनी संवेदनशील बन गई कि अब उसे कोई नहीं बचा सकता है।
ध्यान रहे कि चारधाम बरसात में सुरक्षित नहीं है। सुरक्षा के नाम पर जितनी भी घोषणाएं करें वह मौसम के सामने बौनी पड़ रही हैं। यहां हर साल आपदा का आकार बढ़ता ही जा रहा है। केदारनाथ आपदा की तरह ही मंदाकिनी नदी में इस बार फिर से जल प्रलय का जैसा रूप लोगों ने देखा है। स्थिति इतनी विकराल बन गई कि 2 अगस्त तक केदारनाथ पैदल मार्ग पर फंसे लगभग 4000 यात्रियों को रेस्क्यू किया गया जिसमें से लगभग 700 यात्रियों को हेली सेवा से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है। मंदाकिनी नदी में जल स्तर बढ़ने से पैदल मार्ग पर रामवाड़ा में दो पुल और भीम बली में 25 मीटर रास्ता क्षतिग्रस्त होकर बह गया था। जहां से केदारनाथ जाने वाले यात्रियों को मुश्किल से बचाया जा सका है। पैदल मार्ग पर फंसे यात्रियों के लिए भोजन और पानी की व्यवस्था राज्य सरकार ने की है। यदि पहले मौसम के अलर्ट की सूचना पर ऋषिकेश में ही यात्रियों को जाने से रोक देते तो समय और खर्च दोनों भी रोका जा सकता था।
उत्तराखण्ड और हिमाचल मे अब तक 34 लोगों की मौत हो चुकी है जिसमें से 16 लोग उत्तराखण्ड में मलवे में दबकर मरे हैं और पांच लोग लापता हैं। हिमाचल में 18 लोगों की मौत हो गई है और लगभग 42 लोग लापता बताए जा रहे हैं। अब तक वहां पर 300 करोड़ से अधिक के नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है। 2023 की आपदा में भी हिमाचल में 10,000 करोड़ का नुकसान हुआ था और लगभग 500 लोग मारे गए थे। इस बार अभी तक यहां दो पावर प्रोजेक्ट धवस्त हो गए हैं जिसके कारण दर्जनों लोग लापता हैं। आपदा की यह जानलेवा घटना कुल्लू, मंडी और रामपुर में अधिक हुई है। हिमाचल की 445 सड़कें यातायात के लिए ठप पड़ी हैं। जिसको खोलने के लिए राज्य सरकार युद्ध स्तर पर काम कर रही है। सूत्रों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में बाहर से आने वाले पर्यटकों ने आपदा की स्थिति को देखकर अपनी बुकिंग कैंसिल की है। जिसके कारण पर्यटन कारोबार पिछले वर्ष की तरह प्रभावित हो गया है। कुल्लू- शिमला की सीमा पर समेज खड में आई बाढ़ में लगभग तीन दर्जन मकान बह गए हैं।
यहां 6 बच्चों समेत 36 लोग भी लापता है। 7 घंटे में सामान्य से 305 मिलीमीटर ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। लगभग 7 पुल बह गए हैं। सतलुज और ब्यास नदी का जलस्तर खतरे के करीब पहुंचने लगा है। यहां पर श्रीखंड महादेव मार्ग पर करीब 250 लोग फंसे रहे हैं। रामपुर में आई बाढ़ से पांच घर, तीन गाड़ियां, पुल भी बह गए हैं। शिमला में भी कई जगह भूस्खलन और भू-धंसाव की घटनाएं हो रही है। हिमाचल प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाएं सबसे अट्टिाक विनाश का कारण बन रही है। 2013 की केदारनाथ आपदा के समय भी 24 जल विद्युत परियोजनाओं ने मंदाकिनी और अलकनंदा घाटी का जन-जीवन बुरी तरह प्रभावित किया था। जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। जिसकी पुनरावृति फिर से देखी जा रही है। जिला टिहरी गढ़वाल में बालगंगा और धर्मगंगा पर 26-27 जुलाई की भीषण बाढ़ ने जो विनाश लीला सामने लाई है उसने केदारनाथ आपदा की याद ताजा की है। यहां पर तीर्थ यात्रियों के लिए प्रसिद्ध बूढ़ाकेदारनाथ का मंदिर भी है।
जिसके दोनों तरफ ये नदी बहती है। यहां 20 किमी के क्षेत्र में नदी तटों पर निर्माण कार्यों से एकत्रित मलवे के बहने से पैदा हुए भीषण जल प्रलय से हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि नष्ट हुई है। लोगों के होटल, मकान, गौशालाएं नदी में समा गए हैं। यहां पर प्रसिद्ध समाजसेवी स्वःबिहारी लाल जी द्वारा बड़े बांधों के विकल्प के रूप में 50 किलोवाट की एक छोटी पन बिजली बनायी गई थी। जो पूरी तरह मलवे में दब गई है। इससे आगे भी तीन मेगावाट की एक लघु जल विद्युत भी धवस्त हो गई है। क्षेत्र के एक दर्जन पुल जर्जर हो चुके हैं। आवागमन के रास्ते टूट गए हैं। यहां पर तोली गांव में मां और बेटी की भूस्खलन में दबाकर मौत हुई है। इसी के पास में तिनगढ़ गांव के परिवारों के घरों में मलवा जमा हुआ है। प्रशासन ने एक इंटर कॉलेज में राहत शिविर लगाया है। जहां पर बाढ़ प्रभावितों को भोजन, पानी, रात्रि विश्राम की व्यवस्था दी जा रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बाढ़ पीड़ितों से मिल रहे हैं और राहत और पुनर्वास का आश्वासन दे रहे हैं। लेकिन इन नदियों के दोनों तरफ लोग पूर्व में आपदा से प्रभावित हुए श्रीनगर, उत्तरकाशी और केदारनाथ की तर्ज पर पुनर्निर्माण की मांग कर रहे हैं। क्योंकि यहां हालात बहुत चिंताजनक हैं। भारी बारिश के चलते डरे हुए माहौल में लोग रात गुजार रहे हैं। लेकिन इस क्षेत्र के पुनर्निर्माण के लिए जिस तरह की न्यूनतम राशि की घोषणाएं अब तक हुई हैं उसके कारण लोगों में रोष भी है।
वहीं भिलंगना नदी की सहायक नैलचामी गाड़ के किनारे बसे हुए जखन्याली नौताड गांव मे मिलने वाले एक गदेरे में रात को आई भीषण बाढ़ ने पति-पत्नी और उनके बेटे की जान ले ली। गांव की खेती, पशु और घरों को बुरी तरह नुकसान हुआ है। यहां पर 10 साल पहले भी बाढ़ आई थी। तब छह लोग मारे गए थे। गांव के घर मलवे में दब गए थे। इसके बावजूद भी यहां पर शेष गांव के हिस्से को बचाने के लिए प्रयास नहीं होने से वही पुनरावृत्ति हुई है। उत्तरकाशी में भागीरथी और यमुना नदी के उद्गम में भी भीषण बाढ़ के दृश्य सामने आए हैं। लेकिन बाढ़ नियंत्रण के उपायों पर गंभीरतापूर्ण विचार नहीं हो रहा है। हिमालय की भौगोलिक संरचना की अनदेखी करके विकास के तरीके विनाश के रास्ते पर ले जा रही हैं। हर साल जल प्रलय की निरंतर घटनाओं में बह रही मिट्टी, पानी, पत्थर, पेड़, लोग आदि की चिंता बरसात पूरा होने पर समाप्त हो जाती है। इसके बाद धरती तोड़ विकास अनवरत चलता रहता है। फिर पुनरावृत्ति होती है जो भोगवादी विलासितापूर्ण विकास का परिणाम है।

