चरैवेति-चरैवेति यानी रूकना नही, थकना नहीं व सतत् एक उद्देश्य के साथ चलते रहना इसी मूल मंत्र के साथ पिछले 21 सालों से जुटे हुए हैं, डॉ. पीताम्बर अवस्थी। नशे के खिलाफ उनका यह अभियान अब 22 वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। अभियान के बाइसवें साल की शुरुआत में भारत व नेपाल दोनों जगह नशामुक्ति पर पोस्टर जारी हुए। पिछले इक्कीस सालांे के सफर पर एक एल्बम भी तैयार की गई है, जिसे शीघ्र ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भेंट किया जाएगा और उनसे उत्तराखण्ड को नशामुक्त राज्य बनाने की अपील की जाएगी। इस अवसर पर नशे के विरुद्ध आध्यात्मिक आंदोलन चलाने की शुरूआत भी की गई है। जनपद पिथौरागढ़ में इस अवसर पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए, साथ ही यह संकल्प लिया गया कि नशे के खिलाफ जागरूकता कार्यक्रमों में तेजी लाई जाएगी। उधर पड़ोसी देश नेपाल में भी इस अवसर पर नशामुक्ति पोस्टर जारी किया गया। इसके साथ ही विद्यालयों में भी इसको लेकर कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस दौरान दोनों जगह डॉ. अवस्थी द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘जिंदगी जरूरी है, भी बांटी गई। अपने संसाधनों से नशे के खिलाफ ‘नशामुक्ति अवस्थी’ की यह जंग जारी है, जिसका एकमात्र लक्ष्य वर्तमान व भावी पीढ़ी को नशे की गिरफ्त में आने से बचाना है।
पिछले 21 सालों से युवाओं में नशे की दुष्प्रवृत्ति के खिलाफ यह अभियान लगातार चलता रहा है। हजारों बच्चे नशामुक्ति अभियान चलते नशे के भंवर में डूबने से बचने के लिए प्रेरित हुए। नशे के खिलाफ जमीनी अभियान की इस लोकप्रियता ने डॉ. पीताम्बर अवस्थी को ‘नशामुक्त अवस्थी’ बना डाला। आज भी कंधे में झोला टांकें विभिन्न स्कूलों, गांवों सामुदायिक स्थलों में भ्रमण करते हुए डॉक्टर अवस्थी युवाओं को जागरूक करते हुए दिखाई देते हैं। यह मुहिम उत्तराखण्ड के साथ-साथ नेपाल राष्ट्र के विभिन्न जनपदों में भी चल रही है। वहां के तमाम सामाजिक संगठन भी अब इस अभियान से जुड़ने लगे हैं। नशामुक्ति अभियान चलाए जाने का यह विचार इन्हें 20 अगस्त 2003 को तब आया जब उन्होंने एक दैनिक समाचार पत्र में यह समाचार पढ़ा जिसमें ऊधमसिंहनगर के जसपुर में आपसी शर्त पर एक साथ 10 गुटखे खाने से एक युवक की मौत हो गई थी, इसके बाद उन्होंने 26 सितम्बर 2003 को राजकीय इण्टर कॉलेज पिथौरागढ़ से नशामुक्ति चेतना अभियान का शंखनाद किया, जिसे ज्ञान प्रकाश संस्कृत पुस्तकालय समिति द्वारा लगातार अभियान चलाकर जनजागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ताकि उत्तराखण्ड को नशामुक्त प्रदेश बनाने का उनका सपना पूरा हो सके।
विद्यालय स्तर से शुरू हुआ यह अभियान आज जनआंदोलन का रूप ले चुका है। इस अभियान से लगातार लोग जुड़ रहे हैं। नशा न करने के दो लाख से अधिक संकल्प पत्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को अपने अभियान के प्रारंभिक दिनों में ही सौंपा जा चुका था। इससे उत्साहित होकर उन्होंने छात्र-छात्राओं को नशा न करने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया। गोष्ठियों का आयोजन, विद्यालयों व गांवों में भ्रमण, तमाम तरह की प्रतियोगिताएं, स्कूलों में कार्यक्रम, नशे से होने वाली बीमारियों के बारे में जागरूकता, नुक्कड़ नाटक इस अभियान का हिस्सा बनते रहे। इससे सिर्फ छात्र-छात्राएं ही नहीं, बल्कि कई अभिभावक व नशे में लिप्त कई लोग भी प्रभावित व लाभान्वित हुए। इस अभियान की यह खासियत रही कि इसने लोगों से जीवन में किसी भी प्रकार का नशा न करने का संकल्प कराया। डॉ. अवस्थी का नशे के खिलाफ चलाए गए इस लोकप्रिय अभियान को दूरदर्शन ने अपने ‘किरण’ कार्यक्रम में प्रसारित किया।
अभियान के दौरान निरन्तर यह कोशिश की जा रही है कि विद्यालय में शिक्षक और घर में अभिभावक मिलकर प्रयास करें ताकि नशे के दुष्प्रभावों से बचा जा सके। बच्चों को बचपन से ही नशे के खिलाफ जागरूक करना भी इस कार्यक्रम की प्राथमिकता में रहा है ताकि एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण किया जा सके। इस अभियान का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसमें बालिकाओं से संकल्प पत्र लिया जाता है कि वे नशा करने वालांे से भविष्य में शादी नहीं करेंगी। युवाओं को लगातार इससे जोड़ा जा रहा है। युवाओं को इससे जोड़ने के पीछे का उद्देश्य भी यही है कि जिन युवाओं के ऊपर आने वाले समय में राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी होती है, जिन्हें अपना चरित्र निर्माण करना होता है, विकास की नई गाथा लिखनी होती है, समाज के बीच अपने कार्यों से एक अनुकरणीय उदाहरण पेश करना होता है अगर वह लगातार नशे की तरफ अग्रसर होगा तो स्वाभाविक है कि यह राष्ट्र के लिए बेहद चिंतनीय विषय बन जाएगा। इसके अलावा तमाम त्यौहारों के दौरान मंदिरों में आने वाले भक्तों व श्रृद्धालुओं से भी नशापान न करने व करवाने का संकल्प इस अभियान के दौरान किया जाता है ताकि नशे के दुष्परिणामों को रोका जा सके। डॉ. अवस्थी कहते हैं कि नशामुक्त व्यक्ति ही परिवार, समाज व राष्ट्र की सर्वाधिक सेवा कर सकता है। ऐसे में इस अभिशाप से मुक्ति व अनमोल जीवन को बचाने के लिए बड़े स्तर पर काम किए जाने की जरूरत है।

