Uttarakhand

निर्णायक संघर्ष की ओर उत्तराखण्ड महिला मंच

  •     कमला पंत
    उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी
    महिला मंच की संस्थापक सदस्य एवं प्रदेश अध्यक्ष स्वराज अभियान

उत्तराखण्ड महिला मंच आने वाली पीढ़ी के हित में रोजगार के साथ ही जल-जंगल और जमीन के मुद्दों को लेकर हमेशा आवाज उठाता रहा है। यहां तक कि अब उसने अपने 30वें स्थापना सम्मेलन में उत्तराखण्ड भू-कानून को लेकर एक पुस्तक का भी विमोचन के साथ ही राज्य वासियों के हक-हकूक और जमीन बचाने के लिए निर्णायक संघर्ष की रणनीति बनाकर व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाने ऐलान किया है

 


दर्शकों से खचाखच भरा देहरादून टाउन हॉल

उत्तराखण्ड महिला मंच के 30वें स्थापना सम्मेलन में राज्यहित के लिए निर्णायक संघर्ष की रणनीति बनाई गई। इस दौरान कमला पंत और निर्मला बिष्ट ने कहा कि राज्य बनने के बाद सबसे ज्यादा अनदेखी महिलाओं और युवाओं की हुई है। साथ ही इनके लिए आवाज उठाने वाले संगठनों को भी हाशिए पर धकेलने का प्रयास किया गया। बावजूद इसके उत्तराखण्ड महिला मंच आने वाली पीढ़ी के हित में रोजगार के साथ ही जल -जंगल और जमीन के मुद्दों को लेकर हमेशा आवाज उठाता रहा है। यहां तक कि अब उसने उत्तराखण्ड भू-कानून को लेकर वार्षिक सम्मेलन में एक पुस्तक लॉन्च की है। साथ ही राज्य वासियों के हक-हकूक और जमीन बचाने के लिए व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाने का भी ऐलान किया गया ताकि आगामी आम चुनाव तक इस मुद्दे पर जनता वोट के जरिए अपनी राय रख सकें। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड महिला मंच के 30वें स्थापना सम्मेलन में महिला मंच की महिलाओं के साथ-साथ विभिन्न महिला संगठनों के प्रतिनिधियों ने सैकडों की संख्या में सम्मेलन स्थल पर पहुंचकर, महिला शक्ति की एकता को जिस तरह से प्रदर्शित किया, उससे भविष्य के लिए एक उम्मीद नजर आती है। महिलाएं ही विशेष कर जिन्होंने उत्तराखण्ड के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाई वे अब राज्य की दशा-दिशा को बदलने के काम में भी बड़ी भूमिका निभाएंगी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मंच के साथ प्रदेश के सभी प्रगतिशील जनसंगठन साथ खड़े हैं जो सम्मेलन में भी साफ नजर आ रहा था। सम्मेलन के माध्यम से महिलाओं ने उत्तराखण्ड भू-कानून और नशे के खिलाफ संवैधानिक अधिकारों के लिए सभी से एकजुट होने का आह्नान किया वहीं महिलाओं से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर भी चर्चा की गई।

महिलाओं पर होने वाले अपराध और घरेलू हिंसा, महिला कानून, नशे की बढ़ती प्रवृत्ति, शिक्षा-स्वास्थ्य की दुर्गत व्यवस्था से महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव जैसे मुद्दों पर भी अलग-अलग वक्ताओं के द्वारा चर्चा की गई। इस मौके पर मंच की ओर से तैयार की गई पुस्तिका ‘उत्तराखण्ड का जनहितकारी भू-कानून कैसा हो’ पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। विमोचन प्रसिद्ध पर्यावरवरणविद् डॉ रवि चोपड़ा, वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत, सर्वोदय मंडल के बीजू नेगी, किसान सभा के सुरेंद्र सिंह सजवाण, जन विज्ञान के विजय भट्ट और महिला नेत्रियों के द्वारा किया गया। इससे पहले सतीश धौलाखंडी, जयदीप सकलानी और त्रिलोचन भट्ट ने जनगीत प्रस्तुत किया। मंच की महिलाओं ने सम्मेलन स्थल मे सामूहिक रूप से, दरिया की कसम मौजों की कसम, ये सारा जमाना बदलेगा गाकर, अपना और अपने संगठन के लक्ष्य को स्पष्ट किया। सभा का संचालन मंच की जिला संयोजक निर्मला बिष्ट ने किया।

वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने भू-कानून पर मुख्य वक्ता के रूप में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि भूमि सिर्फ जमीन का कोई टुकड़ा नहीं होता, बल्कि यह जीवन का आधार होता है। राज्य के गठन से लेकर अब तक भू-कानून में किए गए बदलावों पर चर्चा की और अफसोस जताया कि मौजूदा सरकार ने भू-कानून में ऐसा संशोधन किया है, जो आम लोगों के लिए नुकसानदेह और धन्नासेठों को लाभ पहुंचाने वाला है। पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने अपनी जमीन बचा रखी है, जबकि उत्तराखण्ड की ज्यादातर जमीन धन्नासेठों ने खरीद ली है। श्री रावत ने हाल के वर्षों में सैकड़ों गांवों को नगर निकायों में शामिल किए जाने को एक बड़ी साजिश बताया। उन्होंने कहा कि नगर निकायों में शामिल होते ही गांवों की जमीन लैंड यूज चेंज सहित कई दूसरी बाध्यताओं से मुक्त हो जाती है।


दर्शकों से खचाखच भरा देहरादून टाउन हॉल

सम्मेलन के दूसरे सत्र की अध्यक्षता उत्तराखण्ड महिला मंच की तीन वयोवृद्ध सदस्य भुवनेश्वरी कठैत, पद्मा गुप्ता और दर्शनी पंत ने की। मंच की वरिष्ठ नेत्री कुमारी विमला ने शॉल पहनाकर उनका स्वागत किया।
इस सत्र की शुरुआत मे कमला पंत ने महिलाओं की विभिन्न समस्याओं और उत्तराखण्ड महिला मंच द्वारा जन सरोकारों के लिए बीते 30 वर्षों में की संघर्ष यात्रा का विवरण दिया। महिला मंच की ओर से प्रदेश की सभी महिलाओं, संगठनों व प्रदेश के सभी प्रगतिशील शक्तियों व व्यक्तियों से बदलाव के लिए एकजुट हो कर मुद्दा आधारित संघर्ष तेज करने का भी आह्नान किया और कहा कि इसी से बदलाव का रास्ता खुलेगा।
चंद्रकला ने की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत इस सत्र में गीता गैरोला ने महिला हिंसा पर बात रखी। उन्होंने कहा कि महिलाओं की उपेक्षा का दौर उसी दिन शुरू हो जाता है, जिस दिन बेटियों की तुलना में बेटों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। महिलाओं पर हिंसा मां के पेट में भी होती है। उन्होंने सवाल किया कि 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तराखण्ड में 1 हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 964 थी तो फिर 116 लड़कियां कहां चली गई? उन्होंने कहा कि महिलाओं को लेकर सामाजिक और धार्मिक रूढ़ियों से बाहर निकलने की जरूरत है।

एडवोकेट रजिया बेग ने महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को लेकर अपनी बात रखी और महिलाओं के लिए बनाए गए विभिन्न कानूनों के बारे में बताया। उन्होंने मुख्य रूप से घरेलू हिंसा और कार्यस्थल पर महिलाओं के उत्पीड़न को रोकने के लिए बनाए गए कानूनों के बारे में जानकारी दी और कहा कि महिलाओं को कभी न कभी इन दोनों समस्याओं से गुजरना पड़ता है। इसलिए हर महिला को इन कानूनों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। पहले जमीन-जायदाद में महिलाओं का हक नहीं होता था, लेकिन अब पति की जायदाद में आधी हिस्सेदारी होती है। महिला संबंधी अन्य कई कानूनों की भी उन्होंने जानकारी दी।

डॉ शिवानी पांडे ने नशे की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण महिलाओं पर पड़ रहे प्रभाव के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि नशा बेशक पुरुष करते हैं, लेकिन इससे सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर पड़ता है। सरकार घर-घर नशा पहुंचाने में जुटी हुई है। नशा सरकार ने अपनी आमदनी का प्रमुख साधन बना दिया है। इससे छोटे-छोटे बच्चे भी नशे के आदी हो रहे हैं। सरकार नशा बेचने को लेकर इतनी तत्पर है कि सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय और राज्य मार्गों पर शराब की दुकान न खोलने का आदेश दिया तो सरकार ने राज्य मार्गों को जिला मार्ग घोषित कर दिया। डॉ शिवानी पांडे ने यह भी कहा कि महिला सिर्फ शराब की नहीं, बल्कि धर्म के नशे के कारण भी प्रभावित हो रही हैं। धर्म की राजनीति करने वालों के लिए महिलाएं आसान निशाना बन गई हैं। उमा भट्ट ने सरकार की निजीकरण की नीति के चलते शिक्षा की बदहाल स्थिति और अच्छी शिक्षा के नाम पर प्राइवेट स्कूलों की लूट का हवाला देते हुए, सबको समान और सस्ती शिक्षा को वक्त की अहम जरूरत बताया।

इंदु नौडियाल ने राजनीति में महिलाओं की स्थिति को लेकर अपनी बात रखी। उन्होंने माना कि पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण के बाद भी महिला सदस्यों का काम आमतौर पर परिवार के पुरुष देख रहे हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इससे महिलाएं सीख भी रही हैं। उन्होंने कुछ महिला ग्राम प्रधानों का उदाहरण देकर बताया कि कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद वे डीएम सहित तमाम अधिकारियों का जवाब तलब कर रही हैं। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में प्रधान पति या पार्षद पति जैसे शब्दों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। तान्या ने एकल महिलाओं का सवाल उठाया और कहा कि महिलाओं के लिए आवासीय सुविधा की व्यवस्था की जानी चाहिए। कविता कृष्णपल्लवी ने महिला कामगारों, गरीबी से त्रस्त होकर बाहरी राज्यों से आए और यहां के मजदूर किसानों के सवाल को भी उठाते हुए महिलाओं, दलितों व मजदूर वर्ग की एकता से समग्र परिवर्तन की बात कही। प्रभा रतूड़ी ने पहाड़ की महिलाओं की पीड़ा को उठाया जो घोर गरीबी व अभाव का जीवन जीने को आज भी मजबूर हैं। अंत में ऊषा भट्ट एवं भुवनेश्वरी ने पुरजोर तरीके से लक्ष्य की ओर बढ़ने का सभी से अनुरोध किया।

(लेखक की फेसबुक से)

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