Uttarakhand

उत्तराखण्ड में जमीनों की लूट/भाग-6 : सोने के भाव खरीदी कूड़े की जमीन

आठ साल पहले देवभूमि उत्तराखण्ड के दामन पर भ्रष्टाचार के दाग लगे थे। यह दाग बहुत गहरे थे। उत्तराखण्ड की सियासत में सफेदपोशों और नौकरशाही की जुगलबंदी का यह मामला था एनएच 74 घोटाला। सितारगंज से हरिद्वार तक राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण और विस्तारीकरण की इस परियोजना के दौरान किसानों की कृषि भूमि को रातों-रात अकृषक कराकर कई गुना अधिक दामों पर खरीदा गया। यह घोटाला हुआ पूरे 500 करोड़ का। मामला उजागर होने पर राज्य सरकार द्वारा स्पेशन इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) के जरिए जांच की गई। इस बहुचर्चित घोटाले में कई पीसीएस और आईएएस अधिकारी आरोपी ठहराए गए। आश्चर्यजनक रूप से एसआईटी ने आईएएस अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी। कुछ इसी तर्ज पर धर्मनगरी हरिद्वार में भी जमीन घोटाला हुआ है। जिसमें धारा 143 का खेल खेलकर करोड़ों के वारे-नारे कर दिए गए। 56 करोड़ के इस घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने त्वरित कार्रवाई करते हुए जांच के आदेश कर दिए हैं। प्राथमिक जांच में चार अधिकारियों को निलम्बित भी किया गया है। लेकिन अभी तक किसी अधिकारी पर मुकदमा दर्ज नहीं किया जाना सवालिया निशान बन चुका है। चर्चा है कि भ्रष्टाचार की इस कड़ी में बड़ी मछलियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। शायद यही वजह है कि घोटाले के मुख्य आरोपी अभी भी जांच के दायरे से बाहर हैं

 

वर्ष – 2017

सितारगंज से हरिद्वार तक 252 किमी दूरी के एनएच-74 के निर्माण के लिए वर्ष 2012-13 में प्रक्रिया शुरू की गई। यह काम दो हिस्सों में होना था। एक हिस्सा सितारगंज से काशीपुर तो दूसरा हिस्सा काशीपुर से नगीना होते हुए हरिद्वार का था। 2017 में इस मामले में घोटाले का खुलासा तब हुआ था जब तत्कालीन मंडलायुक्त डी. सेंथिल पांडियन ने भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित फाइलें तलब की थीं। जिसमें पाया गया कि कृषि भूमि को गैर कृषि दर्शाकर भारी भरकम मुआवजा लेकर सरकार को करोड़ों का चूना लगाया गया। इसमें भू-स्वामी किसानों से लेकर सफेदपोश नेता व अधिकारी सभी शामिल थे।

सरकार ने विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाकर जांच की थी। जांच में सामने आया था कि भूमि अधिग्रहण का यह खेल करीब 500 करोड़ का था। एसआईटी ने 22 आरोपियों को गिरफ्तार किया। इसमें दस से ज्यादा पीसीएस अधिकारियों की संलिप्तता भी सामने आई। जबकि दो आईएएस पंकज पांडे और चंद्रेश यादव का नाम भी सामने आया। साथ ही सितम्बर 2018 में आईएएस पंकज पांडे और चंद्रेश यादव निलम्बित किए गए थे। दोनों ऊधमसिंह नगर के तत्कालीन जिलाधिकारी रहे हैं। हालांकि बाद में दोनों को क्लीन चिट मिल गई थी।

वर्ष – 2025

इस तरह हुआ भू परिवर्तन

उत्तराखण्ड के धार्मिक शहर हरिद्वार से एक चैंकाने वाला भूमि घोटाला सामने आया है। जिसमें नगर निगम पर भ्रष्टाचार और नियमों की अनदेखी के गम्भीर आरोप लगे हैं। वर्ष 2017 के एन एच 74 घोटाले की तर्ज पर ही यह घोटाला भी हुआ। 56 करोड़ के इस घोटाले में भी धारा 143 का ‘खेला’ खेला गया। हालांकि इस मामले में शासन ने तत्काल कार्रवाई करते हुए चार अधिकारियों को निलम्बित कर दिया है। इसके साथ ही एक वरिष्ठ वित्त अधिकारी को कारण बताओ नोटिस भी भेजा गया है जबकि एक सेवानिवृत्त कर्मचारी का सेवा विस्तार रद्द करते हुए उसके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई है। शासन द्वारा लिए गए इन कड़े निर्णयों को प्रशासनिक हलकों में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का जीरो टाॅलरेंस की नीति को अपनाते हुए एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। सरकारी जांच में तत्काल छोटी मछलियों को तो फंदे में फंसा लिया गया लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी बड़ी मछलियां गहराई में गोते लगाते बच निकलने की जुगत में हंै।

 

क्या है मामला

हरिद्वार के नगर निगम ने नवम्बर 2024 में सराय कूड़ा निस्तारण केंद्र से सटी 33 बीघा भूमि का सौदा किया था। भूमि 54 करोड़ रुपए में खरीदी गई। इसके अलावा छह करोड़ रुपए स्टाप ड्यूटी के तौर पर सरकारी खजाने में जमा हुए। यह जमीन कृषि भूमि थी। तब उसका सर्किल रेट छह हजार रुपए के आस पास था। ऐसे में यदि भूमि को कृषि भूमि के तौर पर खरीदा जाता तो उसकी कुल कीमत करीब साढ़े तीन करोड़ होती। लेकिन धारा 143 (लैंड यूज चेंज) कर खेले गए खेल के बाद भूमि की कीमत 56 करोड़ हो गई। हरिद्वार की मेयर किरण जैसल बनी तो उन्होंने इस जमीन पर सवाल खड़े कर दिए। इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले की जांच वरिष्ठ आईएएस अफसर रणवीर सिंह चैहान को सौंप दी। जमीन को बेचने वाले किसानों के खातों को भी फ्रीज कराने के आदेश दिए गए।

अधिकारियों पर अब तक नहीं हुआ आपराधिक मामला दर्ज

नगर निगम में सामने आए इस बहुचर्चित जमीन घोटाले में प्रशासन ने जांच के बाद सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल समेत चार अधिकारियों को निलम्बित कर दिया है। इसके अलावा अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाल, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट और अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल शामिल हैं। ये चारों जमीन खरीद मामले के लिए बनाई गई समिति में शामिल थे। लेकिन अधिकारियों पर अभी तक एफआईआर दर्ज न होने को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। शहरवासियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक का कहना है कि जब प्रथम दृष्टया दोष सिद्ध हो गया है तो फिर कानूनी कार्रवाई में देरी क्यों?

इन धाराओं में होना था मुकदमा

कानूनी जानकारों का मानना है कि जांच में सरकारी सम्पत्ति के दुरुपयोग और रिकाॅर्ड में हेरा-फेरी की पुष्टि हो जाने के बाद धारा 409 (विश्वासभंग), 420 (धोखाधड़ी), 467/468 (जालसाजी) जैसी धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज होनी आवश्यक है।

शुरू हुआ लीपापोती का ‘खेल’

बताया जा रहा है कि नगर निगम के करोड़ों के इस भूमि खरीद घोटाले में अब लीपापोती का ‘खेल’ शुरू हो गया है। आईएएस रणवीर सिंह चैहान की प्राथमिक जांच के बाद नगर निगम के चार अधिकारियों को निलम्बित करने के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं। जिनमें सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि 56 करोड़ की जमीन खरीदने की जिम्मेदारी सिर्फ चार छोटे अधिकारियों पर कैसे तय की जा सकती है। बताया जा रहा है कि इसमें कई पीसीएस और आईएएस अफसरों की भी संलिप्तता है।

क्या इनकी होगी जांच?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब कूड़ा निस्तारण केंद्र के लिए जमीन की जरूरत नहीं थी तो आखिर व्यवसायिक भूमि खरीदने की आवश्यकता क्यों पड़ी? वो भी तब जब वहां कूड़ा ही गिरना था।

नगर निगम के तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चैधरी की जिम्मेदारी को कैसे नजरअंदाज किया जा रहा है? क्या भूमि खरीद बिना चैधरी की सहमति के हुआ था? क्या उनकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी? हर किसी की जुबां पर यही है कि करोड़ों के घोटाले में जिन आला अधिकारियों के हाथ रंगे हुए हैं, क्या उनकी गर्दन नपेगी या असली गुनाहगारों को बचाने की पटकथा लिखी जा रही है?

वरुण चैधरी ने इस तरह खेला ‘खेल’

सूत्रों के अनुसार इस जमीन घोटाले में तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चैधरी ने जो खेल खेला है वह सर्किल रेट की आड़ में खेला है। जिसके तहत ही इस जमीन को कृषि भूमि के स्थान पर आवासीय में दर्ज कराया गया। जमीन कृषि भूमि की 143 यानी आवासीय में दर्ज कराने में पसीने छूट जाते हैं और भारी-भरकम रिश्वत अलग देनी पड़ती है। तब भी जमीन आवासीय नहीं हो पाती। लेकिन इस जमीन को आनन-फानन में एसडीएम रहे अजय वीर सिंह ने तुरंत 143 करने में देर नहीं लगाई। इस जमीन की धारा 143 होते ही इसके रेट 5 गुना हो गए और साढ़े तीन करोड़ की जमीन 56 करोड़ में खरीद ली गई।

दीपोत्सव में भी लगे थे घोटाले के आरोप

गत वर्ष राज्य स्थापना दिवस के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जब हर की पैड़ी पर पहुंचकर दीपोत्सव कराकर जो प्रसिद्धि पाई थी उसमें भी वरुण चैधरी पर घोटाले के आरोप लगे थे। हर की पैड़ी और उसके आस-पास के कई घाटों पर कई लाख दीपक रात्रि में जलवाए गए थे। लेकिन जिन मिट्टी के दीपक और उसमें लगाई गई बत्ती और तेल की कीमत आम बाजार से प्रति दीपक 5 रुपए से अधिक नहीं बैठती है लेकिन इन दीयों में भी भ्रष्टाचार की लौ जली थी।

10 लाख प्रति बीघा की जमीन को खरीदा एक करोड़ 75 लाख बीघा में

बताया जा रहा है कि जिस जमीन के मालिक कूड़े के ढेरों और उठती बदबू के कारण मात्र 10 लाख रुपए बीघा बेचने को तैयार था उसकी भूमि नगर निगम ने एक करोड़ 74 लाख 83 हजार 832 रुपए बीघा खरीदी।

इस तरह पहनाया गया अमलीजामा

सराय में कृषि भूमि का सर्किल रेट एक हेक्टेयर जमीन का एक करोड़ 95 लाख रुपए है, जोकि 10 हजार वर्ग मीटर के हिसाब से है। एक मीटर का रेट 1950 रुपए प्रति वर्ग मीटर होता है। जब यहां की कृषि भूमि को अकृषि में तब्दील करा लिया गया तो इसकी कीमत कई गुणा बढ़कर प्रति वर्ग मीटर 9500 रुपए हो गई। प्राॅपर्टी विशेषज्ञों की मानें तो यदि उस स्थान पर फ्लैट आदि बने होते तो उनका सर्किल रेट 24000 रुपए वर्ग मीटर बैठता है। ऐसे में कृषि भूमि को अकृषि कराकर उसे तीन गुणा अधिक रेट पर खरीद लिया गया।

इस दिन किए गए एग्रीमेंट

16 अक्तूबर: 2024 को जमीन का लैंडयूज बदलने के बाद 29 अक्तूबर को जितेंद्र और धर्मपाल से रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कराया गया, जबकि सुमन देवी पत्नी जितेंद्र कुमार से 11 नवम्बर 2024 को रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कराया गया। ऐसे में नगर निगम के अधिकारियों ने जब देखा कि एग्रीमेंट पर कोई शिकायत नहीं हो रही है तो धर्मपाल और जितेंद्र से 11 नवम्बर 2014 को रजिस्ट्री करा ली। इसी तरह 29 नवम्बर को सुमन से रजिस्ट्री करा ली गईं।

इस दिन हुई रजिस्ट्री

  • जमीन का सर्किल रेट

    11 नवम्बर 2024 को रजिस्टेशन नंबर 9332 को 9966 वर्ग मीटर जितेंद्र से खरीदी गई।
    11 नवम्बर 2024 को रजिस्ट्रेशन नम्बर 9333 पर 2390 वर्ग मीटर धर्मपाल से खरीदी गई।
    29 नवम्बर 2024 को रजिस्ट्रेशन नम्बर 9931 पर 6920 वर्ग मीटर सुमन पत्नी जितेंद्र से खरीदी गई।
    29 नवम्बर 2024 को रजिस्ट्रेशन नम्बर 9932 पर 0.3794 हेक्टेयर जमीन सुमन पत्नी जितेंद्र से खरीदी।

कृषि भूमि को भी खरीदा गया अकृषि की कीमत में

16 अक्टूबर 2024 के अंतर्गत खाता सं. 75 खसरा सं. 121 क्षेत्रफल 0.5230 हेक्टेयर भूमि स्थित सराय परगना ज्वालापुर तहसील व जिला हरिद्वार को अपने व्यवसायिक प्रयोजन हेतु ज.वि. अधिनियम की धारा 143 के अंतर्गत अकृषिक घोषित किया गया। इसी प्रकार अन्य खसरा नम्बर 99/1, 122/4 को अकृषि किया गया। लेकिन खसरा संख्या 96/1 को अकृषि नहीं किया गया। चैंकाने वाली बात यह है कि उसे भी 6510 रुपए मीटर के हिसाब से खरीदा गया। उसमें 0.3794 हेक्टेयर भूमि के तौर पर खरीदा गया।

ये है नगर निगम द्वारा खरीदी गई भूमि का ब्यौरा:

  • ¹ 9966 वर्ग मीटर भूमि – 26,16,28,500 छब्बीस करोड़ 16 लाख 28 हजार 500 रुपए में खरीद, जोकि 26250 रुपए प्रति वर्ग मीटर पड़ती है।
    ¹ 6920 वर्ग मीटर भूमि – 18,16,50,000 अठारह करोड़ 16 लाख 50 हजार रुपए में खरीदी। जोकि 26250 वर्ग मीटर के हिसाब से खरीदी गई।
    ¹ 2389 वर्ग मीटर – 6,27,19,125 छह करोड़ 27 लाख 19 हजार 125 रुपए में खरीदी, जोकि 26253 रुपये वर्ग मीटर पड़ी।
    ¹ 3794 वर्ग मीटर भूमि – 2,46,98,940 दो करोड़ छियालीस लाख 98 हजार 940 रुपए में खरीदी, जोकि 6510 रुपए प्रति वर्ग मीटर खरीदी गई।

खरीदी गई जमीन की कुल कीमत 56 करोड़

कुल भूमि 23,004 वर्ग मीटर खरीदी गई, जोकि प्रति बीघा 666.66 मीटर के हिसाब से 34.51 बीघा बैठती है। यह भूमि 53 करोड़ 06 लाख, 96 हजार 565 रुपए में खरीदी और 5 प्रतिशत के हिसाब से करीब 2 करोड़ 70 लाख रुपए का स्टाम्प और एक लाख रुपए की चार रसीद कटवाई गई। 4 रजिस्ट्री की लिखाई 12 हजार रुपए होती है। इस तरह यह जमीन की खरीद कुल 55 करोड़ 77 लाख 96 हजार 655 रुपए होती है।

बिना तारीख के अनुमति पत्र पर कर दी गई 143 की सहमति

बताया जा रहा है कि जमीन मालिक जितेंद्र, धर्मपाल और सुमन ने अपनी भूमि को कृषि से अकृषि कराने के लिए एप्लीकेशन दी थी उस पर कोई तारीख तक अंकित नहीं है। जिससे यह पता नहीं चल सके कि किस दिनांक को एप्लीकेशन भू-परिवर्तन करने के लिए दी गई। चैंकाने वाली बात यह है कि उपजिलाधिकारी इस प्रकिया को करने के लिए इतनी जल्दी में थे कि उन्होंने दिन, तारीख देखे बिना ही जमीन की धारा 143 कर दी। इस प्रकरण में उपजिलाधिकारी द्वारा किसी नियम का पालन ही नही किया। नियमानुसार 143 करने के लिए उपजिलाधिकारी द्वारा पहले पटवारी फिर नायब तहसीलदार तथा बाद में तहसीलदार की रिपोर्ट आने के बाद ही धारा 143 की जाती है। शायद यह इसलिए किया गया कि बिना तारीख की एप्लीकेशन पर पता ही नहीं चलेगा कि धारा 143 के लिए कब एप्लीकेशन दी गई थी।

एक ही दिन में कर दिया गया भू-परिवर्तन

जमीन मालिक जितेंद्र ने 3 अक्टूबर 2024 को एक शपथ पत्र नोटरी से तैयार कराया जिसमें उन्होंने उपजिलाधिकारी से अपनी जमीन की धारा 143 यानी कृषि से अकृषि कराने की एप्लिकेशन दी थी। इसके बाद 21 अक्टूबर 2024 को उपजिलाधिकारी अजय सिंह ने 143 करने के आदेश पारित कर दिए। इसी दिन कानूनगो रजिस्ट्रार ने भी इस 143 को अपने रजिस्टर में दर्ज कर लिया। यहीं नहीं, बल्कि इसी दिन कम्प्यूटर पर यह 143 चढ़ा भी दी गई। इसके बाद एक सप्ताह तक यह देखा गया कि कोई इसका विरोध तो नहीं कर रहा है। लेकिन जब कोई किसी तरीके का शोर-शराबा नहीं हुआ तो 29 अक्टूबर 2024 को रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कर दिया गया।

आरोपी क्लर्क का किसके इशारे पर हुआ सेवा विस्तार

हरिद्वार में जांच करने पहुंचे आईएएस रणवीर सिंह चौहान

इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार नगर निगम के टैक्स विभाग में क्लर्क के पद पर तैनात रहे वेदपाल है। कहा जा रहा है कि उन्हें इस घोटाले को अंजाम देने के लिए ही सेवा विस्तार दिया गया। लेकिन सवाल यह है कि वेदपाल की सेवा का विस्तार आखिर किसके इशारे पर हुआ? हालांकि यह तो स्पष्ट है कि तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चैधरी ने उनका सेवा विस्तार किया। लेकिन फिर भी सवाल वही है कि तत्कालीन नगर आयुक्त वरुण चैधरी ने किसके कहने पर वेदपाल का सेवा विस्तार किया? आखिर इनके ऊपर वह अधिकारी कौन है जिसके एक इशारे पर ही वरुण चैधरी ने वेदपाल का सेवा विस्तार कर इस घोटाले की बुनियाद रखी। इसका खुलासा होना भी जरूरी है। हालांकि घोटाला सामने आने पर वेदपाल की सेवा समाप्त कर दी गई है। सूत्र बताते हैं कि वेदपाल की सेवा बढ़ाने के लिए भाजपा के एक दिग्गज नेता ने पूरी ताकत लगा दी थी। शायद उसी नेता के दबाव चलते वेदपाल को सेवा विस्तार दिलाया गया। आखिर वो नेता कौन है, कहीं उसकी भी तो इस घोटाले में संलिप्तता तो नहीं है? इसकी भी जांच होनी जरूरी है

कब होगी रिकवरी?

नगर निगम द्वारा जिन किसानों से जमीन खरीदी गई है उनके खातों को बेशाक फ्रीज करा दिया गया है लेकिन अभी तक उनसे रिकवरी न किया जाना सवालों और संदेहों के घेरे में है। अभी तक प्रशासन द्वारा यह भी तय नहीं किया गया है कि रिकवरी किसानों से कब होगी और कैसे होगी? इस मामले में अधिाकारियों के वेतन आदि से भी कटौती की जा सकती है या उनका वेतन, भत्ता रोका भी जा सकता है। लेकिन अभी तक कोई रणनीति नहीं बनाई जा सकी है।

वरुण चैधरी को बचाने में आईएएस ने लगाई पूरी ताकत

हरिद्वार नगर निगम जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आदेश पर जांच चल रही है। यह जांच कर रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रणवीर सिंह चैहान दावा कर रहे हैं कि जांच निष्पक्ष होगी। जल्दी ही वह जांच पूरी कर शासन को सौंपने की बात भी कह रहे हैं। लेकिन सचिवालय सूत्रों के अनुसार इस दौरान प्रदेश में तैनात एक अधिकारी जो पीसीएस से पदोन्नत होकर आईएएस बनें है ने वरुण चैधरी को बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। यह अधिकारी आजकल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के करीबी होने का ‘अनैतिक’ लाभ लेने के लिए चर्चित हैं। उत्तराखण्ड में पुरबिया आईएएस लाॅबी का संचालक बना यह आईएएस पहले इस घोटाले की जांच खुद ही लेना चाहते थे। जांच अपने हाथों में लेकर यह अधिकारी नगर निगम हरिद्वार के पूर्व नगर आयुक्त वरुण चैधरी की ढाल बनने की जुगत में लगे हुए थे। लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शायद इनकी मंशा को भांप लिया और जांच अधिकारी रणवीर सिंह चैहान को बना दिया। अपनी कारगुजारियों के कारण यह अधिकारी आजकल सूबे के अधिकतर आईएएस अधिकारियों की आंखों में खटक रहे हैं। पिछले दिनों एक आईएएस अधिकारी ने फेसबुक पर इन महाशय को ‘शकुनि पाण्डे’ तक लिख डाला था।

बात अपनी-अपनी

हम जांच कर रहे हैं तो निश्चित रूप से निष्पक्ष ही करेंगे। कई अधिकारी इस जांच के केंद्र में हैं। जल्दी ही जांच में सब सच सामने आ जाएगा।

रणवीर सिंह चैहान, वरिष्ठ आईएएस और जांच अधिकारी

इस पूरे प्रकरण की जांच गतिमान है। इसलिए फिलहाल कुछ भी कहना उचित नहीं होगा। जांच के बाद ही कुछ कहना उचित होगा।

नंदन कुमार, आयुक्त हरिद्वार नगर निगम

मेयर पद पर आसीन होने के बाद मैंने कुछ जमीनों की खरीद की बाबत जानकारी चाही थी तो मुझे पत्रावलियों में कुछ गड़बड़ी नजर आई। इसके बाद मैंने सराय जमीन मामले में जांच की मांग की। तब यह मामला सामने आया। अभी इसमें जांच चल रही है। जांच को निष्पक्ष किया जाना जरूरी है। इसके लिए मैं मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी से मिलूंगी।

किरण जैसल, मेयर, हरिद्वार नगर निगम

जिस दौरान सराय में यह जमीन खरीदी गई उस समय मेरा कार्यकाल पूरा हो चुका था। दिसम्बर 2023 में ही हमारी बोर्ड भंग हो चुकी थी। इसके बाद नगर निगम को प्रशासक चला रहे थे। ये घोटाला भी उनकी ही शह पर हुआ है। इस समय जो जांच चल रही है उससे मैं संतुष्ट नहीं हूं। कारण यह है कि सिर्फ जूनियर आॅफिसरों पर ही कार्यवाही की जा रही है जबकि असली गुनहगार बचाएं जा रहें हैं। वे अधिकारी जो उस समय महत्वपूर्ण पदों पर तैनात थे उनको बचाने के लिए पूरी कोशिश की जा रही है। मेरा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी से अनुरोध है कि जिस तरह उन्होंने बहुत जल्दी जांच कराने के आदेश देकर वाहवाही बटोरी है वह इस जांच को निष्पक्ष कराए।

अनीता शर्मा, पूर्व मेयर, हरिद्वार नगर निगम

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