खबर का असर
- सुनील भारद्वाज
सख्त भू-कानून की बात करने और मांग करने वाले प्रदेश में सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने का खेला बीते 24 बरसों से चल रहा है। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के संज्ञान में जब ऐसे कुछ मामले आए तो कार्रवाई होनी सुनिश्चित हुई। ऐसा ही एक मामला हल्द्वानी के गौलापार का है जहां की 50 बीघा सरकारी जमीन को शातिराना तरीके से खुर्द-बुर्द करा दिया गया। ‘दि संडे पोस्ट’ की खोजी रपट बाद सख्त कार्रवाई कर जमीन को जब्त किया गया। जब सरकार की कड़ी कार्यवाही के खिलाफ भू-माफिया हाईकोर्ट गए तो कोर्ट ने डीएम नैनीताल को दोबारा जांच के निर्देश दिए। नैनीताल की वर्तमान डीएम वंदना सिंह ने निष्पक्ष जांच कर खुर्द-बुर्द की गई जमीन को सरकार में निहित करने का निर्णय सुना नैनीताल जनपद में सक्रिय भू-माफियाओं को सकते में डाल दिया है
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल में कुछ ऐसे मामले उजागर हुए हैं जो पूर्व में दबा दिए गए थे। ऐसा ही एक मामला गौलापार के देवल तल्ला का है। जहां 50 बीघा सरकारी जमीन को बेहद ही शातिराना तरीके से खुर्द-बुर्द किया गया। लगभग 100 करोड़ के बाजारी मूल्य की इस जमीन पर विनियमितिकरण तक किया जा चुका था। ‘दि संडे पोस्ट’ ने इस पूरे प्रकरण को ‘सरकारी जमीन की अजब-गजब लूट’ शीर्षक से वर्ष 14 अंक 26 (17 दिसम्बर 2022) में प्रमुखता से उजागर किया। इसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वर्ष 2022 में ही इस पूरे मामले की जिलाधिकारी नैनीताल से जांच कराई। नैनीताल के तत्कालीन डीएम ट्टाीरज गर्ब्याल ने मामले की निष्पक्ष जांच कर उक्त जमीन को शासन में निहित कर दिया था। आरोपी पक्ष इसके खिलाफ हाईकोर्ट में गए। हाईकोर्ट ने आरोपी पक्ष को सुनते हुए निर्णय दिया कि जिलाधिकारी द्वारा इस प्रकरण को एकतरफा सुना गया है। जिसे न्यायालय द्वारा नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत बताते हुए इस प्रकरण में आरोपी पक्ष को शामिल कर पुनः निरीक्षण करने के आदेश दिए। नैनीताल की वर्तमान जिलाधिकारी वंदना सिंह ने आरोपी पक्ष को सुनने के साथ ही जमीन से सम्बंधित तथ्य भी देखे। जिलाधिकारी नैनीताल द्वारा निष्पक्ष जांच की गई जिसमें उन्होेंने 11 जुलाई 2024 को तत्कालीन जिलाधिकारी के आदेशों को बरकरार रखते हुए नए आदेशों में षड्यंत्र के आरोपी अरविंद मेहरा एवं रविकांत फुलारा के खिलाफ कार्रवाई करने और उक्त भूमि का शीघ्र कब्जा किया जाना सुनिश्चित किया।
इस घोटाले को सामने लाने का श्रेय हल्द्वानी निवासी एक आरटीआई एक्टिविस्ट रविशंकर जोशी को जाता है जिन्होंने सूचना के अधिकार को हथियार बना सारे प्रमाण जुटाने और उन्हें सार्वजनिक करने की सराहनीय और जोखिम भरी पहल की है। ‘दि संडे पोस्ट’ में इस बाबत समाचार प्रकाशित होने बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कड़े आदेश के चलते प्रशासन हरकत में आया और जांच शुरू की गई। इस घोटाले की जांच नैनीताल के मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय जांच कमेटी ने की थी। जांच कमेटी ने जो तथ्य उजागर किए हैं उसके अनुसार भू-स्वामी के पास पहले से ही 13.5 एकड़ से अधिक जमीन पक्की थी। विनियमितीकरण के बाद भूस्वामी की जमीन 20.92 एकड़ हो गई। इस मामले में नजराना जमा करने के पक्के सबूत जमा नहीं किए थे। तत्कालीन एसडीएम ने शपथ पत्र लेकर उसे सच मान लिया और इसकी जांच नहीं कराई। जमीन के नियमितीकरण होने से सरकार को करोड़ों रुपए की राजस्व की हानी हुई। जांच में खुलासा हुआ कि मामले में पटवारी खेड़ा ने भी गलत रिपोर्ट दी। तत्कालीन एसडीएम ने जांच नहीं की और शपथ पत्र को आधार मान लिया गया। जांच रिपोर्ट आने के बाद नैनीताल के जिलाधिकारी धीराज गर्ब्याल ने पिछले साल 13 दिसंबर को इस जमीन का विनियमितीकरण निरस्त कर दिया था। साथ ही जमीन को सरकार में निहित करने के आदेश भी जारी किए हैं। इस घोटाले में नैनीताल जनपद में तैनात रहे दो आईएएस अधिकारी, एक पीसीएस अधिकारी के साथ ही तत्कालीन उपजिलाधिकारी, कानूनगो और पटवारी की भूमिका सवालों के घेरे में है। जबकि जमीन खरीदने वालों में राजनीति में ऊंची पहुंच रखने वाले तथा शहर के नामचीन व्यापारी शामिल रहे हैं। जिन पर कार्यवाही की तलवार लटकी हुई है।
सरकारी जमीन की इस लूट में जिला प्रशासन की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध रही है। तमाम नियमों को दरकिनार कर उक्त भूमि के कब्जे की अवधि के भू-राजस्व का बीस गुना तथा सर्किल रेट के हिसाब से 40 प्रतिशत धनराशि का नजराना लिए बगैर और जिस जमीन पर अवैध कब्जे को खाली कराए जाने का मुकदमा चला हो, बगैर सारे तथ्य की पड़ताल कराए 2011 में तत्कालीन डीएम द्वारा जमीन को वर्ग-4 से वर्ग-1(ख) में बदलना और 2016 में तत्कालीन डीएम द्वारा उसे वर्ग-1(ख) से वर्ग-1(क) में तब्दील करना जिला प्रशासन की भूमिका पर बड़े सवाल खड़ा करता है। ठीक इसी प्रकार जिस जमीन का मालिकाना हक पाने के लिए बलवंत सिंह दशकों से जुटा रहा हो, उसको जमीन का मालिकाना अधिकार मिलते ही दान कर देना भी पूरी तरह संदिग्ध है। यह भी समझ से परे है कि क्योंकर अपने पिता द्वारा दान में दी गई जमीन के कुछ हिस्से को मात्र 40-50 दिनों के भीतर ही बेटा भारी मूल्य चुकाकर वापस खरीदता है।
रजिस्ट्री में भुगतान का पूरा विवरण न होने से भी संदेह पैदा होता है कि वाकई जमीन को खरीदा गया या फिर यह केवल कागजी कार्यवाही मात्र थी। तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के पुत्र का बतौर खरीददार नाम सामने आने से यह शंका उत्पन्न होती है कि सारा खेल हरेंद्र सिंह कुंजवाल और अन्य रसूखदार लोगों द्वारा खेला गया जिसमें जिला प्रशासन के अधिकारियों की मिलीभगत रही। यह शंका भी जन्म लेती है कि जिस रविकांत फुलारा के नाम बलवंत सिंह ने जमीन कथित रूप से दान की क्या उस रविकांत फुलारा के पास ही यह करोड़ों की रकम बनी रही या फिर ‘मनी लॉन्ड्रिग’ के जरिए यह रकम बलवंत सिंह के पास पहुंच गई। ऐसी शंका इसलिए क्योंकि ‘दान’ में मिली जमीन को करोड़ों में बेचने वाला रविकांत आज भी आर्थिक रूप से संपन्न नहीं है और वह करोड़ों का मालिक बन जाने बाद भी ऑटो चला अपना जीवन- यापन कर रहा है।
‘दि संडे पोस्ट’ को दिए अपने बयान में फुलारा ने दावा किया था कि उसके नाम से बैंक में एक खाता बलवंत सिंह द्वारा खुलवाया गया था। इसी खाते में जमीन की खरीद-फरोख्त की रकम का आदान- प्रदान हुआ। फुलारा की मानें तो उसके पास इस आदान-प्रदान का मात्र एक लाख रुपया आया। बाकी रकम कहां गई पूछे जाने पर रविकांत फुलारा ने तब चुप्पी साध ली थी। प्रदेश सरकार के मुखिया पुष्कर सिंह धामी भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो
टॉलरेंस’ की नीति का दावा करते हैं जिस पर वह जांच कराकर खरे भी उतरे हैं। लगभग 100 करोड़ मूल्य की इस जमीन को खुर्द-बुर्द किए जाने का सच प्रशासनिक जांच में सामने आने के बाद अब देखना यह होगा कि धामी सरकार इस घोटाले में संलिप्त लोगों पर कब तक शिकंजा कसेगी।
नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी (धीराज सिंह गर्ब्याल) ने भूमाफियाओं पर कठोर कार्यवाही करते हुए उक्त बेशकीमती जमीन को सरकारी घोषित कर दिया था, तब कुछ खरीदार जिलाधिकारी के आदेश के विरुद्ध हाइकोर्ट चले गए थे। हाइकोर्ट के आदेश पर प्रकरण की पुनः जांच करने के उपरांत जमीन को सरकारी घोषित करने के पूर्व के आदेश को यथावत रखने तथा जमीन पर तत्काल कब्जा लेने का आदेश जारी करने के लिए वर्तमान जिलाधिकारी, नैनीताल का हार्दिक धन्यवाद। यह प्रकरण बताता है कि किस तरह उत्तराखण्ड में सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने का खेल खेला जा रहा है। जमीनों के इस खेल में भूमाफिया, सत्ता में बैठे भ्रष्ट और धूर्त नेता और अधिकारी सभी शामिल हैं। एक आम उत्तराखण्डी, एक पहाड़ी अपने सामने उत्तराखण्ड की जमीनों को लूटते हुए देखने के लिए विवश है। जमीन के इस पूरे फर्जीवाड़े में तत्कालीन पटवारी और तत्कालीन एसडीएम हल्द्वानी (पंकज उपाध्याय) की मुख्य भूमिका रही है। इसके विरुद्ध कठोर दंडनात्मक कार्यवाही के लिए न्यायालय की शरण लूंगा।
रविशंकर जोशी, शिकायतकर्ता एवं आरटीआई कार्यकर्ता

