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हम होंगे कामयाब एक दिन

आधी आबादी की संघर्ष यात्रा

 

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने लिखा ‘अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध आंखों में पानी।’ भारतीय स्त्री के अबला से सबला बनने का संघर्ष दशकों से जारी है। संयुक्त राष्ट्र संघ का एक ताजा सर्वे इस बात की तस्दीक करता है कि भारतीय स्त्री अब शादी के बजाय अपने भविष्य को ज्यादा महत्व देने लगी है। अपने लिए पुरुष समान अधिकारों की मांग कर रही महिलाओं को देर से ही सही लेकिन न्याय के अवसर भी अब मिलने लगे हैं। गत् दिनों उच्चतम न्यायालय ने 36 साल पूर्व सेना द्वारा एक महिला अधिकारी को लिंग भेद के आधार पर सेवा से बाहर किए जाने को असंवैधानिक करार दे आधी आबादी के संघर्ष को हौसला देने का काम किया है

 

‘पराधीन सपनेहु सुख नाही’, तुलसी दास द्वारा कही गई इस पंक्ति का अर्थ है कि पराधीन रहने वाला व्यक्ति कभी भी सुख की अनुभूति नहीं कर सकता है। दशकों से महिलाएं अपने जीवन-यापन के लिए पति, परिवार पर निर्भर रही हैं। इस निर्भरता ने स्त्री के अस्तित्व को कहीं न कहीं ढक दिया। यही वजह रही कि प्रत्येक महिला के लिए शिक्षा और रोजगार उसकी प्राथमिकता बन गए। जहां शिक्षा महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाने और उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए जरूरी है। वहीं कार्यबल आत्मनिर्भर और उन्हें सक्षम बनाने के लिए महत्वपूर्ण है। भारतीय महिलाओं की बाबत संयुक्त राष्ट्र संघ की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय महिलाएं शिक्षा के तुरंत बाद नौकरी पाना चाहती हैं और यह उनके लिए जरूरी भी है। यूनिसेफ द्वारा किए गए इस सर्वे में सामने आया है कि महिलाएं अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने के तुरंत बाद शादी न करने की बजाय नौकरी के अवसरों को प्राथमिकता देना चाहती हैं। कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी के प्रति युवा पुरुष और महिलाओं की राय जानने के लिए यूनिसेफ के युवा मंच युवाह और यू-रिपोर्ट द्वारा सर्वे आयोजित किया गया था। इस सर्वे के दौरान पूरे भारत में 18-29 आयु वर्ग के 24 हजार से अधिक युवाओं की राय जानी गई जिसके परिणाम स्वरूप ज्ञात हुआ कि करीब 75 फीसदी युवा महिलाओं और पुरुषों का मानना है कि पढ़ाई के बाद रोजगार हासिल करना महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है। इसके विपरीत पांच फीसदी से भी कम उत्तरदाताओं ने पढ़ाई के फौरन बाद शादी की वकालत की।

महिलाओं के काम करने के निर्णय को प्रभावित करने वाले कारक

सेना में कार्य के दौरान नर्सिंग अफसर

संयुक्त राष्ट्र ने अपने सर्वे के दौरान यह भी पता लगाया कि महिलाएं काम करने या न करने के लिए जो भी निर्णय लेती हैं ,उनके निर्णय को कौन से कारक प्रभावित करते हैं। जिसमें 52 प्रतिशत लोगों ने माना कि सूचना, अवसर और परिवार का समर्थन उनके काम करने के निर्णय को प्रभावित करता है। शादी, परिवार को आगे बढ़ाने के फैसले, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक नौकरी भूमिकाओं के लिए प्राथमिकताएं और रिमोट कार्य जैसी लचीली कार्य व्यवस्था पर विचार वाले कारक भी उनके निर्णय को प्रभावित करते हैं। ऐसे में यूनिसेफ इंडिया में युवाह की प्रमुख धुवाराखा श्रीराम ने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और युवा महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में सामूहिक कार्रवाई के महत्व पर जोर दिया है।

 

उच्चतम न्यायालय की केंद्र सरकार को फटकार
हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा भी महिलाओं के कार्यबल में महिलाओं के भागीदारी को लेकर बल दिया गया है। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने शादी के आधार पर महिलाओं को नौकरी से निकाले जाने पर केंद्र को फटकार लगाई है। उच्चतम न्यायालय द्वारा 14 फरवरी को महिला अधिकारों को लेकर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि शादी के आधार पर महिलाओं को काम करने से नहीं रोका जा सकता, न ही उन्हें नौकरी से निकाला जा सकता है। महिला कर्मियों को शादी के अधिकार से वंचित करने का आधार बनाने वाले नियम असंवैधानिक हैं और पितृसत्तात्मक नियम हैं, जो कि मानवीय गरिमा को कमजोर करते हैं। इसके अलावा ये नियम निष्पक्ष व्यवहार के अधिकार को भी कमजोर करते हैं।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना एवं न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को शादी के आधार पर सेवा से बर्खास्त की गईं सैन्य नर्सिंग अधिकारी को 60 लाख रुपए मुआवजा देने

परिजनों संग सेलिना

का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता सेलिना जॉन को साल 1982 में सैन्य नर्सिंग सेवाओं के लिए चुना गया था। वह सेना के नर्सिंग सेवा में प्रशिक्षु के रूप में शामिल हुई थीं, इसके बाद सेलिना ने एक सेना अधिकारी मेजर विनोद राघवन के साथ विवाह कर लिया। हालांकि लेफ्टिनेंट के पद पर सेवा करते समय उन्हें वर्ष 1988 में सेना से मुक्त कर दिया गया। एक आदेश में उन्हें बिना किसी कारण बताओ नोटिस या सुनवाई या बचाव करने का अवसर दिए बिना उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं गईं। शादी हो जाने के आधार पर महिला को नर्सिंग सेवा से हटाया गया। इसके अलावा अन्य कारण भी दिए गए जैसे महिला मेडिकल बोर्ड ने उन्हें सशस्त्र बलों में आगे की सेवा के लिए अयोग्य करार दे डाला था। कदाचार, अनुबंध का उल्लंघन या असंतोष प्रद सेवा पाए जाने का आधार भी शामिल किया गया था। 36 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद सेलिना जॉन को उच्चतम न्यायालय से न्याय मिला।

घर परिवार -काम के बीच संतुलन
घर-परिवार और काम के बीच संतुलन महिलाओं के कार्यबल को प्रभावित कर रहा है। द उदैती फाउंडेशन द्वारा कराई गई ‘वीमेन इन इंडिया इंक ‘एचआर’ मैनेजर्स सर्वे रिपोर्ट’ के अनुसार महिलाओं के नौकरी छोड़ने के पीछे तीन मुख्य कारण वेतन, करियर अपॉर्चुनिटी, काम और फैमिली के बीच तालमेल रखना है। पुरुषों के लिए, यह मुख्य रूप से वेतन और करियर अवसर है। 34 प्रतिशत महिलाएं काम और फैमिली के बीच तालमेल रखने के मुद्दों की वजह से अपनी नौकरी छोड़ देती हैं, जबकि पुरुषों के मामले में यह केवल 4 प्रतिशत है।

इसके अलावा यह भी पाया गया कि ज्यादातर कंपनियां महिलाओं को नौकरी पर रखने के दौरान उनकी उम्र और मैरेटियल स्टेटस को देखते हैं। वहीं पुरुषों में इन चीजों को कम देखा जाता है। 38 प्रतिशत मानव संसाधन मैनेजर महिलाओं के वैवाहिक स्टेटस को ध्यान में रखते हैं, जबकि केवल 22 प्रतिशत पुरुष उम्मीदवारों के लिए ऐसा करते हैं। इसी तरह, जब उम्र और लोकेशन की बात आती है, तो 43 प्रतिशत और 26 प्रतिशत प्रबंधक महिलाओं के लिए इन फैक्टर्स पर विचार करते हैं। महिलाओं के लिए इन स्थितियों की बाबत अशोका विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अश्विनी देश पांडे का कहना है कि महिलाओं को नौकरी ढूंढने और आगे बढ़ने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। वह कहती हैं कि ‘नियोक्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका है कि वे महिलाओं को रोजगार, रिटेंशन और वर्कफोर्स में री-एंट्री का समर्थन करने के उपायों को लागू करें।’
महिलाओं के कार्यबल भागीदारी और संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट को लेकर श्रम और रोजगार मंत्रालय की सचिव आरती आहूजा ने भी कहा है कि महिलाएं कार्यबल में अपनी भागीदारी दे सकें इसके लिए उन्हें समर्थन और सहयोगात्मक प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ‘अब मेहनती, प्रेरित, प्रतिभाशाली और ईमानदार महिला कार्यबल का समर्थन करने का समय आ गया है, जो हमारी आबादी का 50 प्रतिशत है। सभी स्तरों पर महिला कार्यबल की भागीदारी बढ़ानी चाहिए क्योंकि हम 2047 तक दुनिया की शीर्ष तीसरी अर्थव्यवस्थाएं बनने की ओर बढ़ रहे हैं।’ भारत सरकार के 2020 के आंकड़ों के अनुसार देश में महिलाएं औसतन 22.5 साल की उम्र में शादी कर रही हैं। ग्रामीण इलाकों में यह औसत 22.2 साल है जबकि शहरों में 23.9 साल है। गौरतलब है कि पिछले साल एक निजी कंपनी ‘जॉब्स फॉर हर’ की रिपोर्ट बताती है कि कॉरपोरेट भारत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। कंपनियां महिलाओं को अधिक रोजगार देने के लिए तरह-तरह के कदम उठा रही हैं। ‘जॉब्स फॉर हर’ ने 300 कंपनियों का सर्वे किया था और पाया कि सर्वे में शामिल कंपनियों में महिलाएं लगभग 50 फीसदी हैं। 2021 की तुलना में यह 17 फीसदी की वृद्धि है।

क्या है पूरा मामला
36 साल पहले यानी 1988 में महिला नर्सिंग ऑफिसर को शादी करने की वजह से आर्मी नर्सिंग सर्विस से निकाल दिया गया था।
1977 : सेना में शामिल नियम के आधार पर महिला को नौकरी से निकाला गया। इस नियम के मुताबिक मेडिकल बोर्ड की राय में सेवा के लिए अयोग्य होने, शादी करने पर और गलत व्यवहार पर नौकरी से निकाला जा सकता है।
1995 : ‘मिलिट्री नर्सिंग सर्विस में नियुक्ति की समाप्ति’ नियम के विवादित होने की वजह से इसे वापस ले लिया गया।

2016 : मार्च में यह मामला आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल, लखनऊ में गया जिसने आर्मी नर्सिंग सर्विस के आदेश को रद्द कर सेलिना को बकाया वेतन और अन्य लाभ भी दिए जाने और उन्हें सेवा बहाली का आदेश दिया। हालांकि केंद्र ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की।

2024 : अब 14 फरवरी को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हुई। कोर्ट ने कहा कि यह नियम सिर्फ महिलाओं पर लागू होते हैं और इन्हें ‘साफ तौर पर मनमाना’ कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल के फैसले को बरकरार रख केंद्र सरकार को पूर्व महिला नर्सिंग ऑफिसर को 60 लाख रुपया मुआवजा देने का आदेश दिया है।

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