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कब मिलेगी लैंगिक असमानता से निजात

बीसीसीआई के सचिव जय शाह दावा करते हैं कि ‘हमने अपना 51 प्रतिशत फोकस महिला क्रिकेट पर और 49’ प्रतिशत पुरुषों पर रखा है क्योंकि हम पुरुष क्रिकेट में बेहतर हैं। इसलिए हम महिला क्रिकेट को प्राथमिकता दे रहे हैं।’ लेकिन उनके इस दावे के उलट एक ओर जहां पुरुष क्रिकेट में इन दिनों आईपीएल की चौतरफा ट्टाूम मची है और कई टीवी चैनलों में इसका प्रसारण किया जा रहा है, वहीं हाल ही में संपन्न हुई भारत बनाम बांग्लादेश महिला क्रिकेट टीम के पांचों मुकाबलों का प्रचार-प्रसार किसी टीवी चैनल पर नहीं किया गया। यह तब है जब साल 2022 में बीसीसीआई ने महिलाओं के लिए समान वेतन सहित कई सुविट्टााओं की घोषणा की और इसे देश में लैंगिक भेदभाव से निपटने की दिशा में एक कदम बताया। बावजूद इसके खेलों में अभी भी लैंगिक असमानता हावी नजर आती है। सवाल है कि आखिर लैंगिक असामानता से छुटकारा कब मिलेगा?

खेलों में महिला खिलाड़ियों के साथ भेदभाव वर्षों से चला आ रहा है। खासकर भारत में महिला खिलाड़ियों को मैच फीस से लेकर खेल सुविट्टााएं नहीं दी जाती हैं जो उसी खेल के पुरुष खिलाड़ियों को मिलती हैं। स्वाभाविक सी बात है कि खेल सिर्फ खेल होता है, इसमें महिला-पुरुष होना मायने नहीं रखता। सवाल है कि फिर महिलाओं को उसी खेल के लिए पुरुषों के समान तवज्जो क्यों नहीं मिलती। यह तब है जब साल 2022 में बीसीसीआई सचिव जय शाह ने महिलाओं के लिए समान वेतन सहित कई सुविट्टााओं की घोषणा की। शाह ने इसे देश में लैंगिक भेदभाव से निपटने की दिशा में एक कदम बताया। बावजूद इसके खेलों में अभी भी लैंगिक असमानता हावी है।

Radha Yadav

ताजा मामला भारतीय महिला क्रिकेट टीम के साथ हुए असमानता का है। असल पिछले दिनों बांग्लादेश के खिलाफ पांचवें और अंतिम टी-20 क्रिकेट मैच में भारत की बेटियों ने 21 रन से जीत हासिल कर सीरीज में 5.0 से क्लीन स्वीप किया। पांचवे मुकाबले में जहां आशा शोभना अंतरराष्ट्रीय महिला टी-20 में भारत के लिए डेब्यू करने वालीं सबसे उम्रदराज क्रिकेटर बनीं तो उनकी खुशी का ठिकाना न था। उन्होंने 33 साल 51 दिन की उम्र में यह उपलब्ट्टिा हासिल की।

बांग्लादेश के साथ संपन्न हुई सीरीज का प्रसारण कर रहा चैनल जब शोभना का इंटरव्यू ले रहा था, तब पास खड़ी टीम उनकी बातें सुनकर खुश हो रही थी। लेकिन जब शोभना मीडिया से बात करने प्रेस कॉन्फ्रेंस रूम में पहुंचीं तो वहां सिर्फ एक ही पत्रकार उनका इंतजार कर रही थीं। वहीं बाएं हाथ की स्पिनर राट्टाा यादव सीरीज के आखिरी मैच में प्लेयर ऑफ द मैच और पूरी सीरीज में 10 विकेट हासिल करने पर उन्हें प्लेयर ऑफ द सीरीज भी घोषित किया गया। लेकिन एक ओर जहां पुरुष क्रिकेट में इन दिनों आईपीएल की चौतरफा ट्टाूम मची है और कई टीवी चैनलों में इसका प्रसारण किया जा रहा है वहीं महिला क्रिकेट टीम के पांचों मुकाबलों का प्रचार-प्रसार किसी टीवी चैनल पर नहीं किया गया। अगर फैनकोड स्ट्रीमिंग सर्विस न होती तो ऐसा लगा होता कि शायद यह सीरीज हुई ही नहीं।

मीडिया संस्थानों से उम्मीद
यह सीरीज आईपीएल के साथ-साथ खेली गई। ऐसे में देश के मीडिया संस्थानों से यह उम्मीद लगानी बेईमानी है कि वे इस सीरीज को कवर करने के लिए भी पत्रकार भेजते। पूरे मीडिया जगत के स्पोर्ट्स डेस्क इस समय बहुत कम लोगों के साथ काम कर रहे हैं लेकिन इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा बीसीसीआई का रुख हैरान करने वाला है। बीसीसीआई ने ऑनलाइन लाइव कॉमेंट्री के अलावा और कुछ नहीं किया।

आईपीएल की आट्टिाकारिक वेबसाइट पर बेशुमार कॉन्टेंट होने से इतर हर रोज मीडिया को आईपीएल पर बीसीसीआई की ओर से भेजे जाने वाले कॉन्टेंट की बाढ़-सी आ जाती है। इसमें प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिंक, रेफरी के फैसले और सोशल मीडिया की हलचल शामिल होती है। लेकिन महिलाओं के टी-20 सीरीज को लेकर एकदम सन्नाटा पसरा था। कहा जाए तो एक तरह से बीसीसीआई के मीडिया ग्रुप इस सीरीज की खबरों से वीरान थे। न तो ईमेल्स थीं, न ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिंक, न वीडियो न सोशल मीडिया पोस्ट। ये उस सीरीज के साथ हुआ जो भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए उपलब्ट्टिायों से भरी रही। इसमें आशा शोभना का ऐतिहासिक डेब्यू हुआ, हरमनप्रीत कौर ने अपना 300वां तो शेफाली वर्मा ने 100वां अंतरराष्ट्रीय मैच खेला। इसके साथ ही शेफाली और स्मृति मंट्टााना की जोड़ी महिला टी-20 में भारत के लिए 2000 रन की साझेदारी करने वाली पहली जोड़ी बनी।

मीडिया मैनेजर भी रहे नदारद

बीसीसीआई की आट्टिाकारिक वेबसाइट पर अंतरराष्ट्रीय महिला पेज पर 15 अप्रैल की खबरों के अलावा अभी तक कुछ नहीं है। 15 अप्रैल की ये खबर भी बांग्लादेश के साथ हुई टी-20 सीरीज के लिए भारतीय महिला टीम के ऐलान की थी। ऐसे में सवाल है कि क्या भारत की महिला टीम बिना मीडिया मैनेजर के बांग्लादेश गई थी। अगर कोई मीडिया मैनेजर था भी तो वो नदारद रहा। अगर किसी खेल को कवर करने के लिए रिपोर्टर न हों तो मीडिया मैनेजर की भूमिका अहम हो जाती है। टूर के दौरान की सूचनाएं, फीचर और इंटरव्यू वगैरह वही मीडिया संस्थानों को देता है।

कथनी और करनी में फर्क

बीते नौ मई को बीसीसीआई के सचिव जय शाह ने मुंबई में कुछ पत्रकारों के साथ एक प्रेस कांफ्रेंस की। इस दौरान पत्रकारों को कोई वीडियो या ऑडियो रिकॉर्ड करने की इजाजत नहीं थी। वे सिर्फ लिखकर जानकारियां नोट कर सकते थे। वहां मौजूद पत्रकारों ने शाह से भारतीय महिला टीम को लेकर भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछा। जवाब में उन्होंने कहा कि हाल ही में बांग्लादेश में संपन्न पांच मैचों की टी-20 सीरीज करवाने का मकसद ये था कि ढाका और सिलहट में 3 से 20 अक्टूबर तक होने जा रहे आईसीसी महिला टी-20 वर्ल्ड कप से पहले भारतीय टीम को वहां के हालात से वाकिफ करवाया जा सके। जबकि ये टूर्नामेंट पांच महीने बाद होना है। शाह ने यह भी कहा कि महिला प्रीमियर लीग को अच्छी लोकप्रियता मिली है और टिकटों की बिक्री से ही पांच करोड़ रुपए मिले थे। मैं महिला क्रिकेट के लिए प्रतिबद्धता होने पर गर्व करता हूं।

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, शाह ने कहा कि महिला क्रिकेट जोर-शोर से चल रहा है और ऐसा नहीं है कि इसे पुरुषों से कम तवज्जो दी जा रही है। ‘हमने अपना 51 प्रतिशत फोकस महिला क्रिकेट पर और 49 प्रतिशत पुरुषों के क्रिकेट पर रखा है क्योंकि हम पुरुष क्रिकेट में बेहतर हैं। इसलिए हम महिला क्रिकेट को प्राथमिकता दे रहे हैं। हमने उनकी मैच फीस भी बढ़ा दी है।
उनके इस बयान पर खेल प्रेमियों का कहना है कि महिला क्रिकेट पर 51 फीसदी फोकस होना अच्छा है लेकिन बांग्लादेश के साथ हुई पांच मैचों की टी-20 सीरीज के मामले में ये बात सही साबित नहीं होती है। इसका फायदा तभी होगा जब महिला क्रिकेट का भी एक कैलेंडर बने और उन्हें हर सीजन में पर्याप्त मैच खेलने और उनका प्रचार-प्रसार भी पुरुष टीम की तरह किया जाए।
खेल विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं के खेल की स्थिति स्कूल और जिला जैसे जमीनी स्तर पर भी यही हाल है। स्थिति तब और ज्यादा खराब हो जाती है जब महिलाओं को न तो खेल में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और न ही उनके लिए खेल आयोजित होते हैं। खेलों में जाने से पहले समाज को सबसे पहले उनके रूप-रंग और चेहरा काला हो गया तो शादी कैसे होगी, की ही चिंता सताती है। इन सबके बावजूद भारत में महिलाएं बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं। ऐसे में उन सभी महिला खिलाड़ियों का समाज की रूढ़िवादी सोच से आगे जाकर खेल को अपना करियर बनाना मात्र ही उन्हें तारीफ का हकदार बना देता है। क्योंकि समाज में ऐसा करने के लिए नाते-रिश्तेदार, पड़ोसियों तक से तो क्या परिवार से भी लड़ना पड़ता है।

इनमें मिताली राज, रानी रामपाल, पीवी सिन्ट्टाु, दीपा कर्माकर, मैरी कॉम, सान्या मिर्जा, हरमनप्रीत कौर, गीता फोगाट, साईना नेहवाल, शिरीन लिमाय, हिमा दास, दुती चंद, झूलन गोस्वामी जैसे अनेक नाम अलग -अलग खेल में भारत का सिर ऊंचा किए हुए हैं। मिताली जहां विश्व की सबसे सफल महिला खिलाड़ियों में से एक है, वहीं सिन्ट्टाु ने 2016 के रियो ओलंपिक्स में सिल्वर मेडल जीत इतिहास रचा था। मगर आज भी स्थिति ये है कि अखबारों के स्पोर्ट्स के पन्ने का ज्यादातर हिस्सा या तो पुरुष क्रिकेट की खबरों से पटा पड़ा रहता है और या फिर अन्य पुरुष खिलाड़ियों को मिलता है। महिला खिलाड़ियों या उनके खेल को ‘अन्य’ में ही जगह मिलती है।

ये सभी खिलाड़ी जहां वैश्विक स्तर पर भारत का सिर ऊंचा किए हुए हैं, वहीं देश के भीतर इनका बुरा हाल है। इस बात को नजर-अंदाज नहीं किया जा सकता कि खेल में अपना भविष्य बनाने को उत्सुक लड़कियों और उनके परिवार को वित्तीय नजरिए से खेल में अस्थिर और अप्रत्याशित लगता भविष्य उनके कदम पीछे खींचता है। जहां पुरुष क्रिकेट में अथाह ट्टान से लेकर तमाम सुविट्टााएं दी जाती हैं तो वहीं महिला खिलाड़ियों को उसके आट्टो भी नसीब नहीं होते। जिसका ताजा उदाहरण भारत और बांग्लादेश की महिला क्रिकेट टीमों के बीच खेली गई पांच मैचों की टी20 सीरीज है।

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