देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न वैसे तो हमेशा से राजनीतिक विचारों से प्रभावित रहा है, लेकिन इस बार केंद्र की मोदी सरकार द्वारा भारत रत्न पुरस्कारों की जिस प्रकार महज 15 दिनों के भीतर कर्पूरी ठाकुर, लालकृष्ण आडवाणी, पीवी नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन यानी पांच नामों की घोषणाओं की झड़ी लगाई गई है, उनका महत्व और भी ज्यादा राजनीतिक प्रतीत हो रहा है। इनमें से प्रत्येक शख्सियत का राजनीतिक महत्व बहुत अधिक है और उनके चयन से एक स्पष्ट संदेश जाता है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह के नाम को लेकर हो रही है। कहा जा रहा है कि क्या देश के सर्वोच्च सम्मान की बौछार से बीजेपी में बहार आ जाएगी? क्या एनडीए का कुनबा बढ़ने वाला है? क्या किसान आंदोलन के बाद नाराज जाट समाज फिर भाजपा की ओर झुक जाएगा? भाजपा की सम्मान की नीति कितनी काम आएगी? क्या ये सम्मान आम चुनाव में भाजपा के मिशन 400 पार में कारगर साबित होंगे?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि देश का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वालों की बढ़ती संख्या से चिंताएं उत्पन्न होती हैं कि क्या पुरस्कारों की बढ़ती संख्या उनके महत्व को कम करती है। फिर भी जब प्राथमिक उद्देश्य सत्ता बनाए रखना होता है, तो ये पुरस्कार न केवल असाधारण योगदान को व्यापक स्वीकृति देते हैं, बल्कि नए सहयोगियों को आकर्षित करने और वोट बैंक को सुरक्षित करने के काम भी आते हैं। कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह यानी ओबीसी और किसान नेताओं के चयन से पता चलता है कि भाजपा हिंदी पट्टी में अपने मुख्य ओबीसी वोट को मजबूत करने के साथ-साथ हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के जाट-बहुल क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाने पर कितना फोकस कर रही है।
इस दृष्टिकोण को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए नए भाजपा मुख्यमंत्रियों की घोषणा के समय नियोजित रणनीति के विस्तार के रूप में देखा जा सकता है। इन नियुक्तियों में विभिन्न जातियों और आदिवासी पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को शामिल किया गया था, जिसका उद्देश्य विभिन्न प्रकार की पहचानों को आकर्षित करना था। सवाल उठता है कि क्या भाजपा लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर चिंतित है, इसलिए उसने भारत रत्न देकर उत्तर से दक्षिण भारत तक चुनावी विसात बिछाने की कोशिश की है? सतह पर ऐसा लग सकता है, लेकिन पूरी संभावना है कि मोदी 2024 के चुनावों को अपनी अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज करें। उनका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर वही रिकॉर्ड बनाना है जो उन्होंने 2022 में गुजरात में बनाया था। मोदी पहले ही भाजपा के लिए 370 सीटें जीतने की अपनी महत्वाकांक्षा व्यक्त कर चुके हैं, जिसमें एनडीए 400 सीटों को पार कर रहा है। लोकसभा में सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड वर्तमान में 414 सीटों का है, जो इंदिरा गांधी की हत्या से सहानुभूति की लहर के दम पर 1984 के चुनाव में राजीव गांधी ने हासिल किया था।
मोदी यदि भाजपा को 370 सीटों पर चुनाव जीता पाते हैं तो यह शानदार जीत उनके अगले कार्यकाल में राजनीतिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए भी महत्वपूर्ण है, जब परिसीमन और विधानसभाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण लागू करने जैसे बड़े विषय सामने होंगे। मोदी का उद्देश्य इतिहास रचना है और वे इस लक्ष्य को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने सभी भारत रत्नों की एक साथ घोषणा करने के बजाय मीडिया कवरेज और राजनीतिक प्रभाव को ज्यादा से ज्यादा विस्तार देने की रणनीति अपनाई। यह रणनीति और तरकीब, दोनों में उनकी महारत का उदाहरण है। जानकार मानते हैं कि किसानों और जाटों के बीच खास स्थान रखने वाले चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा का केंद्र सरकार को चुनाव में लाभ मिल सकता है। चुनावी साल में चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने के गहरे राजनीति मायने हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ से आने वाले चौधरी चरण सिंह को जाट समाज के सर्वमान्य नेता के रूप में मान्यता मिली है। पश्चिमी यूपी के साथ-साथ हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और राजस्थान के जाट समाज के लोग उनसे भावनात्मक रूप से जुड़े हैं।
गौरतलब है कि 2014 के चुनाव में भाजपा को जाट मतदाताओं का खासा वोट मिला था लेकिन मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में तीन कृषि कानूनों को लाने के बाद से केंद्र और राज्य सरकार जाट समाज व किसानों की नाराजगी झेल रही है। वर्तमान में भी हरियाणा और पंजाब के किसान एमएसपी को लेकर कानून बनाने समेत 12 मांगों को लेकर आंदोलित हैं। हिंदू जाट की आबादी वाला सबसे बड़ा प्रदेश हरियाणा है। यहां 31 प्रतिशत हिंदू जाट हैं। पंजाब में सबसे अधिक 38 फीसदी जाट आबादी है। हालांकि, इसमें से 35 फीसदी जाट सिख धर्म से हैं और तीन प्रतिशत हिंदू धर्म को मानने वाले जाट हैं। पश्चिमी यूपी में 17 फीसदी हिंदू जाट और 2 फीसदी सिख जाट बसते हैं। राजस्थान में 20 फीसदी हिंदू, 2 फीसदी विश्नोई, 2 फीसदी सिख और एक फीसदी अंजना जाट हैं। वहीं, दिल्ली में 10 से 12 फीसदी, मध्य प्रदेश में चार से पांच फीसदी, गुजरात में करीब 8 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में सात से आठ फीसदी और उत्तराखण्ड में 4 से 5 फीसदी आबादी जाटों की है। ऐसे में भाजपा को इसका लाभ मिलना स्वाभाविक है।

