फिल्में हम में भावनाएं जगाती हैं, सोचने पर मजबूर करती हैं और कई बार हमारे नजरिए को भी बदल देती हैं। इस बदलाव के पीछे सबसे बड़ा हाथ होता है फिल्मकारों और कलाकारों का। ऐसे में जब वही कलाकार किसी जाति, धर्म या वर्ग के खिलाफ बोलते हैं तो उनके शब्द सिर्फ हवा में नहीं उड़ते- वे राय बनाते हैं, असर छोड़ते हैं और अक्सर जख्म भी। पिछले कुछ दिनों से बॉलीवुड में अभद्र भाषा को लेकर बहस छिड़ी है। अभद्र भाषा की वजह से बॉलीवुड निर्देशक अनुराग कश्यप विवादों के केंद्र में हैं। विवाद फिल्म फुले’ की रिलीज को लेकर उत्पन्न हुआ जब उन्होंने सोशल मीडिया पर एक जाति विशेष को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की। कश्यप के इस टिप्पणी के बाद विभिन्न सामाजिक संगठनों और राजनीतिक संगठनों ने उनके खिलाफ तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं और देश के कई हिस्सों में उनके विरुद्ध कानूनी शिकायतें भी दर्ज की गई हैं
अनुराग कश्यप की फिल्म ‘फुले’ समाज सुधारकों ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन और संघर्ष पर आधारित है। यह फिल्म जातिवाद, पितृसत्ता और सामाजिक असमानता के खिलाफ फुले दम्पत्ति के आंदोलन को उजागर करती है। फिल्म की कहानी एक ऐसे युग की है जब शिक्षा और समानता सिर्फ कुछ वर्गों तक सीमित थी और निम्न जातियों को बुनियादी अधिकारों से भी वंचित रखा गया था। ऐसी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म को लेकर कुछ संगठनों ने आपत्ति जताई है, खासकर ब्राह्माण समुदाय से सम्बंधित संगठन फिल्म के कुछ संवादों और दृश्यों को आपत्तिजनक बता रहे हैं। ब्राह्माण महासंघ के अध्यक्ष आनंद दवे का आरोप है कि फिल्म जातिवाद को बढ़ावा देती है और ब्राह्माण समुदाय को नकारात्मक रूप से चित्रित करती है। उन्होंने मांग की कि फिल्म में ब्राह्माण समुदाय के योगदान, विशेष रूप से ‘अश्वेत ब्राह्माण’ समुदाय की मदद, को शामिल किया जाए और कहानी को अधिक समावेशी बनाया जाए। इसके अलावा कुछ संगठनों का दावा है कि फिल्म एकतरफा दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है जो ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करती है। ब्राह्माण समुदाय की इस आपत्ति पर अनुराग कश्यप ने अपने इंस्टाग्राम से एक पोस्ट कर रिएक्शन दिया है, उनकी इस पोस्ट से विवाद बढ़ गया है।
अनुराग कश्यप के खिलाफ प्रदर्शन करते ब्राह्मïण समाज के लोग
अनुराग कश्यप का विवादित बयान
अनुराग कश्यप ने अपने आधिकारिक इंस्टाग्राम और ट्विटर हैंडल से पोस्ट करते हुए लिखा: ‘अब ये ब्राह्माण लोग को शर्म आ रही है या वो शर्म में मरे जा रहे हैं या फिर एक अलग ब्राह्माण भारत में जी रहे हैं जो हम देख नहीं पा रहे हैं, चखखखा कौन है कोई तो समझावे।’
फिर एक यूजर के जवाब में आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने कहा, ‘ब्राह्माण पे मैं मूतूंगा… कोई प्रॉब्लम’ उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया और आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया। कई संगठनों ने इस बयान को समाज को बांटने वाला, अपमानजनक और घृणा फैलाने वाला बताया। उनके इस बयान से पूरा ब्राह्माण समुदाय में रोष व्याप्त है कई जगह प्रदर्शनकारियों ने अनुराग कश्यप का पुतला दहन भी किया है।
कानूनी करवाई और शिकायतें
इस बयान के तुरंत बाद देश के कई हिस्सों में अनुराग कश्यप के खिलाफ शिकायतें दर्ज की गईं। जयपुर के बजाज नगर पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए (समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने) और 295ए (धार्मिक भावनाएं आहत करने) के तहत शिकायत दर्ज की गई है। इसी तरह इंदौर, पटना और लखनऊ में भी पुलिस को ज्ञापन सौंपे गए हैं और एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई है।
फिल्म उद्योग की प्रतिक्रिया
फिल्म जगत में भी इस बयान को लेकर दो तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं। कुछ कलाकारों और निदेज़्शकों ने कश्यप के गुस्से को जायज ठहराते हुए कहा कि उनकी फिल्म को सेंसरशिप के नाम पर रोकना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है। अभिनेत्री रिद्धि डोगरा ने सवाल उठाया कि सिनेमा को बार-बार क्यों निशाना बनाया जाता है, जबकि वास्तविक अन्याय पर ध्यान नहीं दिया जाता। वही इस फिल्म में ज्योतिराव फुले की भूमिका निभा रहे प्रतीक गांधी ने निराशा जताई कि फिल्म 11 अप्रैल (फुले की जयंती) को रिलीज नहीं हो सकी, लेकिन कहा कि इसका मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।
वहीं दूसरी और कई कलाकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि जातिगत भाषा का प्रयोग किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि एक सामाजिक विषय पर बनी फिल्म के निर्देशक को समाज के प्रति अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार होना चाहिए। अनुराग कश्यप के बयान से नाराज अभिनेत्री पायल घोष ने पोस्ट शेयर कर कहा कि वह बॉलीवुड से दूर रहें, इंडस्ट्री उनके बिना खुश है। गीतकार-लेखक मनोज मुंतशिर ने तो अनुराग कश्यप को औकात में रहने तक की सलाह दे दी। वहीं, अभिनेत्री गहना वशिष्ठ ने मुम्बई के ओशिवारा थाने में अनुराग के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
राहुल गांधी ने बीजेपी-आरएसएस पर फिल्म को सेंसर करने और दलित-बहुजन इतिहास को मिटाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह फिल्म जातिवाद के खिलाफ फुले दम्पत्ति के संघर्ष को दर्शाती है, जिसे सरकार दबाना चाहती है।
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने फिल्म पर रोक को दलित समाज का अपमान बताया और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया।
प्रकाश अम्बेडकर ने पुणे में फुले वाड़ा पर प्रदर्शन किया, जबकि बीजेपी सांसद उदयनराजे भोसले ने दावा किया कि ज्योतिबा फुले ने छत्रपति प्रतापराव भोसले से प्रेरणा ली थी।
अनुराग कश्यप ने मांगी माफी
सोशल मीडिया पर विवाद गहराने के बाद अनुराग कश्यप पहले एक बार माफी मांग चुके हैं लेकिन जब उनकी माफी से विवाद थमता नहीं दिखा इसके बाद उन्होंने फिर से सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से माफी मांगी है। उन्होंने कहा कि उनके बयानों के बाद उनकी बेटी और परिवार को रेप और हत्या की धमकियां मिल रही है। कोई भी बयान उनके परिवार की सुरक्षा से बड़ा नहीं है, इसलिए वे माफी मांग रहे हैं। उन्होंने आगे लिखा ‘गुस्से में किसी को एक जवाब देने में अपनी मर्यादा भूल गया और पूरे ब्राह्माण समाज को बुरा बोल डाला। वो समाज जिसके तमाम लोग मेरी जिंदगी में रहे हैं, आज भी हैं और बहुत कॉन्ट्रीब्यूट करते हैं। आज वो सब मुझसे आहत हैं। मेरा परिवार मुझसे आहत है। बहुत सारे बुद्धिजीवी, जिनकी मैं इज्जत करता हूं मेरे उस गुस्से में, मेरे बोलने के तरीके से आहत हैं। मैंने खुद ही ऐसी बात करके, अपनी बात को मुद्दे से भटका दिया। मैं तहे दिल से माफी मांगता हूं, इस समाज से जिनको मैं ये नहीं कहना चाह रहा था, लेकिन आवेश में किसी की घटिया टिप्पणी का जवाब देते हुए लिख दिया। मैं माफी मांगता हूं अपने उन तमाम सहयोगी दोस्तों से, अपने परिवार से और उस समाज से, अपने बोलने के तरीके के लिए, अभद्र भाषा के लिए। अब आगे से ऐसा न हो, मैं उस पर काम करूंगा। अपने गुस्से पर काम करूंगा। और मुद्दे की बात अगर करनी हो तो सही शब्दों का इस्तेमाल करुंगा। आशा है आप मुझे माफ कर देंगे।’
अनुराग कश्यप : बयान के बाद माफी
यह मामला केवल एक फिल्म की रिलीज का नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक व्यापक सामाजिक और सांस्कृतिक बहस का हिस्सा बन गया है। फिल्म ‘फुले’ जहां जातिगत समानता और सामाजिक सुधार की बात करती है, वहीं उसके निर्देशक क के शब्द उसी मूल भावना के विपरीत प्रतीत होते हैं। फिल्म का उद्देश्य समाज में जागरूकता फैलाना है, लेकिन निर्देशक के एक बयान ने पूरे विमर्श को गलत दिशा में मोड़ दिया है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या कलाकारों को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ सार्वजनिक जिम्मेदारी का भी पालन नहीं करना चाहिए?