मसूरी के हाथीपांव क्षेत्र में उत्तराखण्ड सरकार ने 2757 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की 142 एकड़ बेशकीमती भूमि मात्र 1 करोड़ रुपए सालाना किराए पर निजी कम्पनी को 15 वर्षों के लिए सौंप दी है। भूमि सुधार पर सरकार ने खुद 23 करोड़ रुपए खर्च किए। ऐतिहासिक जाॅर्ज एवरेस्ट भवन भी कम्पनी के कब्जे में चला गया। विरोध के बावजूद कार्यवाही नहीं रुकी और अब मामला हाईकोर्ट में लंबित है। यह उत्तराखण्ड में जमीनों की सुनियोजित लूट का ताजा उदाहरण है
घोटाला

भारतीय लोक जीवन में एक पुरानी कहावत है –
‘जहां सैंया भये कोतवाल, वहां डर काहे का?’
यानी जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो जनता की सम्पत्ति सुरक्षित रह ही नहीं सकती। उत्तराखण्ड में जमीनों की सुनियोजित लूट पर यह लोकोक्ति सटीक बैठती है और इसका ताजा उदाहरण सामने आया है मसूरी के हाथीपांव क्षेत्र से। उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग ने मसूरी के समीप 142 एकड़ (762 बीघा) बहुमूल्य सरकारी भूमि को मात्र 1 करोड़ रुपए सालाना किराए पर 15 वर्ष के लिए राजस ऐयरो स्पोर्ट एंड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड को लीज पर दे दिया। जबकि इस भूमि का सरकारी सर्किल दर पर मूल्य 2757 करोड़ रुपए से अधिक है और बाजार भाव इससे भी कई गुना ज्यादा आंका जाता है।
अधिग्रहण से निजी हाथों तक

1990 के दशक में अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार ने मसूरी के बढ़ते पर्यटन दबाव को कम करने के लिए एम.सी. शाह, सी.पी. शर्मा और फिल्म अभिनेत्री अर्चना पूरण सिंह के पिता पूरण सिंह की कुल 172 एकड़ निजी भूमि का अधिग्रहण किया था। इससे सरकार के पास हाथीपांव क्षेत्र में कुल 442 एकड़ भूमि आ गई थी। लेकिन सरकार कोई विशेष पर्यटन योजना लागू नहीं कर पाई और यह भूमि खाली पड़ी रही। इसके बाद भी अनेक निजी कम्पनियों ने इस भूखंड को हासिल करने के प्रयास किए, जो विफल रहे। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद एक बार फिर से इस भूखंड पर कब्जे के प्रयास शुरू हुए। लेकिन कठिन भौगोलिक संरचना और भारी निवेश की आवश्यकता के कारण यह बची रही। अंततः वर्ष 2023 में एशियाई विकास बैंक से 23 करोड़ रुपए का ऋण लेकर भूमि का समतलीकरण, लैंडस्केपिंग और सड़कों का निर्माण कराया गया। इसके बाद यह भूमि बेहद कम दर पर निजी हाथों को सौंप दी गई।

इस क्षेत्र में स्थित है ब्रिटिश भारत के सर्वेयर जनरल सर जाॅर्ज एवरेस्ट का ऐतिहासिक भवन, जहां से हिमालय और माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई मापने की ऐतिहासिक ‘ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे’ की शुरुआत हुई थी। अब यह धरोहर भी निजी कम्पनी के नियंत्रण में चली गई है। कम्पनी ने यहां 400 रुपए प्रति घंटे का पार्किंग शुल्क और मनमानी एंट्री फीस वसूलनी शुरू कर दी थी, जिस पर बाद में हाईकोर्ट ने रोक लगा दी।
पूर्व विधायक मनोज रावत का आरोप है कि टेंडर की शर्तें जान-बूझकर राजस ऐयरो स्पोर्ट एंड एडवेंचर के पक्ष में गढ़ी गईं। आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों से स्पष्ट हुआ कि टेंडर में भाग लेने वाली तीनों कम्पनियों का पता हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ परिसर का एक ही भवन, दीक्षा भवन दर्ज था और कम्पनियों के निदेशक आपस में जुड़े हुए थे। दो कम्पनियों को सिर्फ खानापूरी के लिए शामिल किया गया ताकि मुख्य कम्पनी को आसानी से टेंडर मिल सके।

राजस ऐयरो स्पोर्ट एंड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड के लिए प्रदेश का समूचा सरकारी सिस्टम कैसे काम कर रहा है यह अपने आप में एक अलग ही बानगी है। जिस पार्क स्टेट की भूमि कम्पनी को पर्यटन गतिविधियों के नाम पर लुटाया गया है वह भूमि संरक्षित भूमि की श्रेणी में है। साथ ही यह क्षेत्र वन विभाग के अभिलेखों में मसूरी वन्य जीव विहार में दर्ज है और इसे ईको सेंसिटिव जोन घोषित किया गया है। इसके चलते इस क्षेत्र के जितने भी भूमिधर या खातेदार हैं उनको भी अपनी भूमि पर किसी प्रकार का पक्का निर्माण करने की कोई अनुमति तक नहीं है। हैरत की बात यह है कि पर्यटन विकास परिषद और वन विभाग के अलावा नगर पालिका परिषद मसूरी तथा वन प्रभाग मसूरी भी इस भूमि की श्रेणी और इस पर लागू प्रतिबंध को अच्छी तरह से जानते हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मसूरी वन प्रभाग स्वयं सूचना के कागजों में यह साफ तौर पर उल्लेख कर रहा है कि यह भूमि मसूरी वन्य जीव विहार के नाम है और यह संरक्षित भूमि है। साथ ही यह भी उल्लेख कर रहा है कि इस भूमि पर किसी भी प्रकार की वाणिज्यक और व्यावसायिक गतिविधियां प्रतिबंधित है। हैरत की बात यह है कि मसूरी वन प्रभाग सूचना के अधिकार में यह भी उल्लेख कर रहा है कि यह वन्य जीव संरक्षित भूमि होने के कारण ध्वनि रहित फ्लाइंग जोन है। इसका अर्थ यह है कि इस क्षेत्र में हैलीकाॅप्टर आदि का संचालन या उड़ान आदि पर पूरी तरह से प्रतिबंध है बावजूद इसके कम्पनी द्वारा बगैर अनुमति के हैलीपैड का निर्माण किया और मसूरी क्षेत्र में धड़ल्ले से पर्यटकों को हवाई सौर करवाई जा रही है। यही नहीं हैलीपैड के समीप ही कई लकड़ियों की काॅटेजों का भी निर्माण किया गया है जबकि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य प्रतिबंधित किया हुआ है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि हेलीपैड और काॅटेज निर्माण के मामले में मसूरी वन प्रभाग द्वारा सूचना में यह स्वीकार किया है कि उसने किसी प्रकार की अनुमति या लाइसेंस नहीं दिया गया है। साथ ही गम्भीर बात यह है कि मसूरी वन प्रभाग द्वारा यह भी सूचना उपलब्ध करवाई गई है कि यह भूमि गजट नोटिफिकेशन संख्या 2361/IVZ-B-394-60 दिनांक 21 अप्रैल 1966 के तहत नोटिफाइड भूमि है। इससे पूर्व इस भूमि की क्या क्षेणी थी, इससे सम्बंधित अभिलेख विभाग के पास नहीं है।


बहरहाल, इस सड़क पर बैरीकेट लगाकर प्रतिबंध करने, स्थानीय स्तर पर भारी विरोध होने लगा लेकिन कम्पनी द्वारा कोई रियात तक नहीं दी गई। नगर पालिका मसूरी को भी इसकी शिकायत की गई किंतु नगर पालिका प्रशासन भी कम्पनी के ही आगे नतमस्तक रहा और उक्त मामले को पर्यटन विभाग की भूमि बताकर अपना पल्ला झाड़ता रहा। गौर करने वाली बात यह है कि उक्त सड़क सरकारी मानचित्र में नगर पालिका की भूमि पर होने का प्रमाण के बावजूद नगर पालिका इस पर कोई कार्यवाही करने से बचती रही। आखिरकार स्थानीय निवासियों ने अपना आंदोलन शुरू कर दिया और सूचना के अधिकार के तहज जानकारियां एकत्र की। इन जानकारियों में साफ तौर पर पाया गया कि राजस एयरो स्पोर्ट एंड एडवंचर प्राइवेट लिमिटेड के हितों के लिए पर्यटन विभाग, मसूरी वन प्रभाग, मसूरी नगर पालिका और जिला प्रशासन तक पूरी तरह से नतमस्तक होकर काम कर रहा है और स्थानीय लोगों की समस्या पर गौर करने की बजाय कम्पनी का साथ दे रहा है। यही नहीं पर्यटन विभाग ने तो स्थानीय आंदोलनकारियों को इस मामले में कोर्ट जाने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ दिया। हालांकि आंदोलनकारियों ने इस मामले की जिलाधिकारी देहरादून, एसडीएम, मसूरी नगर पालिका को भी प्रमाणों के साथ शिकायत की लेकिन कहीं से भी कोई राहत नहीं मिली तो स्थानीय निवासी मोहम्मद सुहैब आलम और अभय सिंह द्वारा हाईकोर्ट में सभी प्रमाणों के साथ याचिका दायर की जिस पर 17 मार्च 2024 को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र और न्यायाधीश आलोक मेहरा ने सुनवाई करते हुए राजस एयरो स्पोर्ट एंड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड के टोल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी। अब मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
हैरानी की बात यह है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी सरकारी सिस्टम राजस एयरो स्पोर्ट एंड एडवेंचर प्राइवेट लिमिटेड के ही हितों के लिए काम कर रहा है। 17 मार्च को कम्पनी पर टोल लेने से रोक के बाद भी कम्पनी धड़ल्ले से टोल वूसल रही है। स्थानीय निवासियों द्वारा इसका प्रमाण देते हुए अनेकों वीडियो सोशल मीडिया पर डाले हैं। कम्पनी द्वारा पार्किंग और टोल वसूले जाने की 26 अप्रैल की रसीद से यह साफ हो जाता है कि कम्पनी साफ तौर पर हाईकोर्ट के आदेशों को भी मानने से इनकार कर न्यायालय की अवमानना कर रही है।