घाटी एक बार फिर आतंक की चपेट में है। पहलगाम में हुए अमरनाथ यात्रियों पर हमले ने घाटी के नासूर को उजागर कर दिया है। भारत सरकार ने आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक कदम उठाए हैं। सुरक्षा कड़ी की गई है, पाकिस्तान को कूटनीतिक मोर्चे पर घेरा जा रहा है, सिंधु जल संधि और शिमला समझौते पर पुनर्विचार हो रहा है। ऐतिहासिक भूलों और जटिलताओं के बीच कश्मीर को शांति की राह पर लाने की नई कश्मीर लड़ाई शुरू हो चुकी है
कश्मीर, जो कभी प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक था, आज संघर्ष, आतंकवाद और कूटनीतिक टकराव का केंद्र बन गया है। हालिया पहलगाम हमला, पाकिस्तान के साथ राजनयिक सम्बंधों में कटुता, सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार और शिमला समझौते के विघटन जैसे घटनाक्रम इस लम्बे संघर्ष को एक निर्णायक मोड़ पर ले आए हैं। कश्मीर की समस्या का समाधान केवल आतंकवाद या युद्ध से नहीं, बल्कि इतिहास, राजनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के संतुलन से ही सम्भव हो सकता है।
पृष्ठभूमि
इनसेट में सिंधु नदी
वर्ष 1947 में भारत के विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत थी। महाराजा हरि सिंह ने पहले स्वतंत्र रहने का प्रयास किया, लेकिन पाकिस्तान समर्थित कबायली हमले ने हालात बदल दिए। उन्होंने भारत से सैनिक सहायता मांगी और ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर कर कश्मीर का भारत में विलय कर दिया। हालांकि पाकिस्तान इस विलय को कभी स्वीकार नहीं किया और इसी से कश्मीर समस्या की नींव पड़ी। बाद में भारत इस मसले को संयुक्त राष्ट्र लेकर गया, जिससे यह विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गया। आज तक कश्मीर भारत की एकता की जिजीविषा और पाकिस्तान की चुनौती का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
पंडित नेहरू और कश्मीर: संकल्प और विवाद
पंडित जवाहरलाल नेहरू जो स्वयं कश्मीरी मूल के थे, कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाने के लिए संकल्पित थे। उन्होंने कश्मीर के विलय को धर्मनिरपेक्ष भारत के आदर्श का प्रतीक बनाया। लेकिन
तात्कालिक परिस्थितियों के दबाव में आए नेहरू ने कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले जाकर उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ला खड़ा किया। उन्होंने जनमत संग्रह के सिद्धांत को स्वीकार किया, जिसे कभी लागू नहीं किया जा सका। शेख अब्दुल्ला पर अत्यधिक भरोसा किया, जो बाद में केंद्र विरोधी रुख अपनाने लगे। इस कारण से नेहरू की नीति को जहां एक ओर भारत के धर्मनिरपेक्ष आदर्श के संरक्षक के रूप में देखा जाता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें कश्मीर समस्या के दीर्घकालिक उलझाव का आंशिक जिम्मेदार भी ठहराया जाता है।
घाटी में प्रमुख आतंकी घटनाएं
कश्मीर बीते दशकों में कई भयावह आतंकी घटनाओं का गवाह बना है। 1989-90 के दशक में आतंकवाद का आरम्भ और घाटी में उग्रवाद का विस्तार होना शुरू हुआ था। 1993 में श्रीनगर के लाल चौक पर बम धमाका, 2000 में अमरनाथ यात्रियों पर घातक हमला। 2001 में जम्मू- कश्मीर विधानसभा भवन पर आत्मघाती हमला, 2008 में अमरनाथ भूमि विवाद से उपजी हिंसा, 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद व्यापक हिंसा, 2019 में पुलवामा आत्मघाती हमला, जिसमें 40 जवान शहीद हुए और अब पहलगाम की दिल दहलाने वाली घटना ने साफ कर दिया है कि घाटी में पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देने से पीछे नहीं हटा है।
कश्मीरी पंडितों का अंधियारा अध्याय
1990 के दशक में घाटी में बढ़ती कट्टरता और आतंकवाद के चलते कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया गया। धमकियों, हत्याओं और उत्पीड़न के बीच लगभग 3.5 लाख कश्मीरी पंडित अपने घर-बार छोड़ने को मजबूर हुए। आज भी यह समुदाय अपने सुरक्षित और सम्मानजनक पुनर्वास के लिए संघर्ष कर रहा है।
भारत सरकार की हालिया कठोर कार्रवाई
अमरनाथ यात्रा मार्ग पर यात्री
पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार ने कई निणार्यक कदम उठाए हैं। ‘ऑपरेशन साइलेंट वारियर’ के तहत आतंकवादियों के खिलाफ आक्रामक अभियान शुरू हो चुका है। अमरनाथ यात्रा मार्ग पर त्रिस्तरीय सुरक्षा घेरा, ड्रोन, सैटेलाइट निगरानी और साइबर खुफिया को सशक्त करना, स्थानीय जनता के बीच जागरूकता अभियान इस मुहिम का हिस्सा है। कश्मीरी पंडित पुनर्वास योजना के तहत नई कॉलोनियों का निर्माण पहले से ही शुरू किया जा चुका है।
पाकिस्तान के खिलाफ सख्ती
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के कई राजनायिकों को भारत सरकार ने ‘पर्सोना नॉन ग्रेटा’ घोषित कर निष्कासित कर दिया है। पाकिस्तान में स्थित भारतीय राजनायिकों को भी वापस बुला लिया गया है, जिससे द्विपक्षीय सम्बंध लगभग न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए हैं। केंद्र सरकार अब सिंधु जल संधि (1960) की समीक्षा कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने तय किया है कि पूर्वी नदियों के जल पर अपने अधिकार का पूरा उपयोग करेगा। भारत पश्चिमी नदियों पर नए बांध और जल विद्युत परियोजनाएं शुरू कर रहा है। पाकिस्तान के आतंकवाद समर्थन को देखते हुए, भारत संधि को संशोधित करने या उस पर पुनर्विचार करने के विकल्प भी देख रहा है।
पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को नकारना
पाकिस्तान ने भारत के कड़े तेवरों का कड़ा जवाब हाल ही में शिमला समझौते (1972) को ‘अप्रासंगिक’ घोषित कर दिया है। यह वही समझौता था जिसमें भारत और पाकिस्तान ने अपने सभी विवादों को द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से सुलझाने का संकल्प लिया था। पाकिस्तान का यह कदम क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गम्भीर खतरा बन गया है, जिसे भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करने का निर्णय लिया है।
गौरतलब है कि कश्मीर समस्या केवल आतंकवाद या युद्ध से उत्पन्न नहीं हुई थी, बल्कि यह ऐतिहासिक फैसलों, कूटनीतिक भूलों और राजनीतिक जटिलताओं की उपज है। पंडित नेहरू की इच्छाएं, महाराजा हरि सिंह के निर्णय, पाकिस्तान की महत्वाकांक्षाएं और अंतरराष्ट्रीय शक्तियों का हस्तक्षेप, सभी ने मिलकर इस समस्या को जटिल रूप दिया। लेकिन आज भारत एक निणार्यक और ठोस नीति के साथ आगे बढ़ रहा है: आतंकवाद का समूल नाश, राजनयिक मोर्चे पर आक्रामकता और कश्मीरी जनता के दिलों को जीतने का प्रयास। भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इतिहास से क्या सीखते हैं और कितनी दृढ़ता से कश्मीर को शांति और विकास की राह पर वापस लाते हैं। धरती का स्वर्ग फिर से खिल उठे, यही देश का सपना है।