अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक बार फिर वैश्विक व्यापार मंच पर हलचल मचा रहे हैं। 2025 की गर्मियों में उनकी नई टैरिफ रणनीति, 14 देशों को भेजे गए ‘‘टैरिफ लेटर’’ और ब्रिक्स देशों के प्रति खुली चेतावनी ने दुनिया भर के नेताओं, अर्थशास्त्रियों और व्यापारियों की नींद उड़ा दी है। इस नीति का उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना, घरेलू नौकरियों की रक्षा करना और वैश्विक मंच पर अमेरिका की ताकत दिखाना है। भारत के लिए यह समय बेहद संतुलित चाल चलने का है। एक ओर वह ब्रिक्स के भीतर चीन और रूस जैसे शक्तिशाली खिलाड़ियों के बीच अपनी आवाज बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, तो दूसरी तरफ अमेरिका के साथ लगातार गहराती रणनीतिक साझेदारी उसे कई आर्थिक और कूटनीतिक दबावों के बीच ला रही है

सरल शब्दों में टैरिफ का मतलब है, किसी देश में बाहर (विदेश) से आने वाले सामान पर लगाया जाने वाला अतिरिक्त कर या शुल्क। मान लीजिए, भारत में अगर अमेरिका से कारें आती हैं और सरकार उन पर 20 प्रतिशत टैरिफ लगाती है तो इसका मतलब है कि अमेरिका से आने वाली कार की कीमत में 20 प्रतिशत टैक्स जुड़ जाएगा। इसका उद्देश्य होता है अपने देश की चीजों को सस्ता और प्रतिस्पर्धी बनाना, सरकारी खजाने में पैसा लाना और कभी-कभी दूसरे देशों पर दबाव बनाना या उन्हें सबक सिखाना। डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीति का इस्तेमाल सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक हथियार के रूप में भी हो रहा है।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एक बार फिर वैश्विक व्यापार मंच पर हलचल मचा रहे हैं। 2025 की गर्मियों में उनकी नई टैरिफ रणनीति, 14 देशों को भेजे गए ‘‘टैरिफ लेटर’’ और ब्रिक्स देशों के प्रति खुली चेतावनी ने दुनियाभर के नेताओं, अर्थशास्त्रियों और व्यापारियों की नींद उड़ा दी है। इस नीति का उद्देश्य अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करना, घरेलू नौकरियों की रक्षा करना और वैश्विक मंच पर अमेरिका की ताकत दिखाना है। ट्रम्प ने 1 अगस्त तक की समय सीमा बढ़ाते हुए जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, सर्बिया, कजाकिस्तान, लाओस, म्यांमार, ट्यूनिसिया, बोस्निया, कंबोडिया और थाईलैंड जैसे 14 देशों को चेतावनी दी है कि अगर तय समय तक व्यापार समझौता नहीं हुआ तो उन पर भारी शुल्क लगाया जाएगा। इनमें कुछ देशों पर पहले घोषित दरों में कमी की गई है, जैसे म्यांमार (44 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत) और कजाकिस्तान (27 प्रतिशत से घटकर 25 प्रतिशत) जबकि जापान और मलेशिया पर 1 प्रतिशत वृद्धि की गई।
ब्रिक्स, ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका ने हाल ही में ब्राजील में हुई 17वीं शिखर वार्ता में अमेरिका की व्यापार नीति और ईरान पर सैन्य कार्रवाई की आलोचना की थी। जवाब में ट्रम्प ने चेतावनी दी कि जो भी देश ब्रिक्स की एंटी-अमेरिकन नीतियों के साथ खड़ा होगा, उस पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा। ब्रिक्स अब केवल पांच देशों का समूह नहीं रहा। इसमें इंडोनेशिया, इथियोपिया, ईरान, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी जुड़ चुके हैं, जिससे यह एक बड़े वैश्विक मंच में बदल चुका है। भारत की स्थिति थोड़ी जटिल है। एक ओर वह ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है, दूसरी तरफ अमेरिका के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी लगातार गहराई है, चाहे वह क्वाड (क्यूयूएडी) हो, रक्षा समझौते हो या व्यापार। ट्रम्प प्रशासन के अधिकारियों ने संकेत दिया है कि भारत के साथ एक स्टाॅप-गैप डील की सम्भावना है। भारत और अमेरिका के बीच बातचीत चल रही है, खासकर फार्मास्यूटिकल्स, आईटी सर्विसेज, टेक्सटाइल्स और कृषि उत्पादों के निर्यात को लेकर। भारत के लिए चुनौती यह है कि वह ब्रिक्स में अपनी भूमिका बनाए रखते हुए अमेरिका से टकराव टाल सके और अपनी अर्थव्यवस्था के हितों की रक्षा कर सके।
अमेरिका ने हाल ही में ब्रिटेन और वियतनाम के साथ सफलतापूर्वक समझौते किए हैं। ब्रिटेन के लिए एक लाख वाहनों तक 10 प्रतिशत टैरिफ और उसके ऊपर 25 प्रतिशत, जबकि वियतनाम के लिए न्यूनतम 20 प्रतिशत टैरिफ तय किया गया है, साथ ही थर्ड-कंट्री ट्रांसशिपमेंट पर 40 प्रतिशत शुल्क रखा गया है, जबकि अमेरिकी उत्पादों पर वियतनाम में कोई शुल्क नहीं लगेगा। भारत के साथ वार्ता अभी जारी है। अमेरिका को भारत से सस्ती दवाओं, आईटी सेवाओं, स्टील और टेक्सटाइल्स में शिकायतें हैं, जबकि भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों पर अपने बाजार खोलने को लेकर सतर्क है।

जापान के मुख्य वार्ताकार और अर्थव्यवस्था मंत्री रयोसेई अकाजावा के अनुसार ‘हम ऑटोमोबाइल सेक्टर में रियायत चाहते हैं लेकिन कृषि में नहीं, क्योंकि कृषि हमारा महत्वपूर्ण चुनावी आधार है।’ दक्षिण कोरिया का कहना है कि वह अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करने के लिए घरेलू सुधारों पर ध्यान देगा। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने ट्रम्प के 30 प्रतिशत टैरिफ को ‘‘एकतरफा और भ्रामक’’ बताया है और कहा कि दक्षिण अफ्रीका में 77 प्रतिशत अमेरिकी उत्पाद बिना शुल्क के प्रवेश करते हैं, इसलिए यह फैसला अनुचित है। इस बीच अमेरिका में शेयर बाजारों में गिरावट देखी गई। निवेशकों को डर है कि अगर यह व्यापार युद्ध लम्बा खिंचता है तो वैश्विक सप्लाई चेन बाधित होंगी, कीमतें बढ़ेंगी और उपभोक्ता प्रभावित होंगे।
ट्रम्प के ‘‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’’ (एमएजीए) अभियान में व्यापार नीति का बड़ा स्थान है। वे इसे चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं- ‘‘देखिए, मैं अमेरिका की नौकरियों और उद्योगों की रक्षा कर रहा हूं, चाहे दुनिया को झटका लगे या न लगे।’’ 2026 के मिडटर्म और 2028 के राष्ट्रपति चुनाव में यह संदेश उनके अभियान की रीढ़ हो सकता है।
भारत के लिए यह समय बेहद संतुलित चाल चलने का है। एक ओर वह ब्रिक्स के भीतर चीन और रूस जैसे शक्तिशाली खिलाड़ियों के बीच अपनी आवाज बनाए रखने की कोशिश कर रहा है तो दूसरी तरफ अमेरिका के साथ लगातार गहराती रणनीतिक साझेदारी उसे कई आर्थिक और कूटनीतिक दबावों के बीच ला रही है। फार्मास्यूटिकल्स और आईटी सेक्टर में अमेरिका की असंतुष्टि को भारत को गम्भीरता से लेना होगा, क्योंकि ये उसके प्रमुख निर्यातक सेक्टर हैं। इसके साथ ही घरेलू सुधारों पर जोर देना होगा ताकि भारतीय निर्यात अधिक प्रतिस्पर्धी बने और टैरिफ का असर कम हो। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है भू-राजनीतिक संतुलन साधने की। अमेरिका, रूस और चीन जैसे महाशक्तियों के बीच रिश्तों को ऐसा बनाए रखना कि भारत की स्वतंत्र विदेश नीति, रणनीतिक स्वायत्तता और आर्थिक हित सुरक्षित रह सकें। भारत के लिए यह एक अवसर भी है, क्योंकि यदि वह अमेरिका के साथ स्मार्ट वार्ता कर पाता है तो उसे अपने निर्यात के लिए नए दरवाजे खुलते मिल सकते हैं। साथ ही, ब्रिक्स के भीतर भारत की स्थिति मजबूत हो सकती है अगर वह रूस-चीन के वर्चस्व को संतुलित करने वाला जिम्मेदार खिलाड़ी बनकर उभरता है।
डोनाल्ड ट्रम्प की टैरिफ नीति सिर्फ व्यापार की कहानी नहीं, बल्कि एक वैश्विक शक्ति प्रदर्शन है, जिसमें अमेरिका यह दिखा रहा है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और उसके नियम सबसे ऊपर हैं। भारत जैसे देशों के लिए यह समय रणनीतिक सूझ-बूझ दिखाने का है, क्योंकि गलती की गुंजाइश बहुत कम है। आखिर में यह सवाल सिर्फ इतना नहीं कि कौन कितना टैरिफ लगाएगा, बल्कि यह भी है कि क्या दुनिया बहुध्रुवीय (मल्टीपोलर) बनेगी या अमेरिका के नेतृत्व में एक और दौर की एकध्रुवीयता देखने को मिलेगी।

