गंगा जी का हमारे राष्ट्रीय व स्थानीय जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण आदरणीय स्थान है। गंगा जी के जल की पवित्रता व सफाई को बनाए रखने का दायित्व पूरे देशवासियों का है। परंतु पहला दायित्व उत्तराखण्ड वासियों एवं उत्तराखण्ड सरकार का है। उत्तराखण्ड मां गंगा व मां यमुना का मायका है। हरिद्वार तक गंगाजल की पूर्ण स्वच्छता बनाए रखना हमारा सर्वोच्च कर्तव्य है। देवप्रयाग से ऋषिकेश तक गंगाजी के दोनों तटों से लगे क्षेत्र का अंधाधुंध शोषण सोचनीय विषय है। दोनों तटों पर बन रहे विशाल होटल व अनियोजित निर्माण इस समय चिंतनीय स्थिति तक पहुंच चुका है। देवप्रयाग से ऊपर गंगोत्री तक भी गंगा शोषण की इस बढ़ती प्रवृत्ति का आकलन व लोगों को उसके विरुद्ध जागृत करना मुझे आवश्यक लगा। मेरे मन में विचार आया कि क्यों न ‘न्याय यात्रा’ को ‘मां गंगा’ के आशीर्वाद से अभिभूषित करूं। मैंने हरिद्वार में ‘गंगा पूजन’ के बाद न्याय यात्रा के इस चरण को ‘गंगा सम्मान यात्रा’ नाम दिया और तद् उद्देश्यार्थ मैंने दिनांक 14 अप्रैल को बाबा साहब डाॅक्टर भीमराव अम्बेडकर की जयंती के दिन से यात्रा पर निकलने का निश्चय किया
शीतलाखेत में लोगों ने सार्वजनिक रूप से हाथ खड़े करके न्याय यात्रा के साथ अपने समर्थन को व्यक्त किया और वादा किया कि हम झूठ-लूट और फूट की सरकार के खिलाफ चल रहे संघर्ष को निरंतर आगे बढ़ाएंगे। शीतलाखेत से जब हमारे कदम आगे कण्डारखुआ की तरफ बढ़े, मटीला गांव में और मटीला ही क्यों, मटीला से सूरी, गडस्यारी और काकड़ीघाट तक मार्ग पर त्यौहार मय उत्साह लोगों में दिखाई दिया। बड़ी संख्या में बहनें भी दूर-दूर से आई, भाई-बहन, नौजवान, वृद्ध सभी हमारे स्वागत में सम्मिलित हुए थे। मैं सबसे ज्यादा उत्साहित नौजवान और महिलाओं की उपस्थिति से हुआ। मटीला में रामू भंडारी जी बहुत सक्रिय काम करने वाले कार्यकर्ता हैं। उन्होंने अपने वस्त्रों से एक संदेश हम सबको दिया कि भाजपा के प्रपंच का यदि मुकाबला करना है तो हमें भी कभी-कभी ऐसे वस्त्र धारण करने चाहिए जो सामान्य तौर पर हमारे साधु महात्मा और वेदपाठी लोग पहनते हैं। उन्होंने मुझको माटीला में तिमला खिलाया और हमारे साथियों ने जमकर के तिमला व पहाड़ी अंगूरों का स्वाद चखा। यह सारा एरिया जहां हम गए शीतलाखेत से प्रारम्भ हो जाता है। यह सब्जी उत्पादकों का क्षेत्र है, बेमौसमी सब्जी उत्पादन यहां की पहचान है। मेरे प्रति उनके मन में इसलिए एक उत्साहपूर्ण अपनत्व की भावना दिखाई दी, क्योंकि मैं इन क्षेत्रों में पैदल भी आया था। मैंने इस कण्डारखुआ क्षेत्र की पांच पैदल यात्राएं की। आप अंदाज लगा सकते हैं कि बमस्यों से भी और भुजान से चढ़ाई चढ़ कर शेर डांडे तक और काकड़ीघाट से गडस्यारी, सूरी, माटीला तक आए। मैं सांसद के रूप में इस क्षेत्र में आया था। काकड़ीघाट से पद यात्रा की थी और इस क्षेत्र से होते हुए मैं कोसी निकला था। आज जब मैं उन यात्राओं का स्मरण करता हूं तो मन में रोमांच पैदा हो जाता है। कहां से उस समय वह शक्ति मुझमें आई होगी कि मैं इतनी दूर-दूर पहुंचा। इस क्षेत्र के लोगों में शिक्षा की बड़ी ललक थी। उन्होंने दो इंटर काॅलेज अपने श्रमदान से इस क्षेत्र में स्थापित किए। मुझे भी इस क्षेत्र में दो इंटर काॅलेज व हाई स्कूल खोलने का सौभाग्य मिला। स्वतंत्रता संग्राम में इस क्षेत्र के लोगों ने आगे बढ़ चढ़कर के भाग लिया था तो शिक्षा की ललक ने इस क्षेत्र की श्रमदान से शिक्षा तक आगे बढ़ने का हौसला दिया। आज यह क्षेत्र शिक्षा और सड़क से पूर्णतः सेवित है। एक-दो छोटे सड़कों की मांग आई है, इस बार उनको मैं आगे बढ़ाऊंगा। माटरला, पड्यूला, सूरी, गड़स्यारी, जहां-जहां लोग मिले और ढोल-नगाड़ों के साथ हमारा स्वागत किया, महिलाओं ने झोड़े का आयोजन किया था और मैंने भी झोड़ा गाया। एक लम्बे अंतराल के बाद यह सौभाग्य मिला। पांवों का तालमेल बनाने में बड़ी कठिनाई आई। ‘भरती लागी देवली खेत का ग्राउंड मा’, यह झोड़ा बहुत पुराना झोड़ा है, वहां श्री बेलवाल साहब ने वर्तमान सरकार व पार्टी के कुकारनामों का विस्तार से वर्णन किया। यहां देवलीखान पेयजल योजना हमने बनाई थी। उससे काफी लाभ मिल जाता है। लेकिन लोगों का कहना था कि कुछ क्षेत्रों व कुछ गांवों में पानी कम पहुंच रहा है, स्थानीय लोगों के अलावा अल्मोड़ा से हमारे साथ चल रहे थे, वह सब साथी भी पूरी यात्रा भर साथ चले। किसी का मन यात्रा से हटने को नहीं कर रहा था। उत्साह पूर्वक माहौल बना हुआ था। हम सब लोग लगभग रात 9ः30 बजे काकड़ी घाट पहुंचे। वहां पुराने स्थानीय लोग भी आए मुझे बड़ी खुशी हुई उनसे मिलकर हमने उनको सम्मानित भी किया। हमारा कोई सम्मान करने का कार्यक्रम नहीं था लेकिन उनकी उपस्थिति ने हम सबको प्रेरित किया और बड़ा अच्छा लगा। पंचायती चुनावों से पहले इस तरीके का ग्रामीण क्षेत्रों का उत्साह पूर्ण माहौल देख कर मैं गदगद हूं। मैं मनोज तिवारी आदि से कहा कि जरा और प्रयास करो तो इन पंचायती चुनावों में पाशा पलटता हुआ दिखाई दे रहा है। लोग कांग्रेस की तरफ आते हुए दिखाई दे रहे हैं। काकड़ी घाट में भी न्याय यात्रा का बहुत उत्साह पूर्ण स्वागत हुआ। हमने भगवान शिव का जलाभिषेक कर उन्हें प्रणाम किया। यहां ध्यान केंद्र बना हुआ है, ज्ञान वृक्ष भी है। कहा जाता है कि इसी स्थल पर स्वामी विवेकानंद जी को ज्ञान की अनुभूति हुई। हमने भी उस वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया। विवेकानंद जी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया। काकड़ी घाट में भगवान शिव के साथ-साथ भगवान हनुमान भी विराजमान हैं। हमने यहां भगवान शिव से न्याय की याचना की और कहा कि झूठ, लूट और फूट की सरकार के खिलाफ हमें संघर्ष करने की शक्ति दो और जनता के मन में परिवर्तन पैदा करो ताकि 2027 में इस झूठ, लूट और फूट की सरकार को हटाया जा सके और लोकोन्मुख सरकार बनाई जा सके। मैंने इस चरण की यात्रा का काकड़ीघाट में शिव मंदिर में विवेकानंद जी के मूर्ति के सानिध्य में समापन किया और उत्साह पूर्वक नैनीताल की ओर चल पड़ा। हमारे साथी भी अपने-अपने गंतव्य को रवाना हो गए।
बहुत दिन से मेरे मन में बार-बार यह ख्याल आ रहा था कि मुझे कुछ मुद्दों को लेकर के उत्तराखण्ड की व्यापक परिक्रमा करनी चाहिए। एक बहुत असंतुलित विकास, निरंतर बढ़ता हुआ पलायन, बेरोजगार नौजवानों के मन में पनप रहा असंतोष राज्य में फैलता हुआ नशे का कारोबार, दूर-दूर क्षेत्रों व गांवों में भी नशे की बढ़ती हुई प्रवृत्ति, महिलाओं पर अत्याचार की निरंतर बढ़ती हुई दर्दनाक घटनाएं जिनमें कई मामलों में सत्तारूढ़ दल के लोग भी लिप्त पाए गए हैं, बढ़ती हुई महंगाई के साथ-साथ लोगों के मन में बढ़ता विद्वेष व समाज में बढ़ता हुआ विद्रूप इन सब मुद्दों को लेकर मैं लोगों से बातचीत करना चाहता था। साथ-साथ मेरे मन में यह भी भावना है कि 2014 से 2017 तक हमारे कार्यकाल का लोग किस प्रकार तुलनात्मक मूल्यांकन कर रहे हैं? हमने सकल उत्तराखण्डियत की दिशा में कई योजनाएं व नई पहलें प्रारम्भ की, लोगों पर उनका क्या प्रभाव पड़ा है। फिर मेरे मन में विचार आया क्यों न मैं अपनी कई सोपनों में चलने वाली इस यात्रा का नाम ‘न्याय यात्रा’ रखूं।
गंगा जी का हमारे राष्ट्रीय व स्थानीय जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण आदरणीय स्थान है। गंगाजी के जल की पवित्रता व सफाई को बनाए रखने का दायित्व पूरे देशवासियों का है। परंतु पहला दायित्व उत्तराखण्ड वासियों एवं उत्तराखण्ड सरकार का है। उत्तराखण्ड मां गंगा व मां यमुना का मायका है। हरिद्वार तक गंगाजल की पूर्ण स्वच्छता बनाए रखना हमारा सर्वोच्च कर्तव्य है। देवप्रयाग से ऋषिकेश तक गंगा जी के दोनों तटों से लगे क्षेत्र का अंधाधुंध शोषण सोचनीय विषय है। दोनों तटों पर बन रहे विशाल होटल व अनियोजित निर्माण इस समय चिंतनीय स्थिति तक पहुंच चुका है। देवप्रयाग से ऊपर गंगोत्री तक भी गंगा शोषण की इस बढ़ती प्रवृत्ति का आकलन व लोगों को उसके विरुद्ध जागृत करना मुझे आवश्यक लगा। मेरे मन में विचार आया कि क्यों न ‘न्याय यात्रा’ को ‘मां गंगा’ के आशीर्वाद से अभिभूषित करूं। मैंने हरिद्वार में ‘गंगा पूजन’ के बाद न्याय यात्रा के इस चरण को ‘गंगा सम्मान यात्रा’ नाम दिया और तद् उद्देश्यार्थ मैंने दिनांक 14 अप्रैल को बाबा साहब डाॅक्टर भीमराव अम्बेडकर की जयंती के दिन से यात्रा पर निकलने का निश्चय किया। बाबा साहब ने देश को संविधान के रूप में सामाजिक न्याय का एक अद्भुत दस्तावेज दिया। मां गंगा के शीतकालीन प्रवास स्थल मुखवा से 19 अप्रैल को मां गंगा की आरती के साथ ऋषिकेश में न्याय यात्रा के प्रथम सोपान के समापन का निश्चय किया और विस्तृत यात्रा कार्यक्रम के सम्बंध में लोगों से बातचीत की। लोगों ने बड़ा उत्साह दिखाया। मुझे बड़ा अच्छा लगा कि लोगों में अभी भी मेरे लिए कुछ भावनात्मक झुकाव है। राजनीति में यह झुकाव आपकी पूंजी है। यमुना घाटी में बहुत ऊंचाई पर कफनौल गांव है। वहां से लोग मुझे बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी की मूर्ति के अनावरण समारोह के लिए बुलाना चाहते थे। मैंने उनका निमंत्रण स्वीकार कर कफनौल होकर मुखवा जाने का निर्णय लिया। यूं भी मेरे मन ने कहा मां गंगा के शीतकालीन वास स्थल मुखवा जाने से पहले मुझे यमुना घाटी में जाकर मां यमुना को भी प्रणाम करना चाहिए। प्रातः देहरादून में बाबा साहब की मूर्ति पर माल्यार्पण किया, फिर मसूरी में बाबा साहब की जयंती समारोह में हिस्सा लेकर मैंने साथियों सहित मसूरी से नैनबाग की तरफ प्रस्थान किया। नैनबाग में कांग्रेसजनों का बड़ा जत्था हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। मैंने उनके साथ इस अंचल के कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष स्वर्गीय श्री सरदार सिंह जी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया। श्री सरदार सिंह वास्तविक अर्थों में सरदार थे। मेरा उनके साथ बहुत आत्मीयता पूर्ण सम्बंध था। इस क्षेत्र के विकास में उनका बड़ा योगदान रहा है। लोग उनसे बहुत प्यार करते थे। कांग्रेस के साथियों से खड़े-खड़े बातचीत की, क्योंकि कार्यक्रम बड़ा लंबा था। कफनौल भी जाना था। यूं कफनौल, यमुना घाटी में है, मगर वहां से आगे बढ़ते ही गंगा घाटी प्रारंभ होती है। पूरी बरनीगाढ़ होकर हम कफनौल पहुंचे। बहुत ऊंचाई पर बसा कफनौल बहुत सुंदर मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों वाला गांव है। ऊपर लकदक हरियाली व घने जंगल हैं तो सामने सुंदर हिमालय का विहंगम दृश्य। नीचे हरी भरी बनरनी गाड़। गाड़ का शब्दार्थ घाटी। घाटी के गांवों में भी एप्पल मिशन के तहत सेब के बाग लगाए गए हैं। इस क्षेत्र में बेमौसमी सब्जियों का बढ़-चढ़कर उत्पादन होता है।