वर्ष 2022 में डॉ. चौहान को पंतनगर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया था। उन्होंने यह पद केवल एक प्रशासनिक भूमिका के रूप में नहीं, बल्कि एक मिशन के रूप में ग्रहण किया। डॉ. चौहान ने शोध को केवल अनुसंधान-पत्रों तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि उसका उपयोग किसानों की समस्याओं के समाधान हेतु करना आरम्भ किया। ’सिंदूर’ आम का विकास इसी विजन का हिस्सा है जिसमें डॉ. ए.के. सिंह की वैज्ञानिक टीम ने यह नई किस्म तैयार की और डॉ. चौहान ने उसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम देकर एक राष्ट्रीय पहचान प्रदान की है। उनका मानना है कि विज्ञान की सार्थकता तब है जब उसका लाभ अंतिम पंक्ति के किसान को मिले। डॉ. चौहान की यह यात्रा सिद्ध करती है कि जब वैज्ञानिक नेतृत्व, संवेदना और व्यवस्था मिलती है तब प्रयोगशालाएं केवल प्रयोग नहीं करतीं, वे परिवतज़्न करती हैं। ‘सिंदूर’ केवल एक आम की किस्म नहीं है, वह उस वैज्ञानिक, उस संस्थान और उस किसान की साझी आकांक्षा है जो खेतों में सिर पर लाल मिट्टी लगाए रोज मेहनत करता है
गत् सप्ताह दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में उत्तराखण्ड के पंतनगर कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय ने एक नई आम की किस्म ‘सिंदूर’ को सार्वजनिक किया है। यह किस्म केवल एक नया फल नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक सोच, संस्थागत नेतृत्व और किसान केंद्रित दृष्टिकोण का समन्वित परिणाम है। इस वैरायटी (प्रजाति) की घोषणा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एम.सी. चौहान ने की है, लेकिन इसके विकास का श्रेय विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. ए.के. सिंह को जाता है, जिन्होंने अपने नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम के साथ मिलकर इसे वर्षों की मेहनत से तैयार किया। ‘सिंदूर’ आम अपने गहरे रंग, सुगंध, स्वाद, रोग प्रतिरोधक क्षमता और परिवहन योग्यताओं के कारण न केवल उत्तराखण्ड के लिए, बल्कि देशभर के आम उत्पादक किसानों के लिए एक नई आशा बनकर उभरा है। इसका नाम ‘सिंदूर’ एक सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रतीक है, ‘सिंदूर’ भारतीय परम्परा में मंगल, समर्पण और पहचान का प्रतीक है, और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारतीय सेनाओं द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ की गई सैन्य कार्यवाही से प्रेरित है जिसे ‘आपरेशन सिंदूर’ का नाम दिया गया था। यही बात इस किस्म को एक भावनात्मक ऊंचाई भी प्रदान करती है।
डॉ. मनमोहन सिंह चैहान एक प्रतिष्ठित पशु जैव प्रौद्योगिकीविद् तथा प्रख्यात शिक्षाविद हैं जिनके दूरदर्शी नेतृत्व एवं अनुसंधान में अद्वितीय योगदान ने भारत में पशु प्रजनन जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र को उल्लेखनीय ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। पूर्व में, डॉ. चौहान ने आईसीएआर-नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (डीम्ड यूनिवर्सिटी), करनाल, हरियाणा में कुलपति का दायित्व ढाई वर्षों तक निभाया। उनके सक्षम नेतृत्व में एनडीआरआई को भारत का क्रमांक एक कृषि विश्वविद्यालय होने का गौरव प्राप्त हुआ तथा संस्थान को आईसीएआर की । मान्यता मिली। एनडीआरआई से पूर्व, वे चार वर्षों तक आईसीएआर-केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम, मथुरा के निदेशक रहे।
डॉ. चौहान के वैज्ञानिक जीवन की विशेष उपलब्धि सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियों (एआरटी) में उनकी प्रगतिशील शोध कार्य रहे हैं। इनमें शामिल है भ्रूणीय स्टेम सेल प्रौद्योगिकी का विकास, जिसके अंतर्गत पांच भ्रूणीय भैंस स्टेम सेल लाइनों और दो स्पमेटज़ेगोनियल स्टेम सेल लाइनों की स्थापना की गई। गाय एवं याक में ओवम पिकअप इन विट्रो फटिज़्लाइजेशन (ओपीयू एंड आईवीएफ) प्रौद्योगिकी का विकास, जिसके माध्यम से भारत की पहली ओपीयू-आईवीएफ साहिवाल बछिया ‘होली’ तथा याक बछिया ‘नोरग्याल’ का जन्म सम्भव हुआ।
भैंस में हैंड-गाइडेड क्लोनिंग प्रौद्योगिकी की सृजना, जिसके माध्यम से 27 क्लोन भैंसों का जन्म हुआ, जिनमें विश्व की पहली क्लोन भैंस बछिया ‘गरिमा’ तथा बाद में ‘गरिमा-2’, ‘श्रेष्ठ’, ‘स्वर्ण’, ‘पूर्णिमा’, ‘लालिमा’, ‘रजत’ और ‘दीपाशा’ प्रमुख हैं। मार्च 2023 में भारतीय गिर गाय की सरल क्लोनिंग विधि का विकास और देश की पहली क्लोन गिर बछिया ‘गंगा’ का जन्म। बकरियों में सीमेन फ्रिजिंग तथा कृत्रिम गर्भधारण तकनीक का विकास।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इनमें से कई प्रौद्योगिकियां, जैसे ओपीयू-आईवीएफ, बकरी सीमेन फ्रिजिंग एवं क्लोनिंग, प्रयोगशाला से निकलकर अब खेतों तक पहुंच चुकी हैं और पशुपालन क्षेत्र को लाभ पहुंचा रही हैं।
डॉ. चौहान ने 12 बाह्य वित्त पोषित परियोजनाओं के प्रधान अन्वेषक (पीआई) तथा 9 अंत:विषयी एवं अंत:संस्थागत परियोजनाओं के सह- अन्वेषक (सीओ एंड पीआई) के रूप में कार्य किया है। उन्होंने 23.88 करोड़ रुपए के अनुसंधान अनुदान को डीबीटी, डीएसटी, एनएआईपी- आईसीएआर और आईसीएआर-एनएएसएफ से स्वीकृत कराया। उन्होंने 10 डॉक्टरेट और 9 मास्टर शोध प्रबंधों का निर्देशन किया है तथा पशु शरीर क्रिया विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में चार स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के निर्माण में योगदान दिया है। डॉ. मेहता रफी अहमद किदवई पुरस्कार, आईसीएआर, 2015, वसविक औद्योगिक पुरस्कार (कृषि विज्ञान), 2015, आईसीएआर टीम पुरस्कार (पशु विज्ञान) 2014, डॉ. पी. भट्टाचार्य मेमोरियल पुरस्कार, एनएएएस, 2020, राव बहादुर बी. विश्वनाथ पुरस्कार, आईएआरआई-2019, यूरोपियन एरास्मस मुण्डस स्कॉलरशिप-2009, डॉक्टरेट ऑफ साइंस (ऑनोरिस कॉसा), एनडीआरआई डीम्ड यूनिवसिज़्टी इत्यादि अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
वे राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस) की कार्यकारी परिषद (2021) के सदस्य रहे हैं, तीन डीबीटी टास्क फोर्स समितियों में कार्य किया तथा आईसीएआर के महानिदेशक एवं भारत सरकार के माननीय केंद्रीय कृषि मंत्री द्वारा उनके योगदान के लिए प्रशंसा प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने 155 से अधिक मौलिक शोध पत्र, 8 पुस्तकें, 54 वैज्ञानिक एवं तकनीकी रिपोर्ट प्रकाशित की हैं और 42 आमंत्रित व्याख्यान राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत किए हैं।
उनके नेतृत्व में गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय ने निरंतर नई ऊंचाइयां प्राप्त की हैं। इनके तीन वर्ष के कार्यकाल में फसलों में 12 किसमें विकसित की गई है, 14 पेटेंट प्राप्त हुए हैं तथा 14 तकनीकियों को व्यवहारिकरण किया गया। लगभग 2000 से ज्यादा शोध पत्र तथा 22 किताबें प्रकाशित हुई। 24 नई परियोजनाएं शुरू की गई। इन परियोजनाओं से लगभग 84 करोड़ से अधिक बजट प्राप्त किया गया। विश्वविद्यालय ने कई पुरस्कार प्राप्त किए। जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय में पहली बार 17वां कृषि विज्ञान सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें 4000 से अधिक वैज्ञानिक, जिसमें 16 देशों के 90 वैज्ञानिकों ने भाग लिया। यह देश का पहला कृषि विश्वविद्यालय है जिसने विश्व क्यूएस रैंकिंग में 209वां स्थान अजिज़्त किया है। विश्वविद्यालय अब शैक्षणिक उत्कृष्टता, अनुसंधान नवाचार एवं सामाजिक प्रभाव में भारत के प्रमुख कृषि शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी संस्थानों में अग्रणी स्थान पर स्थापित है।
2022 में डॉ. चौहान को पंतनगर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया था। उन्होंने यह पद केवल एक प्रशासनिक भूमिका के रूप में नहीं, बल्कि एक मिशन के रूप में ग्रहण किया। उन्होंने शोध को केवल अनुसंधान-पत्रों तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि उसका उपयोग किसानों की समस्याओं के समाधान हेतु करना आरम्भ किया। ‘सिंदूर’ आम का विकास इसी विजन का हिस्सा था, जिसमें डॉ. ए.के. सिंह की वैज्ञानिक टीम ने यह नई किस्म तैयार की और डॉ. चौहान ने उसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम देकर एक राष्ट्रीय पहचान प्रदान की।
आम की इस नई प्रजाति में गुड ब्लेंड ऑफ शुगर एनेसिक है, इससे यह न तो ज्यादा खट्टा और न ही ज्यादा मीठा होगा। यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। इसकी विशेषता यह भी है कि पकने के बाद इसका फल दो सौ ग्राम तक होता है। हमने इसको सिडलिंग सलेक्शन से तैयार किया है। भारत में प्रचलित आम की प्रजातियां दशहरी, लंगड़ा, चौसा आदि कोई मेन मेड हाइब्रिड नहीं है। इनका हाइब्रिड पौधा स्थान या परिस्थिति विशेष में मिलने और उनकी अच्छी गुणवत्ता से प्रजातियों का नामकरण कर दिया गया है। अखिल भारतीय समन्वित फल शोध परियोजना के तहत हमने उत्तराखण्ड में पाए जाने वाले आम के जर्मप्लाज्मों का परीक्षण किया और नौ जर्मप्लाज्म नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट एंड जेनेटिक्स रिसोर्सेस में पंजीकृत कराए हैं, जिनका विश्वविद्यालय को इंडिजीनियस करेक्शन नम्बर भी आवंटित हो गया है। यह नई प्रजाति सामान्य आम की तरह गमिर्यों की बजाय शरद ऋतु सितम्बर-अक्टूबर में तैयार होगी। इसका मूल्य भी अधिक ही होगा। यह सुगंधित और गहरा पीला और हल्का सिंदूरी रंग का होता है। इसलिए हमने इसका नाम भारतीय सैनिकों के ऑपरेशन सिंदूर में पराक्रम को समर्पित करते हुए सिंदूर रखा है।
डॉ. ए.के. सिंह, वरिष्ठ वागवानी वैज्ञानिक, पंतनगर विश्वविद्यालय, उत्तराखण्ड
इस आम की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि यह पारम्परिक किस्मों की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक उत्पादन देती है तथा सितम्बर माह में उपलब्ध होगी। इसकी बाजार में कीमत सामान्य किस्मों की तुलना में 20-25 प्रतिशत अधिक मिलेगी। यह किस्म उत्तर भारत की जलवायु में आसानी से पनपती है और इसकी शेल्फ-लाइफ (सेल्फ-लाइफ-भंडारण अवधि) लम्बी है, जिससे निर्यात की सम्भावनाएं भी बढ़ जाती हैं। इस आम को पंतनगर के अलावा ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार और नैनीताल के कई किसानों को परीक्षण के लिए दिया जाएगा।
डॉ. चौहान का मानना है कि विज्ञान की सार्थकता तब है जब उसका लाभ अंतिम पंक्ति के किसान को मिले। इसी सोच के साथ उन्होंने पंतनगर विश्वविद्यालय में कई क्रांतिकारी पहल कीं। उन्होंने ”युवा कृषि फेलोशिप” (युवा कृषि अनुसंधान अनुदान) की शुरुआत की, जिसके अंतर्गत छात्रों को 1 लाख रुपए तक का शोध अनुदान दिया जाता है। इसके अलावा ”एग्रीकल्चर इनक्यूबेशन हब” (कृषि नवाचार केंद्र) की स्थापना की गई, जहां कृषि आधारित स्टार्टअप्स (नवोद्यमों) को तकनीकी मार्गदर्शन, संसाधन और प्रशिक्षण मिलता है। छात्रों को मशीन लर्निंग (स्वचालित शिक्षण), ड्रोन तकनीक, स्मार्ट कृषि उपकरण और जैविक खेती जैसे उभरते क्षेत्रों से जोड़ा।
पाठ्यक्रमों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लागू करते हुए उन्होंने स्किल-आधारित विषयों को बढ़ावा दिया। किसानों के साथ सीधा संवाद स्थापित करने हेतु ”कृषक चौपाल संवाद” जैसे कायज़्क्रमों की शुरुआत की, जिसमें वे स्वयं भाग लेकर किसानों की समस्याओं को सुनते और विश्वविद्यालय की तकनीक को सीधे उनके खेतों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। उन्होंने डिजिटल पोर्टल्स (ऑनलाइन व्यवस्थाएं), ई-शिक्षा प्लेटफॉर्म, छात्र शिकायत निवारण प्रणाली और ई-फार्म आधारित आवेदन प्रणाली विकसित की। विश्वविद्यालय की एनएएसी (नेशनल असेसमेंट एंड एक्रीडेशन काउंसिल-राष्ट्रीय मूल्यांकन परिषद) रैंकिंग और क्यूएस (क्वाक्वुरेली साइमंड्स-वैश्विक रैंकिंग संस्था) रेटिंग में सुधार हुआ और कई निजी कम्पनियों ने सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉसिबिलिटी- कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व) परियोजनाओं के अंतर्गत विश्वविद्यालय से साझेदारी की।
डॉ. चौहान की दूरदृष्टि उत्तराखण्ड को भारत का पहला जैविक राज्य बनाने की है। उन्होंने जैविक बीज बैंक की स्थापना, झंगोरा, भट्ट, लाल चावल और रैंस जैसी पारम्परिक फसलों को जीआई टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन-भौगोलिक संकेतक) दिलाने का प्रयास और ”उत्तराखण्ड जैविक मंडी” की परिकल्पना को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया है। ‘सिंदूर’ आम इस दिशा में एक बागवानी प्रतीक बन उभरने की पूरी सम्भावना है। यह आम चूंकि सितम्बर माह में बाजार में उपलब्ध होगा। इसके बेमौसमी आम होने के कारण डिमांड ज्यादा रहेगी। भविष्य की योजनाओं में डॉ. चौहान ”सिंदूर 2.0” नामक एक नई पहाड़ी वैरायटी तैयार कर रहे हैं जो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी पनप सके। साथ ही ”ड्रोन एग्रीकल्चर सेंटर” (ड्रोन कृषि केंद्र), ”एग्री-अल इनोवेशन लैब” (कृषि कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रयोगशाला) और ”मॉडल आर्गेनिक विलेज” (मॉडल जैविक ग्राम) जैसी अवधारणाओं पर काम जारी है, जिससे उत्तराखण्ड के प्रत्येक ब्लॉक में एक आदर्श गांव विकसित किया जा सके।