इसमें दो राय नहीं कि पिछले कई चुनाव से बसपा की लोकप्रियता का ग्राफ काफी गिरा है। इसका असर उसे मिलने वाले वोटों पर भी पड़ा है। इस बार बसपा बिना किसी के साथ गठबंधन किए हुए ही अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ रही है। ऐसे में आकाश आनंद पर अपने खोए हुए जनाधार को बटोरने की जिम्मेदारी है। बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश को 2020 में पार्टी का नेशनल को-आॅर्डिनेटर बनाकर उन्हें पार्टी का दूसरे नंबर का नेता बनाया था। पिछले विधानसभा चुनाव में आकाश पर तीन राज्यों की जिम्मेदारी थी। जिसे उन्होंने चुनौती के रूप में लिया। सफेद कमीज और नीली पैंट और कान टाॅप्स पहने आकाश आनंद में उनके समर्थक मायावती की छवि देखते हैं। आकाश अपने भाषणों में दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े वोटरों को साधते नजर आते हैं। वे बसपा के फायरब्रांड नेता बन आगे बढ़ रहें हैं। फिलहाल लोकसभा चुनाव में जिस तरह से वे विपक्षी दलों पर करारा वार कर पार्टी से छिटक रहे वोट बैंक को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रहे हैं उससे उन्हें बसपा की आशा और उम्मीदों का आकाश कहा जा रहा है
साल 2020 में बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने जब अपने भतीजे आकाश आनंद को राष्ट्रीय को-आर्डिनेटर बना पार्टी की कमान दी थी तब सवाल उठ रहे थे कि क्या आनंद एक तेज-तर्रार नेता बन उभरेंगे? क्या आनंद पार्टी को संकट से निकाल पाएंगे? आनंद क्या खुद को मायावती के सियासी वारिस के रूप में स्थापित कर पाएंगे। आकाश लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के सामने जमीनी मुद्दे उठा रहे हैं और विपक्षी दलों को निशाना बना लोकप्रिय हो रहे हैं इससे एक बार फिर बसपा को अपने खोए हुए जनाधार को वापस मिलने की उम्मीदें जगने लगी हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आकाश आनंद के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को दोबारा से खड़े करने और दलित समुदाय के विश्वास को एक बार फिर से जीतने की है। उन्हें सबसे पहले उत्तर प्रदेश के दलित समुदाय के युवाओं के बीच अपनी पहुंच बढ़ाना, जो लगातार पार्टी से छिटकता जा रहा है। काशीराम ने बीएसपी का सियासी समीकरण जो बनाया था, वो गड़बड़ा चुका था और दलितों के बीच चंद्रशेखर आजाद नई लीडरशिप के रूप में खुद को खड़े कर रहे हैं। इस तरह से बीएसपी सियासी चक्रव्यूह में घिरी हुई है, जहां एक तरफ बीजेपी गैर जाटव वोटों को अपने पाले में ले चुकी है तो जाटव वोट को चंद्रशेखर अपने साथ जोड़ने में लगे हैं।
रणनीति के लिहाज से बीएसपी की ओर से यह बड़ा सियासी दांव है, लेकिन पार्टी के गिरते सियासी जनाधार को आगे बढ़ाने और युवाओं को पार्टी के साथ जोड़ने की चुनौती होगी। यूपी से लेकर देशभर के राज्यों में बीएसपी का सियासी ग्राफ चुनाव दर चुनाव गिरता जा रहा है और दलित समुदाय का मायावती और बसपा से मोहभंग होता जा रहा है। ऐसे में बसपा के सियासी भविष्य पर संकट गहराया हुआ है। इस लिहाज से यह चुनाव उनकी पार्टी के लिए अब तक के सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण चुनावों के साथ-साथ भविष्य की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है। जिस पर आनंद खरे उतरते दिख रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि भले ही आकाश आनंद जब सबके सामने आए वह काफी निष्क्रिय नेता लग रहे थे, लेकिन वर्तमान में आकाश आनंद एक तेज-तर्रार वक्ता के रूप में उभरे हैं। हाल ही में उन्होंने भाजपा, कांग्रेस और सपा पर जमकर निशाना साधा। चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों के लिए माहौल बनाने, प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में गए आकाश ने जनसभा में इलेक्टोरल बांड का जिक्र किया। बिना भाजपा का नाम लिए आनंद ने कहा कि पिछले छह साल में राजनीतिक दलों ने चंदा लिया है या फिरौती, यह तो न्यायालय ही बताएगा। 25 राजनीतिक दलों ने पैसा लिया है। पूरे देश में इकलौती मात्र पार्टी बसपा है, जिसने पैसा नहीं लिया। आनंद ने आक्रामक तेवर में कहा कि चुनाव में हमारी पार्टी और हमारे समाज को अदंर से तोड़ने की पूरी कोशिश की जाएगी। पहले विरोधी सामने से आकर वार करते हैं, लेकिन अब दुश्मन की इतनी हिम्मत नहीं है कि सामने से हाथी पर वार कर सकें। चुनाव में विरोधी पार्टियां आपसे वोट मांगने आएंगी। इस बार वोट नहीं देना है, उनसे सवाल करना और पूछना कि आपने बहुजन समाज के लिए क्या काम किया।
2022 में सपा को समाज ने एकतरफा मतदान किया, क्या सपा के लोगों ने आपके हित की बात की। यह पार्टी आरक्षण विरोधी और आपके अधिकारों के खिलाफ खड़ी है इन्हें वोट देना समाज से गद्दारी करने के बराबर होगा। ये लोग अपने घर और पार्टी को नहीं सम्भाल पा रहे हैं तो देश और प्रदेश कैसे संभालेंगे।
आकाश आनंद ने कांग्रेस पर भी जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस कह रही है कि बहुजन समाज के लिए काम करेंगे। पिछले 70 सालों में इन्होंने क्या किया। आज खुद का अस्तित्व खतरे में है तो आप को याद कर रहे हैं। अगर कोई आपसे बहन जी (मायावती) को छोड़कर अन्य किसी दल को वोट देने की बात करता है तो समझ जाना कि वह अपनी चाल चल रहा है। बसपा ही इकलौती पार्टी है जिसने हर समाज को सम्मान दिया। मैं खुद बहनजी के नेतृत्व से प्रभावित होकर बसपा से जुड़ा हूं और इसे आखिरी सांस तक निभाऊंगा। बहुजन समाज के मसीहा बाबा साहेब ने कड़ा संघर्ष किया है। बाबा साहब कहते थे कि शिक्षा वह शेरनी का दूध है जो पिएगा वह दहाड़ेगा।
इसके अलावा कुछ महीने पहले उत्तर प्रदेश में हुए पेपर लीक मामले को उठाते हुए आकाश आनंद ने कहा कि शिक्षा के नाम पर सिर्फ सरकारी भर्ती के पेपर लीक होने की खबर आती है और सरकार को बहाना मिल जाता है, उस पोस्ट को रद्द कर देने का। ऐसे लोगों को थप्पड़ मारने का मन करता है। आप बाबा साहेब के समर्थक हो और बाबा साहेब ने आपको वोट डालने की ताकत दी है। वोट को आप अपनी लाठी बनाइए जो इन पर लाठी की तरफ पड़नी चाहिए और इन्हें सत्ता से बाहर करिए, ताकि पेपर लीक का मामला बंद हो। पूर्व की बसपा की मायावती सरकार में सरकारी नौकरियों की बहार थी। आज देश में बहनजी के गवर्नेंस की जरूरत है। आनंद के इस अंदाज को किसी मझे हुए राजनेता की भाति देखा जा रहा है। हालांकि बसपा में आकाश का ऊपर उठना अचानक नहीं, बल्कि धीरे-धीरे हुआ। वर्ष 2017 में जब उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलवाया गया, तो उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई और वे सार्वजनिक बैठकों से दूर ही रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव में आकाश ने आगरा में अपनी पहली सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए एसपी-बीएसपी- आरएलडी गठबंधन के उम्मीदवार के लिए वोट मांगे थे। तब से बसपा में आकाश की जिम्मेदारियां बढ़ती गईं और सितंबर 2022 में उन्हें गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के पक्ष में मतदाताओं को एकजुट करने का काम सौंपा गया जो पार्टी के भीतर उनकी बेहतर होती स्थिति का संकेत था।
उन्होंने तीन राज्यों में सार्वजनिक बैठकों के साथ-साथ पार्टी बैठकों को भी संबोधित किया। राजस्थान में उन्होंने ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ यात्रा निकाली। जिससे अन्य राज्यों में आकाश की भूमिका बढ़ी है, लेकिन यूपी जैसे राज्य में, जहां पार्टी का अच्छा वोट बैंक है, वहां अभी भी सारे निर्णय बहन जी के ही हाथों में हैं। लेकिन अब कहा जा रहा है कि यहां भी आकाश की भूमिका धीरे-धीरे बढ़ेगी। खासकर जिस तरह से लालगंज में आकाश की रैली के दौरान लोगों ने नारे लगाए, ‘देखो, देखो कौन आया, शेर आया’ और ‘बसपा की क्या पहचान नीला झंडा हाथी निशान’। यहां तक कि जब अपने प्रतिद्वंदियों पर निशाना साधते समय एक मकड़ी ने उनके काम में रुकावट डाली तो उन्होंने कहा, ‘ये मकड़ियां भी ऐसी ही जाल बांधती हैं जैसे विपक्षी पार्टियां। लेकिन हमें कुचलना आता है, उन्होंने नीला गमछा पहनकर मायावती को नकारने वालों को चेतावनी दी जो कि भीम आर्मी और अन्य पार्टियों के संदर्भ में थी। उन्होंने पकौड़े तलने को ‘रोजगार’ बताने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी पर उनकी बुलडोजर राजनीति के लिए हमला बोला। साथ ही समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस पर भी जमकर निशाना साधा, वहीं चन्द्रशेखर आजाद के महत्व को खारिज करते हुए कहा कि मीडिया आजाद समाज पार्टी के प्रमुख को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देता है। कभी मृदुभाषी कहे जाने वाले आकाश के भाषणों के कुछ बयान जैसे- अब ‘कटोरा थमाया है आपको’ और ‘इनका मन चाहे तो भीख मंगवा कर कहें कि ये भी रोजगार है’ को लोकप्रियता मिल रही है।
आकाश को बहुत कुछ साबित करना होगा
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि आकाश के पास अब राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए एक मंच है, लेकिन उन्हें अभी भी बहुत कुछ साबित करना है, खासकर तब जबकि बसपा की खराब होती स्थिति एक जमीनी हकीकत है। आकाश एक राजनीतिक परिवार से हैं। राजनीतिक परिवारों के बच्चों के सामने आने से पहले ही उनकी बुनियादी ट्रेनिंग शुरू हो जाती है। आकाश के पिता भी राजनीति में थे, लेकिन भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के कारण सफल नहीं हो सके। आकाश की बात करें तो उनकी जिंदगी उनकी बुआ और पिता आनंद कुमार की तुलना में आसान थी, जो कि गौतम बुद्ध नगर के दादरी में एक दलित क्लर्क परिवार में जन्में नौ में से दो बच्चे थे। उनके भाषण देने के अंदाज और सार्वजनिक मुद्दों को उठाने की कला के कारण जिन लोगों को मायावती पर भरोसा है, उन्हें आकाश में आशा की किरण दिखाई दे रही है। यह संभव है कि समय के साथ वह आगे बढ़ें, लेकिन उनकी पहली चुनौती एससी (अनुसूचित जाति) और ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग) समुदायों के बीच समर्थन हासिल करना होगा। यह देखना होगा कि वह मतदाताओं से कितना जुड़ पाते हैं क्योंकि यह काफी साइलेंट चुनाव है और कुछ सीटों पर लोग इंडिया गठबंधन की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं।
आकाश ने जनता के साथ जुड़ाव सुनिश्चित करने के लिए अपने पहनावे में भी बदलाव किया है। उनकी आधी बाजू की सफेद शर्ट और ढीली पैंट, बसपा के दिवंगत संस्थापक-नेता काशीराम के पहनावे से मेल खाती है। उन्होंने कहा, ‘जब उन्हें पहली बार जनवरी 2019 में एक रैली में मायावती द्वारा राजनीति में लाॅन्च किया गया था तो उन्होंने ऐसे जूते पहने थे जिन्होंने अपनी कथित उच्च कीमत के कारण ध्यान अपनी ओर खींचा। फिर उन्हें सीख मिली होगी कि राजनीति में हर चीज पर ध्यान दिया जाता है और उन्होंने अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे अन्य नेताओं पर भी ध्यान दिया होगा। यह कहना जल्दबाजी होगी कि वह खुद को युवा काशीराम के रूप में पेश कर रहे हैं जिन्होंने पार्टी बनाई, लेकिन अगर वह पांच से दस साल तक काम करते हैं तो बहुत सारी संभावनाएं होंगी। बसपा केवल दलितों को ही साथ लेकर कुछ नहीं कर पाएगी और उसे अन्य समुदायों को भी साथ लेना होगा। उन लोगों को भी अपने साथ लाना होगा जो किसी और पार्टी की तरफ मुड़ गए हैं। आकाश जानते हैं कि उन्हें मुसलमानों और अन्य पिछड़े वर्गों के साथ-साथ बसपा के मुख्य मतदाता आधार को पार्टी के पाले में वापस लाना है लेकिन चुनाव बाद भाजपा के साथ गठबंधन के बारे में एक सवाल पर उनकी हालिया प्रतिक्रिया ने संकेत दिया कि उनकी राजनीति किस दिशा में जा सकती है।
एक मीडिया चैनल से बात करते हुए आकाश ने दावा किया कि बसपा का लक्ष्य सत्ता में आना है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अगर इसे इस तथ्य के साथ मिलाकर देखें कि हाल ही में भाजपा सरकार ने उन्हें वाई प्लस सुरक्षा मुहैया कराई है तो कहा जा सकता है कि बसपा भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर बहुत खिलाफ नहीं हो सकती है। क्योंकि एक क्षेत्र तक सीमित छोटी पार्टियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सत्ता में बने रहें। अन्यथा वे अपने समर्थकों को लाभ नहीं पहुंचा पाएंगे।
अजित सिंह के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक दल का यही हाल था और अब अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल (के) और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) का भी यही हाल है। बीजेपी ने छोटे दलों के साथ गठबंधन किया है। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आकाश भी इसके लिए तैयार हो सकते हैं। यह देखना होगा कि क्या बसपा कुछ सीटें जीत पाती है जो कि नतीजे आने पर ही पता चलेगा।
गौरतलब है कि महज 28 वर्षीय आनंद, जिन्हें पिछले दिसंबर में मायावती ने बसपा का भविष्य का चेहरा घोषित किया था, 2017 से राजनीति में सक्रिय हैं। जब बसपा उस साल हुए विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर सिमट गई थी। बसपा और उसके घटते हुए समर्थन वाली पार्टी के लिए वर्तमान में हो रहा आम चुनाव सामने है जो अब तक की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। उनका आगमन पार्टी द्वारा सोशल मीडिया को अपनाने के साथ हुआ और उन्हें ‘बहन जी’ को विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर जोड़ने के लिए मनाने का श्रेय दिया जाता है, जिसके लिए मायावती तैयार नहीं थीं लेकिन 2019 में मायावती ने ट्विटर को ज्वाइन किया था।