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सिंदूर पर संग्राम : धारदार विपक्ष, लाचार सरकार

मानसून सत्र के दौरान सदन में नेता विपक्ष राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर संसद में हुई बहस ने मोदी सरकार की रणनीति, जवाबदेही और कूटनीतिक सम्प्रभुता को लेकर तीखे सवालों की झड़ी लगा दी है। राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी, अखिलेश यादव, ओवैसी और महुआ मोइत्रा तक विपक्षी नेताओं ने न केवल सरकार को कटघरे में खड़ा किया, प्रियंका गांधी ने एक वाक्य में बहस की दिशा तय कर दी, ‘वे भारतीय थे।’ उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता को आतंकियों ने मारा था, इसलिए मैं पीडि़तों का दर्द जानती हूं। जब मैं उन 26 लोगों के नाम पढ़ती हूं तो इसलिए कि मुझे उनका दुख महसूस होता है।’ प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और गृहमंत्री के भाषणों में कोई नया तथ्य या तर्क नहीं था। प्रधानमंत्री का श्भारत आएगा, मार कर जाएगा’ वाला जुमला पहले भी कई बार सुनाई दे चुका है, लेकिन जब सवाल इस बात पर हो कि ट्रम्प बार-बार संघर्ष-विराम का श्रेय क्यों ले रहे हैं, तब सत्तापक्ष इस प्रश्न का सीधा उत्तर देने से बचता रहा और प्रधानमंत्री के तेवर विपक्ष की धार को कुंद करने में असफल रहे

मानसून सत्र 2025 के दौरान संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ लेकर जो बहस हुई, उसने भारतीय राजनीति में एक नए विमर्श की शुरुआत कर दी है। बहस सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई की समीक्षा तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा, कूटनीतिक सम्प्रभुता, सैन्य-नैतिकता और लोकतांत्रिक जवाबदेही का मुकम्मल परीक्षण बन गई। पहली बार सत्ता पक्ष की आक्रामक राष्ट्रवादी रणनीति विपक्ष के सोचे-समझे, साक्ष्ययुक्त और भावनात्मक हमलों के आगे फीकी पड़ती दिखाई दी।

29 जुलाई को लोकसभा और 30 जुलाई को राज्यसभा में हुई बहस में विपक्ष के तमाम प्रमुख नेताओं ने सत्ता पक्ष की उस चुप्पी को गूंजदार बना दिया, जो पहलगाम हमले, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के उद्देश्यों, डोनाल्ड ट्रम्प के मध्यस्थता दावे और पाकिस्तान को लेकर सरकार की कथित नरमी पर कायम रही।

लोकसभा में सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी उठे और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे सवालों की बौछार कर दी। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस दावे का जिक्र किया जिसमें ट्रम्प ने कहा था कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष-विराम कराया।

राहुल ने कहा,”Donald Trump has said 29 times that he brought about the ceasefire. If he is lying… let the Prime Minister say he is lying. If he has the courage of Indira Gandhi, let him say here that Donald Trump is a liar.” (डोनाल्ड ट्रम्प 29 बार कह चुके हैं कि उन्होंने संघषज्-विराम कराया। अगर वह झूठ बोल रहे हैं तो प्रधानमंत्री को यह कहना चाहिए कि वह झूठ बोल रहे हैं। अगर उनमें इंदिरा गांधी जैसा साहस है तो उन्हें इस सदन में खड़े होकर कहना चाहिए कि ट्रम्प झूठा है)। यह बयान संसद में गूंज गया।

राहुल गांधी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सैन्य रणनीति पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, “You went into Pakistan… you told our pilots to not attack their air defence systems… You tied their hands… What will happen\ Planes will fall.” (आप पाकिस्तान में घुसे…आपने अपने पायलटों से कहा कि वे पाकिस्तानी एयर डिफेंस सिस्टम को न छूएं… आपने उनके हाथ बांध दिए… फिर क्या होगा? विमान तो गिरेंगे ही)। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह पूरी कारज्वाई प्रधानमंत्री की छवि को बचाने के लिए की गई और कहा, “This was not a strategy for national security. This was a strategy to protect the image of one man. The blood of the people of Pahalgam is on the hands of the Prime Minister.” (यह राष्ट्रीय सुरक्षा की रणनीति नहीं थी। यह एक व्यक्ति की छवि बचाने की रणनीति थी। पहलगाम में मारे गए लोगों का खून प्रधानमंत्री के हाथों पर है)। इस कथन के बाद सत्ता पक्ष की सीटों से शोर मच गया लेकिन राहुल ने अपनी बात दोहराई।

राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने पाकिस्तान की सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला न करने का पहले ही वादा कर दिया था। “This amounted to a ceasefire offer on the first night… You told Pakistan that we will not hit military targets… we do not want escalation… immediate surrender in 30 minutes.” (यह तो पहले ही रात संघर्ष-विराम का प्रस्ताव था… आपने पाकिस्तान को बताया कि हम सैन्य ठिकानों को नहीं छुएंगे… हम स्थिति को नहीं बढ़ाएंगे… और 30 मिनट में आत्मसमर्पण कर दिया)। यह तर्क विपक्ष की पूरी बहस की धुरी बन गया।

प्रियंका गांधी का भाषण भावनात्मक रूप से बहस का सबसे ताकतवर क्षण बन गया। उन्होंने पहलगाम में मारे गए नागरिकों के नाम एक-एक कर संसद में पढ़े। सत्ता पक्ष की ओर से जब कुछ सदस्यों ने पूछा कि क्या वे हिंदू थे तो प्रियंका गांधी ने एक वाक्य में बहस की दिशा तय कर दी, ‘वे भारतीय थे।’ उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता को आतंकियों ने मारा था, इसलिए मैं पीडि़तों का ददज् जानती हूं। जब मैं उन 26 लोगों के नाम पढ़ती हूं तो इसलिए कि मुझे उनका दुख महसूस होता है।’

उन्होंने सरकार से पूछा, ’22 अप्रैल को पहलगाम में क्या हुआ? कैसे हुआ? और क्यों हुआ?’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘सरकार के लिए सब कुछ प्रचार बन गया है। देश की सुरक्षा, नागरिकों की जान, संसद, सब अब प्रचार और राजनीतिक इमेज बनाने के उपकरण बन गए हैं’ कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने सरकार को तथ्यों और तार्किक सवालों से बुरी तरह घेरा। उन्होंने पूछा, ‘अगर पाकिस्तान घुटनों पर था तो ‘ऑपरेशन सिंदूर’ क्यों रोका गया? आप 21 लक्ष्यों में से केवल 9 पर ही क्यों हमला कर पाए? क्या आपने पाकिस्तान को पहले ही कह दिया था कि ‘हम आपकी मिलिट्री सम्पत्तियों पर हमला नहीं करेंगे?’ उन्होंने सरकार से यह भी पूछा कि यदि यह सूचना युद्ध है तो पांच आतंकवादी पहलगाम तक कैसे पहुंच गए?

अखिलेश यादव ने पूरे भाषण को व्यंग्य की धार से सजाया। उन्होंने कहा, ‘हमें लगा था सरकार खुद घोषणा करेगी कि संघर्ष-विराम हुआ है, लेकिन सरकार ने अपने मित्र ट्रम्प से ही यह घोषणा करवा दी।’ उन्होंने कहा कि सरकार पाकिस्तान की बात वोटों के लिए करती है लेकिन असल खतरा चीन है, जिस पर सरकार बात नहीं करती।

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तीखा हमला बोलते हुए कहा, ‘व्हाइट हाउस से संघर्ष-विराम की घोषणा हो रही है और आप इसे राष्ट्रवाद कह रहे हैं? क्या भारत अब सम्प्रभु राष्ट्र नहीं रहा?’ उन्होंने सरकार की कथनी और करनी पर सवाल खड़े करते हुए कहा, ‘;आप कहते हैं पाकिस्तान से व्यापार बंद है, आसमान बंद है और फिर क्रिकेट खेलने की तैयारी करते हैं। क्या शहीदों के परिवारों से यही कहेंगे कि मैच देखिए?’

तृृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा, ‘आप कहते हैं ‘ऑपरेशन सिंदूर सफल रहा, लेकिन अगर सफलता थी तो आप रुके क्यों? संघर्ष-विराम की घोषणा ट्रम्प क्यों कर रहे हैं? अगर भारत स्वतंत्र राष्ट्र है तो यह निणज्य दिल्ली से आना चाहिए, वाशिंगटन से नहीं।’

इन विपक्षी प्रहारों के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कुछ कहा, ”वह बहस को और अधिक तनावपूर्ण बना गया। उन्होंने कहा, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जारी है। पाकिस्तान की किसी भी उकसावे की हरकत का जवाब कड़ा होगा। भारत अब आतंकी हमलों का जवाब अपनी शर्तों पर देता है, ‘भारत आएगा-मार कर जाएगा’ यह अब भारत का न्यू नॉर्मल है।’

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, ‘पूरी दुनिया में किसी भी देश ने भारत से ऑपरेशन रोकने को नहीं कहा। केवल तीन देशों ने पाकिस्तान का पक्ष लिया।’ उन्होंने इसे भारत की कूटनीतिक जीत बताया।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह कार्रवाई पूरी तरह से सीमित, लक्षित और बेहद सफल रही। उन्होंने कहा, ‘ 22 मिनट के ऑपरेशन में हमने आतंकी ठिकानों को नष्ट कर दिया। कोई भी मुख्य सैन्य संसाधन क्षतिग्रस्त नहीं हुआ।’ उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह सेना का मनोबल गिरा रहा है और देश की सुरक्षा को राजनीतिक विवाद बना रहा है।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह ऑपरेशन दो चरणों में हुआ, पहला ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जिसमें सीमापार ठिकानों को निशाना बनाया गया और दूसरा ऑपरेशन’ महादेव्य जिसमें भारत में छिपे हुए आतंकियों को मारा गया। उन्होंने यह भी कहा कि,”Terrorists were shot in the head, as the nation wanted.” (आतंकियों को सिर में गोली मारी गई, जैसा देश चाहता था)। इस बयान को लेकर विपक्ष ने नैतिक सवाल उठाए लेकिन सत्ता पक्ष ने इसे निर्णायक कार्रवाई बताया।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के लगभग 190 में से केवल तीन देशों ने पाकिस्तान का समथज्न किया, शेष पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी रही। उन्होंने ट्रम्प के दावों को नकारते हुए कहा कि भारत किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता।

इस बहस से कुछ स्पष्ट निष्कषज् निकलते हैं। पहला, सरकार के पास एक सैन्य-रणनीतिक कथा है जो श्सटीक, सीमित और संयमित कार्रवाई की सफलता पर आधारित है। लेकिन विपक्ष ने उससे अधिक एक नैतिक और संवेदनशील विमर्श खड़ा किया जिसमें मानव जीवन, पीडि़तों की पहचान और लोकतांत्रिक पारदर्शिता की बातें थीं।

दूसरा, बहस में विपक्ष ने सरकार को उस धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया जहां वह जवाब देने में असहज नजर आई। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, गौरव गोगोई और ओवैसी जैसे नेताओं ने न केवल सत्ता पक्ष की चुप्पी को उजागर किया, बल्कि सरकार की कथित राष्ट्रवादी रणनीति के खोखलेपन को भी दर्शाया।

तीसरा, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और गृहमंत्री के भाषणों में कोई नया तथ्य या तर्क नहीं था। प्रधानमंत्री का ‘भारत आएगा, मार कर जाएगा’ वाला जुमला पहले भी कई बार सुनाई दे चुका है, लेकिन जब सवाल इस बात पर हो कि ट्रम्प बार-बार संघर्ष-विराम का श्रेय क्यों ले रहे हैं? तब यह जुमला अ र्याप्त लगता है।

इस बहस की सबसे बड़ी नैतिक उपलब्धि रही प्रियंका गांधी का वह हस्तक्षेप जिसमें उन्होंने कहा, ‘वे भारतीय थे।’ जब सत्ता पक्ष के सदस्य मृतकों की धामिज्क पहचान पूछ रहे थे, तब प्रियंका गांधी का यह कथन संसद के स्तर को बचाने जैसा था। इस बहस से यह भी स्पष्ट हो गया कि संसद केवल कानून बनाने की जगह नहीं रह गई है, यह अब सत्ता की जवाबदेही तय करने का मंच भी बन रही है और इस बार विपक्ष ने यह दिखा दिया कि जब उसके पास तथ्य, संवेदना और तकज् होते हैं तो वह सत्ता से ज्यादा ताकतवर हो सकता है।

यदि कोई लोकतंत्र अपने प्रधानमंत्री से सीधा और स्पष्ट उत्तर भी न ले सके तो वह लोकतंत्र अधूरा है। इस बार संसद में विपक्ष ने अधूरे लोकतंत्र को पूरा करने की कोशिश की। सरकार चाहे जितना जोर से ‘विजय’ के नारे लगाए, लेकिन संसद में वह बहस हार गई जिसमें उसे जवाब देना था, लेकिन वह बचती रही।

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