‘उदयपुर फाइल्स’ एक संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म है जिसने एक बार फिर समाज में अभिव्यक्ति की आजादी और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच की रेखा को चर्चा में ला दिया है। जहां एक ओर यह फिल्म पीड़ित को न्याय दिलाने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इस पर नफरत फैलाने का आरोप भी लग रहा है। अब देखना यह होगा कि फिल्म सच्चाई के नाम पर समाज को जोड़ती है या और अधिक विभाजन की ओर ले जाती है


फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ रिलीज होने से पहले ही सामाजिक मुद्दों के प्रस्तुतिकरण को लेकर बहस के केंद्र में आ गई है। यह फिल्म 2022 में राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या पर आधारित बताई जा रही है। फिल्म में अभिनेता विजय राज के साथ रजनीश दुग्गल, प्रीति झंगियानी, कमलेश सावंत और मुश्ताक खान जैसे कलाकार हैं। जब से फिल्म का ट्रेलर जारी हुआ है तब से ही फिल्म को बैन करने की मांग उठ रही है। ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ और ‘जमात-ए- इस्लामी’ से लेकर समाजवादी पार्टी के नेता अबू आसिम आजमी तक फिल्म को रिलीज न किए जाने की मांग कर चुके हैं। फिल्म 11 जुलाई को सिनेमाघरों में रिलीज होनी थी और फिल्म के एक लाख एडवांस टिकट भी बुक हो चुके थे। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने रिलीज से एक दिन पहले फिल्म की रिलीज पर अस्थाई रोक लगा दी थी और याचिकाकर्ता को सेक्शन 6 के तहत केंद्र सरकार के पास अर्जी दाखिल करने को कहा था। जिसके बाद फिल्म निर्माता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा, ‘लोगों को अपनी पसंद की फिल्म देखने की अनुमति देकर भी आपके अधिकार की रक्षा की जा सकती है। आपको पुनरीक्षण निर्णय को चुनौती देने का अधिकार है।’ सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म पर रोक लगाने से इनकार करते हुए निर्देश दिया था कि हाईकोर्ट 29 जुलाई तक मामले की सुनवाई करे। जिसके बाद 28 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म पर लगी रोक हटा दी है। कोर्ट का कहना है कि ‘जब तक यह साबित न हो कि फिल्म कानून और शांति व्यवस्था के लिए खतरा है, तब तक उसे प्रतिबंधित करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल सिद्धांत के खिलाफ होगा।’ अब यह फिल्म 8 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। लेकिन फिल्म का विरोध अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। मुस्लिम समुदाय के लोग अभी भी प्रदर्शन कर रहे हैं।


फिल्म के निर्माता और निर्देशक का कहना है कि उनका उद्देश्य किसी भी समुदाय की भावनाएं आहत करना नहीं है, बल्कि वो चाहते हैं कि लोग समझें कि कट्टरता और नफरत कैसे किसी की जान ले सकती है। निर्देशक ने कहा, ‘यह फिल्म एक जागरूकता है, न कि नफरत का हथियार।’ उन्होंने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और कहा कि अब दर्शकों को खुद तय करने का मौका मिलेगा कि फिल्म में क्या सही है और क्या गलत।
क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ एक राजनीतिक-थ्रिलर ड्रामा है जो एक सच्ची घटना से प्रेरित बताई जा रही है। फिल्म का कथानक 2022 में उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल की निर्मम हत्या के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे कथित तौर पर पैगम्बर मोहम्मद पर एक सोशल मीडिया पोस्ट के समर्थन के चलते दो युवकों ने दिन-दहाड़े मार डाला था। इस घटना ने देशभर में आक्रोश फैला दिया था और व्यापक विरोध-प्रदर्शन हुए थे।

फिल्म के ट्रेलर में यह दिखाया गया है कि कैसे एक युवक अपनी दुकान पर बैठा है और दो लोग उससे बात करने के बहाने घुसते हैं और फिर कैमरे के सामने उसका गला काटकर हत्या कर देते हैं। यह दृश्य फिल्म में हूबहू वैसा ही दिखाया गया है जैसा असली घटना के वायरल वीडियो में देखा गया था।
 
क्यों उठ रहा है विवाद?

फिल्म के ट्रेलर रिलीज होते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई थी। कई लोगों ने इसे एकतरफा और भड़काऊ बताया। कुछ मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाया कि फिल्म के जरिए पूरे समुदाय को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश हो रही है। ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी दिल्ली हाईकोर्ट में ‘उदयपुर फाइल्स’ की रिलीज रोकने के लिए याचिका दायर की थी जिसमें फिल्म पर साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने और आपत्तिजनक दृश्य दिखाने जैसे आरोप लगाए गए थे। वहीं कुछ राजनीतिक दलों ने भी फिल्म को चुनावी फायदे के लिए समाज में ध्रुवीकरण फैलाने वाला कदम करार दिया है। राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में फिल्म के विरोध में प्रदर्शन हुए हैं। कुछ शहरों में इसे सिनेमा घरों में न दिखाने की मांग की गई है, वहीं दूसरी ओर कई दक्षिणपंथी संगठनों और लोगों ने फिल्म का समर्थन किया है और इसे ‘सच्चाई को सामने लाने का साहसिक प्रयास’ बताया है।
 
फिल्म पर राजनीतिक घमासान

फिल्म को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी गर्माहट देखने को मिली है। जहां कुछ दक्षिणपंथी नेताओं ने फिल्म को ‘साहसिक और सत्य आधारित’ बताया है, वहीं विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाया है कि फिल्म का उद्देश्य ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना और चुनावी फायदे लेना है।

राजस्थान के कुछ स्थानीय संगठनों ने भी पहले फिल्म की रिलीज का विरोध किया था। हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना उनकी प्राथमिकता होगी और सिनेमाघरों को पर्याप्त सुरक्षा दी जाएगी।

पूर्व सांसद और सपा नेता डाॅ. एस.टी. हसन ने भी ‘उदयपुर फाइल्स’ का विरोध किया है। एस.टी. हसन ने कहा है कि ‘देश की फिल्म इंडस्ट्री भी अब राजनीतिक हो चुकी है, भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए वोटों का धुर्वीकरण करने के लिए इस तरह की फिल्में बनाई जा रही हैं। उदयपुर की घटना पर फिल्म बनाने वालों को माॅब लिंचिंग पर भी फिल्म बनानी चाहिए थी। एक टेलर की हत्या पर फिल्म बनाई तो जिन मुसलमानों की गाय के नाम पर माॅब लिंचिंग कर दी गई उन पर भी फिल्म बनाते।’

एस.टी. हसन ने कहा कि हम पैगम्बर-ए- इस्लाम की शान में कोई भी गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं कर सकते। ‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक लगनी चाहिए। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि खराब होगी।

कांग्रेस नेता स्वर्णिम चतुर्वेदी का कहना है कि ‘फिल्म में सिर्फ एक पहलू को ही दिखाया गया होगा। इस बात को कतई नहीं दिखाया गया होगा कि पीएम मोदी समेत बीजेपी के नेताओं ने विधानसभा चुनाव के दौरान गलत बयानी की थी। यह नहीं दिखाया जाएगा कि अभी तक 90 फीसदी से ज्यादा गवाहों का बयान नहीं हो सका है। स्पेशल कोर्ट में कोई जज नहीं होने से महीनों केस का ट्रायल रुका हुआ था। यह भी नहीं दिखाया जाएगा कि कन्हैयालाल के परिवार को आज भी इंसाफ का इंतजार है। उनका बेटा आज भी नंगे पांव चल रहा है। यह भी नहीं दिखाया जाएगा कि सरकार और जांच एजेंसी के लचर रवैये के चलते दो आरोपियों को 10 महीने पहले ही जमानत मिल चुकी है। यह भी नहीं बताया जाएगा कि केस से जुड़े कई आरोपी बीजेपी से जुड़े हुए हैं।’ स्वर्णिम चतुर्वेदी ने इस फिल्म को सेंसर बोर्ड से रिलीज होने का सर्टिफिकेट दिए जाने पर भी सवाल उठाए हैं।

दूसरी तरफ राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ का कहना है कि ‘फिल्में हमेशा समाज का आईना होती हैं, अगर फिल्म के जरिए किसी घटना को बताया जा रहा है तो उसमें कुछ भी गलत नहीं है। जब घटना के बाद माहौल खराब नहीं हुआ तो अब फिल्म रिलीज होने को लेकर माहौल बिगड़ने की दुहाई क्यों दी जा रही है? उनके मुताबिक फिल्म रिलीज को लेकर विवाद खड़ा करना या मामले को बेवजह तूल देना कतई उचित नहीं है।’ मदन राठौड़ ने फिल्म को लेकर कांग्रेस पार्टी द्वारा उठाए जा रहे सवालों पर भी एतराज जताया गया है और कहा है कि संवेदनशील मामलों पर सियासत किया जाना उचित नहीं है।
 
दर्शकों की प्रतिक्रिया

जहां एक वर्ग ने फिल्म को ‘जरूरी सिनेमा’ बताया है जो सच्चाई को सामने लाता है, वहीं कुछ दर्शकों ने इसके प्रस्तुतिकरण को एकतरफा बताया है। सोशल मीडिया पर हैशटैग #UdaipurFiles ट्रेंड कर रहा है और जनता दो खेमों में बंटी नजर आ रही है।

‘उदयपुर फाइल्स’ एक संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म है जिसने एक बार फिर समाज में अभिव्यक्ति की आजादी और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच की रेखा को चर्चा में ला दिया है। जहां एक ओर यह फिल्म पीड़ित को न्याय दिलाने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है, वहीं दूसरी तरफ इस पर नफरत फैलाने का आरोप भी लग रहा है। अब देखना यह होगा कि फिल्म सच्चाई के नाम पर समाज को जोड़ती है या और अधिक विभाजन की ओर ले जाती है।

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