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सोशल मीडिया में ट्रोल आर्मी : ध्रुवीकरण का घिनौना हथियार

सोशल मीडिया पर संगठित ट्रोल आर्मी का उद्देश्य स्पष्ट है- वैकल्पिक राय को राष्ट्रविरोधी साबित करना और धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना। हिमांशी नरवाल, स्वरा भास्कर, रवीश कुमार, नीरज चोपड़ा और दीपिका पादुकोण जैसे नामचीन व्यक्तित्वों को इसके जरिए निशाना बनाया गया। सोशल मीडिया प्लेटफाॅम्र्स की निष्क्रियता और फेक नैरेटिव के माध्यम से ट्रोल आर्मी का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जो एक स्वस्थ लोकतांत्रिक संवाद के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है। पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी ने इस घटना के बाद सामाजिक सौहार्द बनाए रखने की बात कह ट्रोल आर्मी के एजेंडे को प्रभावित क्या किया कि उन पर ही इस घृणा फैलाने वाली ‘सेना’ ने निशाना साधना शुरू कर दिया है। हिमांशी पर प्रहार यह सिद्ध करता है कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग वैकल्पिक विचारों के दमन और सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है

पांच मई 2025 को पहलगाम हमले में भारतीय नौसेना के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की दुखद मृत्यु हुई। उनकी पत्नी हिमांशी नरवाल ने इस घटना के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा था, ‘हम नहीं चाहते कि लोग मुसलमानों या कश्मीरियों के खिलाफ जाएं। हम शांति चाहते हैं और केवल शांति। बेशक, हम न्याय चाहते हैं, जिन्होंने गलत किया है उन्हें सजा मिलनी चाहिए।’ उनका यह बयान सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया और एक विशेष वर्ग ने उन्हें निशाना बनाना शुरू कर दिया। नरवाल के बयान के बाद सोशल मीडिया पर एक संगठित ट्रोल आर्मी ने उन्हें अभद्र टिप्पणियों और धमकियों का सामना करने पर मजबूर कर डाला। यह वही सोशल मीडिया है, जहां कुछ दिन पहले तक उनके पति को श्रद्धांजलि देने वालों की संख्या अधिक थी। लेकिन जैसे ही हिमांशी ने शांति और न्याय की बात कही, ट्रोल आर्मी ने उन्हें देश विरोधी और कथित ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का हिस्सा घोषित कर दिया।

ट्रोल आर्मी का उद्देश्य स्पष्ट है- धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देना और किसी भी वैकल्पिक राय को राष्ट्रविरोधी साबित करना। कई नारीवादी कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों ने इसकी निंदा की। कविता कृष्णन जैसी एक्टिविस्ट ने इसे ‘सोशल मीडिया के माध्यम से मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश’ करार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि हिमांशी नरवाल को जेएनयू से जोड़कर उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस प्रकरण पर संज्ञान लेते हुए ट्रोल आर्मी की कड़ी निंदा की। महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने कहा कि किसी भी महिला को उसकी वैचारिक अभिव्यक्ति के आधार पर ट्रोल करना निंदनीय है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से भी अपील की कि इस तरह की अभद्रता पर सख्त कार्रवाई की जाए।

ट्रोल आर्मी का मकसद और राजनीतिक एजेंडा

सोशल मीडिया पर ट्रोल आर्मी का उदय कोई संयोग नहीं है। इसके पीछे एक रणनीतिक योजना है, जिसका उद्देश्य सामाजिक ध्रुवीकरण को तेज करना और विभिन्न मुद्दों को राजनीतिक लाभ के हिसाब से प्रस्तुत करना है। चाहे वह कश्मीर का मुद्दा हो, धार्मिक विवाद हों या राष्ट्रवाद से जुड़े प्रसंग, ट्रोल आर्मी की सक्रियता इन मामलों में सबसे अधिक देखी जाती है। इसके लिए फेक अकाउंट्स, बाॅट्स और प्रायोजित हैशटैग्स का सहारा लिया जाता है। ट्रोल सेना का सबसे बड़ा हथियार है- फेक नैरेटिव का निर्माण। वे किसी भी घटना को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं, जिससे आम जनता भ्रमित होती है। उदाहरण के तौर पर, हिमांशी नरवाल के बयान को ‘देशविरोधी’ करार देकर एक बड़ा नैरेटिव सेट करने की कोशिश की गई। फेक वीडियो, मॉफ्र्ड इमेज और भड़काऊ मैसेजेज द्वारा जनता के मन में एक खास विचारधारा को मजबूती से
बैठाने का प्रयास किया जाता है।

 

सोशल मीडिया प्लेटफाॅम्र्स की भूमिका

ट्रोल सेना की सक्रियता में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का भी बड़ा योगदान है। ये प्लेटफाॅम्र्स न केवल भड़काऊ कंटेंट को जगह देते हैं, बल्कि कई बार इन्हें प्रमोट भी करते हैं। इसके पीछे अक्सर राजनीतिक समर्थन या आर्थिक लाभ की संभावनाएं होती हैं। नफरत फैलाने वाले पोस्ट्स पर रिपोर्टिंग के बावजूद कई बार कार्रवाई न होना, इस समस्या को और गम्भीर बनाता है। हिमांशी नरवाल का मामला कोई अकेला उदाहरण नहीं है। इससे पहले भी ट्रोल आर्मी ने कई नामचीन हस्तियों को निशाना बनाया है। स्वरा भास्कर अपने सामाजिक और राजनीतिक विचारों के कारण बार-बार ट्रोल आर्मी का निशाना बनीं। उन्हें अक्सर ‘देशद्रोही’ और ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का सदस्य कहकर बदनाम किया गया। एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को उनकी पत्रकारिता के लिए कई बार ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा। उन्हें राष्ट्रविरोधी और पक्षपाती पत्रकार के रूप में दिखाने का प्रयास हुआ। ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा को पाकिस्तान के खिलाड़ी अरशद नदीम को आमंत्रण देने पर ट्रोल किया गया। इस घटना को भी देशविरोधी नैरेटिव के साथ जोड़कर दिखाया गया। जेएनयू विजिट के दौरान दीपिका पादुकोण को सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल किया गया और उनकी फिल्मों के बाॅयकाॅट तक की मांग उठी।

हिमांशी नरवाल का प्रकरण यह दिखाता है कि किस प्रकार से सोशल मीडिया का इस्तेमाल वैकल्पिक आवाजों को दबाने और सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने में किया जा रहा है। राष्ट्रीय महिला आयोग का हस्तक्षेप एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इससे आगे भी सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि सोशल मीडिया एक स्वस्थ संवाद का माध्यम बने, न कि नफरत और भड़काऊ विचारधाराओं का अखाड़ा। ट्रोल सेना के खिलाफ कानूनी सख्ती और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही सुनिश्चित करना आज की आवश्यकता बन गई है।

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