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स्टाइल डायरीज : फैशन, रिश्ते और यादों का दूसरा घर

मेरे लिए लॉस तिलारेस सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, एक रिश्ता था, ऐसा रिश्ता जो विश्वास पर टिका था। जूलियन रश मेरे लिए पिता-समान थे, रिकार्डो मेरे सबसे बड़े समर्थक और बिट्रीज मेरी साझेदार। स्पेन मेरे लिए दूसरा घर बन गया और उसकी नींव में ये रिश्ते हैं। मैंने वहां जाना कि व्यापार यदि रिश्तों से जुड़ा हो तो वह केवल लाभ-हानि की बात नहीं करता, वह दिल से दिल जोड़ता है। रिकार्डो और बिट्रीज से मेरा संवाद आज भी बना हुआ है। जब भी हम बात करते हैं तो लॉस तिलारेस की बातें आती हैं और साथ आता है एक भावनात्मक कम्पन, जैसे कोई अपना घर याद कर रहा हो

इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के फैशन को अक्सर एक वैश्विक मिश्रण के रूप में वर्णित किया जाता था, जहां रुझानों में पुरानी शैलियों, वैश्विक और जातीय परिधानों (जैसे बोहो) के साथ-साथ कई संगीत आधारित उपसंस्कृतियों के फैशन का मिश्रण देखा गया। वैश्वीकरण ने भी दशक के परिधानों के चलन को प्रभावित किया, जिसमें मध्य पूर्वी और एशियाई परिधानों को मुख्यधारा के यूरोपीय, अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई फैशन में शामिल किया गया।

हमारे द्वारा तैयार किए गए डिजाइनों में भारतीय संस्कृति की झलक, कढ़ाई, प्रिंट और पारम्परिक तत्व होते थे जिन्हें स्पेनिश ग्राहकों ने काफी पसंद किया। मेरे व्यवसाय की यात्रा शुरू होती है 2002 में जब मुझे एक फोन आता है रिकार्डो नाम के एक स्पेनिश व्यक्ति का कि वह भारत आया है और मुझसे मिलना चाहता है। मैं उस समय मफतलाल ग्रुप में मार्केटिंग मैनेजर की पोजिशन पर काम कर रही थी। मैं रिकार्डो से ताज मानसिंह होटल में मिलने गई। वह अपनी पत्नी और कुछ अन्य स्पेनिश व्यक्तियों के साथ वहां ठहरा था। जब मैंने 2002 में फैशन व्यवसाय की दुनिया में कदम रखा, मेरे सामने सपनों का बड़ा आसमान था, लेकिन राह में अनगिनत चुनौतियां भी थीं। कपड़ों की डिजाइनिंग, उत्पादन और आपूर्ति में अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाना आसान नहीं था, खासकर जब संसाधन सीमित हों और बाजार अनजाने हों। तभी मेरे जीवन में बजरिए रिकार्डो आया। लॉस तिलारेस – स्पेन की एक प्रसिद्ध फैशन रिटेल चेन, जिसने मेरे सपनों को पंख दिए और मेरे पेशेवर जीवन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

मेरा रिकार्डो से परिचय छह महीने पहले ही गुरुग्राम की एक कम्पनी में हुआ था, जहां तब मैं काम करती थी। उस कम्पनी के मालिकों ने रिकार्डो का मजाक बनाया क्योंकि वह इंग्लिश अच्छी नहीं बोल पाता था। मैंने अपना इस्तीफा दे दिया क्योंकि मेरे लिए बहुत जरूरी है कि लोग भले ही साथ काम न करें, पर किसी का उपहास न बनाएं, खासकर जब वह व्यक्ति दूसरे देश से आया हो। इस घटना के बाद मैं बहुत छोटा महसूस कर रही थी और बार-बार यही सोच रही थी कि रिकार्डो क्या सोचेगा। मैंने मफतलाल ग्रुप ज्वाइन किया और काम में व्यस्त हो गई, पर समय- समय पर वह वाक्या मुझे कचोटता रहता था। फिर उस दिन रिकार्डो का फोन आया। मुझे बहुत खुशी हुई। मैं मिलने पहुंच गई। उसने अपने कमरे में अपनी पत्नी और टीम के अन्य सदस्यों से मिलवाया। उसकी पत्नी मैगी केवल घूमने के लिए आई थी, पर उसे इंग्लिश का एक भी शब्द नहीं आता था। पहले यूरोपियन देशों में अंग्रेजी नहीं पढ़ाई जाती थी, इसलिए लोगों को बेहद मुश्किल होती थी। आज भी मैं इटली, फ्रांस, स्पेन से कई ऐसे लोगों से मिलती हूं जो अब भी अंग्रेजी नहीं बोल पाते और समझ पाते हैं।

मैंने मैगी को दिल्ली घुमाने का आग्रह किया और रिकार्डो से कहा कि हमारे एक्सप्रेशंस की भाषा पूरे विश्व में एक ही होती है। मैं उसे इशारों से सब समझा दूंगी। वैसे भी वह होटल में बैठकर बोर ही हो रही थी। मैंने उसे लुटियन दिल्ली और दिल्ली हॉट घुमाया। एक छोटा-सा तोहफा भी दिया। वह बहुत खुश थी। वापस होटल छोड़ने पर रिकार्डो ने ताजमहल देखने की इच्छा जताई और मुझे लगा ईश्वर ने मुझे मौका दिया है यह साबित करने का कि हिंदुस्तान में अच्छे लोग भी रहते हैं। मैंने अपनी तरफ से उनके लिए टैक्सी अरेंज की। उस समय मेरी आय सीमित थी, पर मुझे उस पहले वाक्ये की ग्लानि थी। वे ताजमहल घूमकर स्पेन लौट गए। संवाद समाप्त हो गया। मुझे लगा मेरा ऋण चुक गया।

करीब छह-आठ महीने बाद रिकार्डो का फिर फोन आया, वही होटल, वहीं मिलने की इच्छा। इस बार उसकी कम्पनी के ज्यादा लोग और कुछ भारतीय एजेंट भी थे। मैं मैगी से फिर मिली। उसका स्वभाव इतना अच्छा था कि लगा ही नहीं वह दूसरी मुलाकात थी। इस बार रिकार्डो ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनकी कम्पनी के लिए काम कर सकती हूं? बाद में पता चला कि मैगी ने रिकार्डो से कहा- ‘‘यह लड़की बहुत ईमानदार और मेहनती लगती है। इसे मौका देना चाहिए।’’ मैंने तुरंत हामी भर दी, लेकिन मन में सवाल उठे कि कम्पनी के बारे में तो कुछ नहीं जानती। मैंने कहा- ‘‘मैं स्पेन आना चाहती हूं, कम्पनी के मालिक से मिलकर और कम्पनी को देखकर ही निर्णय लूंगी।’’ मुझे एक एजेंट की भूमिका निभानी थी, विदेशी कम्पनी और भारतीय मैन्युफैक्चर के बीच की कड़ी। चूंकि मेरे परिवार में किसी ने कभी व्यापार नहीं किया था, डर भी था। अगर पैसे देने में कम्पनी फेल हुई तो मैं कैसे चुकाऊंगी? तभी तय किया कि बिना स्पेन जाकर, कम्पनी को देखे और मालिक से मिले बिना काम नहीं करूंगी।

रिकार्डो के वापस जाते ही मुझे वीजा इनविटेशन भेजा गया। टिकट खरीदने के बाद सिर्फ 13-14 हजार रुपए बचे थे और मैं एक हफ्ते के लिए जा रही थी। मेरे पास सिर्फ टिकट था और ढेर सारे सपने। हिम्मत की, सामान में पंखी रख ली कि जरूरत पड़ेगी। मुझे मैड्रिड से 450 किलोमीटर दूर ओविदियो जाना था, उत्तर स्पेन का बेहद खूबसूरत शहर। मैड्रिड पहुंच कर पहली दिक्कत हुई भाषा। इंग्लिश किसी को नहीं आती थी। ट्रेन टिकट किसी तरह लिया, लेकिन घर फोन करने में दिक्कत आई। तभी एक वृद्ध व्यक्ति आया, अपना कार्ड दिया और इशारे से समझाया, उससे फोन मिला लिया। जब तक फोन किया, देखा वह व्यक्ति गायब। डर लगा कि कहीं चोरी का इल्जाम न लगे। फिर रेस्टोरेंट में देखा, वह शख्स वाइन पीकर गाना गा रहा था! मैंने पैसे देने चाहे, उसने स्पेनिश में कुछ बोला जिसे मैंने उसके एक्सप्रेशन से समझा जा, ‘जा, मौज कर।’ यह एक डर से भरा लेकिन बहुत मानवीय अनुभव था।

रात की ट्रेन से ओविदियो पहुंची। रिकार्डो स्टेशन पर लेने आया। कम्पनी ऑफिस 35 किलोमीटर दूर था। कुछ घंटे बाद मैं कम्पनी के मालिक के सामने थी, 45-50 की उम्र के जूलियन रश। रिकार्डो की इंग्लिश अब अच्छी हो गई थी, वह ट्रांसलेशन करता रहा। जूलियन से मिलकर बहुत अच्छा लगा। पंद्रह मिनट में ही मैं समझ गई, यह व्यक्ति भरोसे के लायक है और मैं इस कम्पनी के साथ काम कर सकती हूं। शोरूम, वेयरहाउस सब देखकर मेरा संकोच मिट गया और मैंने भारत में लॉस तिलारेस की आधिकारिक प्रतिनिधि बनने का फैसला कर लिया।
इक्कीसवीं सदी के दशक के अंतिम वर्षों में इंडीटेक्स (Zara, Pull & Bear), H&M और Mango जैसे ब्रांड्स ने हर महीने नए कलेक्शन लॉन्च कर दिए। उपभोक्ता अब स्टाइल को तेजी से बदलना चाहते थे और हर बार कुछ नया खरीदना चाहते थे। लॉस तिलारेस इस बदलाव के लिए तैयार नहीं था। उनकी आपूर्ति प्रणाली पारम्परिक थी, सीजन के आधार पर संग्रह तैयार होता था। दूसरी तरफ, नए ब्रांड हर दो हफ्ते में नया कलेक्शन स्टोर में ला रहे थे। प्रतिस्पर्धा के इस युग में लॉस तिलारेस पिछड़ने लगा।

2008 में यूरोपीय आर्थिक संकट ने आग में घी का काम किया। क्रय शक्ति में गिरावट, कर्ज में इजाफा और अंततः 2013 में कम्पनी को दिवालियापन में जाना पड़ा। 2014 में Gryphus Partners (स्विट्जरलैंड स्थित एक निवेश फंड) ने कम्पनी को अधिग्रहित किया, लेकिन जल्द ही स्पष्ट हो गया कि नए प्रबंधन के पास अनुभव और भावनात्मक जुड़ाव की कमी थी।

2015 तक लॉस तिलारेस ने कई स्टोर्स बंद कर दिए, कर्मचारियों की छंटनी की गई और पुराने सप्लायर्स के साथ सम्बंध टूटने लगे। रिकार्डो और बिट्रीज ने अंतिम क्षणों तक इसे बचाने की कोशिश की, लेकिन वित्तीय दबाव असहनीय था। जूलियन रश जिन पर शुरुआती जांच और आरोप लगे, उन्हें 2017 में निर्दोष घोषित कर दिया गया। लेकिन तब तक वह सपना, जिसने कई लोगों को जोड़ा था, बिखर चुका था।

मेरे लिए लॉस तिलारेस सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, एक रिश्ता था, ऐसा रिश्ता जो विश्वास पर टिका था। जूलियन रश मेरे लिए पिता-समान थे, रिकार्डो मेरे सबसे बड़े समर्थक और बिट्रीज मेरी साझेदार। स्पेन मेरे लिए दूसरा घर बन गया और उसकी नींव में ये रिश्ते हैं। मैंने वहां जाना कि व्यापार यदि रिश्तों से जुड़ा हो तो वह केवल लाभ-हानि की बात नहीं करता, वह दिल से दिल जोड़ता है। रिकार्डो और बिट्रीज से मेरा संवाद आज भी बना हुआ है। जब भी हम बात करते हैं तो लॉस तिलारेस की बातें आती हैं और साथ आता है एक भावनात्मक कम्पन, जैसे कोई अपना घर याद कर रहा हो।

इस यात्रा से मैंने सीखा, बाजार की हवा हर समय बदल सकती है, खुद को उसके अनुरूप ढालना सीखिए। रिश्तों में ईमानदारी और व्यवसाय में भरोसा सबसे बड़ा पूंजी है। सपनों के पीछे भागते हुए अगर दिल साफ हो तो रास्ते खुद बनते जाते हैं।

लॉस तिलारेस मेरे लिए कभी बंद नहीं हुआ। वह अब भी जिंदा है- मेरी सोच में, मेरे कार्य में, और हर उस युवा फैशन डिजाइनर की आँखों में जो कुछ नया कर गुजरना चाहता है। इस ब्रांड ने मुझे केवल काम नहीं दिया- इसने मुझे आत्मविश्वास दिया, दृष्टि दी और एक जीवन भर का रिश्ता दिया।
 
गीतिका क्वीरा

फैशन डिजाइनर और वस्त्र निर्यातक

(लेखिका एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित वस्त्र निर्यातक हैं। उन्होंने यूरोप, अमेरिका और मध्य एशिया के प्रमुख फैशन ब्रांड्स के साथ काम किया है। भारतीय पारम्परिक बुनाई और आधुनिक वैश्विक डिजाइन के समन्वय में उनकी विशेष पहचान है।)
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