पौड़ी जिला पंचायत फर्जी टेंडरों, अफसरों की पत्नियों की फर्मों को करोड़ों का भुगतान, मानचित्रों की अवैध स्वीकृति और विदेश यात्राएं शासन से छिपाकर किए जाने जैसे गम्भीर भ्रष्टाचार के खुलासों चलते ‘जीरो टाॅलरेंस’ के नए ‘कीर्तिमान’ स्थापित कर रहा है। हालात इतने विकट हैं कि आरटीआई कार्यकर्ता एवं पत्रकार विजय रावत को तो सूचना देने तक से इनकार कर दिया गया है। विजय रावत को पत्र भेजकर कहा गया कि उनका इरादा गलत है और पुलिस को रावत के खिलाफ पत्र तक दिया गया है। हालांकि राज्य सरकार ने दो भ्रष्ट अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया है लेकिन इसको केवल ‘चेहरा बचाने की कवायद माना जा रहा है
उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल जिले की जिला पंचायत में भ्रष्टाचार की परतें अब जनता के सामने खुलकर आ रही हैं, लेकिन चैंकाने वाली बात यह है कि इस भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले पत्रकारों और आरटीआई कार्यकर्ताओं को ही प्रताड़ित किया जा रहा है। ‘विजयपथ न्यूज पोर्टल’ के सम्पादक विजय रावत ने जब आरटीआई के माध्यम से सफाई मद और नक्शा स्वीकृति जैसे विषयों पर जानकारी मांगी तथा उसके आधार पर खबरें प्रकाशित कीं तो जिला पंचायत के अधिकारियों ने उन्हें जानकारी देना तो दूर, पुलिस और अपने उच्च अधिकारियों को पत्र भेजकर कहा कि वे अब उन्हें कोई सूचना नहीं देंगे।
पत्रकार विजय रावत ने कर निरीक्षक अनिल नेगी के खिलाफ आरटीआई दाखिल की थी, जिसमें उनकी नियुक्ति, कार्यभार और कथित वित्तीय अनियमितताओं की जानकारी मांगी गई थी। इसके बाद जो प्रतिक्रिया आई वह अभूतपूर्व हैं। जिला पंचायत पौड़ी के अधिकारियों ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक पौड़ी को पत्र लिखकर विजय रावत पर ‘परेशान करने’ और ‘झूठी सूचनाएं फैलाने’ का आरोप लगाया है। साथ ही यह स्पष्ट कर दिया गया कि ‘‘आपके द्वारा मांगी जा रही सूचनाएं दुर्भावनापूर्ण हैं और उनके दुरुपयोग की आशंका है, अतः आगे आपको कोई सूचना नहीं दी जाएगी।’’
यह प्रतिक्रिया न केवल सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6 और 7 का उल्लंघन है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक निर्णय का भी सीधा अपमान है, जिसमें न्यायालय ने कहा था- “The right to information is a fundamental right flowing from Article 19(1)(a) of the Constitution. Any attempt to obstruct this right without legally justifiable reason is unconstitutional.” (Central Board of Secondary Education & Anr vs Aditya Bandopadhyay & Ors, 2011)
(‘‘सूचना का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) से उत्पन्न एक मौलिक अधिकार है। इस अधिकार को बिना किसी कानूनी वैध कारण के बाधित करने का कोई भी प्रयास असंवैधानिक है।’’)
गौरतलब है कि पौड़ी जिला पंचायत में व्याप्त गम्भीर वित्तीय अनियमितताएं सामने आई हैं। विभागीय जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि कनिष्ठ अभियंता सुदर्शन सिंह रावत ने अपनी पत्नी के नाम पर पंजीकृत कम्पनी बुटोला इंटरप्राइजेज को 1.47 करोड़ रुपए का भुगतान दिलवाया। उन्होंने खुद को प्रभारी अभियंता घोषित करते हुए कई होटल और भवन मानचित्र स्वीकृत किए, जबकि शासनादेश और सेवा नियमों के अनुसार वे उस पद पर अधिकृत नहीं थे। यही नहीं, उन्होंने विभाग को अपनी हिस्सेदारी की जानकारी नहीं दी और बिना अनुमति के विदेश यात्रा भी की।
दूसरे आरोपी, तत्कालीन कनिष्ठ अभियंता आलोक रावत ने भी एक निर्माण परियोजना में अपनी पत्नी के नाम पर फर्म बनाकर 1.47 करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि प्राप्त की। शासन की जांच में पाया गया कि फर्म का पंजीकरण, स्वीकृति और भुगतान की प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं थीं।
उत्तराखण्ड शासन ने इस प्रकरण की जांच के बाद 21 जुलाई 2025 को दोनों अभियंताओं की सेवा समाप्ति के आदेश जारी कर दिए। शासनादेश में स्पष्ट रूप से कहा गया कि दोनों ने विभागीय सेवा नियमों, आचरण संहिता और लोकहित के विरुद्ध आचरण किया। उनके कृत्य विभागीय अनुशासनहीनता और जनविरोधी हैं, जिन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता।
इस पूरे घोटाले में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जगदीश रोथान की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है। आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों में जगदीश रोथान द्वारा स्वीकृत कई फर्जी भुगतान और असत्यापित कार्य स्वीकृतियां दर्ज हैं। हालांकि उनके विरुद्ध अब तक किसी कार्रवाई की पुष्टि नहीं हुई है, परंतु जांच जारी है।
इस विषय में जिलाधिकारी पौड़ी स्वाति एस. भदौरिया ने ‘दि संडे पोस्ट’ से बातचीत में कहा, ‘‘मामले की जांच की जा रही है, दोषियों को किसी भी हालत में नहीं बख्शा जाएगा और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।’’
यह पूरा प्रकरण उत्तराखण्ड की पंचायतीराज व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही की पोल खोलता है।
‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ की रिपोर्टों में पहले ही यह संकेत दिया गया है कि भारत में सबसे अधिक भ्रष्टाचार स्थानीय निकायों, विशेषकर पंचायतों, में होता है। पौड़ी का यह मामला इसका जीवंत उदाहरण बन चुका है, जहां एक ओर अफसरों की पत्नियों के नाम से ठेके पास हो रहे हैं तो दूसरी तरफ उन पर सवाल उठाने वालों को धमकाया जा रहा है।
अब जब शासन ने दो अधिकारियों को सेवा से बर्खास्त कर स्पष्ट संदेश दिया है तो सवाल यह है कि क्या पत्रकार विजय रावत जैसे लोगों को न्याय मिलेगा? क्या आरटीआई का हनन करने वाले अधिकारियों पर भी आपराधिक कार्यवाही होगी? क्या राज्य की लोकतांत्रिक संस्थाएं पत्रकारों और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने में सक्षम साबित होंगी? पौड़ी का यह मामला अब केवल एक जिले की कहानी नहीं, बल्कि उत्तराखण्ड के लोकतंत्र, पारदर्शिता और प्रेस की स्वतंत्रता की कसौटी बन चुका है।
बात अपनी-अपनी
विजय रावत, सम्पादक, ‘विजय पथ’ न्यूज पोर्टल