- सुमन मिश्रा
प्रबंध सम्पादक, सूफीनामा ‘रेख़्ता’ फाउंडेशन
उत्तराखण्ड का पहला पुस्तकालय ग्राम जनपद रुद्रप्रयाग का मणिगुह गांव है। यह गांव उत्तराखण्ड के किसी भी दूसरे पर्वतीय गांव से अलग नहीं है लेकिन अब इसकी एक कहानी है जो इसे ज्ञान के अद्भुत संसार से जोड़ती है। किताबें अपने साथ कई कहानियां लेकर आती हैं। हम सब भी एक कहानी हैं। यहां आकर यूं लगता है मानो कहानी स्वयं कहानी पढ़ रही है। यह जीवित कहानी है, जिस के पात्र कहानियां पढ़ रहे हैं। पुस्तकालय गांव के हर घर में एक पुस्तकालय स्थापित करने का लक्ष्य है। यहां गांव के उत्पादों को भी बड़ी सराहना मिली है। धीरे-धीरे यह गांव पुस्तक प्रेमियों का पसंदीदा स्थल बनने की ओर अग्रसर है
दो साल पहले यही समय था जब हम ने निश्चय किया था कि उत्तराखण्ड के एक गांव को इस राज्य का पहला पुस्तकालय गांव बनाएंगे। पुस्तकालय गांव के स्वरुप पर कई लम्बी चर्चाएं हुईं और यह तय हुआ कि पुस्तकालय को अगर ग्रामीणों के व्यक्तित्व का हिस्सा बना दिया जाए तो अपनी इस नई पहचान को बनाए रखने के लिए वह जरूर पुस्तकालय से जुडेंगे। कई स्वयंसेवी संस्थाओं की कार्यशैली का अध्ययन करने के बाद हमें यह भी मालूम पड़ा कि सिर्फ शिक्षा या रोजगार पर कार्य करने से यह काम नहीं हो पाएगा। हमें शिक्षा, रोजगार, पलायन और पर्यावरण इन सब विषयों पर एक साथ काम करना पड़ेगा क्योंकि इन सब के बीच संतुलन तभी हो सकता है जब इन पर एक साथ काम किया जाए।

हमारी पत्नी बीना नेगी उत्तराखण्ड से हैं और इनके परिवार ने पलायन के दंश को झेला है। आज तक इनके पैतृक गांव बांझगुड्डू तक सड़क नहीं पहुंची है। हमारे इस प्रयास में दो प्यारे लोग और जुड़े- राहुल एवं आलोक और इस प्रकार हमारा गांव घर फाउंडेशन को रजिस्टर करवाया गया। उत्तराखण्ड के कई गावों में घूमने के बाद यह तय हुआ कि बीना की नानी के गांव मणिगुह को पुस्तकालय गांव बनाया जाए। मणिगुह में ही एक घर ढूंढ़ा गया और इस प्रकार गांव-घर पुस्तकालय की तलाश पूरी हुई। मणिगुह ग्रामसभा में कई छोटे गांव हैं। बंडी, स्यालडोभा, माल्खी, खाल्युं, खामोली और प्रतापनगर आदि छोटे-छोटे गांव अलग-अलग बसे हैं जिन्हें मिला कर मणिगुह ग्रामसभा बनती है। इनमें से कुछ गावों तक तो अभी भी सड़क नहीं पहुंची है। खामोली के लोग आज भी 5 किलोमीटर पैदल चलकर मणिगुह आते हैं। इन सब समस्याओं को देख कर हमें एहसास हुआ कि प्रतिदिन पुस्तकालय आना बच्चों के लिए संभव नहीं है। क्यूं न पुस्तकालय को बच्चों तक पहुंचाया जाए। सड़क के किनारे ग्रामदेवता के छोटे-छोटे मंदिर पूरे उत्तराखण्ड में मिल जाते हैं। हमें उन मंदिरों से ही प्रेरणा मिली और पुस्तक मंदिरों का विचार आया। हमने शुरुआत में आठ पुस्तक मंदिर बनवाए और इन मंदिरों को अलग-अलग क्षेत्रों में स्थापित किया। इन मंदिरों की देखभाल की जिम्मेदारी वहां की लड़कियों के जिम्मे दी गई। अब बच्चों के लिए किताबें उन के घर के पास ही उपलब्ध थीं। उत्तराखण्ड को देवभूमि भी कहा जाता है। इस प्रकार के पुस्तक मंदिर देश भर में और कहीं नहीं हैं। शिक्षा के मदिरों को देख कर एक ग्रामवासी ने हमें कहा- ‘मणिगुह तो पुस्तक तीर्थ बन गया है।’
मैंने इस बारे में फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी और सैकड़ों लोग हम से जुड़ गए। ‘रेख़्ता’ में हमारे साथी अविनाश मिश्र भाई ने सब से पहले 200 किताबें पुस्तकालय को दान की। प्रसिद्ध नाटककार श्री ललित मोहन थपलियाल जी की बेटी आभा थपलियाल जी ने जब हमारे विषय में सुना तो उन्होंने हमें दो हजार से अधिक किताबें दान की। भगवान सिंह जी ने भी 500 किताबें दान की। देखते ही देखते 4000 किताबें जमा हो गईं। दिल्ली से किताबों को बक्सों में भर कर दिवाली के दिन ट्रक द्वारा मणिगुह पहुंचाया गया। वहां से खच्चरों पर लाद कर किताबें पुस्तकालय पहुंचाई गईं।
इस प्रकार 26 जनवरी 2023 को उत्तराखण्ड के पहले पुस्तकालय गांव का विधिवत उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर तीन दिनों का गांव घर महोत्सव मनाया गया जिसमें देशभर के प्रोफेसर, कलाकार,
चिंतक, पत्रकार, कवि और साहित्यकार शामिल हुए. गांव के बच्चों का यह पहला अनुभव था। पुस्तकालय के लिए हमने एक लाइब्रेरियन की व्यवस्था की और साथ में एक सफाई कर्मी की भी नियुक्ति हुई। शुरू में गांव के लोगों का रुझान पुस्तकालय को लेकर बहुत ज्यादा नहीं था। दिनभर में 10-15 बच्चे पुस्तकालय आते थे लेकिन यह संख्या धीरे-धीरे बढ़ी और पुस्तकालय आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ कर 35 हो गई। हमने कुछ महीने बाद ही पुस्तक मैराथन का आयोजन किया जिसमें आस-पास के कई विद्यालयों ने हिस्सा लिया। उत्तराखण्ड में आयोजित यह पहली पुस्तक मैराथन थी।
कुछ ही महीनों के बाद हमें यह एहसास हुआ कि गांव की उत्पादकता मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा आधी है क्योंकि शाम होते ही यहां सब कुछ रुक जाता है। बिजली की पर्याप्त आपूर्ति न होने की वजह से आस- पास के क्षेत्रों में घना अंधकार छा जाता है और जंगली जानवरों का भी भय होता है। गांव की महिलाएं यह समय या तो घर के कामों में व्यतीत करती हैं या फिर मोबाइल में रील्स देखती हैं। इसी समय गांव घर एक्सपीरियंस की शुरुआत हुई। हमने गांव घर एक्सपीरियंस के माध्यम से गांव की महिलाओं को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई। इसके लिए हम ने गांव में ही 4 दिवसीय पिरूल कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें पिरूल वूमेन के नाम से प्रख्यात मंजू आर साह जी ने गांव की महिलाओं को चीड़ के पत्तों से राखियां और दूसरी वस्तुएं बनाना सिखाया। गांव की महिलाओं ने इसके बाद पिरूल की बड़ी सुंदर राखियां बनाई जिसे गांव घर एक्सपीरियंस के माध्यम से देश भर में बेचा गया। गांव की महिलाओं के हाथ में उनकी पहली कमाई देखना हमारे लिए भी एक भावुक कर देने वाला पल था। गांव घर एक्सपीरियंस के माध्यम से हमने गांव में होम स्टे भी शुरू किए। मणिगुह का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। यहां से हिमालय की कई पर्वतमालाएं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। गांव से प्रसिद्द मंदिर कार्तिक स्वामी का ट्रेक भी किया जा सकता है जो पारंपरिक रास्ते से कहीं अधिक सुंदर और रोमांचक है।
इस एक साल की अवधि में हमने उत्तराखण्ड के दूसरे स्वयंसेवी संस्थाओं जैसे अजीम प्रेमजी फाउंडेशन और टाटा हिमोत्थान ट्रस्ट के साथ मिलकर भी पुस्तकालय गांव में आयोजन किए। इस वर्ष भी गांव-घर महोत्सव धूम-धाम से मनाया गया जिसमें कला-कार्याशाला के साथ-साथ फिल्म स्क्रीनिंग और करियर काउंसलिंग भी की गई। गांव में पठन-पाठन की अपनी चुनौतियां हैं। सर्दियों में बच्चों की संख्यां में जब कमी हुई तो हमने अभिभावकों से बात की। उन का कहना था कि बच्चे सुबह आठ बजे स्कूल के लिए निकल जाते हैं और घर वापस आते उन्हें चार बज जाते हैं। लाइब्रेरी पहुंचते-पहुंचते साढ़े चार बजेंगे और पांच बजे अंधेरा हो जाता है। बरसातों में तो पूरा पहाड़ रुक जाता है। इन समस्याओं को गांव में रहकर ही समझा जा सकता है। पहाड़ की चुनौतियां भी पहाड़ से कम नहीं हैं लेकिन इन चुनौतियों से जूझ कर जब जीवन हंसता है तब इनकी हंसी की आवाज सब पर्वतों को पार कर जाती है।
इस एक साल में गांव में पुस्तकों की संख्या काफी बढ़ गई है। गांव के पुस्तकालय में अब कई विशिष्ट व्यक्तियों का निजी संग्रह भी उपलब्ध है जो और कहीं नहीं मिलता। इस में श्री ललित मोहन थपलियाल, शशि भूषण द्विवेदी, आग्नेय और रमेश पहाड़ी जी का संग्रह उल्लेखनीय है। अभी पुस्तकालय में दो कमरे हैं और करीब 15000 किताबें हैं। इनकी संख्यां में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। पुस्तकालय में कम्प्यूटर की भी व्यवस्था है ताकि बच्चे यहां कम्प्यूटर शिक्षा प्राप्त कर सकें। इन सब के साथ प्रोजेक्टर पर फिल्में भी दिखाई जाती हैं ताकि देश-विदेश की संस्कृति से बच्चे अवगत हों।


