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उत्तराखण्ड को कहा तो देवभूमि जाता है लेकिन यह आपदा भूमि बनकर रह गई है। अनियोजित विकास, अनियोजित खनन और जंगलों का अवैध कटान आदि चलते यह राज्य आपदा का केंद्र बन गया है। यहां हालात इतने विकट हैं कि जिस आपदा प्रबंधन विभाग पर आपदा से निपटने के लिए पुख्ता इंतजामात की जिम्मेदारी है, वह स्वयं आपदाग्रस्त हो चला है। यहां एक के बाद एक डिजास्टर मैनेजमेंट विशेषज्ञ अपने पदों से त्याग पत्र दे रहे हैं। ऐसे विशेषज्ञों को हालिया समय तक आपदा सचिव रहे रंजीत सिन्हा के कोप का शिकार बनना पड़ रहा है और विभाग भीतर चल रही सिर फुटौव्वल का असर आपदा प्रबंधन पर पड़ने लगा है। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सिन्हा को आपदा राहत और पुनर्वास से जुड़े सभी पदों से हटा दिया है लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस का मानना है कि धामी ने देर से निर्णय लिया और अब मानसून शुरू होने चलते सही आपदा प्रबंधन कर पाना नए सचिव के लिए खासा दुष्कर होगा
मानसून शुरू होने के साथ ही प्रदेश में आपदा का दौर शुरू हो चुका है। ऐसे में जिस आपदा प्रबंधन विभाग को सबसे ज्यादा सक्रिय होना चाहिए वह खुद आपदाग्रस्त हो चला है। एक साथ कई अधिकारियों ने अपने पद से त्याग पत्र देकर विभाग की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में ला खड़ा कर दिया है, साथ ही त्याग पद देने वाले अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाते हुए उनको कारण बताओं नोटिस जारी होने से मामला और भी गम्भीर हो चला है। हैरत की बात यह है कि प्रदेश का आपदा प्रबंधन विभाग मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास होने के बावजूद विभाग के हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं।
प्रदेश में प्री-मानसून में ही कई जिलों में भारी बरसात के बाद एक के बाद एक आपदाएं सामने आ चुकी हैं। इससे पूर्व प्रदेश के वनों में भीषण आग की घटनाओं चलते न केवल हजारों हेक्टेयर वन भूमि आग की भेंट चढ़ गई, बल्कि एक दर्जन के करीब लोग इस वनाग्नि में जान से हाथ गंवा बैठे। अब जुलाई माह में प्रदेश में मानसून आ चुका है और विगत एक सप्ताह से प्रदेश के कई जिलों में भारी बरसात के चलते नदियों का जल स्तर भी तेजी से बढ़ा है जिससे नदी के किनारे बसे शहरों और पहाड़ी इलाकों में आपदा की आशंकाएं बढ़ चुकी हैं। अनेक स्थानों पर जबर्दस्त भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। राज्य सरकार द्वारा चारधाम यात्रा को रोके जाने के भी निर्देश जारी किए गए हैं। ऐसे सम्भावित आपदा के माहौल में प्रदेश के आपदा प्रबंधन विभाग में मची उथल-पुथल चलते गम्भीर सवाल और गम्भीर आशंकाए सिर उठाने लगी हैं। विगत दो वर्ष में 8 अधिकारियों और तकनीकी विशेषज्ञ अपने पद से त्याग पत्र दे चुके हैं और 6 को पद मुक्त किया जा चुका है। दो अन्य अधिकारी अपने मूल विभाग में लौट चुके हैं। इसके चलते आज आपदा प्रबंधन विभाग में लगभग सभी महत्वपूर्ण पद खाली हो चुके हैं।
गौरतलब है कि आपदा प्रबंधन विभाग यूं तो हमेशा से ही विवादों में घिरा रहता आया है, हाल ही में आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ के पद पर तैनात गिरीश चंद जोशी द्वारा अपने पद से त्यागपत्र देने पर तत्कालीन कार्यक्रम निदेशक व आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा ने उन्हें तथा कई अन्य अधिकारियों जिन्होंने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया है, सभी को कारण बताओ नोटिस जारी करके पूरे विभाग को संकट के कगार पर ला खड़ा किया है।
‘दि संडे पोस्ट’ को मिली जानकारी अनुसार कई अधिकारियों के त्याग पत्र के पीछे विभाग के उच्च अधिकारियों की आपसी रार मुख्य कारण है। 2023 में तत्कालीन आपदा प्रबंधन सचिव रंजीत सिन्हा और अपर सचिव सविन बंसल के बीच मतांतर की छाया विभाग में पड़नी शुरू हुई थी। सूत्रों की मानें तो इस विवाद का कारण आईटी पार्क स्थित आपदा प्रबंधन भवन के निर्माण में लापरवाही और गुणवत्ता में कमी चलते सविन बंसल द्वारा ठेकेदार के खिलाफ 6 करोड़ की पेनाल्टी लगाना था। परंतु उक्त पेनाल्टी को शासन द्वारा माफ कर दिया गया। इसके चलते सचिव रंजीत सिन्हा और अपर सचिव सविन बंसल के बीच विवाद इतना बढ़ा कि आपदा प्रबंध विभाग से सविन बंसल की ही छुट्टी कर दी गई।
उल्लेखनीय है कि आईएएस सविन बंसल प्रदेश के एक मात्र ऐसे आईएएस अधिकारी हैं जो लंदन विश्वविद्यालय से डिजास्टर मैंनेजमेंट में उच्च शिक्षा हासिल कर चुके हैं और उनके बराबर आपदा राहत, आपदा प्रबंधन का जितना अनुभव है सम्भवतः किसी अन्य अधिकारी को भी नहीं है। आपदाग्रस्त प्रदेश में आपदा प्रबंधन में विशेष योग्यता रखने वाले अधिकारी को ही विभाग से चलता किए जाने का असर समूचे विभाग पर पड़ा और एक के बाद एक कई अधिकारियों ने अपने पद से त्याग पत्र देना शुरू कर दिया। फरवरी 2024 को आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ गिरीश चंद जोशी ने भी अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। इन सबके बावजूद विभाग की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया। उल्टा रंजीत सिन्हा द्वारा त्याग पत्र देने वाले कई अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया जिसमें इन अधिकारियों पर आपराधिक षड्यंत्र रचने, धोखधड़ी करके प्रोजेक्ट पर काम कर रही कम्पनी को फायदा पंहुचाने और विभाग को कई करोड़ का नुकसान होने की बात कही गई है। हास्यास्पद यह कि एक अधिकारी को कारण बताओ नोटिस देकर 2013 की आपदा में एयर फोर्स के अधिकारियों को खिलाए गए खाने का ब्यौरा देने की बात कही गई है।
विभागीय सूत्रों की मानें तो कारण बताओ नोटिस में जो भी आरोप लगाए जा रहे हैं वह बहुत पुराने हैं और इनको लेकर विभाग में कभी कोई कार्यवाही नहीं की गई और न ही इस सम्बंध में कोई जांच या बातें सामने आई लेकिन जैसे ही त्याग पत्र दिए जाने शुरू हुए तो अचानक से पुराने मामलों को नए सिरे से गढ़कर कर्मचारियों और अधिकारियों को परेशान किया जा रहा है। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी का कहना है कि ‘आपदा विभाग में अपने सम्मान और योग्यता को दांव पर रखकर ही सेवा की जा सकती है, अगर आपने इस विभाग से पल्ला झाड़ने या बाहर निकलने का प्रयास किया तो आपके खिलाफ कई मामले बनाकर लगा दिए जाते हैं जिससे कोई भी अपनी बात नहीं कह पाता।’
एक अधिकारी का तो यह कहना है कि उनके वेतन और भत्तों का हिसाब तक नहीं हो पाया है, अगर उन्होंने आपदा विभाग के खिलाफ कुछ भी जानकारी प्रेस या मीडिया को दी तो उनको वेतन मिलना मुश्किल कर दिया जाएगा, साथ ही उनके खिलाफ भी कोई मामला बना दिया जाएगा।
गिरीश चंद जोशी के मामले में कारण बताओ नोटिस में एक निजी कम्पनी के हित में काम करने और उक्त कम्पनी को दिए गए कार्य के पूरा होने से पहले ही उसे भुगतान करने का आरोप लगाया गया है। जबकि इन सभी कार्यों की वैटिंग आईआईटी रुड़की से कराई गई है और सिंचाई कार्यों और लैंड स्लाइडिंग के कार्यों का टीएचडीसी द्वारा अप्रुवल किया गया है।
गौरतलब है कि विश्व बैंक द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त करने की एक विस्तृत प्रक्रिया होती है जिसे ‘इम्प्लीमेंटेशन कम्प्लीशन एंड रिजल्ट रिपोर्ट (आईसीआर) कहा जाता है। इस प्रक्रिया के आधार पर ही विश्व बैंक द्वारा आर्थिक सहायता किसी प्रोजेक्ट के लिए दी जाती है। गिरीश चंद जोशी के आपदा विभाग में रहते विश्व बैंक द्वारा 1600 करोड़ के प्रोजेक्ट स्वीकृत किए गए लेकिन उनकी योग्यता का सम्मान करने के बजाय रंजीत सिन्हा ने उन्हें ही कारण बताओ नोटिस जारी कर डाला जिससे खिन्न जोशी ने न केवल त्याग पत्र दे दिया है बल्कि कारण बताओ नोटिस का जबाब देते हुए सचिव आपदा रंजीत कुमार सिन्हा पर ही आरोप लगा डाले हैं। अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को मानहानि की श्रेणी में बताते हुए कानूनी कार्यवाही तक की बात कह डाली है।
इसी प्रकार सूत्रों के अनुसार रंजीत सिन्हा ने आपदा प्रबंधन सचिव रहते बैंकॉक के ख्याति प्राप्त संस्थान ‘एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ को भी प्रदेश में आपदा प्रबंधन का कार्य संतोषजनक न करने सम्बंधी आरोप पत्र भेजा है। आपदा विभाग के अधिकारियों की मानें तो यह संस्थान पूरे प्रदेश का डिजास्टर डाटा मैनेजमेंट कर रहा है और इसका कार्य संतोषजनक रहा है।
उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के 30 नवम्बर 2021 को गठित पुनर्गठित ढांचे अनुसार 6 पद शासन के अधीन हैं जिसमें मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव, अपर सचिव, अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी, संयुक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी और वित्त अधिकारी शामिल हैं।
प्रशासनिक शाखा में दस पद स्वीकृत हैं जो पदोन्नति, प्रतिनियुक्ति, सीधी भर्ती और आउट सोर्सिंग से भरे जाने के नियम के अनुसार रखे गए हैं।
इसी तरह से क्रियान्वयन और परियोजना शाखा में 16 पद हैं जो संविदा और आउट सोर्सिंग के तहत रखे गए हैं। जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकारण डीडीएमए में 10 पद जिन्हें पदेन, सीधी भर्ती, प्रतिनियुक्ति, संविदा और आउट सोर्सिंग के अंतर्गत रखा गया है। जिला आपातकालीन परिचालन केंद्र्र डीईओसी में 3 पद जो संविदा और आउटसोर्स के माध्यम से रखने का प्रावधान किया गया है। सूत्रों की मानें तो आपदा प्रबंधन विभाग का ढांचा तो खड़ा कर दिया गया है लेकिन पदों को भरा नहीं गया है।
आपदा प्रबंधन विभाग में इस तरह से लगातार एक के बाद एक त्याग पत्र देकर विभाग को छोड़ने के मामले में प्रदेश कांग्रेस खासतौर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर हमलावर हो चुकी है। कांग्रेस ने इस मामले में मुख्यमंत्री पर ही गंभीर आरोप लगाए हैं। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव और कार्यक्रम निदेशक रजीत सिन्हा को आपदा प्रबंधन और पुनर्वास और सचिव राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकारण के पद से हटा दिया है और विनोद कुमार सुमन को सचिव आपदा प्रबंधन, पुनर्वास और सचिव राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकारण बना दिया गया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि मानूसन सीजन में होने वाली आपदा से आपदा प्रबंधन किस तरह निपटने की तैयारी करता है क्योंकि जो तैयारी मानसून से पूर्व की जानी चाहिए थी उस समय तो विभाग में त्याग पत्र देने का माहौल चल रहा था।
लचर ही रहा राज्य में आपदा प्रबंधन विभाग
उत्तराखण्ड प्रदेश अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही आपदा से जूझता रहा है। करीब दो सौ वर्ष के कालखंड में इस क्षेत्र में भयंकर प्राकृतिक आपदा आई जिसमें हजारों लोगों की असामयिक मौत हुई। राज्य बनने के बाद पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने वर्ष 2002-03 में राज्य में आपदा प्रबंधन विभाग का महत्व समझते हुए उसका एक अलग मंत्रालय गठन किया। इसके आधीन डीएमएमसी यानी आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र बनाया गया जिसको सचिवालय में स्थापित किया गया।
वर्ष 2005 में केंद्र्र की यूपीए सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन एक्ट बनाया और इसको देश के सभी राज्यों में लागू करने के निर्देश दिए गए जिसके तहत आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन की कार्यवाही आरम्भ की गई और 2008 में बी.सी. खण्डूड़ी सरकार द्वारा प्रदेश में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन कर दिया गया।
दुर्भाग्य से बीसी खण्डूड़ी जैसे कड़क और मजबूत प्रशासनिक क्षमता वाले मुख्यमंत्री भी अपने कार्यकाल में आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन करने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए और यह प्राधिकारण सिर्फ कागजों या सरकारी फाइलों में ही बना रहा। वर्ष 2013 में केदारनाथ में भीषण आपदा आई जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 5 हजार लोगों की मौत हुई जबकि गैर सरकारी आंकड़ों में 20 हजार लोगों की मौत का अनुमान है। इस भीषण आपदा का प्रदेश में सामाजिक और आर्थिक स्तर पर बड़ा असर पड़ा।
2014 में विश्व बैंक द्वारा केदारनाथ आपदा में राहत और निर्माण के लिए 1500 करोड़ तथा एशियन डेवलपमेंट बैंक एडीबी द्वारा 1200 करोड़ा की राशि कुछ शर्तों पर प्रदेश को दी गई जिसमें पहली शर्त यही थी कि आपदा प्रबंधन में तकनीकी और आपदा से जुड़े विषयों के विशेषज्ञों की नियुक्ति की थी। इस पर सरकार को इन पदों को भरने के लिए मजबूर होना पड़ा और इसके लिए सभी नियुक्तियों को संविदा पर भर्ती करने के लिए निर्णय लिया जिसमें वैज्ञानिक, प्रोफेसरों और भूगर्भीय शास्त्रियों को संविदा पर सिर्फ प्रोजेक्ट के आधार पर ही नियुक्त किया गया।
हैरत की बात यह है कि 2014 से लेकर 2017 तक राज्य सरकार और नौकरशाही पूरे 3 साल तक आपदा प्रबंधन जैसे अति महत्वपूर्ण विभाग में काम चलाऊ व्यवस्था से ही काम करती रही। 2017 में विश्व बैंक के जबरदस्त दबाव चलते आखिरकार सरकार को आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के ढांचे की याद आई और 2018 में इसका एक ढांचा खड़ा कर इसमें तय पदों को भरा गया।
प्रदेश की नौकरशाही आपदा को लेकर कितना काम करती है इसकी हकीकत इस बात से भी खुल जाती है कि जो आपदा न्यूनीकरण प्रबंधन केंद्र्र यानी डीएमएमसी जो बेहतर काम कर रहा था उसे बंद करके एसडीएमएमए में समायोजित कर दिया। साथ ही 2022 में फिर से एक कारनामा किया गया और एसडीएमएमए के अंतर्गत एक अन्य ऑटोनोमस बॉडी ‘उत्तराखण्ड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र्र’ बना दिया जिसमें नए-नए पदों का सृजन किया गया और इसके लिए अलग से बजट की व्यवस्था बनाई गई। गौर करने वाली बात यह है कि राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन प्राधिकरण के गठन के बाद सभी संस्थाएं और केंद्र्र इसमें समायोजित होने थे। 2020 में डीएमएमसी को तो समायोजित किया गया लेकिन फिर अचानक ही एक नया केंद्र्र भूस्खलन के नाम पर बना दिया गया जिसमें नए पद सृजित किए गए और बजट भी रख दिया गया।
बात अपनी-अपनी
राज्य आपदा प्रबंधन विभाग में तमाम गड़बड़ियां चल रही हैं लेकिन इनको कभी देखने की फुर्सत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को नहीं मिली। राज्य में मानूसन सीजन से पहले ही आपदा आ चुकी है। जंगलों की भीषण आग में जहां हमारे वन कर्मचारियों की मौत आग बुझाने के दौरान हो चुकी है तो वहीं कई नागरिक भी मारे गए हैं। लेकिन न तो मुख्यमंत्री का आपदा विभाग जागा और न ही बरसात के सीजन में होने वाली आपदा में आपदा विभाग नजर आ रहा है। आपदा प्रबंधन विभाग पूरी तरह से फेल हो चुका है। जो अधिकारी नौकरी छोड़ रहे हैं उनके खिलाफ आरोप लगाकर उनको परेशान किया जा रहा है। मुख्यमंत्री जी आप कब अपने विभाग की सुध लेंगे। केवल सचिव का ट्रांसफर करने से ही हालात नहीं सुधरने वाले। अगर हालात सुधारने हैं तो आमूलचूल बदलाव करिए और वास्तव में आपदा प्रबंधन दिखाइए।
गरिमा दसौनी, मुख्य प्रवक्ता, प्रदेश कांग्रेस कमेटी
अब मैं आपदा प्रबंधन सचिव नहीं हूं। मैं इस पर कोई बात नहीं कर सकता। अब जो हैं उनसे बात कीजिए।
रंजीत कुमार सिन्हा, पूर्व सचिव आपदा प्रबंधन उत्तराखण्ड
ये मामला तो डिपार्टमेंट का इंटरनल है, मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि ये मीडिया तक कैसे पहुंचा है। वैसे भी मैं इस डिपार्टमेंट में अब नहीं हूं तो मैं डिपार्टमेंट के इंटरनल मामलों पर कोई कमेंट नहीं करूंगा।
सविन बंसल, पूर्व अपर सचिव, आपदा प्रबंधन
अभी तो मैं इस विभाग में आया हूं, विभाग को देख-समझ लें, लोगों ने रिजाईन क्यों दिया, स्टाफ की कमी है ये सब देखेंगे, व्यवस्था करेंगे। अभी इतना ही कह सकता हूं।
विनोद कुमार सुमन, सचिव, आपदा प्रबंधन पुनर्वास एवं राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
अपने काम से रिजाइन करने के पीछे अपने-अपने कारण होते हैं। मैंने 20 वर्ष अपना काम किया अब मेरे व्यक्तिगत कारण हैं जिनके कारण में अब काम नहीं करना चाहता। आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र का विलय होने पर मैं अपने काम को लेकर कुछ सोच नहीं पा रहा था इसलिए मैंने त्याग पत्र देना उचित समझा। यह मेरा व्यक्तिगत निर्णय है अब मैंने त्याग पत्र दे दिया है तो अब इस पर मैं ज्यादा नहीं बोलना चाहता।
डॉ. पीयूष रौतेला, एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर, आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र