डोनाल्ड ट्रम्प की सम्भावित वापसी ने विश्व के कई देशों को चिंतित कर दिया है। उनकी पूर्ववर्ती नीतियों और कार्यशैली के कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह सवाल कर रहा है कि क्या उनकी वापसी से वैश्विक शांति और स्थिरता खतरे में पड़ जाएगी? हालांकि यह कहना मुश्किल है कि वापसी के बाद उनकी नीतियों में कोई बदलाव आएगा या नहीं लेकिन इतना निश्चित है कि उनकी वापसी विश्व व्यवस्था के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हो सकती है
डोनाल्ड ट्रम्प, जो अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति रह चुके हैं, जनवरी 2025 में दोबारा राष्ट्रपति पद संभालने की संभावना के साथ एक बार फिर चर्चा में हैं। उनकी वापसी की आहट ने वैश्विक समुदाय में गहरी चिंताओं को जन्म दिया है। उनकी पूर्ववर्ती कार्यशैली और नीतियों के कारण, कई देशों में यह सवाल उठ रहा है कि अगर ट्रम्प दोबारा राष्ट्रपति बने तो विश्व व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर क्या प्रभाव पड़ेगा? विशेषकर रूस-यूक्रेन और फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष के संदर्भ में ट्रम्प के पिछले कार्यकाल की नीतियों और उनके हालिया बयानों के आधार पर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उनकी नीतियां इन संघर्षों को किस दिशा में प्रभावित कर सकती हैं। इसके अलावा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका पर भी चर्चा प्रासंगिक हो जाती है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर खतरा
ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति ने उनके पहले कार्यकाल में वैश्विक सहयोग को कमजोर किया। संयुक्त राष्ट्र, नाटो, और विश्व व्यापार संगठन जैसे संस्थानों के प्रति उनकी आलोचनात्मक दृष्टि ने बहुपक्षीय सहयोग की जड़ें हिला दी थीं। अब उनकी वापसी से यह चिंता बढ़ गई है कि वे अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों को फिर से दरकिनार कर सकते हैं, जिससे वैश्विक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
चीन और रूस के साथ तनाव
ट्रम्प के समय में अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। साथ ही, रूस के साथ उनके असामान्य सम्बंधों ने यूरोपीय देशों में असमंजस की स्थिति पैदा कर दी थी। उनकी वापसी की सम्भावना से चीन और रूस से जुड़े जटिल मुद्दों पर फिर से अनिश्चितता पैदा हो सकती है।
जलवायु परिवर्तन पर उदासीनता
ट्रम्प प्रशासन के दौरान अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से हटकर पर्यावरणीय मुद्दों को नजरअंदाज किया था। उनकी वापसी से यह डर है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को फिर से झटका लगेगा, क्योंकि उनके नेतृत्व में अमेरिका पर्यावरणीय नीतियों पर कम प्राथमिकता दे सकता है।
लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रभाव
कैपिटल हिल पर 6 जनवरी 2021 को हुए हमले और ट्रम्प द्वारा चुनाव परिणामों को अस्वीकार करने की घटनाओं ने अमेरिका की लोकतांत्रिक प्रणाली की छवि को नुकसान पहुंचाया। उनकी वापसी से विश्व के अन्य देशों में अधिनायकवादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिल सकता है और लोकतंत्र पर वैश्विक विश्वास कमजोर हो सकता है।
व्यापार और आर्थिक प्रभाव
ट्रम्प की विवादास्पद व्यापार नीतियां और संरक्षणवादी दृष्टिकोण ने वैश्विक आपूर्ति श्ृंखला पर असर डाला था। उनकी वापसी से यह डर है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता बढ़ सकती है, विशेष रूप से उन देशों में जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं।
प्रवासन और मानवीय अधिकारों पर प्रभाव
ट्रम्प के पहले कार्यकाल में कठोर प्रवासन नीतियों ने अमेरिका की मानवीय छवि को नुकसान पहुंचाया था। उनकी वापसी से प्रवासी अधिकारों और मानवीय मूल्यों को लेकर फिर से चिंताएं बढ़ सकती हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध पर ट्रम्प की संभावित नीति
ट्रम्प का रुख रूस और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति नरम माना गया है। उनके कार्यकाल के दौरान, ट्रम्प ने कई बार पुतिन की तारीफ की और रूस के प्रति कठोर कदम उठाने से परहेज किया।
ट्रम्प रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए एक त्वरित समझौते का समर्थन कर सकते हैं। उन्होंने पहले भी कहा है कि वह ‘24 घंटे में’ युद्ध को समाप्त कर सकते हैं। हालांकि यह सम्भव है कि यह समझौता रूस के पक्ष में झुका हुआ हो, क्योंकि ट्रम्प ने यूक्रेन को दिए जाने वाले भारी सैन्य समर्थन की आलोचना की है। यूरोप और नाटो सहयोगियों पर ट्रम्प पहले से ही खर्च कम करने का दबाव डालते रहे हैं, जिससे यूक्रेन को मिलने वाली सामूहिक सहायता कमजोर पड़ सकती है।
फिलिस्तीन-इजरायल युद्ध पर ट्रम्प की संभावित नीति
ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में इजरायल के प्रति अत्यधिक समर्थन दिखाया। उन्होंने यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी और अमेरिकी दूतावास को वहां स्थानांतरित किया। इसके अलावा, ‘अब्राहम समझौते’ के माध्यम से उन्होंने इजरायल और अरब देशों के बीच सम्बंध सुधारने की पहल की। ट्रम्प का इजरायल के प्रति समर्थन और अधिक मजबूत हो सकता है और वे गाजा पट्टी में फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायल की सैन्य कार्रवाइयों का खुलकर समर्थन कर सकते हैं। फिलिस्तीनी अधिकारों और मानवीय मुद्दों को उनके प्रशासन में प्राथमिकता नहीं मिलने की संभावना है। ट्रम्प क्षेत्रीय शांति समझौतों को आगे बढ़ाने का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन यह अरब देशों और फिलिस्तीनियों की कीमत पर हो सकता है।
क्या तीसरे विश्व युद्ध की आशंका बढ़ेगी?
ट्रम्प की वापसी के बाद तीसरे विश्व युद्ध की आशंका को लेकर चिंता बढ़ सकती है। इसके पीछे कई कारण हैं। अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता: ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और बहुपक्षीय सहयोग के प्रति उनकी उदासीनता अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती है। ट्रम्प ने पहले नाटो को ‘अनावश्यक’ बताया था। उनकी वापसी से यूरोपीय सुरक्षा कमजोर हो सकती है, जो रूस को और अधिक आक्रामक बना सकता है। मध्य पूर्व में तनावः फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष में ट्रम्प का इजरायल के प्रति पक्षपात क्षेत्रीय तनाव को और गहरा कर सकता है, जिससे बड़े पैमाने पर संघर्ष की आशंका बढ़ सकती है।
चीन और ताइवान
ट्रम्प ने चीन के खिलाफ आक्रामक आर्थिक और राजनीतिक नीतियां अपनाई थीं। उनकी वापसी से चीन और ताइवान के बीच तनाव बढ़ने की सम्भावना है, जो वैश्विक संघर्ष का कारण बन सकता है।
कुल मिलाकर डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी से रूस-यूक्रेन और फिलिस्तीन-इजरायल जैसे बड़े संघर्षों पर अमेरिका की नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकते हैं। ट्रम्प के व्यक्तित्व और उनकी नीतियों की आक्रामकता से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव बढ़ सकता है। हालांकि तीसरे विश्व युद्ध की संभावना सीधे तौर पर उनकी नीतियों पर निर्भर करेगी, लेकिन उनकी वापसी से वैश्विक स्थिरता को खतरा जरूर हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रम्प का पहला कार्यकाल सहयोग के बजाय टकराव की राह पर चला था। ऐसे में रूस-यूक्रेन और फिलिस्तीन- इजरायल जैसे बड़े संघर्षों पर अमेरिका की नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकते हैं। ट्रम्प के व्यक्तित्व और उनकी नीतियों की आक्रामकता से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव बढ़ सकता है।