उत्तराखण्ड में भाजपा बीते 7 बरस से सत्ता में काबिज है। इन सात बरसों के दौरान 4 बरस तक राज्य सरकार की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत के हाथों में थी। त्रिवेंद्र ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में कई भाजपा नेताओं को सरकारी निगमों और उपक्रमों का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष अथवा सदस्य मनोनीत किया था। ऐसे सभी नेता त्रिवेंद्र के करीबियों में गिने जाते थे। फिर राज्य में एकाएक सीएम बदल दिया गया और युवा नेता पुष्कर सिंह धामी को भाजपा आलाकमान ने राज्य सरकार का मुखिया बना दिया। धामी के गद्दी पर काबिज होने के बाद ऐसे भाजपा नेता और कार्यकर्ता उत्साहित हो उठे जिन्हें त्रिवेंद्र सरकार के दौरान उपेक्षा का शिकार होना पड़ा था। इन नेताओं में धामी के करीबी और चहेते भाजपाई शामिल थे। इन सभी को उम्मीद थी कि अब उनके दिन बहुरेंगे और धामी उन्हें सरकारी पद दे उपकृत करेंगे। ऐसा लेकिन हुआ नहीं है।

देहरादून के सत्ता गलियारों में दायित्वधारियों का नाम और उन्हें मिलने वाले पद की बाबत कई बार बकायदा लिस्ट तक लीक होती देखी गई है। लेकिन हर बार यह लिस्ट फर्जी निकलती है। धामी अपने करीबियों को बीते तीन बरस से लगातार अच्छे दिन आने का लालीपॉप दिखा तो रहे हैं लेकिन हाथ में पकड़ा नहीं रहे हैं। खबर जोरों पर है कि ‘लालबत्ती’ पाने की आस लगाए धामी के करीबी नेता इन दिनों गहरी निराशा में हैं और इनमें से कई खुलकर मुख्यमंत्री की खिलाफत तक करने लगे हैं। खबर यह भी जोरों पर है कि ऐसे नेताओं को प्रदेश के एक लोकसभा सांसद इन दिनों अपनी तरफ करने में जुट गए हैं। ये सांसद भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के विश्वस्त हैं और सीएम पद की रेस में शामिल बताए जाते हैं।

जानकारों का दावा है कि मुख्यमंत्री धामी जान-बूझकर सरकारी दायित्वों को बांटने में देरी कर रहे हैं क्योंकि दर्जाधारी पद सीमित हैं जबकि पद पाने वालों की कतार बहुत लम्बी है। ऐसे में जब कभी भी सीएम लिस्ट जारी करेंगे, जिन्हें जगह नहीं मिलेगी उनके तेवर बागी हो जाएंगे। हालांकि चर्चा यह भी गर्म है कि निकाय चुनाव बाद सीएम कुछ निष्ठावान नेताओं को सरकार में एडजस्ट करने जा रहे हैं। इस बीच राज्य मंत्रिमंडल में बहुप्रतीक्षित विस्तार की खबरें भी इन दिनों तेज हो चली हैं।

बताया जा रहा है कि धामी अपने मंत्रिमंडलल का न केवल विस्तार करने वाले हैं, बल्कि कुछ दागी छवि के मंत्रियों को पद्मुक्त भी किया जा सकता है। ऐसा भी कहा-सुना जा रहा है कि धामी गढ़वाल क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले एक मंत्री को ड्रॉप कर इसी क्षेत्र के एक अन्य विधायक को मंत्री बना सकते हैं। इसी प्रकार कुमाऊं के एक ब्राह्माण विधायक को मंत्री पद दिए जाने की बात भी कही जा रही है।

कुल मिलाकर निकाय चुनाव बाद धामी मंत्रिमंडल में फेरबदल तय सा प्रतीत होता है। राजनीतिक संतुलन साधने के नीयत से मुख्यमंत्री कुछेक भाजपा नेताओं को सरकारी निगमों और उपक्रमों का अध्यक्ष भी बना सकते हैं। हालांकि ऐसे पदों की आस लगाए धामी के करीबी नेता अब निराश हो खेमा बदलने की बात कहने लगे हैं।

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