भारत और बांग्लादेश का रिश्ता वर्षों की मित्रता, बलिदान और सहयोग पर टिका रहा है। परंतु वर्तमान परिदश्य एक नई चुनौती लेकर सामने आया है। बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव, चीन की बढ़ती मौजूदगी और हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार भारत के लिए केवल कूटनीतिक नहीं, नैतिक और सामरिक प्रश्न भी हैं। इस नाजुक दौर में जरूरत है सशक्त, संयमित और दूरदर्शी विदेश नीति की जो रिश्तों को स्थिरता दे सके
भारत और बांग्लादेश का रिश्ता केवल दो देशों का नहीं, बल्कि एक साझा इतिहास, संस्कृति और स्वतंत्रता संग्राम की विरासत से जुड़ा हुआ है। 1971 में जब बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ था तब भारत ने न केवल शरणार्थियों की मदद की, बल्कि सैन्य हस्तक्षेप के जरिए एक नए राष्ट्र के गठन का मार्ग भी प्रशस्त किया। इस ऐतिहासिक भूमिका के कारण भारत-बांग्लादेश सम्बंध लम्बे समय तक सौहार्दपूर्ण बने रहे।
2024 में बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में भूचाल आ गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना को विरोध-प्रदर्शनों और राजनीतिक अस्थिरता के चलते इस्तीफा दे उन्हें भारत में शरण लेनी पड़ी। उनके बाद बनी अस्थायी सरकार ने भारत के साथ हुए कई समझौतों और रणनीतिक सहयोग की समीक्षा आरम्भ कर दी। यहीं से द्विपक्षीय रिश्तों में ठंडापन आना शुरू हुआ है। नई बांग्लादेशी सरकार ने चीन से आर्थिक और अवसंरचनात्मक सहयोग की गति को और तेज कर दिया है। चीन अब तक बांग्लादेश में 2.1 अरब डाॅलर से अधिक का निवेश, ऋण और सहायता दे चुका है। उसने दर्जनों सड़कें, रेलवे लाइनें, पुल और दूरसंचार संरचनाएं तैयार की हैं। भारत के लिए विशेष चिंता का विषय ललमोनिरहाट एयरफील्ड है, जहां चीनी निवेश एक सम्भावित सैन्य-नागरिक दोहरे उपयोग के ढांचे की शक्ल ले सकता है। यह भारत की सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र है।

भारत ने गत सप्ताह बांग्लादेश को दी गई विशेष ट्रांजिट सुविधा को रद्द कर दिया है। यह सुविधा 2020 से सक्रिय थी, जिससे बांग्लादेश को भारतीय भू-भाग से तीसरे देशों को माल भेजने की छूट मिली हुई थी। इसे हटाने के पीछे भारत ने घरेलू व्यापारिक हितों और सीमा शुल्क व्यवस्थाओं में हो रही अव्यवस्थाओं को कारण बताया। मगर, यह फैसला कूटनीतिक संदेश भी है-बदलते समीकरणों के प्रति भारत की असहमति।
संकट में बांग्लादेश निर्यात
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था रेडीमेड गारमेंट निर्यात पर आधारित है। ट्रांजिट सुविधा के हटने से न केवल लाॅजिस्टिक लागत बढ़ेगी, बल्कि निर्यात प्रक्रिया में भी जटिलताएं आएंगी। भारत के बंदरगाहों का उपयोग न कर पाने की स्थिति में बांग्लादेश को वैकल्पिक और अधिक खर्चीले मार्गों की तलाश करनी पड़ेगी, जिससे उसका वैश्विक व्यापार प्रभावित होगा।
धार्मिक तनाव और मानवाधिकार चिंताएं
शेख हसीना के हटने के बाद से बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों में तेजी आई है। रिपोर्टों के अनुसार, अगस्त 2024 के बाद केवल तीन महीनों में 200 से अधिक सांप्रदायिक घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें मंदिरों, घरों और दुकानों को निशाना बनाया गया। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों ने भी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। भारत के लिए यह न केवल मानवीय मुद्दा है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक सम्बंधों से जुड़ा संवेदनशील विषय भी। भारत को बांग्लादेश के साथ संतुलित और स्थिर नीति अपनानी होगी ताकि चीन की बढ़ती घुसपैठ को सीमित किया जा सके।
संवेदनशील कूटनीतिः धार्मिक उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर भारत को सशक्त लेकिन संयमित प्रतिक्रिया देनी होगी। साहित्य, शिक्षा और धार्मिक यात्राओं के माध्यम से जनस्तर पर जुड़ाव फिर से मजबूत किया जा सकता है। भारत और बांग्लादेश का रिश्ता वर्षों की मित्रता, बलिदान और सहयोग पर टिका रहा है। परंतु वर्तमान परिदश्य एक नई चुनौती प्रस्तुत करता है। बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव, चीन की बढ़ती मौजूदगी और हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार भारत के लिए केवल कूटनीतिक नहीं, नैतिक और सामरिक प्रश्न भी हैं। इस नाजुक दौर में जरूरत है सशक्त, संयमित और दूरदर्शी विदेश नीति की – जो रिश्तों को दोबारा प्रगाढ़ और स्थिर बना सके।

